बिहार के मुख्यमंत्री और डीजीपी से सम्मानित और आजादी से पहले जन्मे से.नि. पुलिस उपमहानिरीक्षक राम लक्ष्मण सिंह का निधन. दिवंगत रामलक्ष्मण सिंह को बाहुबली शहाबुद्दीन को सरेंडर कराने , सिवान नरसंहार रोकने, डाकू मोहन सिंह को गिरफ्तार करने और चतरा में पहला लोकसभा व विधानसभा चुनाव सफल कराने का श्रेय हासिल है पटना। “कबीरा जब हम पैदा हुए जग हंसे हम रोए,* *ऐसी करनी कर चलो हम हंसे जग रोए”
यह शाश्वत सत्य है कि जीवन में कुछ ऐसा करके जाएं, कि जब हम ना रहें, तो दुनिया याद करे। ऐसी ही एक शख्सियत थे बिहार पुलिस के सेवानिवृत्त उपमहानिरीक्षक (DIG)राम लक्ष्मण सिंह ।
1977 बैच के पुलिस ऑफिसर और 1987 बैच के आईपीएस ऑफिसर, जिन्होंने अपनी प्रशासनिक क्षमता से 1978 से 2005 तक बिहार पुलिस का मान- सम्मान और गौरव बढ़ाया। लेकिन होनी को कोई नहीं टाल सकता। बीते 19 जुलाई 2020 सायं 5:30 बजे पटना स्थित अशोकपुरी,बेली रोड- बिहार ,आवास पर आपका हृदय गति रुकने से पचहत्तर वर्ष की उम्र में निधन हो गया । टीम आरजेएस फैमिली की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि। आप अपने पीछे अपनी धर्मपत्नी श्रीमती सिंधु सिंह और तीन पुत्रों को छोड़ गए ।आपने तीनों सुपुत्र सौरभ मनीष और राहुल को शिक्षा के साथ संस्कार भी दिए। आपने इन्हें शिक्षित, सुसंस्कृत , संस्कारित और आत्म निर्भर बनाया। ये आपके धर्म-कर्म और सकारात्मक कार्यों का ही परिणाम है। आरजेएस के राष्ट्रीय संयोजक उदय कुमार मन्ना ने बताया कि राम-लक्ष्मण सिंह उनके पटना निवास के पड़ोसी चाचाजी थे। पिछले दिनों तबीयत खराब होने पर दिल्ली के अस्पताल में सफल इलाज हो गया था। लेकिन दिल कब साथ छोड़ दे, किसी को नहीं पता। श्री मन्ना ने बताया कि बक्सर-डुमरांव स्थित लाखन डिहरा गांव के किसान स्वर्गीय श्री जीव राखन सिंह और श्रीमती सहोदनी देवी के घर में 19 अगस्त 1945 को जन्मे राम लक्ष्मण सिंह 19 जुलाई 2020 को इस दुनिया को सदा सदा के लिए अलविदा कह गए। आजादी के समय आप तीन साल के रहे होंगे।
अब इस लोक में रह गया तो उनके सकारात्मक कार्य जिसकी चर्चा और गौरव गान पुलिस महकमे में गाहे-बगाहे आज भी होती है । सरल और मधुर वाणी के वो धनी थे और हमेशा आम जनता की सहायता के लिए उपलब्ध रहते थे। अपनी मिलनसारिता और प्रशासनिक क्षमता और सूझबूझ से बड़ी बड़ी समस्याओं का सरल समाधान प्रस्तुत करते रहे।कर्मठ ,जुझारू और प्रशासनिक क्षमता वान पुलिस अधिकारी की जरूरत सरकार को भी है और जनता को भी। पुलिस डिपार्टमेंट में हमेशा उनका लीगल ओपिनियन लिया जाता रहा। जहां भी रहे जनता के होकर रहे। पुलिस और पब्लिक की दूरियां नजदीकियों में बदलते रहे।
चतरा जिला में पहली बार लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव में उन्होंने अदम्य साहस और प्रशासनिक क्षमता से चुनाव सफलतापूर्वक संपन्न कराया।
इसके लिए तत्कालीन बिहार के मुख्यमंत्री और डीजीपी द्वारा लेटर ऑफ एप्रिशिएशन दिया गया। तब के सिवान नरसंहार कांड से उत्पन्न हालात और कानून व्यवस्था को नियंत्रित करने के लिए आपकी विशेष पोस्टिंग हुई और आपने अपने प्रशासनिक अनुभव से बाहुबली शहाबुद्दीन को सरेंडर करने के लिए मजबूर कर दिया। यही नहीं बिहार पुलिस का नाम रोशन करते हुए जब खगड़िया में पोस्टेड थे तो आपने कुख्यात डाकू मोहन सिंह को गिरफ्तार किया। जहानाबाद दंगा को रोकने में आपकी उत्कृष्ट भूमिका के लिए पूरे बैच को तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारा सम्मानित किया गया।
पटना विश्वविद्यालय से एम.ए. और एल.एल.बी 1969 में करने के बाद आप 1970 में किसान काॅलेज में आर्ट्स और लिटरेचर के लेक्चरर रहे। 1978 में बेतिया में पुलिस उप अधीक्षक के पद से बिहार सरकार में अपनी प्रशासनिक सेवा प्रारंभ करते हुए आप 2005 दुमका में पुलिस उपमहानिरीक्षक पद से सेवानिवृत्त हो गए। इस बीच बीरपुर, सहरसा, खगड़िया, पटना (सीआईडी), बेगूसराय, सीतामढ़ी पुलिस अधीक्षक (Superintendent Of Police): पटना ट्रैफिक एस पी, आरा, बांका, नावादा, सीवान, छपरा, विजिलेंस एस पी मुजफ्फरपुर, मधेपुरा, सुपौल, चतरा, सीनियर एस पी विजिलेंस – रांची, गोड्डा आदि जगहों पर सेवाएं देते हुए दुमका में पुलिस उप महानिरीक्षक के पद से अगस्त 2005 में सेवानिवृत्त हो गए।
लेकिन आपकी कमी सिर्फ एक परिवार को ही नहीं पूरे समाज और पुलिस महकमे को भी याद आएगी। जानेवाले कभी नहीं आते, जानेवाले की याद आती है।