94वीं जयंती पर सुरों के बेताज बादशाह मौहम्मद रफी को श्रद्धा सुमन अर्पित, रफी साहब तुमको ना भूल पाएंगे: दयानंद वत्स

अखिल भारतीय स्वतंत्र पत्रकार एवं लेखक संघ एवं नेशनल मीडिया नेटवर्क के संयुक्त तत्वावधान में आज संघ के मुख्यालय बरवाला में संघ के.राष्ट्रीय महासचिव दयानंद वत्स की अध्यक्षता में सुरों के बेताज बादशाह स्वर्गीय मौहम्मद रफी को उनकी 94वीं जयंती पर श्रद्धा सुमन अर्पित किए गए। इस अवसर पर रफी के गाए कुछ यादगार गीतों को सुना गया। अपने संबोधन में वत्स ने कहा कि मौ. रफी जैसा दीदावर चमन में बरसों बाद पैदा होता है। जब भी किसी की शादी होती है तो लोग उनके गाए गीत आज मेरे यार की शादी है पर झूमते और नाचते हैं हैं। जब बेटी विदा होती है तो रफी का गाया गीत बाबुल की दुआएं लेती जा सबकी आंखें नम कर देता है। शादी के बाद दुल्हन का स्वागत करता रफी का यह गीत हर दूल्हा गाता है बहारो फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है। सुहागरात की सेज पर बैठी दचल्हन का जब घूंघट उठता है तो रफी फिर गाते हैं.चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो। भजन हों तो मधुबन में राधिका नाचे रे सब गाते हैं। हजारों कर्णप्रिय गीतों को गाने वाले रफी का हर गीत आज अमर है। क्या हुआ तेरा वादा वो कसम वो इरादा, भूलेगा दिल जिस दिन तुम्हें वो दिन जिंदगी का आखरी दिन होगा। रफी का यह  गीत  तुम मुझे यूं भुला ना पा पाओगे जब सुनोगे गीत मेरे। सचमुच रफी जी हम तुम्हें कभी नहीं भुला पाएंगें। वत्स ने कहा कि रफी साहब बेहद मिलनसार और रहमदिल इंसान थे