समता

मधुरिता 

सबके हित में जिसकी प्रीति हो गई है उन्हें भगवान प्राप्त हो जाते है । भगवान की रची हुई प्रत्येक वस्तु सबको समान रीति से मिलती है । पानी सबकी प्यास बुझाती है, हवा सबको सामान रीति से श्वाश देती है , पृथ्वी समान रीति से सबको रहने का अधिकार देती है , सूर्य सब को समान रूप से प्रकाश देता है ।

जिसका मन समता में पैठ कर जाता है , वे जीते जी संसार पर विजय प्राप्त कर लेता है और परब्रह्म परमात्मा का अनुभव कर लेता है । यह समता तब आती है – जब दूसरों का दुःख अपना और दूसरों का सुख अपना सुख लगता है । अपने शरीर की तरह मेरे को सब जगह सम देखता है और सुख व दुःख को भी सब जगह सम देखता है । वह योगी परम श्रेष्ठ माना गया है । जैसे शरीर के किसी भी अंग में पीड़ा होने पर उसको दूर करने की लगन लग जाती है । ऐसे ही किसी प्राणी को दुःख, संताप आदि होने पर उसको दूर करने की लगन लग जाए यही समता है । यही तो( स्वामी रामसुखदास जी ) साधक – संजीविनी गीता की समता है ।