अपने संजीदा अभिनय के लिए मशहूर काजोल बॉलीवुड के जाने-माने निर्देशक रोहित शेट्टी की फिल्म ‘दिलवाले’ के जरिए वह शाहरुख के साथ करीब पांच साल बाद पर्दे पर नजर आईं हैं स्वाभाविक तौर पर इतने दिनों के बाद एक्टिंग में वापसी करके खुद काजोल भी खासी उत्साहित हैं…
बॉलीवुड में शाहरुख और आपकी जोड़ी हिट मानी जाती है। ‘दिलवाले’ के साथ भी क्या इतिहास दोहराएंगी?
बेशक, क्योंकि कोई भी फिल्मकार हमेशा कामयाबी की ही चिंता करता है। जबकि, रोहित शेट्टी खुद कामयाब फिल्मों के पर्याय माने जाते हैं। ऐसे में उनकी फिल्म तो वैसे भी संदेह से परे हो जाती है। जहां तक शाहरुख के साथ मेरी जोड़ी का सवाल है, तो इसमें दो राय नहीं कि बॉलीवुड में हमारी जोड़ी सर्वाधिक रोमांटिक जोड़ी के रूप में शुमार की जाती है। हमने एक साथ ‘बाजीगर’, ‘करण-अर्जुन’, ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’, ‘कभी खुशी कभी गम’, ‘कुछ कुछ होता है’ और ‘माई नेम इज खान’ जैसी कई सुपरहिट फिल्में दी हैं। ऐसे में हम ‘दिलवाले’ की कामयाबी को लेकर भी संशय में नहीं हैं।
‘दिलवाले’ के साथ ही ‘बाजीराव मस्तानी’ भी रिलीज होगी। कैसा फील कर रही हैं?
बॉलीवुड मेरे लिए कोई नई जगह नहीं है। यहां मैंने एक लंबा वक्त गुजारा है और एक ही शुक्त्रवार को कई-कई फिल्मों को रिलीज होते देखा है। हर फिल्म की अपनी एक किस्मत होती है और वही किस्मत उसे हिट या फ्लॉप कराती है।
यह सच है कि ‘दिलवाले’ के साथ ही ‘बाजीराव मस्तानी’ भी रिलीज हो रही है, लेकिन दोनों की कहानी, डायरेक्टर और स्टार कास्ट पूरी तरह अलग है। हम तो दुआ करेंगे कि ‘दिलवाले’ और ‘बाजीराव मस्तानी’, दोनों ही फिल्में बॉक्स ऑफिस पर दर्शकों का भरपूर मनोरंजन करते हुए बेहतर बिजनेस भी करे।
आपने सच कहा कि मेरी मां तनुजा, मेरी मौसी नूतन और नानी शोभना समर्थ भी अपने समय की बेहतरीन अदाकारा रह चुकी हैं। लेकिन, सच कहूं तो इन सबके स्टारडम या इनकी एक्टिंग शैली या फिर घर के उस फिल्मी माहौल का मुझ पर कोई असर नहीं पड़ा है। इसका कारण यह है कि मैं अपनी मां और मौसी की फिल्में ज्यादा देखती नहीं थी। पर्दे पर उन्हें रोता देखकर मुझे बहुत रोना आता था। फिल्में देखने के बजाय मुझे किताबें पढ़ना ज्यादा पसंद रहा है और यह शौक या आदत अब तक बरकरार है।
आपकी कामयाबी का राज क्या रहा है?
देखिए, मैं अपनी शर्तों पर ही फिल्म में आईं, मैंने शुरुआत से ही अपनी शर्तों पर फिल्मों में काम किया और मनपसंद फिल्में कीं और बेहतर कैनवास पाया। आप कह सकते हैं कि थोड़ी-सी कोशिश और लोभ पर कंट्रोल करने के कारण मुझे सब कुछ सही समय पर हासिल होता चला गया। मैंने हमेशा वही किया है, जो मुझे लगा कि सही है। जितने भी निर्णय लिए हैं, चाहें वह सही हों या गलत, सभी खुद लिए हैं और उनकी जिम्मेदारी भी खुद ली है। मैंने कभी वक्त देखकर कोई निर्णय नहीं लिया। मुझे नहीं लगता कि मैं कोई मास्टर ऑफ टाइमिंग हूं। अगर मैं वक्त देखकर निर्णय लेती, तो अब तक शायद कुंआरी ही रहती, मेरी बेटी नहीं होती और इतनी कम फिल्में नहीं होती।
आप आजकल केवल दोस्त फिल्मकारों की फिल्में कर रही हैं। बाहरी फिल्मकारों की क्यों नहीं?
ऐसा कुछ सोचकर फिल्में नहीं कीं कि यह मेरे दोस्त करन जौहर या आदित्य चोपड़ा की फिल्म है। मेरे लिए फिल्मों के मामले में दोस्ती बहुत मायने नहीं रखती है। लेकिन, रियल लाइफ में दोस्ती बहुत मायने रखती है। मेरा मानना है कि दोस्ती बेहद अहम होती है, और यही वजह रही कि अगर कभी मैंने ना भी की है, तो उसके बाद भी दोस्ती कायम रही है, क्योंकि बात भरोसे की है।