भारतरत्न डॉ. कलाम की पुण्यतिथि पर आरजेएस फैमिली द्वारा श्रद्धांजलि ,डॉ. कलाम राष्ट्रीय सम्मान घोषित.

अक्सर बुजुर्गों को शिकायत रहती है कि नए बच्चे महापुरुषों और वरिष्ठ नागरिकों का सम्मान नहीं करते। बात भी सही है। इसके समाधान की कोशिश में रामजानकी संस्थान (आरजेएस) नई दिल्ली और टीजेएपीएस केबीएसके, गुंटेगोरी हुगली पश्चिम बंगाल ने एक अनूठी पहल शुरू की है ।आरजेएस के राष्ट्रीय संयोजक उदय कुमार मन्ना  ने बताया कि परिवार के दिवंगत बुजुर्गों/ पूर्वजों की स्मृति में महापुरुषों का सम्मान करने की परंपरा प्रारंभ की गई है।  

इस कड़ी में डाॅ. नरेंद्र टटेसर निदेशक पूर्ति फूड विजन की ओर से अपने पिताजी स्व० चौधरी बलवंत सिंह नंबरदार  और विश्व ब्राह्मण महापरिषद, बालाघाट मध्य प्रदेश की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अपने पिताजी स्वर्गीय चिमनलाल लाभशंकर रावल और माता जी स्वर्गीय श्रीमती रामागौरी चिमनलाल रावल की स्मृति में आरजेएस भारत-उदय डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम राष्ट्रीय सम्मान भेंट करेंगे।डा कलाम का पूरा नाम अबुल पाकिर जैनुलअब्दीन अब्दुल कलाम मसऊदी था ।15 अक्टूबर 1931  को इनका जन्मदिन और 27 जुलाई 2015 को पुण्यतिथि है।  ये ग्यारहवें  राष्ट्रपति, जानेमाने वैज्ञानिक अभियंता और मिसाइल मैन के रूप में विख्यात थे।तपसिल जाति आदिवासी प्रकटन्न सैनिक कृषि बिकाश शिल्पा केंद्र , पश्चिम बंगाल के सचिव सोमेन कोले ने कहा कि कोविड- 19 के समय में वर्चुअल बैठकें , राष्ट्रीय वेबिनार और फेसबुक लाईव लगातार की जा रही हैं।

14 अगस्त को भी 75वें आजादी का पर्व पर राष्ट्रीय वेबिनार आयोजित किया जाएगा।।  नई पहल से नई पीढ़ी को भारत के 11वें पूर्व राष्ट्रपति और मिसाइल मैन भारतरत्न डॉ कलाम के बारे में और अपने परिवार के जो पूर्वज व पुरखे के बारे में जानने समझने का मौका मिलेगा। साथ ही वो उनके आदर्शों को अपनाएंगे। इससे परिवार में राष्ट्र प्रथम की भावना आएगी और पूर्वजों के नाम पर परिवार में एकजुटता, मेलजोल और भाईचारा बढ़ेगा ।दिल्ली स्थित टटेसर गांव में रहने वाले पूर्ति फूड विजन के निदेशक डॉ. नरेंद्र टटेसर ने कहा कि मेरे फौजी पिताजी स्व० बलवंत सिंह नंबरदार जी आजादी के दो साल भी नहीं बीते थे और आतंकवादी कश्मीर में  अशांति फैलाना चाह  रहे थे। इससे निपटने के लिए 1949 में भारतीय सैनिकों के साथ कश्मीर घाटी में मेरे पिताजी मोर्चा लेते रहे। एक बार तो उनकी गोलियां भी खत्म हो गई थी। तबभी वह दुश्मन पर तब तक पत्थर बरसाते रहे जब तक भारतीय फौज की टुकड़ी नहीं आ गई ।भारतीय फौज को देखकर दुश्मन  मौसम का फायदा उठाकर भाग खड़े हुए। इसी तरह 1962 में चीन के साथ हुई जंग में भी मेरे पिताजी बलवंत सिंह ने अपना रण कौशल दिखाया था। उनके राष्ट्रप्रेम का संस्कार मैं भी महसूस करता हूं।विश्व ब्राह्मण महापरिषद् की उपाध्यक्षा नम्रता उपाध्याय ने अपने पिताजी स्व०चिमनलाल लाभशंकर रावल और माताजी स्व० रमागौरी चिमनलाल रावलकी स्मृति में डा कलाम के‌ नाम आरजेएस राष्ट्रीय सम्मान घोषित किया।

पिताजी को याद करते हुए  बताती हैं कि वो उस जमाने में विश्व हिन्दू परिषद के पदाधिकारी हुआ करते थे ।और समाज के पहले अध्यक्ष बने थे।इन्होंने अपने कार्य काल मे अनेकों स्मरणीय कार्य किए । इसके साथ साथ माइनिंग क्षेत्र मे प्रवेश कर ठेकेदार बनकर सेकडों परिवारों को रोजगार मुहैया कराया ।साथ ही जाम माइन के मालिक बने । पिताजी ने मुझे शिक्षा के साथ संस्कार भी दिए।  अपने पिता की विरासत को संभालते हुए आज मैं जाम माइन का संचालन कर कई परिवारो को रोजगार उपलब्ध करा रही हूं। यहां तक की सामाजिक और धार्मिक कार्यक्रमों में भी विशेष सहयोग प्रदान करती हूं।  विश्व ब्राह्मण महापरिषद् अंतरराष्ट्रीय संगठन की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनकर  समाज के उत्थान विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हूं। कोविड-19 लाॅकडाउन में किए गए मेरे कार्यों की सराहना करते हुए अनेकों सामाजिक संगठनों द्वारा  पुरस्कृत भी किया गया और माइनिंग क्षेत्र में भी मुझे सम्मान प्राप्त हुआ है।