संगीत की दुनिया में 26 साल और 19 हज़ार 500 गीत। ये सफरनामा है कुमार सानू का। सिर्फ 500 गीतों का इंतज़ार है और फिर बीस हज़ार की शानदार पारी खेलते हुए फिल्म इंडस्ट्री के ये मैलोडी किंग इतिहास रचने वाले सिंगर्स की कैटेगिरी में शामिल हो जाएंगे। मैलोडी और कुमार सानू। जब तक दोनों का साथ रहेगा, दिल को छू लेने वाले गीत श्रोताओं को मिलते रहेंगे। लगता है यशराज फिल्म्स को इस बात का आभास हो चला है कि भारतीय संगीत जिस दिशा में जा रहा है, वह रास्ता ठीक नहीं है। इंडियन म्यूज़िक पर वेस्टर्न बीट्स हावी हैं। सिंगर्स को म्यूज़िक डायरेक्टर्स से वैरायटी नहीं मिल पा रही जिसके चलते करोड़ों श्रोताओं के साथ अन्याय हो रहा है। इसका एक ही समाधान या रास्ता है और वो है अच्छी मैलोडी की वापसी। और जब-जब मैलोडी का नाम आएगा, कुमार सानू को ही याद किया जाएगा। सानू कहते हैं कि यशराज की एक फिल्म में वह मैलोडियस सॉन्ग गा रहे हैं। इन गीतों में इतनी मैलोडी होगी कि श्रोता भी शायद कह उठें कि फिर लौट आई मैलोडी।
सानू कहते हैं कि मैं 26 साल से लगातार गा रहा हूं। इसका मतलब तो यही है कि श्रोता आज भी मुझे पसंद कर रहे हैं। हां, मुझे पहले की तुलना में कम गीत मिल रहे हैं, तो ये निर्माताओं या अभिनेताओं का नजरिया हो सकता है कि वे किस गायक से गीत गवाना चाहते हैं। सीनियर सिंगर्स को कम गीत मिलने का एक कारण यह भी है कि आजकल 45 की उम्र से अधिक के कुछ अभिनेता यह मानते हैं कि अगर वे युवा गायक की आवाज़ पर लिप्सिंग करेंगे, तो खुद उनके व्यक्तित्व में भी जवानी की रंगत नज़र आएगी जबकि उनकी यह मानसिकता गलत है। लता जी ने कम उम्र की कई अभिनेत्रियों को आवाज़ दी है जिनकी फिल्में हिट रहीं। मैं आयुष्मान खुराना के लिए गा रहा हूं, जो उम्र में मुझसे काफी छोटा है।
कुमार सानू कहते हैं कि नए दौर के गीतों को विदेशों में अनिवासी भारतीयों द्वारा पसंद नहीं किया जा रहा। इसका कारण ये है कि गीतों पर वेस्टर्न अरेंजमेंट्स हावी हैं जबकि मैलोडी गायब है इसलिए ऐसे गीत उनके दिलों को छू नहीं पा रहे जबकि आज सोनू निगम, अलका याज्ञनिक और मुझ जैसे गायकों का श्रोता वर्ग कहीं ज्यादा है और आज भी सबसे ज्यादा शोज़ हमें ही मिल रहे हैं। वहां के रेडियो स्टेशन्स में भी हमारे ही गीत बजते हैं। वहां के श्रोता ओरिजनेलिटी पसंद करते हैं। कुमार सानू कहते हैं कि श्रोताओं में अधिकांश टीनेजर्स व युवा हैं।
आज के दौर के संगीत के बारे में कुमार सानू कहते हैं कि यह अच्छा भी है और बुरा भी। गलत बात यह हो रही है कि म्यूज़िक में अब वेस्टर्नाइज़ फील डालने की कोशिश की जा रही है। फिल्म में पंजाबी स्टाइइल का गाना बजाया जा रहा है, जो जरूरत से ज्यादा हो रहा है। बीच में संगीतकार फॉक पर चले गए थे। जबरदस्ती प्रमोशन करके संगीत को हिट किया जा रहा है। आज के गीतों को हिट नहीं कह सकते। अब सेवन डेज़ या टेन डेज़ को भी हिट माना जा रहा है। सिंगर्स को वर्सटेलिटी दिखानी है तो हर तरह के गीत गाने होंगे।
सानू संगीत को चिकित्सा मानते हैं। वह कहते हैं कि म्यूज़िक एक थेरेपी है। यह कोई भी बीमारी का इलाज कर सकती है। जगजीत सिंह के श्रोता सुकून की नींद सोते हैं। इसी तरह कोई किशोर के गीत सुनकर थकान मिटाता है और कोई कुमार सानू के गीत सुनकर। मैं यही कहूंगा कि यह मैन काइंड के लिए बहुत बड़ी मेडिसन है। मेरी यही ख्वाहिश है कि जब तक गाता रहूं, श्रोता मेरे गीत सुनकर चैन की नींद सोते रहें।