कितनी और निर्भया ?

डॉ सरोज व्यास
प्रधानाचार्य,
इंदरप्रस्थ विश्व विद्यालय, दिल्ली

क्या हुआ, ऐसे क्यों देख रही हैं आप, जितना लिखा कैमरे में कैद कर लिया, बताओं कैसी लगी मेरी कहानी, कहाँ खो गई ? निर्मल, मेरी दीदी का जेष्ठ पुत्र, आजकल इंडिया टी.वी. में कार्यरत है | बदलते परिवेश तथा सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक विषयों पर छोटे-छोटे विज्ञापन, कटाक्ष संदेश और अति लघु फिल्मों का लेखन एवं फिल्मांकन का कार्य उसके पास है | कल मेरे आग्रह पर घर आया था और सामान्य चर्चा के अंतर्गत उसने स्वयं द्वारा लिखित कुछ विज्ञापन एवं एक लघु फिल्म के बारे में बताया | मुझे निर्विकार भाव से गंभीर देखकर वह पुन: बोला –“इतना गंभीर क्यों हो गई मौसी ! कहानी है, कहानी, लोगों को कुछ अलग हटकर चाहिए, ऐसा जिसमें रोमांस, रोमांच, जिज्ञासा, उत्सुकता के साथ-साथ सनसनी फैलाता कुछ हटकर मसाला हो, तभी देखेंगे, पसंद करेंगे, और अपनी टिप्पणी देंगे” | उससे क्या होगा, मैंने मौन तोड़ते हुये प्रश्न किया ? “कमाई होगी, चैक-पैसे मिलेंगे, समझी या नहीं” ? इतना कहकर खिलखिलाते हुये उसने मुझे पकड़ कर झकझोर दिया | निर्मल अब घर के अन्य सदस्यों से बात करने लगा और मेरी आँखों के सामने उसकी कहानी के दृश्य नाचने लगे |

*घर के स्वागत-कक्ष मेँ नगीना किसी पत्रिका के पन्ने उलटने मेँ व्यस्त, तभी अचानक फोन की घंटी बजती है | पत्रिका को वही छोड़कर उसने शीघ्रता से फ़ोन का रिसीवर कानों से लगाया, दूसरी ओर उसके सपनों का राजकुमार था | हैलो ! कैसी हो, क्या हो रहा है, क्या आज शाम को हम मिल सकते हैं ? ‘I Love You My Sweet Heart’. नगीना के चेहरे पर हर्ष, लज्जा और अभिमान के गर्वित भाव काफी कुछ बयान कर रहे थे, हौले से बस उसने “तैयार रहूँगी” कहा और रिसीवर रख दिया | मन ही मन उसने बुदबुदाना शुरू किया –‘’चिर-प्रतीक्षित इन तीन शब्दों को बोलने में इसने 1 वर्ष 3 महीने 7 दिन का समय लगा दिया, कब से यह सुनने को मेरे कान तरस रहे थे, जानती थी, मुझसे बेपनाह मोहब्बत करता है, लेकिन इसके इज़हार का इंतजार था”| घड़ी की सुइयाँ आज कुछ सुस्त थी, नगीना का मन कर रहा था, पकड़ कर उन्हें भी दौड़ लगवा दे, एक-एक पल बिताना मुश्किल हो रहा था | समय से पहले ही तैयार होकर, अनेक बार दर्पण में खुद को निहारा, हार-शृंगार से लेकर परिधान सब-कुछ उनकी पसंद को ध्यान में रखकर पहना, शाम ढ़ली निर्धारित समय पर वह आया और नगीना अपने महबूब के साथ ‘डेट’ पर चली गई |

*आलीशान होटल के कक्ष के बीचों-बीच एक टेबल नगीना के लिए आरक्षित, चारों ओर मंद-मंद रोमांचित कर देने वाले संगीत के स्वर, लाल गुलाबों में सजा दिल की आकृति वाला गुलदस्ता और मध्यम रोशनी में भीगा वातावरण | नगीना को नज़ाकत से बाँहों में भरकर वह टेबल तक लाया और अपने प्यार का इज़हार (‘I Love You My Sweet Heart’) किया, उसकी पसंद का खाना मंगवाया | इन सब के बीच नगीना कही खोई थी, मन ही मन वह सोच रही थी –“और क्या चाहिए किसी लड़की को, शिद्द्त से बेपनाह प्यार करने वाला प्रेमी, रोमांटिक शाम और आशिक़ाना मिज़ाज | वह बुदबुदाई- ऐसा फिल्मों में होता है, मुझे हकीकत में सब मिल रहा है, जिसकी कल्पना और सपने देखकर हर लड़की जवान होती है, इस दिन की चाहत मुझे भी थी, और वह मुस्कुरा दी” |

अचानक वह नीचे झुका, घुटनो के बल बैठकर उसकी ओर अंगूठी बढ़ाते हुये –‘Will you marry me’ शब्दों के साथ उसकी हाँ का इंतजार करने लगा | नगीना की सोच से अधिक था यह सब, इसलिए हड़बड़ाहट में उसने कहा “तुमसे प्यार करती हूँ, लेकिन शादी ? मुझे कुछ समय चाहिए” | “कोई बात नहीं मैं तुम्हारी हाँ की प्रतीक्षा करूंगा” | नगीना ने सोचा सामान्य लड़कों की भांति वह बुरा मानेगा या नाराज होगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ | ऐसे धैर्य की अपेक्षा नहीं थी उसे, उसके व्यवहार से वह भावुक हो गई और उसने सोचा जाने से पहले वह आज ही उसे शादी के लिए हाँ कह देंगी | उसकी तंद्रा टूटी जब उसने कहा –“चलों बाहर आईस्क्रीम खाएंगे”| नगीना ने मासूमियत से पूछा – “यहाँ नहीं मिलेगी क्या” ? “नहीं ऐसा नहीं है कि यहाँ आईस्क्रीम नही मिलेगी, लेकिन यहाँ से थोड़ी दूर एक जगह है, जब भी मेरी कोई मन्नत अधूरी रहती है, मैं वहाँ जाता हूँ और मेरी हर ख़्वाहिश पूरी हो जाती है, आज तुम्हारे साथ तुम्हें मांगने जाना चाहता हूँ, चलोगी” ?

नगीना का अंग-अंग पुलकित हो रहा था, खुशी के मारे उसकी आँखों से आँसू छलक पड़े, हौले से उसकी हथेली को चूमते हुये उसने कहा –“कही भी ले चलो” | दोनों होटल से निकल कर कार में बैठे, कुछ किलोमीटर की दूरी पर ले जाकर उसने कार रोकी | वहाँ अँधेरा था, लेकिन नगीना ने देखा सड़क के दूसरी ओर एक आईस्क्रीम का ठेला खड़ा था | उसने नगीना से कहाँ –“तुम कार में रहो, मैं मन्नत मांगकर,10 मिनिट में हम दोनों के लिए आईस्क्रीम लेकर अभी आया” | नगीना कुछ कहती, उससे पहले ही लगभग दौड़ते हुये उसने सड़क पार कर ली और कुछ ही क्षणों में अँधेरे में वह नगीना की आँखों से ओझल हो गया | नगीना के लिए इंतजार का एक-एक पल भारी हो रहा था, इज़हार की बेसब्री में बार-बार वह कभी सड़क के उस पार तो कभी कलाई पर बंधी घड़ी को देखकर बेचैन हो रही थी | आधा घंटा हो गया था उसे गए, नगीना ने सोचा फ़ोन कर लेती हूँ, लेकिन उसका मोबाईल भी NOT REACHABLE आ रहा था |

अचानक कार के चारों दरवाजे खुलते हैं, चार नकाबपोश अन्दर बैठते हैं, नगीना संभल पाती उससे पूर्व ही गाड़ी तेजी से दौड़ पड़ती है | कुछ दूरी पर जाकर कार एक पल को रुकी, आगे बैठे व्यक्ति ने शीशा उतारा और एक बड़ा-सा सूटकेस बाहर हवा में उछाल दिया तथा आगे बढ़ गए | नकाबपोशों ने नगीना के मुँह पर पट्टी बांध रखी थी, किन्तु आँखें खुली थी, उसने देखा सूटकेस को बाँहों में भरकर सीने से लगाता शख़्स कोई और नहीं अपितु कुछ देर पहले “प्यार का इज़हार और शादी का प्रस्ताव रखने वाला उसके सपनों का राजकुमार ही था” |

एक दसक (10वर्ष) बीत गया इस घटना को, नगीना आलीशान होटल की लॉबी में लगभग पारदर्शी अर्धनग्न परिधान में बैठी यही सोच रही है, कि क्यों नहीं उसके साथ सुख की अनुभूति प्राप्त करने वाला कोई भी पुरुष उसकी कहानी पर यकीन करता ? क्यों तृप्त होकर जाता हुआ हर शख्स उसके दामन में पैसे फेंक कर चला जाता है ? नगीना समझ नहीं पा रही थी कि उससे कहाँ गलती हुई ? क्या किसी के प्यार पर विश्वास करना गलत है ? विश्वास के बिना क्या जीवन संभव है ? जीवन रात्रि-स्वपन नहीं बल्कि अन्त तक चलने वाला सफर है, इसे कहानी समझ लेना अक्षम्य अपराध है | वर्तमान समय में मन के साथ-साथ मस्तिष्क का चौकन्ना होना अति आवश्यक है एवं दृश्य के साथ अदृश्य कि दृष्टि अपेक्षित है | यदि ऐसा नहीं हुआ तो निर्भया एवं नगीना का हश्र मात्र कहानी बनाने एवं आँसू बहाने तक सिमट कर रह जाएगा |