कोरोना से उपजी मंदी में आत्मनिर्भरता बनाम स्वराज्य

Dwarka Parichay Newsdesk

 चंद्रभूषण (सामाजिक कार्यकर्ता)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना महामारी के कारण ध्वस्त भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए “आत्मनिर्भरता” का मंत्र दिया है। दरअसल यही स्वदेशी का मंत्र है।कोरोना महामारी और लाॅकडाउन के बाद इसी मंत्र को सभी भारतवासियों को अपनाना होगा। भारत की आजादी से पहले लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने आत्मनिर्भरता के लिए सबसे पहले “स्वराज्य” की अवधारणा दी थी। फिर महात्मा गांधी और विनोबा भावे ने “ग्राम स्वराज “, लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने “लोक स्वराज्य”, आचार्य श्रीराम शर्मा ने “ग्रामोत्थान की ओर” और आधुनिक युग में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने “स्वराज” पुस्तक के जरिए भारत की पूरी शासन प्रणाली को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में अपने विचार रखे हैं। लेकिन आजादी के इतने वर्षों बाद भी इसे हम अमलीजामा नहीं पहना पाए हैं।     वजह साफ है कि गोरे अंग्रेज चले गए लेकिन काले अंग्रेज( भ्रष्ट नेता, ब्यूरोक्रेट्स) रह गए। हमारी नीतियां बड़े उद्योगों को स्थापित करने और गांव को कमजोर करने की बनती रही। नहीं तो क्या कारण है कि हमारे देश में मुट्ठी भर ही औद्योगिक घराने पल्लवित- पुष्पित होते रहे? जबकि लघु और कुटीर उद्योगों को ध्वस्त कर दिया गया। नतीजा गांवों से शहरों की ओर पलायन बढ़ा।     बाल गंगाधर तिलक ने “स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और उसे हम लेकर रहेंगे” का मजबूत “मंत्र” दिया जिसमें महात्मा गांधी ने “तंत्र” मिलाया और दोनों मिलकर “स्वराज्य” खड़ा हो गया। विनोवा भावे से लेकर जे.पी. तक ने स्वराज्य की परिकल्पना को साकार करने की दिशा में गांवों को पूरा अधिकार देने की वकालत की है। उसी प्रकार मौजूदा दौर में अरविंद केजरीवाल ने भी गांव में ग्राम सभा और शहरों में मोहल्ला सभा को मजबूत करने की वकालत की है। केजरीवाल ने अपनी पुस्तक “स्वराज” में लिखा है कि सरकारी फंड, सरकारी कर्मचारी , सरकारी नीतियां, कानून बनाने की प्रक्रिया और प्राकृतिक संसाधनों पर ग्राम सभाओं और मोहल्ला सभाओं के जरिए सीधे जनता का नियंत्रण बने।     मौजूदा लोकतंत्र की विसंगतियां है कि हमने आजादी तो ले ली लेकिन सत्ता का विकेंद्रीकरण नहीं किया इसे यूं कह सकते हैं कि केवल सत्ता का हस्तांतरण हुआ। पहले लंदन से शासन चलता था अब दिल्ली या राज्य की राजधानियों से शासन व्यवस्था चल रही है जबकि होना यह चाहिए की सत्ता के केंद्र बिंदु गांव को मजबूत करने की जरूरत थी। महात्मा गांधी ने कहा था कि सच्ची लोकशाही केंद्र में बैठे हुए 20 लोग नहीं चला सकते। सत्ता के केंद्र बिंदु दिल्ली, मुंबई और कलकत्ता जैसी राजधानियों में है। मैं उसे भारत के 7 लाख गांवों में बांटना चाहूंगा।    साफ जाहिर है कि जब किसी मकान का आधार मजबूत नहीं करेंगे तो चाहे जितनी मंजिल मकान बना लें ऊपरी तल्ला हमेशा असुरक्षित रहेगा और वह भरभरा कर गिर जाएगा। विनोबा भावे ने कहा है कि मौजूदा लोकतंत्र रेत पर टिका है, वहीं जेपी ने मौजूदा लोकतंत्र को “उल्टा पिरामिड” की संज्ञा दी है। कहने का तात्पर्य है कि हमें लोकतंत्र के आधार स्तंभ गांवों को मजबूत व स्वावलंबी बनाना होगा तथा सत्ता का अधिकार भी सौंपना होगा अन्यथा गांव कमजोर होते चले जाएंगे। यही कारण है कि रोजगार की खोज में विभिन्न महानगरों/ शहरों की ओर मजदूरों/कामगारों का पलायन कोरोना काल में  “द्रोह-काल” बन गया है। सारी अर्थव्यवस्था चरमरा कर गिर गई है।    एक आंकड़े के अनुसार भारत में 81.2 करोड़ यानी कुल आबादी का 60% गरीबी रेखा से नीचे और कोरोना महामारी के बाद यह संख्या बढ़कर 91.5 करोड़ यानी 68% से भी आगे पहुंच जाने की संभावना है। पहले ही देश जहां नोटबंदी और जीएसटी से त्राहिमाम कर रहा था, अब तो आर्थिक रूप से रेंगने की स्थिति में आ खड़ा हुआ है। विश्व बैंक के मुताबिक भारत में प्रतिदिन ₹243 कमाने वाले लोग गरीबी रेखा से नीचे की श्रेणी में आएंगे।    शहरों/ महानगरों में कल- कारखाने बंद हैं, भवन निर्माण या सड़क निर्माण भी ठप है। रोजगार के अभाव में मजदूर/ कामगार अपनी जड़ों यानी गांवों की ओर लौट गए हैं, लौट रहे हैं या लौट जाएंगे। इसी प्रकार विदेशों में काम करने वाले प्रशिक्षित इंजीनियर या कामगार भारत लौट गए हैं या लौट जाएंगे। दरअसल यह कोरोना महामारी हमें अपनी जड़ों की ओर लौटने या आत्मनिर्भर बनने का आह्वान भी कर रही है। यह एक अवसर भी लेकर आया है कि हम महात्मा गांधी, तिलक विनोबा, जेपी के स्वराज्य की आवश्यकता को जिसे हम भूल चुके थे उसे कार्यान्वित करने का भी सुनहरा अवसर है। अन्यथा हम आज भी विदेशों या बड़े उद्योग की ओर मुंह ताकते रहे तो इतनी बड़ी आबादी को संभालना नामुमकिन हो जाएगा। दरअसल ग्रामीण क्षेत्रों के उद्धार का यह स्वर्णिम अवसर है और हमारा अब नारा होना चाहिए, “चलो गांव की ओर।”     

क्या हो आत्मनिर्भरता का पैमाना :      —————————————-

(1) हमें आर्थिक और प्रशासनिक ताकतों को अधिक से अधिक विकेंद्रीकृत करना होगा यानी दिल्ली के हाथों से सारी शक्ति छीननी पड़ेगी।
(2) ग्राम पंचायत या स्थानीय निकायों को मजबूत करना होगा। इसके लिए गांवों को आर्थिक और प्रशासनिक अधिकार देकर उसे स्वावलंबी या आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाने पड़ेंगे।
(3) जितनी भी केंद्र संपोषित योजनाएं जैसे किसान सहायता योजना, जन धन योजना, आवास योजना, आयुष्मान भारत स्वास्थ्य योजना, घरेलू गैस योजना आदि की कमान पंचायतों को देनी होगी।
(4) उक्त योजनाओं को राज्य सरकारें और स्थानीय प्रशासन पंचायत द्वारा पूरी ईमानदारी तथा सेवा भावना से क्रियान्वयन कराएं तो मजदूर/ कामगार  को फिर शहर में काम तलाशने और झुग्गी- झोपड़ी या मुंबई की खोली या चाल में जाने की नौबत ही नहीं आएगी।
(5) गांवों में ही वहां या आसपास की जरूरतों के मुताबिक लघु और छोटे-छोटे कुटीर उद्योगों की स्थापना तथा छोटे- मध्यम दर्जे के किसानों को सॉफ्ट लोन की व्यवस्था करनी होगी। लोन की प्रक्रिया को मामूली कागजात से निपटाना होगा।
(6) गांवों के उत्पादों को बाजार मुहैया कराने के लिए पंचायत स्तर पर मंडियां या पैक्स को सुदृढ़ करना होगा अर्थात सरकारी और गैर सरकारी एजेंसी या कंपनियां उसी जगह उत्पाद को खरीदने और परिवहन की व्यवस्था कर ले तो गांवों को खुशहाल बनने से कोई नहीं रोक सकता।
(7) छोटे उद्योगों से रोजगार का सृजन करना होगा जिससे आम आदमी की क्रय शक्ति बढ़ेगी, जो आर्थिक संतुलन पैदा करेगा।
(8) छोटे व्यापारियों, किसानों को टैक्स में छूट देना होगा।
(9) भारत के पास अन्न का भरपूर भंडार है। मानसून भी अच्छा होने की उम्मीद है। इस बार रबी फसल का भी रिकॉर्ड उत्पादन की संभावना है। इस दृष्टिकोण से सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सार्वभौमिक यानी यूनिवर्सलाइज करना होगा ताकि कोई भूख से न मरे।
(10) कौशल विकास केंद्र बढ़ाने होंगे और स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप उन्हें प्रशिक्षित भी करना होगा। साथ ही उन लोगों को स्वरोजगार के लिए प्रोत्साहित भी करना होगा।
(11) कृषि क्षेत्र को आधुनिक बनाने की दिशा में कार्य करना होगा क्योंकि उद्योगों के लिए 70% कच्चा माल कृषि क्षेत्र से ही उपलब्ध होता है।
(12) हमें सौर ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा देना होगा।
(13) गांव में ही महानगरों जैसी एक समान शिक्षा व्यवस्था और इंफ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध कराने होंगे।
(14) स्वास्थ्य सेवाओं को शहरों की तरह बेहतर करना होगा।
(15) प्रत्येक गांव में वार्ड स्तर पर नई कार्य संस्कृति और नया बिजनेस मॉडल को ऑनलाइन करना होगा।
(16) ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म बढ़ाना होगा और गांव या घर से ही सप्लाई चैन को विकसित करना होगा।
(17) मजदूरों के अलावा सीमांत और छोटे किसानों को भी मनरेगा में शामिल करना होगा।
(18) किसानों को आधुनिक तरीके से मुर्गी पालन, डेयरी, मत्स्य पालन, रेशम कीट पालन, मधुमक्खी पालन, फूल और सब्जी उत्पादन जैसे कृषि संबंधी उद्यमों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना होगा।
(19) खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को बढ़ावा देना होगा।
(20)सामाजिक वानिकी किसानों की आय बढ़ाने का एक कारगर तरीका हो सकती है अर्थात आए के वैकल्पिक साधनों को गांव में ही विकसित करना होगा।
(21) कृषकों  के सशक्तिकरण के लिए नई कृषि नीति तैयार करने के साथ ही उसे प्रभावी ढंग से कार्यान्वित किए जाने की जरूरत होगी।
(22) किसानों को लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करने के लिए अल्पकालीन (ऋण माफी या अनुदान) और दीर्घकालीन दोनों उपायों की आवश्यकता पड़ेगी।
(23) कृषि उत्पादों को देश के किसी भी कोने तक बिना रुकावट के आवागमन की व्यवस्था सुनिश्चित करना होगा।
(24) व्यापक फसल बीमा योजना बढ़ाई जानी चाहिए।
(25) ई मार्केटिंग को बढ़ावा देने के अलावा हर पंचायत में कोल्ड स्टोरेज और वातानुकूलित वाहनों से परिवहन की सुविधा उपलब्ध करानी होगी।
(26) 24 घंटे निरंतर बिना रुकावट के सस्ती बिजली और सस्ता ऋण भी मुहैया कराना होगा।
(27) बहुत से प्रशिक्षित कामगार अपने गांवों/ कस्बों में लौटे हैं। उनके अनुभवों का लाभ उठाना होगा। उन्हें ऋण देकर या उनका इस्तेमाल ट्रेनिंग में लिया जा सकता है।
(28) भारत वैकल्पिक “मैन्युफैक्चरिंग हब” के रूप में विकसित हो सकता है क्योंकि हमारे पास पर्याप्त जमीन, प्रशिक्षित मैन पावर, सस्ता श्रम और अच्छा खासा बाजार उपलब्ध है।

निष्कर्ष के तौर पर अगर हम ये सारे उपाय कर लिए तो स्वराज्य के असली मूलभूत उद्देश्य को छू पाएंगे और कोरोना महामारी से उत्पन्न विकट आर्थिक स्थितियों से उबर पाने में सक्षम हो पाएंगे अन्यथा सभी प्रयास बेमानी ही सिद्ध होंगे। आरजेएस पाॅजिटिव मीडिया ‌के सकारात्मक पत्रकारिता सकारात्मक भारत आंदोलन के अंतर्गत सामाजिक कार्यकर्ता चंद्रभूषण जी के आलेख को जनहित में पाठकों तक पहुंचाने का प्रयास है