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भोपाल, 15 जून, 2020। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की ओर से आयोजित ऑनलाइन व्याख्यानमाला ‘कुलपति संवाद’ के समापन सत्र में जम्मू-कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ प्रो. कुलदीप चंद अग्निहोत्री ने कहा कि भारतीय भाषाओं का मीडिया जब जम्मू-कश्मीर पर लिखता है तो जमीनी हकीकत लिखता है लेकिन विदेशी मीडिया जानबूझकर ऐसे शब्दों को लिखता है, जिसका अर्थ कुछ और होता है। एक मीडिया कहता है कि पांच आतंकवादी मारे गए, वहीं दूसरा मीडिया कहता है कि पांच नागरिक मारे गए। यह जो शब्दों का चयन है, इसके अर्थ और इसके पीछे छिपे एजेंडे को समझना होगा। भारतीय सैनिकों के लिए लिखा जाता है कि सैनिक मारे गए, जबकि उनके लिए लिखा जाना चाहिए कि सैनिक शहीद हुए या बलिदान हुए।
हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. कुलदीप चंद अग्निहोत्री ने ‘जम्मू कश्मीर और मीडिया दृष्टि’ विषय पर अपने व्याख्यान में कहा कि जम्मू-कश्मीर को लेकर विदेशी भाषा के मीडिया में कुछ वर्षों से एक अलग तरह का नैरेटिव चलाया जा रहा है। जम्मू-कश्मीर पर विदेशी भाषा का मीडिया और भारतीय भाषाई मीडिया अलग–अलग भाषा बोल रहा है। जम्मू-कश्मीर को लेकर मीडिया को अपने दृष्टिकोण में बदलाव लाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर को लेकर भ्रम बहुत उत्पन्न किये गए हैं। जम्मू-कश्मीर की समस्याओं को 6 हिस्सों में बांटते हुए उऩ्होंने कहा कि वहां की अपनी तरह की अलग-अलग समस्याएं हैं। लेकिन विदेशी भाषा का मीडिया का एकांकी दृष्टिकोण रहा है। उन्होंने कहा कि राजा हरीसिंह के हस्ताक्षर से जम्मू-कश्मीर बाकी राज्यों की तरह ही भारत में शामिल हुआ था, लेकिन जयपुर, जोधपुर, ग्वालियर और पांच सौ से ज्यादा रियासतों पर बात नहीं की जाती। उन्होंने कहा कि 1952 के अखबारों को देखिए शेख अब्दुल्ला ने महाराजा हरीसिंह के खिलाफ आंदोलन चलाया था। शेख अब्दुल्ला को एसटीएम के मुसलमानों ने समर्थन किया। ये तुर्क, मुगल मंगोल से आए मुसलमान थे, जो हमले के वक्त भारत आए थे।
जम्मू-कश्मीर के तीन नहीं, पांच हिस्से हैं :
अनुच्छेद-370 पर बोलते हुए प्रो. अग्निहोत्री ने कहा कि इसके खत्म होने से दीवार टूट गई है और अब कश्मीर की आवाज बदलेगी। उन्होंने जम्मू कश्मीर के तीन हिस्सों पर कहा कि इसके तीन नहीं पांच हिस्से हैं। गिलगित और बल्तिस्तान भी हैं। ये पाकिस्तान में है। जहां की मीडिया पाकिस्तान की सरकार के साथ है, वहां उन लोगों पर बहुत जुल्म हो रहा है, लेकिन अब वहां के युवा आगे आ रहे हैं।
विदेशी मीडिया का नैरेटिव देश को तोड़ने वाला :
विदेशी भाषाई अखबारों पर बोलते हुए प्रो. अग्निहोत्री ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में उनका नैरेटिव देश को तोड़ने वाला था। कश्मीर में जो अखबार छप रहे थे, वह आतंकवाद के समर्थन में छापते थे। कश्मीर घाटी में मीडिया को बाहर से बहुत पैसा मिलता था। सरकार से विज्ञापन भी मिलता था। उन्होंने कहा कि कश्मीर में ये आम जनता की आवाज का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। उन्होंने कहा कि जो मीडिया आतंकवाद के साये में जीता हो, वह आम जनता का प्रतिनिधित्व कैसे कर सकता है? प्रो. अग्निहोत्री ने कहा कि कश्मीर में कश्मीरी भाषा के अखबार एवं पत्रिकाएँ बहुत ही कम निकलती हैं। ज्यादातर उर्दू में निकलती हैं।