प्रवीण कुमार शर्मा
केवल बस तुम हो तो लगता है
जिन्दगी है, जिन्दगी हसीन है
जिन्दगी नही है, उदास जिन्दगी है
कितनी ही बातें अनकही है अब तक
कितनी ही रातें अकेली है, अब तक
क्या गुनाह है किसी को चाहना
क्या गुनाह है, तुम्ही को चाहाना
कैसे दिखा पाऊगा दिल को
कैसे बता पाऊगा तुमको
तुम ही जिंदगी हो
तुम ही हर ख़ुशी हो
हर वक्त है जिसकी कमी
होंठों की कॅंप-कॅंपी, आखों की नमी
तुम्हारी तस्वीर बोलती है मुझसें
इतना न देखा करो तुम
उफ अब करू, तो क्या करू
ना सहा जाता है
ना कहा जाता है
यें जो प्यार है हर पल बढ़ता है, बढ़ रहा है
कैसे बताऊ तुम्हें
कैसे समझाऊ तुम्हें
अब तुम्हारे बिन हर लम्हा खटता हैं, खटकता है
कुछ करो ना
तुम ही जिन्दगी हो
जीने की वजह भी तुम ही हो
फूलों की खुशबू , तितली के रंग
चेहरे की ख़ुशी, तुम ही हों
सुना तुमने, सुना तुमने
अब चुप रहो ना
कुछ कहो ना, कुछ कहो ना
तुम ही हो, तुम हो ना
तुम हो तो जिन्दगी है