अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च पर आलेख

प्रो.उर्मिला पोरवाल सेठिया
बैंगलोर

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (अंग्रेज़ी में International Women’s Day) की स्थापना सन 1910 में की गई ‘अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस’ लगभग सौ वर्ष पूर्व, पहली बार मनाया गया था, यह वह समय था जब पूंजीवाद और साम्राज्यवाद तेज़ी से विकसित हो रहे थे और लाखों महिलायें मज़दूरी करने घर से निकल पड़ी थीं। महिलाओं को पूंजीवाद ने मुक्त कराने के नाम पर कारख़ानों में ग़ुलाम बनाया, उनके परिवारों को अस्त-व्यस्त कर दिया, उन पर महिला, मज़दूर और गृहस्थी होने के दोतरफा बोझ डाले तथा उन्हें अपने अधिकारों से वंचित किया। तब महिला मज़दूर एकजुट हुईं और बड़ी बहादुरी व संकल्प के साथ, सड़कों पर उतर कर संघर्ष करने लगीं। अपने दिलेर संघर्षों के ज़रिये, वे शासक वर्गों व शोषकों के ख़िलाफ़ संघर्ष में कुछ जीतें हासिल कर पायीं। इसी संघर्ष और कुरबानी की परंपरा की याद में ‘अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस’ मनाया जाता है। ‘अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस’ पूंजीवादी शोषण के ख़िलाफ़ और शोषण-दमन से मुक्त नये समाज के लिये संघर्ष करता रहा। समाजवादी व कम्युनिस्ट आन्दोलन ने सबसे पहले संघर्षरत महिलाओं की मांगों को अपने व्यापक कार्यक्रम में शामिल किया। जिन देशों में बीसवीं सदी में समाजवाद की स्थापना हुई, वहाँ महिलाओं को मुक्त कराने के सबसे सफल प्रयास किये गये थे। तब से हर वर्ष ‘8 मार्च’ को विश्वभर में यह दिन महिलाओं को उनकी क्षमता, सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक तरक़्क़ी दिलाने व उन महिलाओं को याद करने का दिन है जिन्होंने महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने के लिए अथक प्रयास किए इसी उद्देश्य से यह दिन मनाया जाता है। इस दिन सम्पूर्ण विश्व की महिलाएँ देश, जात-पात, भाषा, राजनीतिक, सांस्कृतिक भेदभाव से परे एकजुट होकर इस दिन को मनाती हैं। महिला दिवस पर स्त्री की प्रेम, स्नेह व मातृत्व के साथ ही शक्तिसंपन्न स्त्री की मूर्ति सामने आती है। निम्नलिखित पंक्तियां इस विषय से सम्बंधित हिन्दी एवं संस्कृत की अति प्रसिद्ध काव्योक्तियां है जो न केवल नारी की पवित्रता एवं सम्मान को दर्शाती हैं, अपितु यह संकेत भी करती हैं कि जीवन के सुंदर समतल में अमृतसम बहने वाली नारी एक विश्वास के बंधन के साथ साथ कितनी कर्तव्यपरायण भी हैं।

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते, सर्वास्तत्राफला: क्रिया।

नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पग तल में,
पीयूष स्रोत सी बहा करो,जीवन के सुंदर समतल में

पुरातन साहित्य की इन पंक्तियों को उल्लखित करने के पीछे मुख्य उद्देश्य यह है कि हमारे शास्त्रों में कहा गया है जहां नारियों की पूजा होती है वहां सुख-शांति, समृद्धि का वास होता है। वहीं हिन्दी के मूर्धन्य रचनाकार मैथिलीशरण गुप्त ने नारी जीवन का एक ओर पक्ष उजागर करते हुए कहा है कि –

‘अबला जीवन तेरी हाय! बस यही कहानी,
आंचल में है दूध आखों में है पानी।’

शास्त्रों में तो नारी को ऊंचा स्थान मिला है, लेकिन व्यवहार में पुरुषों की ही सत्ता समाज में कायम रही है और नारी को तिरस्कृत नजरों से देखा गया है। आज नारियों पर जितने घिनौने अत्याचार हो रहे हैं वह किसी से छिपा नहीं है, रावण काल में भी इतना अत्याचार व दुष्कर्म नहीं हुआ होगा। 

समाचार पत्रों व चैनलों में नारी उत्पीड़न और अत्याचार के वीभत्स समाचार भरे पड़े रहते है।आधुनिक युग में नारी के लिए पर्याप्त स्थान है। परंतु जैसे-जैसे समाज में नारी ने अपना रूप बदला है। वैसे-वैसे नारी को प्रस्तुत करते हुए समाज के दर्पण में उसका बखान उसी रूप में किया है। समाज और शास्त्रों ने नारी को मुख्यत: चार रूपों मे दिखाया है।

प्रथम रूप वह है जिसमें उसे देवी मानकर पूजा जाता है। ऐसी आधुनिक नारी की छवि यूं तो देखने में कम ही मिलती है। एक युवा कवि कि कुछ पंक्तियां नारी के इस रूप को सटीकता से प्रस्तुत करती हैं।

नारी पूजा, नारी करुणा, नारी ममता, नारी ज्ञान
नारी आदर्शों का बंधन, नारी रूप रस खान
नारी ही आभा समाज की, नारी ही युग का अभिमान
वर्षों से वर्णित ग्रंथों में नारी की महिमा का गान

औरत का दूसरा रूप जिसमे उसे वर्तमान समय में सर्वश्रेष्ठ भूमिका में दिखाया गया है। वह एक ऐसा रूप है जिसमें आधुनिक महिला समाज के लिए एक आदर्श है। वह एक मां, बहन, पत्नी एवं बेटी सभी रूपों में सफल है। यह वह रूप है जिसमें आधुनिक नारी घर में सभी भूमिकाओं का सफलता से निर्वाह करती है। सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा के बाद सृष्टि सृजन में यदि किसी का योगदान है तो वो नारी का है। अपने जीवन को दांव पर लगा कर एक जीव को जन्म देने का साहस ईश्वर ने केवल महिला को प्रदान किया है। हालाँकि तथा-कथित पुरुष प्रधान समाज में नारी की ये शक्ति उसकी सबसे बड़ी कमज़ोरी मानी जाती है। आज समाज के दोहरे मापदंड नारी को एक तरफ पूज्यनीय बताते है तो दूसरी ओर उसका शोषण करते हैं। यह नारी जाति का अपमान है। औरत समाज से वही सम्मान पाने की अधिकारिणी है जो समाज पुरुषों को उसकी अनेकों ग़लतियों के बाद भी पुन: एक अच्छा आदमी बनने का अधिकार प्रदान करता है।घर में उसके त्याग पर गुलशन मदान लिखते हैं

पुरुष वह लिख नहीं सकता कभी भी
लिखा नारी ने जो इतिहास घर में

नारी की सहनशीलता, कर्तव्यपरायणता, एवं कर्मक्षेत्र में योद्धा की भांति लड़ने वाली प्रवृत्ति को रवि ने इस रूप में दिखाया है। आधुनिक महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही है। और उसका परिवार की आर्थिक समृद्धि में भी भरपूर योगदान है।

अध्यापिका बनी है नारी ज्ञान बांटती वह फिरती है
बड़े बड़े उद्योग चलाती, अपने निर्णय खुद करती है

फिर भी नारी का तीसरा रूप एक ऐसा रूप है जिस पर कवियों की लेखनी हर युग में सबसे अधिक चलती आई है, न जाने वह कौन सा समय था जब स्त्री को अबला की उपाधि मिल गई और वह उससे ऐसी चिपकी कि आज तक वह इससे नहीं उबर पाई। हालांकि यह भी सत्य है कि आज समाज में महिला उत्पीड़न के ऐसे उदाहरण मिलते हैं कि सारा समाज शर्मशार हो जाता है। आधुनिक कवि इस दर्द पर जन मानस को जागृत करने मे पीछे नहीं हैं। युवा कवि अदभुत के शब्दों में-

वो घर आंगन को महकाती रचती सपनों का संसार
पर निष्ठुर समाज ने उसको दिया जन्म से पहले मार

डॉ रश्मि बजाज के शब्दों में-
बैठे हैं अब करते प्रतीक्षा/आएगा अवतार करेगा रक्षा/
हर गली हर कूँचे में/अपमानित द्रौपदी।

समाज ने केवल नारी पर हो रहे इन अत्याचारों को ही नहीं दिखाया अपितु नारी को जागृत एवं उत्साहित भी किया है ताकि वह न केवल स्वयम् पर हो रहे आघातों से बच सके एवं अपने ऊपर हुए जुल्मों का प्रतिशोध ले सके।लोक कवि महेन्द्र सिंह बिलोटिया को इसका पूरा विश्वास भी है। वह लिखते हैं

काली बनकर जब कामिनी खंजर हाथ उठाएगी
दुर्गा रूप धरकर नारी दुष्टों से टकराएगी

कवि मक्खनलाल तंवर ने अत्याचारों के विरुद्ध नारी का आह्वान किया

खड्ग थाम अपने हाथों में महाकाली बनना होगा
अबला के अत्याचारी का शीश कलम करना होगा

नारी हर कठिन से कठिन वक्त में चट्टान बनकर खडी हो सकती है, नारी ने हर युग में ऐसे कार्य किए हैं जिनकी कल्पना करना भी दुष्कर है। इसका इतिहास गवाह है। प्रसिद्ध कवि हरिओम पंवार उस सैनिक की पत्नी को नमन करते हैं जिसने अपने शहीद पति की अर्थी को कंधा दिया था। समस्त विश्व के इतिहास में यह पहली घटना थी। उन्होने लिखा-

वो औरत पूरी पृथ्वी का बोझा सर ले सकती है
जो अपने पति की अर्थी को भी कंधा दे सकती है

नारी का चौथा रूप वो रूप है जिसकी शास्त्रों और समाज ने भरपूर आलोचना की है। इस रूप में नारी उच्छृंखल है और उसने सामाजिक मर्यादाओं को तोडा है। कवि असलम इसहाक की दो क्षणिकाएं इसका प्रमाण हैं

नेताजी ने/ आधुनिक छात्रा की पोशाक देखकर कहा
विचार और वस्त्र /दोनों जरा ऊंचे हैं।

एवं
आधुनिक महिला ने सखी से
अपने पति का परिचय कराया
किचन के कोने में/जो लगा है धोने में/चाय का प्याला
सखी वही है मेरा घरवाला।

उपर्युक्त विश्लेषण वर्तमान समाज में नारी के कुछ पहलुओं को दिखाता है। बहुत सी सूक्ष्म बातें ऐसी भी होती हैं कि कई बार किसी सीमा के कारण समाज और शास्त्र जिन्हें नहीं छू पाता। फिर भी यह विश्लेषण एक बात तो सिद्ध करता ही है कि नारी के चाहे कितने ही रूप हों या रहे हों परंतु उसकी असीम शक्ति ने समाज को सदैव एक नई दिशा देने का कार्य किया है। जिसके कारण वह सदा ही वंदनीय रही है और रहेगी। और वर्तमान समाज भी इस तथ्य को स्वीकार करता है।

नारी शक्ति का एक सकारात्मक पहलू यदि यह है कि जहां नारियों ने विकास के झंडे गाड़े हैं, विभिन्न क्षेत्रों में सबला के रुप में प्रतिस्थापित हुई है, वहीं दूसरा पहलू अत्यंत डरावना भी है। नारियों पर अत्याचार, हत्या, मारपीट, शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना, वेश्यावृत्ति दिनोंदिन बढ़ते ही जा रहे हैं।
इसका कारण यह भी हो सकता है कि अब नारी सशक्त होकर सामने आई है, चुप नहीं बैठी है जो पुरुष प्रधान समाज को बड़ी चुनौती लग रही है। उसे अपने अस्तित्व पर संकट के बादल मंडराते नजर आते हैं।
आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर हमें गम्भीरता से विचार करना है कि इस नाजुक मोड़ पर जब नारी विकास की ओर निरंतर कदम बढ़ा रही है, हम सबको उसकी सहायता करनी है।
हमारा संविधान और कानून सभी इसके लिए प्रतिबद्ध है। आवश्यकता है सामाजिक स्तर पर विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों की सोच बदलने के बड़े प्रयास करने की।

इक्कीसवीं सदी की स्त्री ने स्वयं की शक्ति को पहचान लिया है और काफ़ी हद तक अपने अधिकारों के लिए लड़ना सीख लिया है। आज के समय में स्त्रियों ने सिद्ध किया है कि वे एक-दूसरे की दुश्मन नहीं, सहयोगी हैं। नारी को आरक्षण की ज़रूरत नहीं है। उन्हें उचित सुविधाओं की आवश्यकता है, उनकी प्रतिभाओं और महत्त्वकांक्षाओं को सम्मान की और सबसे बढ़ कर तो ये है कि समाज में नारी ही नारी को सम्मान देने लगे तो ये समस्या काफ़ी हद तक कम हो सकती है, वो केवल एक दिन की सहानुभूति नहीं अपितु हर दिन अपना हक एवं सम्मान चाहती है।

प्रथम अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस’ के मनाये जाने के लगभग सौ वर्ष बाद हमें नज़र आता है, कि एक तरफ, दुनिया की लगभग हर सरकार और सरमायदारों के कई अन्य संस्थान अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर ख़ूब धूम मचाते हैं। वे महिलाओं के लिये कुछ करने के बड़े-बड़े वादे करते हैं। दूसरी ओर, सारी दुनिया में लाखों महिलायें आज भी हर प्रकार के शोषण और दमन का शिकार बनती रहती हैं। वर्तमान उदारीकरण और भूमंडलीकरण के युग में पूंजी पहले से कहीं ज़्यादा आज़ादी के साथ, मज़दूरी, बाज़ार और संसाधनों की तलाश में, दुनिया के कोने-कोने में पहुँच रही है। विश्व में पूरे देश, इलाके और अर्थव्यवस्था के क्षेत्र विकास के नाम पर तबाह हो रहे हैं और करोड़ों मेहनतकशों की ज़िन्दगी बरबाद हो रही हैं। जहाँ हिन्दुस्तान में हज़ारों की संख्या में किसान कृषि क्षेत्र में तबाही की वजह से खुदकुशी कर रहे हैं, मिल-कारख़ाने बंद किये जा रहे हैं, लोगों को रोज़गार की तलाश में घर-वार छोड़कर शहरों को जाना पड़ता है, शहरों में उन्हें न तो नौकरी मिलती है न सुरक्षा और बेहद गंदी हालतों में जीना पड़ता है। महिलायें, जो दुगुने व तिगुने शोषण का सामना करती हैं, जिन्हें घर-परिवार में भी ख़ास ज़िम्मेदारियाँ निभानी पड़ती हैं, जो बढ़ते अपराधीकरण और असुरक्षा का शिकार बनती हैं, इन परिस्थितियों में महिलायें बहुत ही उत्पीड़ित हैं।


दुनिया के प्रमुख विकसित एवं विकासशील देशों में आज की भागदौड़ और आपाधापी से होने वाले तनाव के बारे में किए गए भारतीय महिलाएं के सर्वेक्षण के अनुसार भारत की सर्वाधिक महिलाएँ तनाव में रहती हैं।

आइये इस विशेष दिवस पर प्रण लें नारी के सम्मान का, उनके विकास में सहयोग का। क्योंकि नारी से ही संसार समृद्ध, सुंदर और चलायमान है.

“नारी से जग है,नारी से सब है।… कभी न भूले हमारा अस्तित्व नारी से है… मां,बहन,पत्नी और भी अनेक रूपों में नारी महान है.नारी का सम्मान करें।”