राम-जानकी संस्थान( आरजेएस)नई दिल्ली और तपसिल जाति आदिवासी प्रकटन्न सैनिक कृषि बिकाश शिल्पा केंद्र,गोंटेगेरी, धनियाखली, हुगली,पश्चिम बंगाल द्वारा पिछले छ:साल से सकारात्मक भारत आंदोलन चलाया जा रहा है।
आरजेएस राष्ट्रीय संयोजक उदय मन्ना ने बताया कि भारत में वैचारिक क्रांति से भारत निर्माण की कई गतिविधियां और कोशिशें जारी हैं। इसी के अंतर्गत पूर्वजों की स्मृति में महापुरुषों के नाम राष्ट्रीय सम्मान घोषित किए जा रहे हैं। आरजेएस राष्ट्रीय सम्मान श्रृंखला के अंतर्गत राष्ट्रीय सम्मान कवि रामधारी सिंह दिनकर के नाम होगा जो भेंटककर्ता लेखिका रिंकल शर्माअपने पिताजी स्व० दिनेश चन्द्र शर्मा की स्मृति में प्रदान करेंगी।राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं।उनकी प्रमुख रचनाएं हैं—कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी, उर्वशी, हुंकार, संस्कृति के चार अध्याय, परशुराम की प्रतीक्षा तथा हाहाकार आदि.’दिनकर’ स्वतन्त्रता पूर्व एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतन्त्रता के बाद ‘राष्ट्रकवि’ के नाम से जाने गये। वे छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे। एक ओर उनकी कविताओ में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है। इन्हीं दो प्रवृत्तियों का चरम उत्कर्ष हमें उनकी कुरुक्षेत्र और उर्वशी नामक कृतियों में मिलता है।लेखिका रिंकल शर्मा ने बताया कि आरजेएस का पूर्वजों की स्मृति में महापुरुषों के नाम राष्ट्रीय सम्मान एक अनूठी मुहिम है। मैंने अपने समाजसेवी पिताजी स्व० दिनेश चन्द्र शर्मा की स्मृति में दिनकर जी के नाम आरजेएस राष्ट्रीय सम्मान घोषित किया।*कबीरा हम आये जगत में ,जगत हँसे हम रोये**अब ऐसी करनी कर चले, हम हँसे जग रोये* पिताजी की स्मृति को नमन करते हुए उन्होंने कहा किस्व श्री दिनेश चंद्र शर्मा का जन्म 20 सितम्बर 1959 में उत्तर प्रदेश के आगरा शहर में एक ज़मीदार परिवार में हुआ था। लेकिन 80 के दशक में वे अपने परिवार के साथ दिल्ली शहर में आकर बस गए। अपने सम्पूर्ण जीवनकाल में संघर्षों से जूझने के बावजूद भी उन्होंने कभी हार नही मानी और बहुत से सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों में अपना सहयोग किया। जैसे:-उत्तरप्रदेश के हाथरस जिले में एक प्राचीन तुलसीदास जी के मंदिर का नव निर्माण कराया।
दिल्ली प्रदेश के गाजीपुर इलाके के श्मशान घाट निर्माण में सहयोग राशि भेंट की।दिल्ली से सटे एनसीआर कौशाम्बी के सार्वजनिक पार्क में पेड़ों का दान।धार्मिक आयोजनों जैसे भागवत पुराण और शिव पुराण का सफल आयोजन इत्यादि।जीवन पर्यन्त वो पर्यावरण को हरा भरा रखने हेतु अधिक से अधिक पेड़ लगाओ के अपने संकल्प से जुड़े रहे और 20 सितम्बर 2016 को इस दुनिया को अलविदा कहकर चले गए।उनके द्वारा लगाए गए अनगिनत पेड़ पौधे आज भी लोगों को शीतल छांव प्रदान करते हैं।