गुजरात की जीवंत परिक्रमा के दौरान आरजेएस पीबीएच के यात्री अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2024 पर आयोजित आरजेएस पीबीएच -उज्जवल वीमेंस एसोसिएशन के वेबिनार में शामिल हुए। वेबिनार में नेशनल प्रोजेक्ट्स के लिए कोर एडिट टीम का एक हिस्सा, टाइम्स ऑफ इंडिया के रेजिडेंट एडिटर, श्री सैकत दासगुप्ता मुख्य अतिथि थे। आसिफ आज़मी, लेखक, फिल्म निर्माता, और चेयरमैन, पेन फाउंडेशन, सम्मानीय अतिथि थे, जबकि सुश्री आशा चंद्र, पूर्व अध्यक्ष, AIWEFA, अतिथि- वक्ता थीं। आरजेएस पीबीएच पैनलिस्ट, श्री प्रफुल्ल पांडे ने महामृत्युन्जय मंत्र का पाठ किया और श्री द्वारकाधीश की स्तुति की। सुश्री शारदा शर्मा, JT.Secretary, Ujjwala महिला संघ, ने कार्यक्रम का संचालन किया।
वेबिनार के समापन पर धन्यवाद प्रस्ताव सुश्री कुलजीत कौर, वरिष्ठ सलाहकार, उज्जवल महिला संघ द्वारा प्रस्तावित किया गया। सुश्री बीना जैन ने ओपनिंग रिमार्क्स में कहा कि दोनों लिंग सामाजिक प्रगति में एक दूसरे के लिए महत्वपूर्ण रूप से पूरक हैं। सुश्री शारदा शर्मा ने विवेकानंद के उद्धरण के माध्यम से बताया कि एक समाज अपनी महिलाओं के साथ कैसा व्यवहार करता है, यह समाज की प्रगति को दर्शाता है। उन्होंने आगे एक अन्य स्रोत से यह बताने के लिए उद्धृत किया कि महिलाओं को अपने अधिकारों को जानना और उनका दावा करना है। यह संभव होगा यदि महिलाएं विभिन्न महत्वपूर्ण स्तरों पर पहुँचेंगी। सुश्री ज्योतिका कालरा ने सभी प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए कहा कि महिलाओं की शिक्षा से लेकर उनके रोजगार तक के पैटर्न की आवश्यकता है और वर्तमान में इस दिशा में अभी बहुत कुछ वांछनीय है, जाे करना बाकी है। उन्होंने कहा कि महिलाएं पैदा नहीं हुई हैं, लेकिन बनाई जाती हैं। साथ ही महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए किए जाने वाले निवेश से त्वरित विकास संभव होगा। केवलमात्र शिक्षा ही से स्वत: विकास नहीं हाेने का,जब तक कि शिक्षा उचित रोजगार मे परिणत न हो। महिलाएं निर्णय लेने में स्वतन्त्र हाें,और विरासत में मिली संपत्ति में उनका हिस्सा होना चाहिए। सुश्री आशा चंद्रा ने महिलाओं की वर्तमान स्थिति पर ध्यान आकर्षित किया और महिलाओं के साथ कैसे बर्ताव किया जाता है, यह हमारी सांस्कृतिक विरासत की पृष्ठभूमि में हैरान करने वाला लगता है। वेद, पुरुषों और महिलाओं को, समान घोषित करते हैं। पूरे इतिहास में, महिलाओं की स्थिति अधीनता और सशक्तिकरण के बीच दाेलायमान होती रही है। उन्होंने आधुनिक समय में वैदिक काल से विभिन्न अवधियों में समाज के विभिन्न और विविध पहलुओं में महिलाओं की स्थिति पर एक व्यापक दृष्टिकोण दिया, महिलाओं को सशक्त बनाने की प्रक्रिया के बावजूद, उनके प्रति मानसिकता बहुत अधिक नहीं बदली है। इस पहलू पर लोगों काे संवेदनशील हाेना अनिवार्य है। आसिफ आज़मी ने बतलाया कि एक दशक से अधिक समय पहले WEF का अनुमान था कि लिंग भेद काे दूर करने के लिए 200 साल का समय लगेगा। वह इस अनुमान से सहमत नहीं थे क्योंकि महिला सशक्तीकरण के लिए पिछले दशक के दौरान पहले से अधिक बहुत कुछ हो रहा है। मुख्य अतिथि ने कहा कि इस साल के बजट विषय ‘नारीशक्ति’ था। उन्होंने कहा कि 18-59 वर्ष की आयु के लोगों के पास उचित, पर्याप्त और सुरक्षित नौकरियां नहीं हैं, जिसका कारण शायद उचित रूप से औपचारिक अर्थव्यवस्था की कमी है। सतह पर, देखें ताे महिलाओं के लिए राेजगार के पहले से अधिक अवसर हैं, विशेष रूप से बड़े शहरों में, हालांकि स्थिति टियर- II शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में भिन्न होती है। इसके अलावा, हमें महिलाओं की सफलता की कहानियों का जश्न मनाते हुए याद रखना चाहिए कि उन्हें सफलता प्राप्त करने के लिए कई और बाधाओं को पार करने के लिए संघर्ष करना पड़ा है। योजनाएं और राेजगार के अवसर ठीक हैं, लेकिन महिलाओं को इन्हें हासिल करनें में अधिक कठिनाइयाें काे पार करने का अंतराल है। महिला सशक्तीकरण के लिए इन अंतरालों का ब्रिजिंग महत्वपूर्ण है। उन्होंने अपनी बात को विस्तृत करने के लिए सांख्यिकी मंत्रालय के आंकड़ों का हवाला दिया। वेबिनार ने एक सच्चे अर्थों में प्रगति के लिए समाज में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए अभी भी क्या करने की आवश्यकता हो सकती है, इस पर पर्याप्त प्रकाश डाला है।