संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा घोषित विश्व माता-पिता दिवस 01 जून 2025 के अवसर पर आरजेएस पीबीएच के 366वें कार्यक्रम में , राम जानकी संस्थान पॉजिटिव ब्रॉडकास्टिंग हाउस (आरजेएस पीबीएच -आरजेएस पाॅजिटिव मीडिया के संस्थापक व राष्ट्रीय संयोजक उदय कुमार मन्ना ने कहा कि जीजाबाई, छत्रपति शिवाजी की माता, और विद्यावती, शहीद भगत सिंह की माता के संस्कारों ने इन राष्ट्रीय नायकों में चरित्र और देशभक्ति का संचार किया। उन्होंने आरजेएस पीबीएच के प्रेरणास्रोत अपने माता-पिता, श्री रामजग सिंह (90 वर्ष) और श्रीमती जनक दुलारी देवी (81 वर्ष)को एक हार्दिक कविता समर्पित की, जिसमें कहा गया, “माता-पिता अनमोल रतन हैं उनसे बड़ा कोई भगवान नहीं। जिसे माता-पिता की कद्र नहीं, उससे बड़ा नादान नहीं।” कार्यक्रम के सह-आयोजक आरजेएस युवा टोली, पटना के प्रभारी साधक डा. ओम प्रकाश ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति अपने माता-पिता का सम्मान करें। उन्होंने “अग्नि देव” की अवधारणा पर चर्चा की, जो जीवन की महत्वपूर्ण ऊर्जा है, इसे माताओं की पोषण शक्ति से जोड़ा। साधक ओम प्रकाश ने आधुनिक समय में भी संयुक्त परिवार प्रणाली की वकालत की, यह सुझाव देते हुए कि वीडियो कॉल जैसी तकनीकें दूरियों को पाट सकती हैं और पारिवारिक संबंधों को मजबूत कर सकती हैं। उन्होंने कहा कि माता-पिता ईश्वर का सबसे बड़ा रूप हैं, उनकी दुआओं में शक्ति होती है।
देव संस्कृति विश्वविद्यालय, शांति कुंज, हरिद्वार के निदेशक प्रो.डॉ. अभय सक्सेना ने कहा कि माता-पिता जागृत देवता हैं , जिनके आशीर्वाद बच्चों के कल्याण के लिए महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने सामूहिक रूप से गायत्री मंत्र का जाप किया, सभी के लिए आध्यात्मिक ऊर्जा और आशीर्वाद का आह्वान किया। डॉ. सक्सेना ने जोर दिया कि ईश्वर की सच्ची अभिव्यक्ति माता-पिता के चेहरों पर बच्चों द्वारा लाई गई मुस्कान है। उन्होंने आरजेएस परिवार के मिशन को प्राचीन भारतीय दर्शन “वसुधैव कुटुम्बकम्” विश्व एक परिवार है । उन्होंने कहा कि माता-पिता”जैसा कहें वैसा स्वयं करें” क्योंकि बच्चे अपने बड़ों के आचरण को देखकर सीखते हैं। भले ही गहरा अंधेरा हो, दिया जलाने से किसने मना किया है? उन्होंने संस्कृति और चरित्र के महत्व पर जोर दिया।शक्तिशाली संदेश के साथ ये निष्कर्ष निकाला,यदि आप स्वयं में सुधार करेंगे, तो दुनिया में सुधार होगा।
नीति आयोग, भारत सरकार की मेंटर ऑफ चेंज की डॉ. नैंसी जुनेजा ने पालन-पोषण को केवल एक जिम्मेदारी के बजाय एक “आशीर्वाद” के रूप में परिभाषित किया। प्रत्येक बच्चे में एक अद्वितीय “हुनर” होती है जिसे माता-पिता को अकादमिक उपलब्धियों से परे पहचानना और पोषित करना चाहिए। खलील जिब्रान को उद्धृत करते हुए, उन्होंने जोर दिया कि बच्चे “हमारे माध्यम से आते हैं लेकिन हमसे नहीं,” माता-पिता को अपने बच्चों की आत्म-खोज की यात्रा को सुविधाजनक बनाने के लिए प्रोत्साहित करें बजाय इसके कि वे अपनी छवि थोपें। उन्होंने “जैसा कहें वैसा करें” के सिद्धांत पर जोर दिया, माता-पिता से अपने बच्चों में उन मूल्यों को आत्मसात करने का आग्रह किया जो वे उनमें देखना चाहते हैं, जैसे संस्थानों और शिक्षकों के प्रति सम्मान।
संपूर्णा एनजीओ की संस्थापक अध्यक्ष डॉ. शोभा विजेंद्र ने आरजेएस पीबीएच को कार्यक्रमों से एकजुट करने के लगातार प्रयासों की सराहना की। आज की आत्म-केंद्रित दुनिया में एकता को बढ़ावा देना जरूरी है। उन्होंने बच्चों के जन्म से छह साल तक के गहरे और स्थायी प्रभाव पर जोर दिया। सिगमंड फ्रायड के मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों का हवाला देते हुए कहा कि शिक्षकों और माता-पिता को अगर बच्चों को किसी चीज के लिए मना करना है तो उसके संभावित परिणामों के बारे में भी बताना जरूरी है, तभी बच्चों को सही दिशा दी जा सकती है।
उन्होंने “रील संस्कृति” और सोशल मीडिया पर नकारात्मकता पर खेद व्यक्त किया, जिसे वह मानती हैं कि यह नैतिक कर्तव्यों और सकारात्मक जुड़ाव से विचलित करता है। उन्होंने बाल संस्कार की आवश्यकता पर बल दिया।
आरजेएस पीबीएच के अतिथि संपादक राजेंद्र सिंह कुशवाहा सहित टीफा 25 की कवियत्री रति चौबे, डॉ कविता परिहार, निशा चतुर्वेदी, सरिता कपूर, सुदीप साहू, स्वीटी पॉल और सुरेंद्र सेठी आदि ने अपने माता-पिता को याद किया साथ ही भारत माता और धरती माता को भी नमन् किया। कार्यक्रम में अपूर्वा शर्मा ,माहिरा जुनेजा और आर्येश एस.सोलंकी ने भी विचार व्यक्त किए। इसके अलावा
डा.मुन्नी कुमारी, वैभव भारद्वाज, आलोक कुमार,सोनू कुमार,आशीष रंजन, सुषमा अग्रवाल भी उपस्थित रहे। कार्यक्रम के सह-आयोजक आरजेएस युवा टोली पटना के साधक डा.ओमप्रकाश ने खुशी जाहिर कि और हृदय की गहराई से सभी का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि बच्चों को माता पिता के प्रति हमेशा आभारी रहना चाहिए जिनकी वजह से वो दुनिया में आते हैं। नौ महीने तक मां अपने बच्चे को अपनी कोख में रखती है और बेहद कष्टदायक प्रसव पीड़ा के बाद बच्चे को जन्म देती है। विश्व माता-पिता दिवस के माध्यम से हम सभी आरजेसियंस दुनिया के युवाओं तक माता पिता के महत्व को समझाने में कितना कामयाब हुए ये आप बताएंगे और आरजेएस पॉजिटिव मीडिया यूट्यूब पर कमेंट करेंगे।
आरजेएस पीबीएच ने दुनिया भर के व्यक्तियों को माता-पिता का सम्मान करने, सांस्कृतिक मूल्यों को संरक्षित करने और सामूहिक रूप से एक मजबूत, अधिक सकारात्मक समाज का निर्माण करने के अपने मिशन में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया।