इंतज़ार की घड़ियाँ होती हैं लम्बी ,
मग़र यह दिल करता फिर भी इंतज़ार —-
तेरे आने का , तुझको पाने का —–
सूने – सूने रास्तों पे ,
घूमती हैं हसरत भरी निगाहें ,
तुझको आना है , और तूं आएगी ही ,
मेरे दिल को है यह याकीन —-
और तब यह बेक़रार दिल ,
खो जायेगा तेरी नरम बाहों में —–
मग़र —- न तूं आई , न आई तेरी ख़बर ,
सूनी सूनी राहें , सताने लगी मन , तड़पाने लगी दिल —–
तेरे आने की उम्मीद , होने लगी नाउम्मीद —–
मग़र यह दिल करता फिर भी इंतेज़ार —-
तेरे आने का , तुझ को पाने का —–
पत्तियों की सरसराहट भी लगती है तेरे क़दमों की आवाज़ ,
पुरवईया के झौंके , तेरे प्यार की भीनी भीनी खुशबू ,
सितारों भरा गगन , तेरा लहराता हुआ आँचल ,
झरनों की झनझनाहट — तेरी पायल का संगीत ,
पूर्णिमा के चाँद की चांदनी , तेरी बिन्दिया की दमक ,
काले काले बादल , तेरी आँखों का कजला ,
आकाशगंगा — तेरे बालों का गज़रा ,
इंदरधनुष — तेरी मांग में सिंधूर ,
ख़्वाब में तेरी अनुपम अठखेलियाँ —–
जैसे झील की लहरों से हो चाँद का खिलवाड़ ,
तेरा यह लुभावना अनुराग — हो जैसे कोई अनोखा “निमंत्रण” —–
सब कुछ है मगर, इक तूं ना आती नज़र —–
तड़पता है दिल प्यार को, तरसती हैं आंखें “दीदार – ए – यार” को ,
तेरी ज़ुस्तज़ू बनने लगी ग़म —–
मग़र यह दिल करता फ़िर भी इंतज़ार —–
तेरे आने का , तुझको पाने का ——
आरज़ू होती है जिसकी दिल को ,
तड़पाता है वही दिल को ,
“नूरपुरी” के दिल का मग़र अरमान —-
दिल की दिलबर को हो पहचान ,
अरे ! यह क्या कह गया मैं —– ?
तेरी तहरीर , तवारीख और मनोवृति गवाह हैं —–
बेकरार है तूं भी “मधुर मिलन” के लिए —-
मैं समझता हूँ मेरी हमनफ़ज़ ,
वक़्त की नज़ाकत को , हालात की मजबूरियों को ,
मैं जानता हूँ —- तूं आएगी , तुझको आना ही है,
बहती नदिया को बहते जाना ही है ,
ख़त्म करके रास्तों का नाख़ुशगवार सफ़र ,
बहते 2 एक न एक पल सागर में खो जाना ही है ,
और तब होगा —- ” मधुर मिलन ” —–
दिल से दिलबर का ——
सागर से नदिया का —– !!
रचना : आर.डी. भारद्वाज ” नूरपुरी “