इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व महासचिव डॉ. डी. आर. राय के साथ राम जानकी संस्थान पॉजिटिव ब्रॉडकास्टिंग हाउस की डॉक्टरों पर हमले को रोकने की आवश्यकता के जटिल मुद्दे पर सकारात्मक रूप से बेलाग चर्चा में, यह उभर कर सामने आया कि यह समस्या अपने विभिन्न पहलुओं के फलस्वरुप काफी जटिल ही नही दुस्साध्य प्रतीत होती है। यह आवश्यक समझा गया कि इस मामले में रोगियों के साथ-साथ आम जनता को संवेदनशील बनाने की आवश्यकता है। इसके अलावा चिकित्सा पेशे को कम निर्वैयक्तिक और कम रोबोटिक ढंग से रोगियों के साथ व्यवहार करने की आवश्यकता पर बल दिया गया। रोगियों के रिश्तेदारों की अपने प्रियजनों को हर हाल में बचाये जाने की निराधार उम्मीदों को,भले ही परिस्थितियां मानव नियंत्रण से परे भाग्य से भी प्रभावित हों, तर्कसंगत करने की आवश्यकता महसूस की गई । अस्पतालों में मनोचिकित्सकों और मनोवैज्ञानिकों सहित पर्याप्त कर्मचारियों की आवश्यकता काे भी आवश्यक समझा गया, ताकि किसी निकट और प्रिय व्यक्ति की मृत्यु पर एक रिश्तेदार द्वारा स्वाभाविक रूप से झेले जाने वाले भावनात्मक आघात को संभाला जा सके।
जो डॉक्टर अपनी विशेषज्ञता के अनुसार पेशेवर रूप से अपना कर्तव्य निभाते हैं, और जिन्होंने कोविड महामारी के दौरान प्रशंसनीय सेवा की, जब बड़ी संख्या में डॉक्टर वायरल संक्रमण के शिकार हो गए थे, उन्हें एसे सुरक्षित एवं निर्विघ्न वातावरण की जरूरत है, जिससे गंभीर रोगियों को देखते समय वे कभी भी परेशान और चिंतित महसूस न करें। जैसा कि उल्लेख किया गया है कि चिकित्सकीय लापरवाही के लिए चिकित्सा कर्मियों पर मुकदमा चलाने के ताे प्रावधान हैं, जाे कि उचित हैं; लेकिन चिकित्सा समुदाय के खिलाफ हिंसा के दोषियों पर जल्द से जल्द मुकदमा चलाने के लिए केंद्र में शायद ही कोई कड़ा कानून है। चर्चा के दौरान, जहाँ आयुष्मान भारत मिशन की सराहना की गई, वहीं अस्पतालों में चिकित्सा के बुनियादी ढांचे में सुधार करने और रोगियों की भीड़ से पर्याप्त रूप से निपटने के लिए पर्याप्त स्टाफ की आवश्यकता भी महसूस की गई थी। आरजेएस पीबीएच द्वारा यह टिप्पणी भी विशेषकर की गई कि जहाँ डॉक्टर आज तक शपथ लेते समय उन सिद्धान्तों काे दाेहराते हैं, जो लगभग 2500 साल पहले हिप्पार्कस द्वारा डॉक्टरों द्वारा किए जाने वाले महान कर्तव्यों के बारे में बतलाए गये थे, वहीँ आज की जमीनी हकीकत यह है कि अब चिकित्सा -पेशे का अत्यधिक व्यवसायीकरण हो चुका है। उक्त आदर्शाें आैर आज की हकीकत में काेई मेल नहीं है। अन्ततः आवश्यक बिंदुओं पर व्यापक रूप से चर्चा का निष्कर्ष यह निकला कि (i) एक सख्त कानून और उसके प्रभावी रूपेण लागू करने की जरूरत है, ताकि चिकित्सा समुदाय शांतिपूर्ण दक्षता समेत समाज के लिए अपने कठिन पेशेवर कर्तव्यों को पूरा कर सकें। और समान रूप से यह भी महत्वपूर्ण माना गया कि (ii) शिक्षण संस्थानों में अध्ययन के समय से ही पेचीदा मुद्दे पर रोगियों, चिकित्सा समुदाय और आम जनता सहित सभी संबंधितों को संवेदनशील बनाने की आवश्यकता है। पूर्व महासचिव इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (मुख्यालय) डा डी आर राय से बातचीत के बाद सकारात्मक वार्ता में आरजेएस प्रवक्ता अशोक कुमार मलिक ने कहा कि आरजेएस अपनी ओर से समाज से संबंधित मुद्दों के समग्र विश्लेषण की अपनी संस्कृति के माध्यम से समाज की बेहतरी के लिए विभिन्न तरीकों से सकारात्मक ऊर्जा का संचार कर रहा है।