नई फिल्म रीलिज – इंग्लिश विंग्लिश

प्रेमबाबू शर्मा
समाज में तेजी से बढ रहे अग्रेंजी प्रचलन और इस भाषा से अनभिज्ञ लोगों की स्थिति और मनोदशा क्या होती है उसे फिल्म में बखूबी से दिखाया है, इस फिल्म को देख कर 1994 गोविंदा अभिनीत रीलिज फिल्म आग की यादें ताजा हो जाती है गोविंदा कोलोग गांव के लोग अनाडी समझते है,मगर बाद में पता चलता है कि वह भी इंग्लिस में निपुण है, खैर छोडो ये बात पुरानी  है ,हमारे समाज में भी आज के बच्चे  अंग्रेजी से प्रभावित है अगर परिवार के कोई इस लैंगवेज को नही जानता तो परिवार के सदस्य के उनके साथ ऐसा व्यवहार करते हैं, जैसे वे अछूत हों, फिल्म इंग्लिश विंग्लिश’ इसी विडंबना को कहती है और मनोरंजन करते हुए अपने अंत तक सुखद अनुभव के साथ पहुंचती है।

इंग्लिश विंग्लिश’ की कहानी एक चार सदस्यीय परिवार की कहानी है, जिसमें पत्नी शशि (श्रीदेवी) अपने पति सतीश (आदिल हुसैन), और उनके दो बच्चे सपना और सागर के साथ रहती हैं। घर में शशि को छोड़ सभी अंग्रेजी में बातें करते हैं। जब सब बातें करते हैं और शशि बीच में कोई शब्द अंग्रेजी का बोलती है, जो गलत बोल जाती है, तो सभी हंसते हैं। इस बात से शशि अंदर ही अंदर घुटती है। समय बीतीता है , शशि को अमेरिका में रह रही बहन की बेटी की शादी में अकेले ही पहले वहां जाना पड़ता है। अब उसकी परेशानी यह है कि वहां जाते हुए वह लोगों से कैसे अंग्रेजी में बातें करेगी? खैर, शशि वहां पहुंचती है। वहीं वह चार सप्ताह में अंग्रेजी सिखाने वाला इंस्टीट्यट जॉएन करती है और किसी को इस बारे में नहीं बताती। क्लासेज के दौरान उसे एक फ्रेंच युवक चाहने लगता है। शादी में शशि के साथ अंग्रेजी सीखने वाले सभी साथी आते हैं। वहीं कहानी का अंत होता है, जब लास्ट स्पीच शशि अंग्रेजी में देती है।
अभिनय की बात करें तो पूरी फिल्म में श्रीदेवी छाई हुई हैं, लेकिन दूसरे कलाकार भी छोटे रोल में होने के बावजूद अहम लगते हैं, जैसे सतीश, सपना, सागर और अंग्रेजी सीखने वाला फ्रेंच साथी, जिसकी भूमिका मेहंदी नेब्बू ने निभाई है। श्रीदेवी इसमें रूप से ज्यादा काम से खूबसूरत दिखी हैं। कई बार तो उनकी भावनाएं दिल को चीरती सी लगती है। आदिल हुसैन, सुलभा देशपांडे, प्रिया आनंद ने अच्छा काम किया है। मेहमान भूमिका में अमिताभ बच्चन भी छाप छोड़ जाते हैं।

निर्देशक गौरी शिंदे ने कहानी को इस तरह से पेश किया है कि दर्शकों का दिमाग कहीं और नहीं जाता। वे कहानी में खुद को बंधा पाते हैं और यहीं उनकी जीत होती है। जहां तक गीत-संगीत का सवाल है तो यह कहा जा सकता है कि कहानी इतनी अच्छी तरह प्रस्तुत की गई है कि ये कुछ खास अहमियत नहीं रखते।

निर्माता -आर बाल्की, राकेश झुनझुनवाला, सुनील लुल्ला, आर के दमानी, निर्देशक-लेखक -गौरी शिंदे, कलाकार -श्रीदेवी, आदिल हुसैन, प्रिया आनंद, सुलभा देशपांडे, नेब्बू मेहंदी, गीतकार-स्वानंद किरकिरे, संगीतकार-अमित त्रिवेदी