चरित्र अभिनेता व हास्य कलाकार बनवारी झोल लगभग 40 सालों से अभिनय के क्षेत्र में सक्रिय है। उन्होंने रंगमंच टीवी और फिल्में सब जगह समानांतर काम करते हुए अपनी एक अलग पहचान बनाई हैं। एक दौर दूरदर्शन का था, जब बनवारी झोल को सिर्फ कामेडी भूमिकाओं से ही पहचाना जाता था। भैयाजी, और किसान जाग उठा,एक दिल हजार अफसाने,सीआई डी और फिल्म बाजीगर,चैधरी शुद्व देशी रोमांश, मानसून शूटआउट और मांझी फिल्मों में लीक से हटकर दमदार किरदार निभाते साबित कर दिया कि वह किसी एक किरदार के टाइप्ड नही है। फिल्म ‘फिर हेराफेरी’ में बनवारी ने राजपाल यादव के पिता जो कि लकवा बीमारी से ग्रस्त थे। किरदार का जिस बखुबी से निभाया वह तारीफे काबिल रहा। कामेडी सर्कस ने उनके करियर को नई दिशा मिली।
बनबारी झोल सीआईडी की कुछ कडियों में काम करने पर उनका कहना है कि ‘ यह एक बेहतरीन रोमांचक शो है। सीआईडी की कहानी सिर्फ एक या दो कड़ियों की होती है,इसलिए उसमें कलाकारों को भी अपने अभिनय को दिखाने का पूरा मौका मिल जाता है। कई सालों का लंबा समय गुजरने के बाद भी आज सीआईडी की लोेकप्रियता व शो के एसीपी शिवाजी और उनकी टीम ने आज भी पहचान को बरकरार हैं।’ बनवारी झोल अपने लंबे सफर के बारे में बताते है कि ‘एक दौर था जब पंजाबी थियेटर लोकप्रिय था,उस दौर में मेरी,कीमती आंनद और स्वं बीके सूद की जोडी खासी लोकप्रिय रहीं थीं। हमारे कुछ नाटक तो आज भी लोकप्रिय हंै। इसके हिन्दी थियेटर और पंजाबी फिल्मों से जुड़ने का मौका मिला।’ दूरदर्शन को सही मायने में पहचान मिली धारवाहिक ‘हमलोग’ से । जो लोग चित्रहार तक सीमित थे अब हमलोग की कहानी भी उनके परिवार का हिस्सा बन गया। आज भी याद किया जाता हैं। दूरदर्शन विस्तार के बाद बनवारी झोल ने नैनसुख,एक दिल हजार अफसाने,टेली फिल्म भैयाजी…में काम करते हुए जब बाजीगर फिल्म में मुनीम का रोल किया तो उनके काम से प्रसन्न होते हुए निर्देशक अब्बास मस्तान ने मुमंई आने की दावत दी। उसके बाद में बनवारी झोल ने पीछे मुड़कर नही देखा। बनवारी झोल कहते हैं कि,समय के साथ बदलाव जरूरी है, हमसे गलती सिर्फ हुई कि जब सुषमा सेठ,आलोक नाथ, विनिता मलिक जी ने मुमंई राह पकडी तो मुझे भी बालीवुड की और रूख करना चाहिए था,दूसरा हम दिल्ली में रह कर काम करने में खुश थे,लेकिन आज भी मुझे खुशी है कि मैं अपने काम से सतुष्ट हूॅ।