भारत के संविधान निर्माता, चिंतक, समाज सुधारक और उच्चकोटी के विद्वान, बाबा साहेब अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को हुआ था. उनके पिता का नाम रामजी मालोजी अम्बेडकर और माता का नाम भीमाबाई था ! बाबा साहेब अम्बेडकर का परिवार महार जाति से संबंध रखता था, जिसे अछूत माना जाता था और बचपन से ही उनको अनेक प्रकार के आर्थिक और सामाजिक भेदभाव के चलते हुए बड़ी विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ता था ! उनका बचपन का नाम सकपाल था , और उनके गाँव अम्बावड़े (जिला रत्नागिरी, महाराष्ट्र) से प्रेरित होकर उन्होंने अपने नाम से साथ “अम्बेडकर” शब्द जोड़ लिया था !
क्योंकि उन दिनों एक सोची समझी साजिश के अंतर्गत दलितों और अन्य पिछड़ी जाति के लोगों को पढ़ाई लिखाई के अधिकार से वंचित रखा जाता था , लेकिन अम्बेडकर जी के पिता के दिल में बड़ी तीव्र इच्छा थी कि उनके बच्चे भी अच्छी पढ़ाई लिखाई हासिल करके किसी बढ़िया / ऊँचे मुकाम पर पहुँचें ! अम्बेडकर जी अपने जीवत बचे पाँच भाई बहनो में सबसे छोटे थे और उनके पिता जी जोकि भारतीय सेना (महार रेजिमेंट) में सूबेदार थे, वह चाहते थे कम से कम यह लड़का ही अच्छा पढ़ लिख जाए ! उनके बहुत प्रयास करने के बाद बड़ी मुश्किल से एक स्कूल में दाखिला तो मिल पाया , लेकिन अनेक प्रकार शर्तों के तहत , जैसे कि – अम्बेडकर अपने स्कूल में किसी भी अन्य बच्चे को छुएगा नहीं, अगर उसे पानी पीना हो तो अपने घर से ही लेकर आएगा और क्लास में ब्लैक बोर्ड के पीछे रखे पानी के घड़े को हाथ तक नहीं लगाएगा , क्लास में बाकी बच्चों से अलग बैठेगा और क्लास में बैठने के लिए अपने घर से अपना अलग टाट / बोरी लेकर आएगा, इत्यादि ! इतनी शर्तों के चलते अम्बेडकर जी पढ़ाई में पूरी तन्मयता से ध्यान देते थे और वह जन्मजात ही बड़ी तीक्षण बुद्धि वाले, हठी स्वाभाव के, सख्त मेहनत करने वाले और बड़े संवेदनशील बच्चे थे ! जब वह 1907 में दसवीं कक्षा में सबसे अव्वल नंबर पर आ गए तो उनके स्कूल के प्रिंसिपल सहित सभी अधयापक भी हक्के बक्के रह गए !
आगे की पढ़ाई के लिए उनको एल्फिंस्टोन कॉलेज में दाखिला लिया। इसके बाद, वर्ष 1912 में उन्होंने बंबई विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र में बी.ए. की उपाधि प्राप्त की और उन्हें बड़ौदा में एक नौकरी मिल गई। किसी भी कॉलेज में दाखिला लेने वाले और बी.ए. पास करने वाले पूरे देश में दलित समाज से वह सबसे पहले विद्यार्थी थे ! (और इतना ही नहीं – बाद में, विदेश जाकर अर्थ शास्त्र में पीएचडी करने वाले भी पहले भारतीय बनने का गौरव भी उनको ही प्राप्त हुआ ) इसके बाद वह एम.ए. करना चाहते थे, लेकिन घर की आर्थिक स्थिति बड़ी खराब चल रही थी , क्योंकि वर्ष 1913 में उनके पिता जी का निधन हो गया और उनकी माता जी तो बहुत समय पहले उस वक़्त ही परलोक सिधार गई थी जब अम्बेडकर जी की उम्र केवल 6 वर्ष ही थी !
भले ही अम्बेडकर जी अब एक छोटी सी नौकरी करने तो लग गए थे , मगर एम.ए. न का पाने की टीस सी उनको अक्सर चुभती रहती थी ! ऐसे ही चलते – २ एक दिन अचानक उनकी मुलाकात अपने स्कूल के एक क्रिस्चियन अध्यापक – श्री कृष्णाजी अर्जुन केलुस्कर से हो गई ! केलुस्कर जी को यह जानकर बड़ी प्रसन्नता हुई कि अम्बेडकर ने फर्स्ट डिवीज़न में स्नातक की उपाधि हासिल कर ली है और आगे भी पढ़ना चाहते हैं ! लेकिन अम्बेडकर ने जब उनको अपने घर के हालत से वाक़िफ़ करवाया तो केलुस्कर ने उनको समझाया कि बड़ौदा रियासत के राजा सैयाजी रॉव गायकवाड बड़े ही दयालु और विशाल ह्रदय वाले इन्सान हैं और वह गरीब लोगों की सहायता भी कर देते है, अत: अगर अम्बेडकर आगे पढ़ना चाहते हैं तो उनको उस राजा से अवश्य मिलना चाहिए ! तो ऐसे अपने अध्यापक से नेक मशवरा सुनकर उनको एक नई रौशनी की उम्मीद नज़र आने लगी ! सो वह झटपट थोड़े पैसे का इन्तेज़ाम करके मुंबई से बड़ोदा के महाराज गायकवाड़ के दरबार में अपनी अर्जी लेकर पेश हो गए ! उनकी कहानी सुनकर महाराजा का दिल पसीज़ गया और उन्होंने अम्बेडकर को एक करारनामे के अंतर्गत पच्चीस रूपये महीना की फेलोशिप मंजूर कर दी , और इस करारनामे की एक महत्त्वपूर्ण शर्त यह थी – “अम्बेडकर जबतक पढ़ना चाहते हैं, पढ़ सकते हैं, लेकिन पढ़ाई पूरी करने के पश्चात अम्बेडकर को दस वर्ष महाराज के दरबार में नौकरी करनी पड़ेगी ! नौकरी की अवधि के दौरान अम्बेडकर को आधी तनख़ाह मिला करेगी और बाकी की आधी तनख़ाह उनकी सहायता राशि की अदायगी के रूप में काट ली जाएगी !”
सो इस तरह महाराजा गायकवाड़ से वित्तीय सहायता पाकर भीमरॉव अम्बेडकर आगे की पढाई के लिए अमेरिका चले गए । जुलाई 1913 में भीमरॉव न्यूयॉर्क पहुँचे । भीमरॉव को उनके जीवन में प्रथम बार महार होने की वजह से ना तो नीचा देखना पड़ा, ना ही छुआछात का सामना करना पड़ा, और ना ही किसी के दिल में नश्तर चुभाने वाले ऊँची जाति के लोगों के जाति आधारित व्यंगबाण सुनने को मिलते थे । वहाँ जाकर उन्होंने अनुभव किया कि अमरीका में धर्म, मज़हब या फ़िर जाति के आधार पर कोई किसी से किसी किस्म का कोई भेदभाव नहीं करता, इन्सानियत और इन्सानों की योग्यता की वहाँ सच्ची क़दर होती है और उनका महत्तव और कीमत भी उसी के हिसाब से आँकी जाती है ! यह उनके लिए मानसिक तौर पे बहुत बड़ा सकून और ठण्डक देने वाली बात थी ! ऐसे माहौल में दाख़िल होकर उनको एक तरह से बहुत बड़ी आज़ादी मिली, जिसकी कल्पना अपने देश भारत में तो हरगिज़ नहीं की जा सकती थी और तब उन्होंने अपने आप को पूर्ण रूप से पढ़ाई में मशगूल कर लिया और मास्टर ऑफ़ आर्ट्स की डिग्री और 1916 में कोलंबिया विश्वविद्यालय से अपने शोध ”नेशनल डिविडेंड फॉर इंडिया: और हिस्टोरिकल एंड एनालिटिकल स्टडी” के लिए दर्शनशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। डॉ. अम्बेडकर अर्थशास्त्र और राजनिति विज्ञान की पढ़ाई के लिए अमेरिका से लंदन चले गए, लेकिन बड़ौदा सरकार में उनसे जलने वाले अगड़ी जाति के कुच्छ लोगों ने महाराजा को भड़काना आरम्भ कर दिया और इसके बाद उनकी छात्रवृति बंद करवा दी गई और उन्हें वापस बुला लिया।
महाराजा से चिठ्ठी पाकर अम्बेडकर जी बड़े परेशान हुए, क्योंकि उनको अपनी उच्च शिक्षा बीच में ही छोड़नी पड़ गई थी, लेकिन वापिस आने पर राजा का हुकम मानने के इलावा उनके पास और कोई विकल्प भी तो नहीं था ! तो ऐसे अम्बेडकर जी मुम्बई वापिस आ गए और थोड़े दिन अपने घर बिताने के बाद वह बड़ौदा के महाराजा गायकवाड़ के सामने पेश हो गए ! डॉ. अम्बेडकर ने राजा के आगे बड़ी गुहार लगाई कि उन्होंने तो पहले ही उनको इजाजत दे रखी थी कि वह जितना पढ़ना चाहे पढ़ सकते हैं, और मैं पुन्य वादा करता हूँ कि पढ़ाई पूरी करने के बाद वह वापिस आपके पास ही आयूँगा, मगर महाराजा के सलाहकारों ने अम्बेडकर की एक ना चलने दी ! सो इस तरह अम्बेडकर को महाराज गायकवाड़ के दरबार में राजनैतिक सचिव के रूप में नियुक्त कर दिया गया । बड़ोदा में तो छुआछात और जाति आधारित भेदभाव मुम्बई से कहीं ज़्यादा थे ! इतने बड़े अधिकारी होने के बावजूद भी कोई भी उनके आदेशों को नहीं मानता था, क्योंकि वह महार थे, उनका अपना चपड़ासी भी उनको पानी तक नहीं पिलाता था, क्योंकि उन दिनों अगड़ी जाति के लोगों की मानसिकता भी ऐसी थी कि अगर कोई दलित को हाथ भी लगाएगा, तो वह भी अछूत बन जायेगा ! वह जो भी फ़ाइल देखते, उसपे कार्यवाई करने के बाद वह उसे एक स्टूल पर रख देते और फिर चपड़ासी उसे वहाँ से उठाकर राजा के पास ले जाता था , सीधे उनके हाथ से वह फाइल नहीं लेता था ! उचकोटी की विद्या प्राप्त करने पश्चात भी कोई उनके पास बैठकर भोजन करना पसंद नहीं करता था और उन्होंने व्यक्तिगत अनुभव किया कि दलितों के साथ बोलबाणी और व्यवहार में अमरीका / इंग्लैण्ड और अपने ही देश हिन्दुस्तान में ज़मीन आसमान का अन्तर था और यह सभी कानून कायदे और परम्पराएँ उनको ग़ुलाम बनाये रखने के इरादे से ही सुनियोजित छडयन्त्र के अंतर्गत ही बनाये गए थे !
अम्बेडकर जी को वहाँ नौकरी करते हुए नौ दिन बीत चुके थे, एक दिन सुबह महाराजा गायकवाड़ टहलते हुए वहाँ आ गए और अम्बेडकर के कमरे / दफ़्तर के सामने आकर रुक गए ! चपड़ासी तो उस वक़्त दफ़्तर आ चुका था , लेकिन अम्बेडकर जी अभी कहीं नज़र नहीं आ रहे थे ! महाराज ने चपड़ासी से पूछा कि अम्बेडकर कहाँ गए हैं ? चपड़ासी ने बताया कि वह तो अभी आये ही नहीं ! यह सुनकर महाराज वहीं बरामदे में टहलने लग गए – यह देखने के लिए कि अम्बेडकर कब आते हैं ? लगभग आधे घंटे बाद अम्बेडकर जी आ गए और महाराजा को अपने कमरे के बाहर टहलते देखकर वह समझ गए कि गायकवाड़ जी आज दौरे पर हैं ! वहाँ पहुंचकर अम्बेडकर जी ने उनको नमस्कार बुलाई, लेकिन महाराज की तरफ़ से कोई जवाब नहीं आया ! एक मिंट उनको देखने के बाद महाराज ने उनसे लेट आने का कारण पूछा , तो अम्बेडकर ने उनको बताया कि वह खाने की वजह से लेट हो गए हैं !”
“आप खाना कहाँ से खाते हो ?” अम्बेडकर ने जवाब दिया कि वहाँ से डेढ़ दो किलोमीटर की दूरी पर एक ढाबा है, वहाँ से ही वह खाना खाते हैं !” “क्या आज वहाँ खाना लेट बना था ?” “जी नहीं ! खाना तो वक़्त पर बन गया था, लेकिन मुझे मिल नहीं पाया!” “क्यों ? तुम्हारे पास पैसे नहीं थे क्या ?” “पैसे भी मेरे पास हैं, लेकिन वह ढाबे का मालिक सबके सामने मुझे खाना देता नहीं है !” महाराजा ने हैरान होकर पूछा, “सबके सामने खाना नहीं देता, क्या मतलब है इसका ? उसने ढाबा तो खाना बेचने के लिए ही खोला है !” “महाराज ! होना तो ऐसा ही चाहिए , लेकिन हकीकत में ऐसा होता नहीं है, संक्षेप में बात ऐसे है कि जब मैं पहले दिन उसके ढाबे पर खाना खाने गया था, तो उसने मुझे खाना देने से पहले मेरी जाति पूछी थी, क्योंकि मैं ना तो झूठ बोलता हूँ और ना ही घुमा फ़िराकर गोलमोल बात करता हूँ, मैंने उसे स्पष्ट लफ्जों में बता दिया कि मैं महार हूँ और वह भी समझ गया कि मेरी जाति – प्रचलत जाति प्रथा के हिसाब से शूद्रों में आती है , इसलिए उसने पहले तो मुझे खाना देने से साफ़ इन्कार कर दिया ; लेकिन मेरे ज़्यादा कहने पर उसने अपनी परेशानी समझाते हुए मुझे बताया कि अगर मैं सबके सामने तुम्हें खाना दूंगा, तो मेरे बाकी ग्राहक मेरे ढाबे से खाना बंद कर देंगे ! और न ही मैं आपको अपने ढाबे में बिठाकर खाना खिला सकता हूँ ! उसके ढाबे से 40 – 50 फुट की दूरी पर एक पेड़ है, और उसने उस पेड़ की तरफ़ इशारा करके मुझे कहा कि तुम वहीं बैठे रहना, मैं उचित अवसर देखकर तुम्हारे लिए खाने की थाली भेज दिया करूँगा और तुम उसी पेड़ के नीचे बैठकर खाना खा लिया करो और थाली बर्तन साफ़ करने वाली जगह पर चुपके से रख दिया करना ! जब मैंने उसकी यह सब शर्ते मानी, तभी वह मुझे खाना देने के लिए राजी हुआ ! और आज मैं उस पेड़ के नीचे बैठा अपने लिए उस थाली का इन्तज़ार करता रहा, उसके ढाबे पर अन्य लोगों का आना जाना ख़त्म ही नहीं हुआ और ऐसे मुझे खाना मिल नहीं पाया !”
अम्बेडकर की बात सुनकर महाराजा गायकवाड़ को जो उसके लेट आने की वजह से पहले गुस्सा था, वह अब उनका क्रोध काफ़ूर हो चुका था और उन्होंने अपने माथे पर हाथ फेरते हुए कहा , “क्या जाति-पाति सचमुच इतना गम्भीर समस्या है ?” अम्बेडकर ने उनको संक्षेप में बताया की इस झूठी जाति प्रथा के वजह से तो उन्हें ना जाने कितनी बार और कितने प्रकार के तिरस्कार झेलने पड़े हैं, कितने लोगों की गालियाँ / अपशब्द सुनने पड़े हैं और दिल को चीर देने वाले व्यंग्यवाण भी सहने पड़े हैं ! और फ़िर महाराजा ने अम्बेडकर को सिर से लेकर पाऊँ तक बड़े बारीकी से देखकर बोले, “तुम्हारे कपडे भी गंदे लग रहे है, साफ़ सुथरे कपडे क्यों नहीं पहने?” अम्बेडकर ने जवाब दिया, “इसी जाति आधारित छुआछुत की वजह से ?” “क्या मतलब है इसका, ज़रा अपने उत्तर का थोड़ा खुलासा करो !” तब अम्बेडकर ने उनको बताया कि आज मुझे बड़ौदा आये हुए नौ दिन हो चुके हैं, जिस दिन मैं जहाँ आया था , उसी दिन से मैंने अपने लिए किराये का एक कमरा तलाशना शुरू कर दिया था, लेकिन मैं जहाँ भी जाता हूँ , कमरा दिखाने से पहले मकान मालिक मेरी जाति पूछता है, जब मैं उनको अपनी जाति “महार” बताता हूँ तो वह लोग मुझे अपना कमरा किराये पर देने से मना कर देते हैं, इस लिए मैं रात को सड़क के किनारे एक पेड़ के नीचे ही सोता हूँ , जिसकी वजह से मेरे कपडे गंदे हो चुके हैं, मैं इनको धोना भी चाहता हूँ , लेकिन क्या करूँ , इसके लिए मुझे कोई ऐसी उचित जगह ही नहीं मिल रही!” अम्बेडकर की बातें सुनकर महाराजा गायकवाड़ का सिर घूम गया, और वह बोले, “यह तो वाक्य ही बहुत बड़ी समस्या है !” फ़िर उन्होंने कूछ सोचकर अपने एक सेवादार को बुलाया और उसे हुकम दिया, “तुम शाही रसोई में जायो और अम्बेडकर के लिए एक थाली खाना लेकर आयो !” फ़िर अम्बेडकर से कहने लगे, “भूखे पेट तुम सारा दिन काम कैसे करोगे, सेवादार जो खाना लाएगा, वह खा लेना और फिर शाम को छुट्टी के बाद मेरे पास आना !” इतना हुकम देकर महाराजा गायकवाड़ वहाँ से रवाना हो गए !
शाम को जब वह महाराजा के हुकम अनुसार वहाँ पहुँचे तो देखा कि वहाँ उनके आठ दस और कर्मचारी / अधिकारी भी उपस्थित थे ! अम्बेडकर को देखकर उन्होंने उन सबसे कहा, “यह डॉक्टर अम्बेडकर हैं, हमारे नए राजनैतिक सचिव, 8 / 9 दिन पहले ही यह यहाँ आये हैं , इनके पास रहने के लिए कोई कमरा नहीं है, तुम में से कौन है जो इनको अपने घर एक कमरा किराये पर दे सकता है ?” महाराजा की बात सुनकर सभी कर्मचारी एक दूसरे की तरफ़ प्रशानात्मिक दृष्टि से देखने लग गए , क्योंकि वह सब अबतक अम्बेडकर की जाति जान चुके थे और इसलिए कोई भी उनको अपने घर रखने को तैयार नहीं था ! जाति व धर्म आधारित छूआछुत और अस्पृश्यता इस क़दर लोगों के दिलो दिमाग पर हॉवी हो चुके थे कि तथाकथित ऊँची जातियों के लोग दलितों की परछांई से भी भागते रहते थे, केवल और केवल वह इनको अपने ग़ुलाम बनाकर ही रखना चाहते थे, किसी व्यक्ति की शैक्षणिक योग्यता उनके लिए कोई महत्व नहीं रखती थी ! यही वजह थी डॉक्टर अम्बेडकर के उस ज़माने में भी एम.ए. पास होने के बावजूद भी लोग उनको नीच व बहिष्कृत बंदा ही मानते थे, जबकि अगड़ी जातियों के लोगों में दसवीं पास भी महज़ गिने चुने लोग ही होते थे ! जब महाराज गायकवाड़ ने देखा कि वहाँ उपस्थित उनके कर्मचारियों में से कोई भी अपने घर एक कमरा देने को तैयार नहीं हो रहा, तो महाराजा ने खुद ही हुकम सुना दिया, “मुनीम जी ! आज आप अम्बेडकर को अपने साथ ले जाएं और ये तबतक आपके घर रहेंगे , जब तक इनका कोई और ठंग का बंदोबस्त नहीं हो जाता !” इतना कहते ही उन्होंने सभी को जाने के लिए इशारा कर दिया !
तो ऐसे कुच्छ समय के लिए अम्बेडकर जी के रहने और खाने का इन्तेज़ाम तो हो गया, लेकिन इस इन्तेज़ाम से ना तो मुनीम जी खुश थे और ना ही अम्बेडकर जी ! बल्कि मुनीम तो अम्बेडकर जी को कभी – २ जली कटी सुनाता ही रहता था कि उसकी वजह से मेरा धर्म भ्रष्ट हो रहा है ! वैसे तो अम्बेडकर जी उनको बहुत बार कह चुके थे कि वह उनको अपना पेइंग गेस्ट बना लें, लेकिन मुनीम जी तो जल्द से जल्द उनसे छुटकारा पाना चाहता था ! अम्बेडकर जी भी इस बात से बहुत अच्छी तरह वाक़िफ़ हो चुके थे , लेकिन वह भी बहुत मजबूर थे, अत: ना चाहते हुए भी उनके घर रहने को विवश थे, वह भी अपमान के कड़वे घूँट पीकर वहाँ जैसे तैसे गुजर बसर कर रहे थे ! ऐसे करके उन्होंने मुनीम जी के घर दो महीने निकाले, इसी बीच अम्बेडकर जी ने उसी गाँव में और आस पास के 5 / 6 गाँवों में किराये पर एक कमरा ढूंढने की बड़ी कोशिश की, लेकिन उनको कहीं सफ़लता हासिल नहीं हुई ! उधर मुनीम जी भी मानसिक तौर पे उनसे बहुत परेशान हो चुके थे, क्योंकि उनकी अपनी जात बारादरी के लोग उनको धमकियाँ देने लग गए थे – कि अगर उसने अम्बेडकर को अपने घर से नहीं निकाला तो वह मुनीम और उसके पूरे परिवार का अपनी बरादरी से हुक्का पानी बंद कर देंगे, गाँव में ना कोई उनके घर आएगा और ना ही गाँव का कोई भी निवासी उनको अपने घर / समाजिक रीती रिवाज़ों / ब्याह शादी में शामिल होने के लिए बुलाएगा ! उनके बीच में मन मुटाव इतना भयंकर रूप ले चुका था कि अम्बेडकर जी रहते तो उनके घर में ही थे, लेकिन दोनों में बातचीत ना मात्र ही होती थी !
एक दिन किसी सरकारी कामकाज के सिलसिले में महाराजा गायकवाड़ ने उन दोनों को बुलाया और सरकारी कामकाज के बाद दोनों को उनके बीच किराए के कमरे को लेकर सवाल पूछ लिया ! महाराजा की बात सुनकर मुनीम जी तो कुच्छ बोल ही नहीं पाए, लेकिन अम्बेडकर जी ने उनके बीच जो कुछ हुआ था , उनको लेकर गाँव वालों से मिली धमकियाँ — सब बता दी ! सुनकर महाराजा का मन बहुत खराब हुआ और उन्होंने मुनीम जी से पूछा – “क्या अम्बेडकर ने जो कुच्छ बताया है, वह सही है ?” मुनीम ने उत्तर दिआ, “जो कुच्छ इन्होंने कहा है , वह सब कुच्छ सौ फ़ी सदी सत्य है, और अब तो बहुत से गाँव वालों ने मुझे और मेरे बच्चों से बातचीत करनी भी बंद कर दी है !” उनकी पूरी समस्या सुनकर महाराजा भी थोड़ा परेशान हो गए और फ़िर कुच्छ सोचकर उन्होंने मुनीम जी से कहा, “हमारे और अम्बेडकर के बीच जो इनकी शिक्षा ऋण सम्बन्धी जो करारनामा हुआ है, जाओ ! वह लेकर आयो !” मुनीम जी भागकर गए और करारनामे के काग़ज़ लाकर महाराजा को दे दिए ! और फ़िर महाराजा गायकवाड़ ने सबके सामने वह करारनामा फ़ाड़कर फैंक दिया ! महाराजे की इस हरकत को सभी लोग फटी-फटी सी आँखों से देख रहे थे ! एक मंत्री ने तो राजा से सवाल ही पूछ लिया , ” महाराज ! यह आपने क्या किया ? करारनामे के मुताबिक अम्बेडकर को तो हमारे यहॉं दस वर्ष नौकरी करनी थी, अभी तो इसे तीन महीने भी नहीं हुए ?” सवाल करने वाले मंत्री से महाराजा ने उल्टा एक सवाल किया, “आप इस पूरे किस्से से बहुत अच्छी तरह वाक़िफ़ हैं, तो बताओ, क्या आप अम्बेडकर को अपने घर एक कमरा किराये पर दे सकते हो ?” सुनकर वह मंत्री भी ख़ामोश होकर उनसे नज़रें चुराने लगा ! फ़िर महाराजा सबको सुनाकर ऊँचे स्वर में बोले, “मैं भी चाहता हूँ कि अम्बेडकर अपना पूरा कर्ज़ा ईमानदारी से अदा करें, लेकिन इसके लिए उसे यहाँ नौकरी करनी होगी, और इसके लिए उसे रहने के लिए कम से कम एक कमरा तो चाहिए ही न ! जब इनको कोई कमरा देने को तैयार ही नहीं, तो इनकी परेशानी भी तो हमें समझनी पड़ेगी ! मुनीम जी के घर जाने से पहले यह सड़क के किनारे एक पेड़ के नीचे ही नौ रात सोए थे, वहाँ तो रात को इनके साथ कोई भी दुर्घटना हो सकती थी ? तो क्या इतने पढ़े लिखे इन्सान की ज़िन्दगी इतनी ससती है कि इनको बेहिफ़ाजित ही सड़क पर छोड़ दिया जाये, केवल इस लिए कि यह पिछड़ी जाति से हैं? यह कोई अपराधी नहीं हैं, एक अच्छा ख़ासा तालीम याफ़्ता इन्सान है ! प्रत्येक इन्सान की ज़िन्दगी उतनी ही कीमती है, बेशक वह इन्सान किसी भी जाति या धर्म से सम्बन्ध रखता हो ! जब हम इनको सुरक्षा प्रदान नहीं कर सकते, इनकी छोटी सी जरुरत भी पूरी नहीं सकते, इनके बनते रुतबे / औहदे अनुसार इनको इज्जत, मान-सम्मान नहीं दे सकते, तो इनको बन्दिशों में रखने का भी हमें कोई अधिकार नहीं है ! ” और फ़िर अम्बेडकर को सम्बोधन करते हुए महाराज गायकवाड़ ने अपना आख़िरी हुकम सुना दिया, “अम्बेडकर जी ! आप बस दो सप्ताह ही और यहाँ और काम करिये, जब तक आपकी जगह काम करने वाला कोई नया अधिकारी नियुक्त नहीं हो जाता, उसके बाद आप यहाँ से जाने के लिए आज़ाद हैं ! आपका बाकी का कर्ज़ा हमने मुआफ़ किया !” और फ़िर उस मंत्री को अम्बेडकर की जगह नए राजनैतिक सचिव के पद के लिए कोई नया उम्मीदवार ढूँढने के लिए आदेश दे दिया !
सो इस तरह वहॉँ से काम से छुट्टी हो जाने के बाद डॉक्टर अम्बेडकर वापिस अपने घर मुम्बई आ गए ! घर आकर वह बहुत रोये कि महाराजा गायकवाड़ की रियासत की अपनी दस वर्ष की नौकरी पूरी नहीं कर पाए ! ब्राह्मण समाज द्वारा बनाई गई बेसिरपैर की जातिप्रथा , छुआछूत और अस्पृश्यता के सामने अच्छी पढ़ाई लिखाई की भी कोई क़दर नहीं ! अम्बेडकर जी के दिल पर उसका बोझ बहुत महीनों तक रहा ! मुम्बई वापिस आकर उन्होंने कोल्हापुर के शाहू महाराज की सहायता से एक साप्ताहिक अख़बार “मूकनायक” प्रारम्भ किया। महाराजा ने भी दूसरी मैगज़ीन “अछूत” की कई बैठकों और सम्मेलनों को भी संचालित किया, जिसे भीमराव भी सम्बोधित किया करते थे ! सितम्बर 1920 में पर्याप्त धनराशि जमा करने के बाद डॉ. अम्बेडकर अपनी अधूरी छोड़ी हुई पढ़ाई पूरी करने के लिए लंदन चले गए। वहां जाकर उन्होंने वकालत की पढ़ाई पूरी की। पूरी दुनियाँ के सात सबसे ज़्यादा पढ़े विद्वानों में से वह एकलौते भारतीय थे और कुल मिलाकर उनके पास 22 डिग्रियाँ थी ! उनकी मृत्यु के 34 वर्ष बाद फरवरी 1990 में उनको भारत रत्न की उपाधि से सन्मानित किया गया – जब श्री वी.पी. सिंह देश के प्रधान मंत्री थे !
उनके जीवन सम्बंधी कुच्छ और रोचिक तथ्य : 1. अर्थ शास्त्र में भारतीय नोबल पुरस्कार विजेता, अमर्त्य सेन, डॉ. अम्बेडकर को अर्थ शास्त्र में अपना गुरु मानते हैं ! 2. उनको कुल मिलकर 64 विषयों में मास्टरी थी और वे दस भाषाओं (मराठी, गुजराती, हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, पर्शियन, उर्दू, जर्मन, फ्रेंच, रशिअन ) के ज्ञाता थे ! 3. वे खुद तीन महापुरुषों – महात्मा बुद्ध , संत कबीर और महात्मा फुले को अपना गुरु मानते थे ! 4. उनका पहला पुतला उनके जीवत रहते ही 1950 में कोहलापुर ( महाराष्ट्र ) में लग गया था ! 5. उनका लिखा हुआ संविधान जब जनवरी 1950 में देश में सर्वोत्तम कानून की पुस्तक के रूप संसद में पास किये जाने के बाद में लागू की गई, तो कोलम्बिआ विश्वविद्यालय ने अपने प्रांगण में डॉ. अम्बेडकर की एक मानव कद की प्रतिमा स्थापित की थी , 6. कोलम्बिआ विश्वविद्यालय, कोलंबिया ने 2004 में पूरे विश्व के 100 महानतम विद्वानों की एक सूची बनाई थी और इस सूची में सबसे ऊपर नाम डॉ. अम्बेडकर का ही है ! 7. हिन्दू धर्म में बेशुमार चल रही कुरीतियों, रूढ़िवादी विचारधारा , अवैज्ञानिक जाति-प्रथा और धर्मों के आधार पर ऊँच नीच / भेदभाव / अस्पृश्यता के चलते और तमाम उम्र अपने साथ होते रहे छुआछात / अस्पृश्यता और भेदभाव और तिरस्कार सहते हुए उन्होंने बहुत पहले ही अपना फ़ैसला सुना दिया था, “बेशक मेरा जन्म हिन्दू धर्म में हुआ है, यह मेरा दुर्भाग्य है, लेकिन मैं वादा करता हूँ कि मैं हिन्दु मरूंगा नहीं!” 8. उन्होंने लगभग 20 वर्ष तक अपने देश में प्रचलत सभी धर्मों के इलावा बाकी दुनियाँ के भी 21 धर्मों का अध्ययन किया था और आख़िर में बुद्ध धर्म अपनाने का निर्णय ले लिया ! 9. उन्होंने अपनी पत्नी सविता, पुत्र प्रकाश अम्बेडकर और अपने सेक्रेटरी नानक चंद रत्तू के साथ साथ अपने पाँच लाख से भी ज़्यादा अनुयाईओं व समर्थकों के साथ 14 अगस्त, 1954 को पंचशील को अपनाते हुए हिन्दु धर्म त्यागकर नागपुर में बौद्ध धर्म ग्रहण किया ! अम्बेडकर जी का मानना था कि हिन्दू धर्म के अंदर दलितों को कभी भी उनके अधिकार और न्याय नहीं मिल सकते, क्योंकि हिन्दू धर्म दस / ग्यारा हज़ार वर्षों से भी अधिक पुरानी पुस्तक मनुसमृति पर आधारित है और यह ग्रन्थ सैद्धांतिक और वैज्ञानिक तौर पर ही गलत धारणाओं और अंध विश्वास और रूढ़िवादी विचारों पर आधारित है, और उस पुस्तक को उन्होंने 25 दिसम्बर, 1927 को एक सत्याग्रह के दौरान महाड़, महाराष्ट्र, में जला दिया था ! 10. अम्बेडकर जी ने दलितों पर निरंतर हो रहे अत्याचार के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए ‘बहिष्कृत भारत’, ‘मूक नायक’, ‘जनता’ नाम के पाक्षिक और साप्ताहिक पत्र निकालने शुरू किये ! 11. उनको बुद्ध धर्म की दीक्षा देने वाले बौद्ध भिक्षु महन्त वीर चंद्रमणि ने कहा था कि महात्मा बुद्ध आज से लगभग 2600 वर्ष पहले हुए थे, और डॉ. अम्बेडकर इस युग के आधुनिक बुद्ध हैं ! 12. अपने समाज के लोगों को सफ़लता का मार्ग समझाते हुए वह अक्सर फ़रमाते थे – “मैंने संविधान लिखकर और उस में बराबरी का अधिकार दिलवाकर शरीरक ग़ुलामी से तो आपको आज़ाद करवा ही दिया है, परंतु मानसिक ग़ुलामी की जंजीरें तो तुम्हें खुद ही काटनी होंगी । और इसके लिए अत्यंत आवश्यक है कि आप लोग शिक्षित बनो, संगठित रहो और जब भी जरूरत अनुभव करो, संघर्ष करो; रास्ते ख़ुद-ब-ख़ुद ही निकलते चले आएंगे !” 13. 26 नवम्बर, 1949 को उनके बनाये हुए संविधान को जब संसद भवन में पास किया गया था, तो उन्होंने संविधान के बारे में चर्चा करते हुए संसद में कहा था , “यह पूरी दुनियाँ का सबसे श्रेष्ठ और नवीनतम संविधान है जिसको बनाने में हमने बहुत कड़ी तपस्या और मेहनत की है , इसमें बनाये गए अनेक प्रकार के प्रावधानों को अंतिम रूप देने से पहले बड़ा गहन विचार-विमर्श किया गया है और संसद भवन में इसमें चर्चा भी खूब की गई हैं, लेकिन अब इसकी असली सफ़लता इस बात पर निर्भर करती है कि उसके अधीन चलने वाली सरकार इसका प्रयोग / उपयोग किस ठंग से / कैसी बुद्धिमता से करती है !” और कुछ अन्य एतेहासिक कारणों वजह से यह संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू किया गया था ! 14. 6 दिसम्बर, 1956 की सुबह को दिल्ली में अपने घर पर ही वह स्वर्ग सिधार गए थे , लेकिन उनके अन्तिम संस्कार के लिए दिल्ली में उनको कोई जगह नहीं दी गई और उनके घर वालों की इच्छा के ख़िलाफ़, दिल्ली से दूर उनके शव को एक विशेष विमान से मुम्बई भेज दिया गया !
तो इस तरह देश के संविधान निर्माता और देश की एक चौथाई आबादी के रहनुमा के साथ परिनिर्वाण के बाद भी नाइन्साफ़ी ही हुई ! दलित समाज के करोड़ों लोगों के दिलों में डॉ अम्बेडकर का मान सम्मान और दर्जा किसी भी देवी देवता से कम नहीं है और उनको चाहने व मानने वाले उन्हें 14वीं सदी के महान गुरू, क्रन्तिकारी समाज सुधारक, गुरू रविदास जी का ही अवतार मानते है !
द्वारा : आर.डी. भारद्वाज “नूरपुरी ”