मैं हूं खलनायक
लेखक – फजले गुफरान
प्रकाशक – यश पब्लिकेशंस
पेज – 352, कीमत – 399
(पुस्तक समीक्षा:एस.एस.डोगरा)
थोड़ी देर के लिए मौजूदा दौर की बात छोड़ दें तो, अमूमन बालीवुड का ग्लैमर यहां के सुपरस्टार्स, नामचीन सितारों और अभिनेत्रियों के रूमानी किस्से-कहानियों तक ही सिमटा नजर आता है। ऊपर से सोशल मीडिया के इस दौर ने बाक्स आफिस की उठा पटक और बड़े बजट की फिल्मों की अहमियत बेवजह ही बढ़ा दी है। ऐसे में मायानगरी के खलनायकों या कहिये अक्सर बैडमैन के नाम से पहचाने जाने वाले कलाकारों के बारे में लगभग न के बराबर बातें की जाती हैं और हम आप कुछ दो-चार नामों को ही याद करके रह जाते हैं, जबकि हिन्दी सिनेमा के इतिहास में खल चरित्र निभाने वाले एक से बढ़कर एक कलाकारों की कोई कमीं नहीं रही है। ऐसे में वरिष्ठ पत्रकार फजले गुफरान की पहली किताब ‘’मैं हूं खलनायक’’, कई चीजों पर ध्यानाकर्षित करती है।
हिन्दी सिनेमा के 100 वर्षों से अधिक लंबे सफर और सुनहरे इतिहास के पन्नों से उन्होंने चुन चुनकर 100 से अधिक ऐसे खलनायकों और खलनायिकाओं पर रौशनी डाली है, जिन्हें हम नाम से तो बेशक जानते हैं, लेकिन उन्हें शायद करीब से कभी पहचान नहीं पाए हैं। इस किताब की सबसे अच्छी बात यह है कि इसमें हिन्दी सिनेमा से एकदम शुरूआती दौर से लेकर मौजूदा दौर के नामचीन खल चरित्र निभाने वाले तमाम कलाकारों के साथ-साथ उन छोटे-मोटे खलनायकों का भी पूरी तफ्सील से जिक्र है, जो अक्सर मुख्य खलनायक के गुर्गे, प्यादे या कहिए वसूलीमैन के रूप में हमें याद दिखते तो रहे हैं, लेकिन याद नहीं रहे।
फजले गुफरान की यह किताब खलनायकी के उस दौर को हमारे सामने लाती है, जब लोग खल चरित्र निभाने वाले कलाकारों को असल जिंदगी में भी बुरा इंसान ही समझते थे। अभिनेता रंजीत और शक्ति कपूर ने लंबे समय तक यह दर्द झेला है। दूसरी तरफ यह किताब कई कलाकारों से की गई एक मुकम्मल बातचीत का यादगार सफर लगती है, जिसमें उनके अंदर से एक ऐसा इंसान बात करता दिखता है, जिसे शायद किसी ने सुनने की कभी जहमत ही नहीं उठाई। इस किताब में प्रसिद्ध अभिनेता रजा मुराद की बातें हैरान कर देने वाली हैं, और सोनू सूद की बातों से उत्साह और उम्मीदें झलकती हैं। दिग्गज अभिनेता प्रेम चोपड़ा अपने और मौजूदा दौर के खलनायकों के बारे में बेबाकी से बात करते दिखते हैं, तो मुकेश ऋषि दिल से प्राण साहब, अजीत साहब के बारे में बताते हैं।
आज के इस दौर में जब हम ये मान बैठे हैं कि इंटरनेट पर हर तरह की जानकारी मौजूद है, यह किताब हिन्दी सिनेमा के खलनायकों के बारे में चार कदम आगे की और एक्सक्लूसिव बातें करती है और सिने प्रेमियों के साथ-साथ सिनेमा के छात्रों के लिए एक टेक्सटबुक का काम करती है, क्योंकि इसमें एक ओर अलग-अलग दौर के दिग्गज अभिनेताओं जैसे प्राण साहब, प्रेम चोपड़ा, अजीत, जीवन, प्रेम नाथ, मदन पुरी, अमरीश पुरी, अमजद खान, डैनी, अनुपम खेर, गुलशन ग्रोवर, शक्ति कपूर, कबीर बेदी और प्रकाश राज आदि के बारे में रोचक जानकारियां दी गयी हैं और बातें की गयी हैं, तो दूसरी ओर के. एन. सिंह, कन्हैयालाल, बीएम व्यास, कमल कपूर, शेख मुख्तयार, देव कुमार, अनवर हुसैन के साथ-साथ नादिरा, शशिकला, ललिता पंवार, हेलन और बिंदु जैसी खलनायिकाओं के भी बेहद दिलचस्प ब्यौरे दिये गये हैं। आप हैरान हो जाते हैं, 1940 के दौर में आयी अभिनेत्री कुलदीप कौर जैसी खलनायिका के बारे में पढ़कर, जिसे किसी ने कभी याद ही नहीं किया। वह एक ऐसी दिलेर महिला थी जो बंटवारे के समय अकेले कार चलाकर दिल्ली होते हुए लाहौर से बंबई आ गयी थी। इस किताब में बाब क्रिस्टो से लेकर मोहन आगाशे, शैरी मोहन, सुधीर, मैक मोहन, महेश आनंद, जोगिंदर, तेज सप्रू, जानकी दास, रमेश देओ सहित ढेरों खलनायकों के बारे भी ऐसी ही बहुतेरी रोचक बातें की गयी हैं। एक दस्तावेज के रूप में अपनी अहमियत दर्शाती यह किताब पढ़कर ऐसा लगता है कि खलनायकों के जिक्र को लेकर कोई जगह लंबे समय से खाली थी, जिसे फजले गुफरान ने भर दिया है। इसे उन्होंने इतने मुकम्मल ढंग से लिखा है कि याद करना मुश्किल है कि खल चरित्र निभाने वाला कोई नामचीन सितारा तो दूर, कोई इक्का-दुक्का कलाकार भी उनसे छूटा हो।