गुरुदेव ओमदासजी महाराज का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में सन 1962 में सीतामढ़ी, बिहार में हुआ। इनके पिता का नाम पण्डित श्रीदत्त रतनेश्वर झा (महाराजा) तथा माता का नाम श्रीमति कलादेवी है। इनका जन्म एक धनी जमींदार परिवार में हुआ। महाराज जी ने अपनी शिक्षा दीक्षासंस्कृत में व्यकारनाचार्य की डिग्री वाराणसी से प्राप्त करते हुए की। वर्तमान समय में, गुरुदेव जी श्री मधुसूदन ध्यानयोग निकेतन, अहमदाबाद में गद्दी पर आसीन है।पिछले दिनों एस.एस. डोगरा ने अहमदाबाद आश्रम में जाकर विशेष इंटरव्यू किया. प्रस्तुत है बातचीत के अंश:
योग का उद्देश्य क्या है?
योग का उद्देश्य हमें हमारे जीवन के लक्ष्य तक पहुंचाना है।
कुण्डलिनी का क्या महत्व है?
गुरुदेव जी मानना है कि कुण्डलिनी स्वयं ही साधक के गुण का फैसला कर देती है। साधक की सफलता और असफलता का निर्णय निजी कर्म व विश्वास पर निर्भरता पर करता है। संस्कृत के वेदों, पुराणो, मानसिक एकाग्रता आदि भी मानव जीवन में बहुत अहम भूमिका रखते हैं। पिता-पुत्र जैसे रिश्ते के अलावा, गुरु व शिष्य का रिश्ता उत्तम व अनन्त है। इसकी सफलता का आकलन शिष्य के गुरु पर विश्वास पर निर्भर करता है।
कुण्डलिनी के जाग्रत होने के क्या लक्षण हैं?
कुण्डलिनी के जाग्रत होने के कुछ लक्षण इस प्रकार से हैं:
कुछ लोगों को गर्मी, ठण्ड व शरीर में कपकपी, कुछ को रीढ़ की हड्डी में झंझनाहट, शरीर में हलचल, कुछ को दिव्यता का अहसास तथा कुछ को महान संतों का अतीन्द्रिय दर्शन होता है।
मानव जीवन में अध्यात्म की क्या भूमिका है।
मानव जीवन में अध्यात्म की अत्यंत महत्वपूर्ण एवम अहम भूमिका है।
क्या राम नाम जपने व भगवा वस्त्र धारण करने से मन को शान्ति व सुकून प्राप्त होता है?
राम नाम जपने व भगवा वस्त्र धारण करने मात्र
से ही मन को शान्ति व सुकून नहीं प्राप्त होता है।
साधना में सामूहिक योग किस तरह सहायक साबित हो सकता है?
जब एक समूह योग के लिए बैठता है तो समान तरह की आध्यात्मिक तरंग एकजुट होती है, इससे सभी लोगो को बहुत लाभ होता है।
एक शुरुआत करने के उपरान्त, एक साधक को किस तरह के नियमों का पालन करना चाहिए?
शुरुआत करने के उपरान्त, एक साधक को एक अनुशासित जीवन तथा अपने गुरु में पूर्ण भरोसा रखना चाहिए, साधना में पूर्ण समर्पण, गुरु मन्त्र का जाप, और 11 दिन तक देह्शुद्धि मन्त्र का जाप जरूरी है।
एक साधक के आध्यात्मिक उत्थान के लिए सदगुरु क्या भूमिका अदा कर सकते हैं?
सदगुरु एक साधक की प्रगति के लिए बड़ी अहम भूमिका अदा कर सकते हैं। सदगुरु की तमाम शक्ति, एक समर्पित सच्चे साधक के लिए पूर्ण विकास के लिएकार्य कर सकती हैं। यह साधक को मोक्ष तक पहुँचने में मार्गदर्शक साबित होते हैं।
ध्यान के दौरान गर्मी क्यों उत्पन्न होती है?
जब हमारे शरीर में प्राण शक्ति प्रज्व्व्लित होता है तो शरीर में स्वत: ही गर्मी बढ्ने लगती है।
ध्यान के समय क्रिया व मुद्रा का क्या स्थान है?
कुंडिलिनी शक्ति सक्रीय हो जाती है और क्रिया व मुद्रा के माध्यम से शुद्धिकरण होने लगता है, जोकि साधक के भीतर अज्ञान को हटाने में जरूरी है।
ध्यान में लीन होने के क्या लक्षण हैं?
वह सोते, घूमते, स्वप्न लेते हुए चेतना की विभिन्न अवस्थाओं का अनुभव करने लगता है। उसे कई तरह के संवेंदंशील अनुभव जैसे झुनझुनी, कंपन, रोशनी, रंग, मीठी खुशबू का आभास होता है।
शक्तिपात की क्या परिक्रिया है? यह कैसे एक साधक के जीवन को परिवर्तन कर देती है?
यह एक ऐसी सर्वशक्तिमान शक्ति है जो कि एक साधक के भीतर छिपी हुई शक्ति को आत्मज्ञान की ओर ले जाती है। यह सब सदगुरु द्वारा शक्तिपात की अन्तर-दृष्टि से एक साधक को सत्य के सर्वोच्च ज्ञान को प्रदान किया जाता है।
क्या साधक को अपना लक्ष्य पाने का मालूम पड़ जाता है?
इस बात का पता केवल गुरु को ही मालूम होता हैकि साधक ने अपना अन्तिम लक्ष्य हासिल कर लिया है कि नहीं ।
शक्तिपात को अदा करने के लिए कौन हकदार होता है?
शक्तिपात को अदा करने के लिए केवल वही सदगुरु अधिकारी होता है जिसके पास ब्रह्मविद्या ज्ञान होता है अथवा जिसको सदगुरु से शक्तिपाठ को प्रदान करने का आदेश व आज्ञा मिली हो।
शक्तिपाठ के बाद योग मार्ग पर जाने के लिए कोई अड़चन हो सकती है?
यदि ऐसी अड़चन आती है तो उन मामलों में कुंडलिनी शक्ति स्वयं ही उसे दूर कर देती है। वैसे सम्भव हों तो जल्द से जल्द गुरुदेव से संपर्क करना चाहिए, वही एक मात्र व्यक्ति है जो आपकी मदद कर सकते हैं। जब तक गुरुदेव से संपर्क न हों पाये तो उनकी फोटो के समक्ष प्रार्थना से भी समस्या हल हो जाएगी।
यदि साधना की बात की जाए तो सन्यासी अथवा ग्रहस्थ में किसको अधिक लाभ होता है?
जिस भी किसी व्यक्ति को जिसका अपने गुरुदेव में पूर्ण विश्वास हों उसे हमेशा प्रगति मिलेगी, चाहे वह जीवन में सन्यासी अथवा ग्रहस्थ जीवन में आचरण करता हों, इससे कोईअंतर नहीं पड़ता है।
एक साधक द्वारा गुरु की भौतिक अनुपस्थिति में साधना को कैसे निरन्तर करने में सक्षम हों सकता है?
तरंगों के माध्यम से ब्रहमशक्ति कार्य करती है इसमें भौतिक उपस्थिति अनिवार्य नहीं होती है।
युद्ध व विनाश के इस युग में विश्व में स्थायी शान्ति कैसे सम्भव है?
ध्यान शरणं गच्छमी। ध्यान ही एक मात्र मार्ग है। जब एक व्यक्ति अपने आप को नहीं जाग्रत कर सकता है तो वह ऑरों का कैसे उद्धार कर सकता है। इसके लिए प्रतेक व्यक्ति को शक्तिपात ग्रहण कर पूर्ण जागृत होकर विश्व को लाभ देना होगा।
क्या राजनीतिक नेताओं को शक्तिपाठ में शामिल करना अनिवार्य है?
यह जरूरी नहीं है। यह तो विश्वास का रास्ता है। यदि जनसंख्या का 0.25% भी आध्यात्मिक रूप से जाग्रत हों जाएँ, तो ये लोग ही पूरे जगत को सकारात्मक रूप से अच्छे परिणाम पैदा करने में कामयाब हों जाएंगे।
गुरुसेवा के सन्दर्भ में नर व नारी का क्या महत्व है?
गुरुसेवा की पात्रता शिष्य द्वारा अपने गुरु के समक्ष आत्मसमर्पण है। गुरु जी द्वारा नर-नारी, जाति, रंग, जवान व वृद्ध से कोई लेना देना नहीं है।गुरु जी के सामने सब एक समान है।
क्या मनुष्य का जन्म वास्तव में 84 लाख योनियों के बाद ही होता है? मानव के पास और जीवों से हटकर क्या विशेषता है?
मनुष्य का जन्म वास्तव 84 लाख योनियों के बाद ही होता है। इसीलिए मानव योनि को महत्व दिया जाता है। जिसको सोचने व समझने की शक्ति प्रदान की गई है।
ब्रहमा, विष्णु व शिव का क्या महत्व है?
ब्रहमा-निर्माण, विष्णु-पालन व शिव-संघार के प्रतीक है।
आत्मा क्या है इसको किस तरह महसूस किया जा सकता है? इसके मानव जीवन में क्या महतत्वता है?
आत्मा को वायु की तरह महसूस किया जा सकता है, इसे हम देख नहीं सकते हैं। इसे दिव्य ध्वनि से महसूस कर सकते हैं। आत्मा व बुद्धि का सामीप्य है। बुद्धि में मन व आत्मा लीन है। मन चकाचौंध की ओर आकर्षित होता है परन्तु आत्मा ही निर्णय निर्धारित करती है। थर्ड आई मंत्र के द्वारा 54 मिनट्स की सीडी सुनकर मन व आत्मा पर नियंत्रण किया जा सकता है। उक्त सीडी को सुनकर, अपराधी प्रवर्ती ही खत्म हो जाएगी। हठ शब्द ही नहीं आएगा। स्वच्छ वातावरण कायम करना जरूरी है। बच्चों में कमियाँ न निकालें व निरर्थक भाषण आदि देने से अहंकार पनपता है।
मानव जीवन में अध्यात्म की क्या भूमिका है?
मानव जीवन में अध्यात्म की अत्यंत एवम अहम भूमिका है। राम नाम जपने व भगवा वस्त्र धारण करने से ही मात्र मन की शान्ति व संतोष नहीं प्राप्त होता है। वाणी में सौभ्यता व मधुरता आती है। व्यंग, कटु वाणी, मुँह फूलाना, क्रोध करना व दिलाना अपराध है। हमें ऐसा नहीं करना चाहिए। वेद जननी है, अपनी-अपनी भाषा में अनुवादित ग्रन्थ से अच्छे संस्कार प्राप्त होते हैं। मनुष्य जीवन में माता-पिता के अच्छे संस्कारों व वेदों के जीवन ही व्यर्थ है। एक दूसरे को सम्मान व इज्जत दें, प्र्तेक जीवन को आदर दें।