बदलते नज़रिए !

अनेक विद्वानों / फिलॉसफरों ने ज़िन्दगी की अपने २ तरीके से परिभाषा  देने की कोशिश की है, अपने २ ज़िन्दगी  के खट्टे मीठे तजुर्बों के आधार पर ! किसी ने इसका तुलना एक बहती हुई नदी से की है , किसी ने एक लंबा संघर्ष बोला  है, किसी ने सफ़र / यात्रा से तो किसी ने एक रोचिक पुस्तक से ! इन सब में से हम किसी को भी ग़लत नहीं बोल सकते, क्योंकि प्रत्येक इन्सान की ज़िन्दगी अलग २ परस्थितियों में  से होकर गुजरती है , सबके अपने २ सामाजिक और आर्थिक हालात होते हैं और सबको उनका अपने २ हिसाब से सामना करते हुए अपना जीवन बिताना होता है ! लेकिन एक बात लगभग सबके साथ पक्की होती है, किसी के भी दिन हमेशा एक जैसे नहीं रहते, उत्तार चढ़ाव अक्सर आते ही रहते हैं और इन्ही उत्तर चढ़ाव का सामना करना और उस में  से संघर्ष करते हुए निकल जाना ही जीवन हैं ! कर्म सबको करना पड़ता है, यह बात अलग होती है कि किसी को उसके कर्म का फ़ल जल्दी और अच्छा मिल जाता है, किसी २ का संघर्ष बहुत लम्बा चलता है ! लेकिन संघर्ष किये बिना हिम्मत छोड़ देने वाला ज़िन्दगी में कभी सफ़ल नहीं हो सकता ! हमें चुनौतियों का सामना डटकर करना चाहिए, जब तक हमें सफलता नहीं मिल जाती ! 

यह बात 1988 की है, एक दिन मैं अपने दफ़्तर में बैठा काम कर रहा था, शाम के चार बज चुके थे, मेरे पास मेरे एक सहकर्मी – चन्दन सिंह आये ! चन्दन सिंह हमारे कार्यालय में गेस्ट्नर ऑपरेटर (चौथे दर्जे का एक मुलाजिम) के पद पर कार्यरत थे ! उन्होंने मुझे अपनी एक परेशानी बताई और उसके समाधान के लिए मुझे एक चिट्ठी लिखने के लिए निवेदन किया ! उन्होंने दिल्ली विकास प्राधिकरण में 11 / 12 वर्ष पहले एक फ्लैट के लिए आवेदन किया हुआ था , तबसे लेकर अब तक बहुत बार डीडीए ने फ्लैट्स के लिए ड्रा तो होते रहे, लेकिन चन्दन सिंह को कोई फ्लैट नहीं मिला ! और अब वह चाहते थे कि मैं उनके लिए डीडीए के वाइस चेयरमैन , जगमोहन जी से दर्खास्त रूप में एक चिठ्ठी लिख दूँ ताकि उनका ड्रा में नंबर आ जाये और उन्हें भी एक फ्लैट मिल जाए ! मैंने चन्दन सिंह से सवाल पूछा कि क्या इस काम के लिए वह खुद मेरे पास आये हैं या फिर किसी ने उनको मेरे पास भेजा है ? चन्दन सिंह ने उत्तर दिया कि वह पहले छोटे हांडा के पास गया था , लेकिन हांडा जी ने उनको बताया कि मैंने तो ऐसी कभी कोई दर्खास्त बनाई नहीं है, हाँ भारद्वाज जी को लिखने का कॉफ़ी  तजुर्बा हैं , वह तो कई प्रकार के लेख और कहानियाँ  भी लिखते रहते हैं , और मेरा मानना है कि वह आपका यह काम भी कर देंगे ! 
लेकिन मैं यह सब सुनकर थोड़ा हैरान भी था और अपनी शंका दूर करने के लिए मैंने सवाल किया, “चन्दन सिंह जी ! आपको यह बात अच्छी तरह मालुम होनी चाहिए कि आप एक चौथी श्रेणी के मुलाजिम हो और जगमोहन जी डीडीए के वाईस चेयरमैन हैं, अगर मैं आपके लिए ऐसी कोई चिठ्ठी बना भी दूँ , तो भी आप वाईस चेयरमैन के कमरे में पहुँचोगे  कैसे , वहाँ तो आपको उनका चपड़ासी / सूबेदार भी आपको घुसने नहीं देगा ?” चन्दन सिंह ने थोड़ा सोचकर जवाब दिया , “भारद्वाज  जी ! मैं मानता हूँ कि उनके दफ़्तर के बाहर कोई न कोई सूबेदार जरूर बैठा होगा और वह मुझे अंदर जाने की इजाजत देने से पहले साहेब से अपॉइंटमेंट के बारे में  पूछेगा , लेकिन मैं भी तो एक चौथे दर्जे का ही कर्मचारी हूँ , इस लिहाज़ से वह मेरा ही कोई भाई बंधू होगा , मैं उससे अपना पद बताकर अंदर जाने के लिए निवेदन करूँगा , क्या एक भाई दूसरे भाई का इतना भी ख़्याल नहीं करेगा ?” चन्दन सिंह की बात में  एक तर्क था, लेकिन मैंने अगला सवाल पूछा , “चलो मान लो, आप कमरे के अंदर चले भी गए , जगमोहन जी तो बहुत बड़े अफ़सर हैं , आईएएस अधिकारी हैं वोह , जानते हो , जितना बड़ा अफ़सर, उतना ही बड़ा उसका अभिमान होता है ! वह भी तुम्हें डांट फ़टकार लगाकर कमरे से निकाल  देंगे , फिर क्या करोगे , वह तो आपकी चिठ्ठी पढ़ेंगे भी नहीं ?” चन्दन सिंह ने उत्तर दिया , ‘मैं जानता हूँ कि मेरा और जगमोहन जी के पद में उतना ही अंतर है जितना जमीन और आसमान में होता हैं ! लेकिन एक बात आप नहीं जानते ?’ मैंने पूछा , “वह क्या ?”  कुछ काम ऐसे होते हैं जोकि अधिकार बताकर नहीं करवाए जा सकते , मैं यह भी जानता हूँ कि हो सकता हैं जगमोहन जी मुझे बिना अपॉइंटमेंट लिए उनके कमरे में  घुसता देखकर मुझे अंग्रेजी में  गालियाँ भी देने लग जायें , लेकिन मैं उनकी गालियाँ  सुन लूंगा , उनके सामने हाथ जोड़कर विनती तो कर ही सकता हूँ ! और यह एक ऐसा काम है जिसके करने से कभी २ बड़ी गलतियाँ भी मुआफ़ हो जाती हैं और हमारे काम भी बन जाते हैं ! बस हमें अपने अंदर की भावनाएँ और अपना अहम थोड़ा दबाकर रखना होता है, फिर कभी २ बिगड़े हुए काम भी आराम से बन जाते हैं ! बस आप मेरी चिठ्ठी बना दो , बाकी सब मैं सम्भाल लूंगा !”  
मैंने चन्दन सिंह से उसके परिवार के बारे मैं और जानकारी हासिल करने की कोशिश की ताकि इन सबका विवरण अपने पत्र में  देकर अपनी दरखास्त को वाजिफ / मजबूत तरीके से पेश किया जा सके ! उन्होंने उत्तर दिया कि मैंने फ्लैट्स की स्कीम में जब आवेदन किया था  मेरी उम्र 30 वर्ष थी और उस वक़्त मेरे बच्चे छोटे २ थे, अब उस आवेदन को 12 साल बीत चुके हैं , मेरे बच्चे भी बड़े हो गए हैं , मेरे चार बच्चे हैं, तीन बेटे और एक बेटी जो बीए कर रही है, उसकी पढ़ाई पूरी होने के तीन चार वर्ष बाद मुझे उसकी शादी का भी बड़ा खर्चा आने वाला है, अगर अब मेरा फ्लैट आ जाता है तो मैं अपने बच्चों ले लिए एक छोटे मोटे घर का प्रबंध कर सकता हूँ , लेकिन यही ड्रा अगर और चार पांच वर्ष बाद आया तो मेरे लिए बड़ी मुश्किल खड़ी हो जाएगी – बच्चों के लिए घर की कीमत अदा करूँ या उनकी शादियाँ करूँ ? लेकिन अगर मैं कोई घर का इन्तेज़ाम ना  कर सका तो मेरा परिवार सिर पर छत के बिना कैसे रहेगा ? अगर फ्लैट अब आ जाता है तो बेहतर है, नहीं तो हो सकता है कि बाद में मुझे वह फ्लैट छोड़ना ही पड़ जाये ! 
चन्दन सिंह की परेशानी के सभी पहलुओं पर गौर करने और पूरी स्थिति अच्छी तरह समझ कर मैंने उनके लिए एक दरखास्त बनाई और उसमें उनकी सब तरह की परेशानियों का हवाला दिया ! और अंत में डीडीए के वाइस चेयरमैन, जगमोहन जी से निवेदन किया कि इन तमाम मुद्दों पर गौर करते हुए उनको यथाशीघ्र एक फ्लैट अलॉट किया जाये ! बारह वर्ष पहले फ्लैट के लिए आवेदन करते समय चन्दन सिंह ने जो पांच हज़ार रूपये डीडीए में जमा करवाए थे, उसकी रसीद की एक प्रति भी उस पत्र के साथ लगा दी ! ऐसे चिठ्ठी लेकर चन्दन सिंह अगले दिन वाईस चेयरमैन के दफ़्तर चला गया और और शाम को उसने मुझे जगमोहन जी से मिलने की पूरी बात बताई ! हमारे अनुमान के अनुसार पहले तो वाईस चेयरमैन साहेब चन्दन सिंह से खूब गुस्सा हुए , उन्होंने डांट भी लगाई , लेकिन जब चन्दन सिंह ने विनम्रता पूर्वक जब अपने मामले की पूरी व्यथा उनको सुनाई तो उनका दिल पिघल गया और उन्होंने चन्दन सिंह की बात भी सुनी और चिठ्ठी पढ़कर उसपे उचित कार्यवाही करने का आश्वासन भी दिया ! अब इन्तज़ार  होना शुरू हो गया था कि डीडीए का अगला ड्रा कब निकलेगा ? ऐसे करते २ लगभग 5-6 महीने बीत चुके थे कि एक दिन एक अख़बार में समाचार आ गया कि डीडीए का अगला ड्रा दो सप्ताह बाद होगा ! चन्दन सिंह के साथ २ मुझे भी इन्तज़ार था कि ड्रा में उनको एक घर मिला या नहीं ! इसके लगभग एक महीने बाद चन्दन सिंह ने मुझे खुशखबरी सुनाई कि उसे रोहिणी में एक फ्लैट का आबंटन हो गया है ! 
तो ऐसे चन्दन सिंह अपने फ्लैट का कब्ज़ा लेने के बाद कुछ वर्ष तो वहाँ रहे , लेकिन फ़िर उनको ख्याल आया कि मेरे इस एमआईजी ग्रुप के छोटे से घर में तीनो बेटे कैसे रहेंगे ? बस यही सोचकर सात / आठ वर्ष बाद उन्होंने अपना वह फ्लैट बेच दिया और नज़फ़गढ़ रोड पर 60 गज़ का एक प्लॉट ख़रीद लिया ! उनके बच्चों की शादियों का सिलसिला भी शुरू हो चुका था और ऐसे धीरे २ उन्होंने ने कुंवर सिंह नगर कॉलोनी में अपना नया मकान बना लिया ! वैसे तो मई 2004 में उन्होंने अपनी कंपनी से सेवानिवृति ले ली थी, लेकिन इसके केवल दो वर्ष बाद ही जून 2006 में उनकी मृत्यु हो गई ! चन्दन सिंह के अपने घर बनाने के परियोजना के साथ ही मुझे अपने दफ़्तर में घटे एक और किस्से की याद आ गई ! यह घटना शायद 1990 की होगी ! हमारी कम्पनी में सुबह की चाय ग्यारा – साढ़े  ग्यारा बजे आया करती थी ! एक दिन सेवाएं विभाग में काम करते हुए सुबह अभी चाय आई ही थी, कि कंपनी के सुरक्षा अधिकारी – होत चंद ने एक चपड़ासी को बुलाया और उससे बोले कि यह फ़ाइल अभी कपूर साहेब को देकर आयो ! एमएल कपूर साहेब कंपनी में  उप महाप्रबंधक (प्रशासन ) हुआ करते थे ! चपड़ासी ने फ़ाइल लेकर अपने पास रख ली और उत्तर दिया कि वह यह चाय पीने के बाद फ़ाइल दे आएगा ! लेकिन सामंतवादी सोच रखने वाले सुरक्षा अधिकारी से यह बर्दाश्त नहीं हुआ कि एक चपड़ासी ने उसका हुकम तुरंत क्यों नहीं माना और वह फ़िर बोले कि यह फ़ाइल बहुत जरुरी है और बस अभी देकर आयो ! बस इसी बात को लेकर होत चंद और उस चपड़ासी के बीच झगड़ा शुरू हो गया और होत चंद ने उसे उसकी जातिसूचक गंदे शब्दों से प्रताड़ना शुरू कर दिया जिसे सुनकर उस चपड़ासी ने भी गुस्से में अपना नियंत्रण खो दिया और उसने होत चंद का गिरेबान पकड़ लिया, मारने ही वाला था, कि आसपास खड़े कुछ और सहकर्मियों ने उनको खींचकर अलग २ कर दिया !        
क्योंकि सुरक्षा अधिकारी होत चंद अगड़ी जाति का बंदा था और सैक्शन में बाकी अगड़ी जातियों वाले सभी लोग उसको भड़काने लग गए कि आप इस चपड़ासी की लिखती रूप में  प्रशासन विभाग में  शिकायत करो कि इसने मेरा गिरेबान पकड़कर गालियाँ दी हैं और मेरे हुकम की भी अदूली की है ! लिखती रूप में  शिकायत जाने के बाद प्रशासन विभाग ने एक ऋण अधिकारी (एल एन गुप्ता) को इस मामले की तहकीकात करने के लिए फ़रमान जारी कर दिए ! अगले सप्ताह गुप्ता जी ने अपनी कार्यवाही शुरू कर दी और सेवाएं विभाग में  सबको बोल दिया इस मामले के बारे में  जिसने जो २ देखा है , वह वोह सब कुछ, अगर बताना चाहें तो तहकीकात अधिकारी को बता दें ! पूरे सैक्शन ने होत चंद और उस चपड़ासी के बीच हुए झगडे को देखा था, लेकिन बड़े ताजुब की बात थी कि कोई भी उस चपड़ासी, जिसको जाति आधारित अपशब्द / गालियाँ  दी गई थी , यह बात बताने के लिए कोई भी तैयार नहीं हुआ ! चार पांच लोगों को मैंने भी कहा कि आप सचाई बयान क्यों नहीं करते कि पहले सुरक्षा अधिकारी ने उस चपड़ासी को निंदनीय भाषा में गन्दी २ गालियाँ दी थी (जोकि किसी भी सरकारी दफ़्तर में नहीं बोली जाती), फिर चपड़ासी ने भड़ककर अपने सम्मान की रक्षा के लिए अधिकारी का गिरेबान पकड़ा था, आख़िर – इज्जत सबको प्यारी होती है ! चौथे श्रेणी के भी कितने ही कर्मचारियों ने भी यह बोलकर इस मामले से पल्ला झाड़ लिया कि हम तो अपने काम में इतना बिजी थे कि हमें तो पता ही नहीं चला कि बाकी सैक्शन में क्या हो रहा है ? 
मैंने चन्दन सिंह को भी बोला कि आप तो चौथी श्रेणी के एक वरिष्ठ कर्मचारी हो, आप उस चपड़ासी बचाने की कोशिश क्यों नहीं करते ? आपको अपने एक साथी को समर्थन देना चाहिए ! याद रखो, अगर आज आपने उसको सुपोर्ट नहीं किया, कल आप पर कोई मुसीबत आने पर आपको कौन बचाएगा ?  लेकिन चन्दन सिंह ने जवाब दिया – “हमें क्या पड़ी है कि किसी दूसरे की वजह से हम प्रशासन विभाग से अपने सम्बन्ध खराब करें , आखिर हमें नौकरी तो यहीं करनी है ?” मैंने उत्तर दिया अगर हर कोई यही सोचकर सच से भागता रहेगा तो उस चपड़ासी की तो नौकरी भी जा सकती हैं ! आप यह क्यों भूल जाते हो कि होत चंद की भाषा और व्यवहार दोनों गलत थे, अपने टेबल पर कोई फ़ाइल बेशक तीन दिन पड़ी रहे, तब अर्जेंट नहीं होती, लेकिन चपड़ासी ने अगर यह बोल दिया कि मैं चाय पीकर दे आता हूँ, इसपे उसकी जाति का नाम लेकर ऐसी गन्दी भाषा बोलने की क्या जरुरत थी ? चपड़ासी ने फ़ाइल लेजाने के लिए मना थोड़ी किया था,  वैसे भी एक कप चाय पीने में वक़्त ही कितना लगता है ?” मेरे सवाल का चन्दन सिंह ने कोई उत्तर नहीं दिया और अपना मुँह नीचे करके चला गया ! अंतत: पूरे सैक्शन में केवल हम दो ही लोग (मैं और केवीआर पिल्लई) थे जिन्होंने सच्चाई ब्यान करी कि पहले सुरक्षा अधिकारी ने उस चपड़ासी को उसकी जाति का नाम लेकर गालियाँ दी थी और उसे हरामी और नीच कहा था ! इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी मुझे अभी भी अच्छी तरह याद है कि जब मैंने उस तहकीकात अधिकारी – गुप्ता के सामने उस घटना की पूरी सच्चाई बताते हुए अपना बयान दिया तो उसने भी मुझे धमकी भरे लहजे में बोला था, “भारद्वाज ! अच्छी तरह सोच लेना, मुझे पता चला है कि अगले वर्ष आपकी प्रमोशन भी होने वाली है, अगर आपने होत चन्द के ख़िलाफ़ बयान दिया तो आपकी होने वाली प्रमोशन पे भी इसका असर पड़ सकता है ?” मैंने उनको काउंटर सवाल किया, “गुप्ता जी ! जब यह सारा काण्ड हुआ था, उस वक़्त सैक्शन में तो आप भी मौज़ूद थे, जरा अपने दिल पे हाथ रखकर बताओ – जो कुछ होत चंद ने किया , क्या उसका व्यवहार और भाषा सही थी या ग़लत ?”  मेरा सवाल सुनकर गुप्ता झेंप गया, लेकिन फ़िर मुझे मनाने के इरादे से उसने उत्तर दिया, “आपका बयान अभी दो तीन दिन मेरे पास ही रहेगा, अगर आप कल बदलना चाहो, तो बता देना !”  क्योंकि मैं ग़लत आदमी का साथ नहीं देता, सो मैंने अपना बयान नहीं बदला, दूसरी बात – और मैं और पिल्लई जी भी जानते थे कि अगर हमने आज उस चपड़ासी के साथ हुई बदसलूकी सही २ नहीं बताई तो – एक तो होत चंद का बाकी कर्मचारियों के साथ बदसलूकी करने का हौंसला और बढ़ जायेगा, दूसरा उस गरीब बन्दे की नौकरी भी जा सकती है !

सैक्शन में 7-8 लोगों ने होत चंद की तरफ़दारी करते हुए बयान  दिए , लेकिन  हम दोनों के हिम्मत से सच्चाई का पक्ष लेने वाले बयानों के बाद उस चपड़ासी को केवल एक वार्निंग पत्र देकर छोड़ दिया गया और होत चंद को भी अपनी जुबान संभाल कर बोलने के हिदायत दी गई थी, क्योंकि यह एक सरकारी दफ़्तर है, किसी जिम्मीदार या सरमायेदार की बेगारी नहीं है, यहाँ आप किसी के साथ भी कैसा भी सलूक / बदतमीज़ी करते रहो और तुम्हें कोई पूछने वाला ही नहीं ! 

आर डी भारद्वाज नूरपुरी