रईस सिद्दीक़ी
पूर्व भाषा अध्यापक, राष्ट्रपति भवन स्कूल नई दिल्ली
पूर्व भ.प्र ,से.,केंद्र निदेशक आकाशवाणी भोपाल
साहित्य अकादेमी पुरस्कार-2018 से पुरस्कृत
मेरे लये यह भावात्मक सुनहरा अवसर है कि मैं अपने उन दिनों को याद कर रहा हूँ जब मैंने लखनऊ विश्वविद्यालय से बी.ए.और कानपूर से बी.एड करने के पश्चात् १९८० में दिल्ली का रुख किया था. उस समय भी नौकरी पाना एक बहुत बड़ी उपलब्धि था. उस समय आज की तरह रोज़गार के अधिक अवसर उपलब्धय नहीं थे क्यूंकि कॉर्पोरेट जगत आज की तरह विशालकाय नहीं था। पढ़े -लिखे युवाओं को अधिकतर सरकारी नौकरियों पर निर्भर रहना पड़ता था और सरकारी नौकरी पढ़े लिखों के लिए किसी शिखर पर पहुँचने के समान था।
दिल्ली आकर मैं ने भी नौकरी तलाश करने का संघर्ष किया । शुरू में दिल्ली के शाहदरा में एक कोचिंग सेंटर में अंग्रेजी पढ़ाना शुरू किया लेकिन इस से इतनी आमदनी नहीं थी की कमरे का किराया और खाने – पीने की सहज और उचित व्यवस्था हो सके. लिहाज़ा रोज़गार -कार्यालय में टी.जी .टी और एल.टी. अध्यापक पद हेतु रजिस्ट्रशन करवाया। १९८३ में दिल्ली शिक्षा निदेशालय से भाषा अध्यापक के साक्षात्कार के लिए पत्र मिला और २४-८-१९८३ को नियुक्ति आदेश पत्र के साथ जब मैं राष्ट्रपति भवन से लगे राष्ट्र पति सम्पदा / प्रेजिडेंट स्टेट के अंदर स्तिथ गवर्नमेंट को -एड सीनियर सेकंडरी स्कूल ज्वाइन करने पहुंचा तो मेरी ख़ुशी ठिकाना नहीं था क्यूंकि यह विद्यालय कई एकड़ मैं स्थित है. बड़ा सा खेल का मैदान, सिंगल स्टोरी बिल्डिंग में बहुत से कमरों पर आधारित बड़े -बड़े साफ़ सुथरे क्लास रूम, स्पीकर और दूसरी सुविधाओं से सुसज्जित किसी भी बड़े पब्लिक स्कूल से हमारा स्कूल कम नहीं है।
वास्तव में यह स्कूल प्रेजिडेंट स्कूल / राष्ट्रपति भवन स्कूल के नाम से जाना जाता था और इस विद्यालय में राष्ट्रपति भवन में काम करने वाले अधिकारीयों और कर्मचारियों के अलावा मंत्री, एम.पी., एम.एल.ए. पार्षद और बेरोक्रेट्स के बच्चे पढ़ते थे. यहाँ दाख़िला पाना आसान नहीं था क्यूंकि यह विद्यालय के.जी. , प्राइमरी , मिडिल, सेकंडरी और सीनियर सेकंडरी को -एड स्कूल है।
अब इस विद्यालय का नाम डॉ. राजेंद्र प्रसाद सर्वोदय विद्याला रख दिया गया है।
इस विद्यालय को मैं कभी नहीं भूल सकता हूँ क्यंकि की इसविद्यालय ने मुझे अनेक अविस्मरणीय अवसर दिए हैं और मेरे व्यक्तित्व के विकास में यादगार और अहम् रोल अदा किया है ।
अध्यापक बनने से पहले मैं आकाशवाणी में आकस्मिक हिंदी एवं उर्दू समाचार वाचक , उद्घोषक, नाट्य-स्वर कलाकार, कहानी, नाटक व वार्ताकार की हैसियत से जाता रहता था. शायद इस कारण प्रिंसिपल ने मुए चार हाउसेस का चीफ हाउस मास्टर और डिसिप्लिन इंचार्ज बना दिया. इस से मुझे खुद को अनुकरणीय अध्यापक और छात्र -छात्राओं को अनुशासतीत करने तथा विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियों के प्रति उन्हें प्रेरित करने की मुझे अप्रत्यक्ष रूप से ट्रेनिंग मिली. मैं बच्चों को आकाशवाणी और दूरदर्शन के कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए लेजाता जिस कारण मेरे और छात्रों के बीच और अधिक स्नेही सम्बन्ध बने। आज भी बहुत से छात्र मुझे सोशल मीडिया के ज़रिये याद करते रहते हैं जो अब मेरी ज़िंदगी का खूबसूरत सरमाया है।
मैं यहाँ मिडिल क्लासेस को उर्दू और नवीं एवं दसवीं को अंग्रेज़ी पढ़ाता था, वर्ष १९८५-८६ में दसवीं क्लास का १०० प्रति शत रिज़ल्ट दिया। इस से मुझे वेकेंट पीरियड में ग्यारहवीं और बारहवीं के छात्रों को अंग्रेजी पढ़ाने का अवसर मिला जिसका फायदा यह हुआ की मुझे दूरदर्शन के स्कूल टी. वी. के अंग्रेजी प्रोग्रामों में अभिनेता के रूप में पहली बार मौक़ा मिला और इसके बाद काम करने के अनेक अवसर मिलते रहे।
इतना ही नहीं , चीफ हाउस मास्टर होने के नाते मुझे नवीं और ग्यारहवीं के छात्र -छात्राओं को लेकर ट्रैकिंग के लिए त्रिवेन्द्रम से कन्या कुमारी, कोल्हाई ग्लैशियर कश्मीर, मसूरी और रॉक क्लाइम्बिंग के लिए नूह हरयाणा जाने का मौक़ा मिला । छात्र के साथ छात्रा को होना, मेरी लिए बहुत बड़ी और संवेदनशील ज़िम्मेदारी होती , मैं खुद भी जवान अध्यापक था। इस स्थिति में सभी छात्र – छात्राओं को अनुशासित रखने, धैर्य अपनाने , संयम बरतने, तनाव पर सहजता से क़ाबू पाने की अनमोल कला सीखी।
यूनेस्को और गाँधी दर्शन पर अनेक सामान्य ज्ञान की परीक्षाओं का आयोजन किया जिससे प्रबंधन क्षमता का विकास हुआ।
राज्य स्तर पर सांस्कृतिक कार्यकर्मों , नाटक व खेल कूद में छात्रों सहित भाग लिया और मेरी टीम ने इनाम जीते, व्यक्तिगत इनाम भी मिले जिसने मेरा आत्मविश्वास बढ़ाया जो आगे चलकर भारतीय प्रसारण सेवा ( आकाशवाणी /दूरदर्शन ) में मेरे बहुत काम आया.
इस तरह मेरा विद्यालय मुझे एक अध्यापक के रूप में हमेशा याद रहेगा क्यूंकि मेरा विद्यालय मेरे लिए २४-८-१९८३ से १३-१२-१९९१ तक , न केवल मेरी रोज़ी रोटी का माक़ूल ज़रिया था बल्कि मेरी शख्सियत के सम्पूर्ण विकास के लिए मेरा गुरू भी था और गुरु को जीवन भर न कभी भुलाया जा सकता और न ही कभी उसका एहसान उतारा जा सकता है,शिष्य सदैव अपने गुरु का ऋणि रहता है , मैं भी अपने गुरु का हमेशा क़र्ज़दार रहूँगा।
आज भी मेरे लिए, आकाशवाणी और दूरदर्शन की लम्बी अफसरी सेवा काल की तुलना में, राष्ट्रपति भवन स्कूल में मुलाज़मत का मुख़्तसर सा अरसा ही मेरी ज़िन्दगी का स्वर्णिम दौर था क्यूंकि रेडियो व टीवी के लम्बे सेवा काल के दौरान हज़ारों लोग मेरी मोहब्बत से फ़ैज़याब व लाभान्वित होते रहे लेकिन ९९. ५ प्रतिशत लोगों की नज़रें ,कुर्सी बदलते ही , नज़रें भी बदल जाती हैं जबकि आज भी मेरे बहुत से शिष्य मुझे सोशल मीडिया के ज़रिए तलाश कर के मुझे अपनी बे- ग़रज़ श्रद्धा पूर्ण मोहब्बत से याद करते रहते हैं और अब मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ की राष्ट्रपति भवन स्कूल में गुज़ारा वो मुख़्तसर सा वक़्त ही, मेरी ज़िन्दगी का कुल सरमाया है, कुल जमा पूंजी है !!!