15 मई अमर शहीद सुखदेव जयंती पर टीम आरजेएस से जुड़े क्रांतिकारी राहुल इंकलाब के विचार

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भारत को आजाद कराने में तमाम देशभक्त अपनी कुर्बानी देकर शहीद हो गए। आज जरूरत हैउनके सपनों का भारत बनाने की ।नई पीढ़ी तक उनके विचारों को पहुंचाने की । सकारात्मक भारत आंदोलन के अंतर्गत राम-जानकी संस्थान , आरजेएस से जुड़े राहुल इंकलाब देशभर में यात्रा कर शहीद स्थलों पर श्रद्धांजलि देते हैं और शहीदों के परिजनों से मिलते हैं।पिछले दिनों अपनी धर्मपत्नी श्रीमती सारिका राहुल इंकलाब के साथ लुधियाना के नौगृहा में स्थित अमर शहीद सुखदेव की प्रतिमा को नमन-वंदन करने पहुंचे थे।

15 मई अमर शहीद सुखदेव की जयंती पर उन्होंने लिखा है —-भगत सिंह के साथी अमर शहीद सुखदेव भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। सुखदेव 15 मई 1907 को लुधियाना के नौगृहा में जन्मे उनका का पूरा नाम सुखदेव थापर था। लेकिन उन्होंने कभी भी  नाम के साथ थापर नहीं लिखा। यह दावा शहीद भगत सिंह के भान्जे प्रोफेसर जगमोहन सिंह ने भी किया।उन्होंने बताया की सुखदेव ने हमेशा अपना नाम सुखदेव  ही लिखा और कभी भी जाति का ज़िक्र नहीं किया। इसी तरह राजगुरु और भगत सिंह ने भी अपनी जाति का उल्लेख अपने नाम के साथ कभी नहीं किया। उन्हें भगत सिंह और राजगुरु के साथ 23 मार्च 1931 को फाँसी पर लटका दिया गया था। इनकी शहादत को आज भी सम्पूर्ण भारत में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। सुखदेव ,भगत सिंह की तरह बचपन से ही आज़ादी का सपना पाले हुए थे। ये दोनों ‘लाहौर नेशनल कॉलेज’ के छात्र थे। दोनों एक ही सन् में पंजाब में पैदा हुए और एक ही साथ शहीद हो गए।[सुखदेव का पालन पोषण इनके ताया जी अचिन्तराम थापर ने किया। इनकी तायी जी भी इनसे बहुत प्रेम करती थी। वे दोनों इन्हें अपने पुत्र की तरह प्रेम करते थे और सुखदेव भी इनका बहुत सम्मान करते थे और इनकी हर बात मानते थे। सुखदेव का प्रारम्भिक जीवन लायलपुर में बीता और यही इनकी प्रारम्भिक शिक्षा भी हुई। बाद में आगे की पढ़ाई के लिये इन्होंने नेशनल कॉलेज में प्रवेश लिया। नेशनल कॉलेज की स्थापना पंजाब क्षेत्र के काग्रेंस के नेताओं ने की थी, जिसमें लाला लाजपत राय प्रमुख थे। इस कॉलेज में अधिकतर उन विद्यार्थियों ने प्रवेश लिया था जिन्होंने असहयोग आन्दोंलन के दौरान अपने स्कूलों को छोड़कर असहयोग आन्दोलन में भाग लिया था। वर्ष 1926 में लाहौर में ‘नौजवान भारत सभा’ का गठन हुआ। इसके मुख्य योजक सुखदेव, भगत सिंह, यशपाल, भगवती चरण व जयचन्द्र विद्यालंकार थे। ‘असहयोग आन्दोलन’ की विफलता के पश्चात् ‘नौजवान भारत सभा’ ने देश के नवयुवकों का ध्यान आकृष्ट किया। प्रारम्भ में इनके कार्यक्रम नौतिक, साहित्यिक तथा सामाजिक विचारों पर विचार गोष्ठियाँ करना, स्वदेशी वस्तुओं, देश की एकता, सादा जीवन, शारीरिक व्यायाम तथा भारतीय संस्कृति तथा सभ्यता पर विचार आदि करना था। इसके प्रत्येक सदस्य को शपथ लेनी होती थी कि वह देश के हितों को सर्वोपरि स्थान देगा। परन्तु कुछ मतभेदों के कारण इसकी अधिक गतिविधि न हो सकी। अप्रैल, 1928 में इसका पुनर्गठन हुआ तथा इसका नाम ‘नौजवान भारत सभा’ ही रखा गया। सितम्बर, 1928 में ही दिल्ली के फ़िरोजशाह कोटला के खण्डहर में उत्तर भारत के प्रमुख क्रांतिकारियों की एक गुप्त बैठक हुई। इसमें एक केंन्द्रीय समिति का निर्माण हुआ। संगठन का नाम ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी’ रखा गया। सुखदेव को पंजाब के संगठन का उत्तरदायित्व दिया गया। सुखदेव के परम मित्र शिव वर्मा, जो प्यार में उन्हें ‘विलेजर’ कहते थे, के अनुसार भगत सिंह दल के राजनीतिक नेता थे और सुखदेव संगठनकर्ता, वे एक-एक ईंट रखकर इमारत खड़ी करने वाले थे। वे प्रत्येक सहयोगी की छोटी से छोटी आवश्यकता का भी पूरा ध्यान रखते थे। इस दल में अन्य प्रमुख व्यक्त थे- दिल्ली में सेंट्रल असेंबली हॉल में बमबारी करने के बाद सुखदेव और उनके साथियों को पुलिस ने पकड़ लिया था और उन्होंने मौत की सजा सुनाई गयी थी। 23 मार्च 1931 को सुखदेव थापर, भगत सिंह और शिवराम राजगुरु को फाँसी दी गयी थी और उनके शवो को रहस्यमयी तरीके से सतलज नदी के किनारे पर जलाया गया था। सुखदेव ने अपने जीवन को देश के लिये न्योछावर कर दिया था और सिर्फ 24 साल की उम्र में वे शहीद हो गए थे।भारत को आज़ाद कराने के लिये अनेकों भारतीय देशभक्तों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी। ऐसे ही देशभक्त शहीदों में से एक थे, सुखदेव थापर, जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन भारत को अंग्रेजों की बेंड़ियों से मुक्त कराने के लिये समर्पित कर दिया। सुखदेव महान क्रान्तिकारी भगत सिंह के बचपन के मित्र थे। दोनों साथ बड़े हुये, साथ में पढ़े और अपने देश को आजाद कराने की जंग में एक साथ भारत माँ के लिये शहीद हो गये।23 मार्च 1931 की शाम 7 बजकर 33 मिनट पर सेंट्रल जेल में इन्हें फाँसी पर चढ़ा दिया गया और खुली आँखों से भारत की आजादी का सपना देखने वाले ये तीन दिवाने हमेशा के लिये सो गये।

Source: उदय मन्ना
सकारात्मक भारत आंदोलन-आर जे एस