व्यावसायिक सिनेमा ने गीत संगीत का रंग ही बदल दिया

प्रेमबाबू शर्मा

बदलते समय के साथ साथ हमारे सिनेमा के गीत-संगीत का मिजाज बदला है। गीतों के बोल बेशर्म हो रहे हैं और अर्थ बदलने लगे हैं। हाल ही में अनुराग कश्यप की फिल्म हंटर फिल्म के एक गीत के बोल देखिए – डोंट रिजेक्ट मी, आई एम अ लर्नर, मुझे सीखने दो, आंखें सेंकने दो, गन अपनी लोडेड है, टारगेट भी कोडेड है, ट्रिगर पे उंगली है, मन एकदम जंगली है…। यह गीत फिल्मी गीतों के बिंदास और बोल्ड होने की बानगी है…

एक दौर था जब हिंदी सिनेमा के गीतों में बोल में मधुरता के अलावा उसके शब्द भी खूबसूरत थे। बदलते समय के साथ साथ हमारे सिनेमा के गीत-संगीत का मिजाज बदला है। गीतों के बोल बेशर्म हो रहे हैं और अर्थ बदलने लगे हैं। गीतों के बोल में शरीर की कमनीयता को भावभंगिमाओं से किनारा करके उसके आकार प्रकार पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है। साफ.सुथरेपन को ताक पर रख दिया गया है। गीतों में भावनाएं खत्म हो गई हैं और सिर्फ सेक्स का तड़का समाने लगा है।हाल ही में अनुराग कश्यप की आई फिल्म हंटर फिल्म के एक गीत के बोल देखिए- डोंट रिजेक्ट मी, आई एम अलर्नरए मुझे सीखने दो, आंखें सेंकने दो, हे गन अपनी लोडेड है, टारगेट भी कोडेड है, ट्रिगर पे उंगली है, मन एकदम जंगली है..। यह गीत फिल्मी गीतों के बिंदास और बोल्ड होने की बानगी हैफिल्म ब्रदर्स का आइटम नंबर मेरा नाम मैरी सुनने में भी शर्म आती है, जबकि करीना जैसी कलाकार ने इस गाने पर डांस किया है1993 में आई ‘खलनायक’ का. चोली के पीछे क्या है. गीत बजना शुरू हुआ तो देश भर में एक बार फिर से गीतों की अश्लीलता के खिलाफ माहौल बना। लेकिन इस गीत का जितना विरोध हुआ, उसे उतना ज्यादा सुना जाने लगा। नतीजा यह हुआ कि यह गीत सबसे सफलतम गीतों में शामिल हो गया।गब्बर इज बैक का ‘कुंडी मत खड़काओ राजा, सीधे अंदर आओ राजा’ गीत आजकल बहुत सुना जा रहा है। एक वह जमाना था, जब महबूबा के चलने पर मन के मचलने से निकले गीत, तौबा ये मतवाली चाल पर भी बवाल मच जाता था चांदनी के बिना चांद का होना कोई बहुत ज्यादा मायने नहीं रखता। इसी तरह उजाले की किरणों के बिना सूरज का उगना भी किसी को नहीं लुभाता। जिस तरह से धड़कनों के बिना दिल का होना जिंदगी का अहसास नहीं कराता और नजाकत के बिना हुस्न का होना भी बेनूर लगता है। इसी तरह हमारी फिल्मों में गीत-संगीत अगर न हो, तो उस फिल्म की सफलता की कल्पना करना किसी डरावने सपने से कम नहीं होगा। लेकिन गीत गुनगुनाने लायक हो और संगीत भी सुनने लायक हो लेकिन उसे आप न तो घर परिवार में गा सकते और न ही समाज में सार्वजनिक रूप से सुन सकते हैं, तो ऐसे गीतों के होने का फायदा ही क्या है।

पिछले कुछेक सालों में आई बहुत सारी फिल्मों में ऐसे ही गीत आ रहे हैं। दृश्य यह है कि हमारे गीतों का अंदाज बिंदास हो गया है और बोल बेबाक हो चले हैं। बेशर्म होते जा रहे इन गीतों के लेखन में वर्जनाएं टूट रही है। रिश्तों का भी ख्याल नहीं है। और यह सब कुछ गीत के चल जाने के नाम पर किया जा रहा है। सफलता के लिए कोई भी कुछ भी लिखने को तैयार है। शरीर के आकार-प्रकार से लेकर शराब के शौक और बिस्तर की बोल्डनेस के अलावा सेक्स और सिसकारियों से जुड़े गाने लिखे जा रहे हैं, और ये हिट भी हो रहे हैं। दरअसल, जिन फिल्मों का कथानक देसी है या फिर ठेठ ग्रामीण अंदाजवाला है, उनमें तो भड़काऊ और द्विअर्थी गीतों का होना समझा जा सकता है। क्योंकि हमारी लोक संस्कृति में इस तरह के गीतों का गाया जाना बहुत आम है। लेकिन जिन फिल्मों का देसी संस्कृति से दूर-दूर तक कोई वास्ता ही नहीं है उनमें भी किसी आइटम सॉन्ग के रूप मे ही गानों के लिए जगह नहीं बनाई जा रही है। ज्यादातर फिल्मों में अश्लील बोल वाले बिंदास गीतों को भड़काऊ अभिनय के साथ आइटम सॉन्ग के रूप में खपाया जाता है। हालांकि यह सिलसिला कोई नया नहीं है। एक वह जमाना था, जब महबूबा के चलने पर मन के मचलने से निकले गीत- तौबा ये मतवाली चाल… पर भी बवाल मच जाता था। लेकिन अब तो सीधे-सीधे अपने आप को बिस्तर में बढि़या साबित करते हुए गाने बनने लगे हैं। भरोसा न हो तो ‘फगली’ का . बेबी मेरे पास खटिया नहीं है, बेबी मेरे पास गद्दा यही है, आई एम गुड इन बेड बेबी… गीत सुन लीजिए। ‘राउडी राठौर’ का गाना- आ रे प्रीतम प्यारे भी कुछ ऐसा ही संदेश देता है। हाल ही में आई फिल्म ब्रदर्स का आइटम नंबर- मेरा नाम मैरी… सुनने में भी शर्म आती है, जबकि करीना जैसी कलाकार ने इस गाने पर डांस किया है। ऐसा नहीं है कि पहले इस तरह के गीत नहीं बनते थे। पहले भी ऐसा होता रहा है। भड़काऊ गीत एक खास वर्ग को ध्यान में रखकर पहले भी तैयार किए जाते थे। ग्रामीण और ठेठ देसी इलाकों की एक बड़ी आबादी रोजगार के सिलसिले में बड़े पैमाने पर शहरों की तरफ पलायन करती रही है। ऐसे लोगों की यौन कुंठाओं को तृप्त करने के लिए फिल्मों में देसी गीतों के नाम पर धीरे-धीरे ऐसे गीत पेश किए जाने लगे। ‘दलाल’ फिल्म का अटरिया पे लोटन कबूतर रे.. ‘गंगाजल’ का मेरी अल्हड़ जवानी, ‘चीता’ का चू चू चू चू और ‘करण अर्जुन’ का मुझको राणाजी माफ करना गलती म्हारे से हो गई.. जैसे गीत इसके गवाह हैं। 
लेकिन अस्सी और नब्बे के दशक में इनकी सार्वजनिक प्रस्तुतियों का विरोध भी होता था। पर, अब तो कसमसाते कामुक गीतों पर भी कोई चिंता तक व्यक्त नहीं करता। वर्ष 1982 में आई फिल्म विधाता के सात सहेलियां गीत पर देश भर में बवाल मचा था। जबकि इस गीत में कोई अश्लीलता नहीं थी। उसके बाद वर्ष 1993 में आई खलनायक का. चोली के पीछे क्या है- गीत बजना शुरू हुआ तो देश भर में एक बार फिर से गीतों की अश्लीलता के खिलाफ माहौल बना। लेकिन इस गीत का जितना विरोध हुआ, चोली के पीछे क्या है को ज्यादा सुना जाने लगा। नतीजा यह हुआ कि यह गीत सबसे सफलतम गीतों में शामिल हो गया। ‘अंदाज’ के गीत खड़ा है खड़ा है, ‘खुद्दार’ के सेक्सी सेक्सी सेक्सी मुझे लोग बोलें, ‘राजा बाबू’ के सरकाइ ले खटिया जाड़ा लगै, जैसे गानों के तो चलने का कारण ही उनमें भरी अश्लीलता रही। भोजपुरी संस्कृति को हिंदी फिल्मों में पेश करने के नाम पर वहां के गीतों को जब से बढ़ावा दिया जाने लगा है, हिंदी फिल्मों के गीत भी कुछ ज्यादा ही बिंदास हो चले हैं। माहौल सुधरने की गुंजाइश कम है। क्योंकि इन गीतों के लेखक और इनको अपनी फिल्मों में सजाने वाले निर्माता इनके होने की वकालत करते हुए खुद की ताकत को साबित कर रहे हैं। गायक अरिजीत सिंह कहते हैं – ‘गीत में आजकल जिस तरह के बोल गूंथे जा रहे हैं, वे कभी – कभी तो लगता है कि क्यूं हैं। लेकिन हम तो गायक है। जो लिखा है वही गाना है।’ 

अपनी कर्णप्रिय धुनों के बूते पर करीब एक दशक तक हिंदी सिनेमा पर राज करने वाले जाने माने संगीतकार श्रवण राठौड़ की राय में गीतों का यह दृश्य बदलने की सबसे बड़ी वजह बाजार का दबाव और ऑडियंस की डिमांड है। श्रवण बताते हैं कि ‘नई पीढ़ी का ऑडियंस न सिर्फ इस तरह के गीत हिट कराता है बल्कि इनको जमकर इंज्वॉय भी करता है।’ इस बदले हुए माहौल पर गीतकार जावेद अख्तर कहते हैं कि जमाना बदल गया है। हमारे सिनेमा में आज अगर कोई लिखना भी चाहे तो अच्छे और भावनात्मक गीतों के लिए बहुत कम जगह बची है। लेकिन भोजपुरी के गायक और अभिनेता मनोज तिवारी इस मामले में आशावादी हैं। तिवारी मानते हैं कि माहौल धीरे-धीरे फिर से सही ठिकाने पर आ जाएगा। वे कहते हैं कि अश्लीलता और बोल्डनेस के लिए लंबे समय तक समाज में जगह नहीं बनी रह सकती। हमें अच्छे गीतों की उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए। अश्लील अंदाज, बिंदास बोल और सिसकारियों से हमारे सिनेमा के गीत-संगीत की वर्तमान स्थिति को देखते हुए फिलहाल इतना ही कहा जा सकता है कि अश्लीलता के ये दाग अभी तो और दमदार होंगे, क्योंकि गीत बहुत बदमाशियां करते हुए कुछ ज्यादा ही बेशर्म हुए जा रहे हैं।