दिल्ली में आरजेएस पॉजिटिव ब्रॉडकास्टिंग हाउस (RJS PBH) और आरजेएस पॉजिटिव मीडिया द्वारा 5 अक्टूबर 2025 को सिल्वर ओक पब्लिक स्कूल, स्वरूप नगर,जीटी करनाल रोड, दिल्ली के एमडी राकेश सैनी सहयोग से आयोजित विश्व शिक्षक दिवस के कार्यक्रम ने स्कूलों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) सिखाने की व्यावहारिक राह ही नहीं दिखाई, बल्कि यह भी दर्शाया कि जानकारी को संरचित करना, रोज़मर्रा के कामों को स्वचालित करना और सटीक उपकरण अपनाना—ये सभी आदतें समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करती हैं।
आरजेएस पीबीएच के 445वें श्रृंखलाबद्ध अंक का उद्घाटन करते हुए आयोजक उदय कुमार मन्ना ने यूनेस्को के विश्व शिक्षक दिवस (5 अक्टूबर) और भारत के राष्ट्रीय शिक्षक दिवस (5 सितंबर) के फर्क को रेखांकित किया और थीम रखी—“एआई के साथ शिक्षण को एक सहयोगी पेशे के रूप में पुनःस्थापित करना।” उन्होंने कहा, “एआई का युग आ चुका है। एआई के जनक जाॅन मैकार्थी ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीकी शब्द गढ़ा जो आज दुनिया की जरूरत बन गई है।
सिल्वर ओक पब्लिक स्कूल, सरूप नगर जीटी करनाल रोड,दिल्ली की प्राचार्या निर्मला देवी ने स्वागत संबोधन में कहा कि शिक्षक हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाते हैं,” और समझाया कि यह दिवस शिक्षकों के कर्तव्यों, उपलब्धियों और नैतिक मार्गदर्शन का सम्मान है। उन्होंने आरजेएस पीबीएच की सकारात्मक चिंतन मुहिम की प्रशंसा की।
डिजिटल सुरक्षा को बुनियादी नागरिक शुचिता के रूप में रखा गया। रतनाढ़ गांव, भोजपुर (बिहार) के कंटेंट क्रिएटर अकिल राजा ने सलाह दी कि बड़े लेन-देन हमेशा अपने बैंक के आधिकारिक मोबाइल ऐप से करें और रोज़मर्रा के छोटे खर्च के लिए यूपीआई का उपयोग करें—वह भी एक सेकेंडरी खाते से। “किसी अंजान कैशबैक लिंक पर क्लिक न करें; स्क्रीन शेयर न करें; ओटीपी कभी न बताएं,” उन्होंने कहा। उनके मुताबिक बैंक-ऐप से असफल भुगतान पर ज़िम्मेदारी बैंक की होती है; थर्ड-पार्टी यूपीआई ऐप में असफलता पर ग्राहक को अक्सर ऐप सपोर्ट पर भेज दिया जाता है।
मुख्य वक्ता अशलेश चौहान (एआई इंस्ट्रक्टर, द ग्रूमिंग इंडिया) के लाइव डेमो से बात सामने आई। उन्होंने एआई को सरल शब्दों में परिभाषित किया—“ऐसी मशीनें जो मनुष्यों की तरह सोच, सीख और कार्य कर सकें”—और जोड़ा, “डाटा नई करेंसी है।” इसके बाद उन्होंने दिखाया कि गूगल का NotebookLM किस तरह एक एनसीईआरटी पीडीएफ को मिनटों में माइंड मैप, स्टडी गाइड व ग्लॉसरी, बोर्ड-शैली के लघु/दीर्घ प्रश्न-उत्तर, व्याख्याओं सहित एमसीक्यू, 81 फ्लैशकार्ड और एनसीईआरटी पेज-नंबर से मैप किए गए पूर्ववर्षीय प्रश्न (PYQ) में बदल देता है—और स्रोत पृष्ठों को साथ दिखाकर तुरंत सत्यापन भी कराता है। उन्होंने बताया कि ऑडियो और वीडियो ओवरव्यू भी तैयार किए जा सकते हैं। एक अध्यापिका ने कहा, “हमारे दिमाग़ की क्षमता निष्क्रिय होती जा रही है… मशीनें सोचने से पहले संकेत दे देती हैं।” श्री चौहान ने “100 प्रतिशत” सहमति जताई: “रोज़ पढ़ना-लिखना दिमाग़ का ईंधन है,” और आगाह किया कि निष्क्रिय सोशल मीडिया “सीमित ऊर्जा” को सोख लेता है, तुलना बढ़ाता है और तनाव/अवसाद तक ले जा सकता है। उनका नुस्ख़ा: पढ़ना-लिखना, स्वस्थ दिनचर्या और एआई का इस्तेमाल सिर्फ़ श्रम-घटाने के लिए—सोचने के बदले नहीं। उन्होंने टीआरडी26 की निशा चतुर्वेदी की शंकाओं का समाधान किया।मुख्य अतिथि डी. पी. सिंह कुशवाहा (पूर्व व्याख्याता, दिल्ली सरकार) ने स्वास्थ्य से कक्षा तक एआई की भूमिका और सीमाएँ दोनों रखीं। “21वीं सदी में तकनीक के बिना हम आगे नहीं बढ़ सकते,” उन्होंने कहा—एआई-सहायित निदान, उपचार-सुझाव, निजीकरण (जेनेटिक्स सहित), कोविड काल में तेज़ वैक्सीन विकास और रोबोटिक सर्जरी में प्रगति का उल्लेख करते हुए। “लेकिन एआई हमारा सेवक रहे, स्वामी नहीं,” उन्होंने चेताया। “एआई-जनित जानकारी का सत्यापन करें; डेटा पक्षपाती हो सकता है और रेटिंग/रिव्यू में हेरफेर संभव है।”
ड्रोन पायलट व एग्रो-टेक प्रैक्टिशनर हेम सिंह कुशवाहा ने नैनो-यूरिया के सटीक स्प्रे, दुर्गम खेतों तक पहुँच और श्रम/समय बचत का वर्णन किया—ऐसे काम जो बर्बादी और बहाव को कम करते हैं। उन्होंने कहा, “जहाँ मेहनतकश नहीं पहुँच पाते, वहाँ ड्रोन समय बचाते हुए स्प्रे में मदद करते हैं।”
सिल्वर ओक पब्लिक स्कूल के टीजीटी (समाज विज्ञान) राजेश कुमार शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि डेमो ने एआई को “क़रीब” महसूस कराया, पर तकनीक को कला और भावात्मक विकास पर हावी नहीं होना चाहिए: “दोनों पूरक हैं, प्रतिद्वंद्वी नहीं।” उनका आग्रह था, “सकारात्मकता इतनी मजबूत बनाइए कि नकारात्मकता हावी न हो और संवेदना जिंदा रहे। दिल्ली विश्वविद्यालय के कालिंदी कॉलेज की प्रिंसी कुमारी ,पूजा कुमारी ने पूछा, “क्या एआई शिक्षक को replace करेगा या उनकी मदद करेगा? और आलोचनात्मक सोच कैसे बची रहे?” श्री चौहान ने कहा, जो शिक्षक एआई सीखकर उसे कक्षा में एकीकृत करेंगे “वे क़ीमती होंगे,” ख़ासकर निजी स्कूलों में; जो नहीं सीखेंगे “समय के साथ बदले जा सकते हैं।” आलोचनात्मक सोच के लिए उन्होंने सलाह दी—पहले खुद ड्राफ्ट, आउटलाइन, सूडोकोड करें; एआई से बाद में परिष्कृत कराएँ। अंग्रेज़ी में बोलते हुए छात्रा प्रेरणा शर्मा (बी.एससी. फिज़िक्स; आईआईटी मद्रास से डेटा साइंस व एआई, ऑनलाइन) ने दिन का संदेश समेटा: “Never ever submit your brain to the AI… Craft AI; don’t let AI craft your mind.” उन्होंने बताया कि उनके प्रोफेसर पहले सूडोकोड और हाथ से डिबग कराते हैं क्योंकि “एआई भी गलतियाँ करता है,” और उन्होंने व्यावहारिक, प्रोजेक्ट-आधारित शिक्षण व मजबूत संप्रेषण कौशल पर ज़ोर दिया। फार्मेसी में एआई के प्रयोग पर निखिल के प्रश्नों का उत्तर मिला।