होली का इतिहास अच्छी तरह जानने और समझने के लिए पहले हमें सितंबर 2000 में उत्तर प्रदेश के एक जिले हाथरस में हुई एक दर्दनाक और शर्मनाक घटना को थोड़ा गंभीरता से खंगालना पड़ेगा ! हाथरस के एक गाँव में एक गरीब दलित परिवार की बीस वर्ष की लड़की पशुओं के लिए चारा काटने खेतों में गई, वहां उसे अगड़ी जातियों के चार दबंगों ने पकड़ लिया और उसके साथ समूहिक बलात्कार किया! लड़की के माँ बाप को इसकी सूचना मिलने पर वह उसे अपने किसी नज़दीक के अस्पताल में इलाज के लिए लेकर गए, लेकिन लड़की की हालत इतनी ख़राब हो चुकी थी की वहां के डॉक्टरों ने उसे अलीगढ़ मेडिकल कॉलेज रेफ़र कर दिया. वहां उसके समूहिक बलात्कार की पुष्टि हो गई और लड़की ने अपने साथ हैवानियत करने वाले चारों लड़कों के नाम बता दिए, लड़की के ब्यान के आधार सभी लड़को पर गैंगरेप का मुक़दमा दर्ज हो गया. लड़की को आगे के इलाज के लिए अलीगढ़ से 28 सितंबर को दिल्ली के सफ़दरजंग अस्पताल ले जाया गया, दुर्भाग्य से दिल्ली आने के अगले ही दिन उसकी मौत हो गई. बलात्कारी अमीर और दबंग परिवारों के बिगड़े हुए लड़के थे, उन्होंने अपनी दौलत और राजनैतिक पहुँच के बलबूते पर लड़की की बॉडी घर वालों को सौंपने के बजाये पुलिस के हवाले करवा दिया और पुलिस वालों ने राजनैतिक दबाव में आधी रात को ही खेतों में लड़की की बॉडी को जला दिया ! लड़की के समाज वालों ने पुलिस और प्रशासन की मिली भगत पर हंगामा तो बहुत किया, लेकिन नतीजा कुछ ख़ास नहीं निकला ! कोर्ट केस तो अभी भी चल रहा होगा लेकिन लड़की के परिवार को इंसाफ़ मिलने की संभावना बहुत कम है!
कथा कहानियों में बताई गई मौजूदा रूप की पृष्ठभूमि में मनाये जाने वाले त्यौहार होली का इतिहास भी कुछ ऐसा ही है ! उत्तर प्रदेश के ही जिले लखनऊ के पास वाले हरदोई की घटना है यह, आज से तकरीबन पांच हज़ार तीन सौ वर्ष पहले (महाभारत से आस पास ही) हरदोई का एक आदिवासी राजा हुआ करता था, जिसका नाम था हिरण्यकशयप, उसके घर में उसकी पत्नी कियादु , बेटा प्रहलाद, एक छोटा भाई हिरणाक्ष और एक छोटी बहन होलिका भी थी ! राजे हिरणकश्यप ने अपने पिता कश्यप की हार का बदला लेने के लिए अपने पड़ोसी अगड़ी जाति के राजे पर हमला करके अपने पिता की खोई हुई जमीन वापिस जीत ली ! युद्ध में हुई हार को वह पराजित राजा बर्दाश्त नहीं कर पाया और उसने आस पास के एक और राजे विष्णु की सहायता से हिरणाकश्यप को धोखे से कतल करवा दिया ! केवल इतना ही नहीं, उन अनैतिक और कपटी राजे विष्णु ने कुछ और राजाओं के साथ मिलकर हिरणाक्ष के घर में फूट डलवा दी और उसके ही बेटे को अपने बाप का बाग़ी बनवा दिया ! अपने बड़े भाई की मृत्य के बाद हिरणाकश्यप का छोटा भाई हिरणाक्ष गद्दी पर बैठ गया! इतना कुछ करने के बाद भी दुशमन राजे विष्णु का मन नहीं भरा, क्योंकि उसकी असल नज़र तो हिरणाकश्यप के विशाल राज्य पर लगी हुई थी, सो इस तरह अपने नए षड्यंत्र को अंजाम देने के इरादे से उसने थोड़ी लंबी अवधि के लिए ही एक नई साजिश रच डाली ! बस उसी चालबाज़ी पर अमल करते हुए उन्होंने अपने एक गुप्तचर नारद को हिरणाकश्यप के इकलौते बेटे प्रहलाद को किसी तरह गुमराह करके उसे भटकाने के काम पर लगा दिया ! बेटा प्रहलाद अपने ही पिता के दुश्मनों के झांसे में धीरे २ आने लग गया और उन्होंने उसे गंदी आदतों की लत लगा दी ! केवल इतना ही नहीं, प्रहलाद को उन्होंने अपने ही पिता का विरोधी बनकर घर से भाग कर दुश्मनों की साज़िश में फंस गया और अपने पिता के दुश्मनों के साथ मिलकर दारू पीने और जुआ खेलने लग गया !
प्रहलाद की एक बुआ थी जिसका नाम था होलिका ! होलिका अपने इकलौते भतीजे की हरकतों और व्यवहार से बड़ी परेशान रहती थी और वह कभी २ उससे मिलने जाती थी ताकि वह किसी तरह उसे समझा कर वापिस घर लाया जा सके ! होलिका की अभी शादी होने वाली थी ! फ़ागुन के महीने में होलिका की शादी होनी निश्चित हो गई थी और उसने अपने मन में प्रण लिया कि वह किसी तरह शादी से पहले अपने भतीजे को उसकी ग़लत फ़हमियां दूर करके पिता / चाचा भतीजे के रिश्तों में पड़ी दराड़ों को समाप्त करके प्रहलाद को घर वापस लाना चाहती थी! बस अपने इसी इरादे से वह प्रहलाद के एक दोस्त और दो अंग रक्षकों को साथ लेकर प्रहलाद को मिलने गई ! शहर से बाहर वह जंगल में अपने जैसे ही एक धोखेबाज़ मण्डली में रहता था ! होलिका जब प्रहलाद से मिलने आ रही है, इस बात की भनक हिरण्याक्ष के दुश्मनों को भी लग गई और वह भी इस नई उत्पन्न हुई स्थिति से निपटने की तैयारी में जुट गए !
प्रहलाद के छुपने वाले ठिकाने पर पहुँचकर होलिका ने उसे समझाने की बड़ी कोशिश की, कि वह यह अपनी नशाखोरी और बाकी सब उलटे काम छोड़कर उसके साथ अपने महल में वापिस आ जाये और अपने दुश्मनों को दोस्त समझने की भूल हरगिज़ न करे! प्रहलाद तो इसके लिए राजी नहीं हुआ, क्योंकि उसके दिल में तो अपने पिता और चाचा के प्रति ज़हर भर दिया गया था, जब होलिका तो उसे समझाने में व्यस्त थी, राजा हिरण्याक्ष के दुश्मनों ने उन पर पूरे जोर शोर से हमला कर दिया ! प्रहलाद को तो पकड़कर उन्होंने एक पेड़ के साथ बांध दिया और होलिका के साथ समूहिक बलात्कार किया ! बाद में इस घिनौनी घटना की ख़बर कहीं उसके चाचा हिरणाक्ष को न लग जाये, उसके दुश्मनों ने होलिका का कतल भी कर दिया और फ़िर वहीं लकड़ियां इक्कठी करके होलिका की बॉडी को जला दिया, ताकि उसके मृत शरीर से होलिका के साथ हुई हैवानियत और दुष्कर्म की कहीं भनक उसके घर वालों का न लग जाये!
बाकी की पूरी कहानी कि प्रहलाद तो विष्णु का भक्त था और होलिका के पास किसी ऋषि मुनि द्वारा प्रदान की हुई एक ऐसी चादर थी जिसे आग भी नहीं जला सकती थी, वगैरह २; यह सब बातों उसके बलात्कार व कतल को छुपाने की साजिश का ही एक हिस्सा थी, जिनको अगड़ी जाती वालों ने अपने तथाकथित इतिहास / पुराणिक कथा कहानियों में अपने धोखे और साज़िश को छुपाने के लिए लिख दिया, और बहुजन समाज के अनपढ़ किस्म के लोग, सच्चाई की जाँच पड़ताल किये बिना ही उसी को सच मानकर अभी तक मानते और होलिका दहन करके अभी तक उस निर्दोष लड़की का अपमान करते आ रहे हैं ! ऐसी कौन बुआ होती है जिसको अपने भतीजे प्यारे नहीं होते और वह उनको मारना चाहेगी ? बुआ को अपने भतीजे तो भाई से भी ज़्यादा प्यारे होते हैं ! न ही होलिका कोई राक्षसकी थी और न ही उसके पास ऐसी कोई जादुई चादर थी जिसको ओढ़कर अगर वह अग्नि में भी बैठ जाये तो अग्नि उसको जला नहीं सकती थी ! होलिका बड़ी बहादुर और सूझवान लड़की थी, इसके साथ ही वह तो अपने परिवार की रक्षक भी थी और अपने गुमराह हुए भतीजे को सही रास्ते पर लाना चाहती थी ! और न ही विष्णु कोई भगवान था, वह तो एक कपटी / चालबाज़ राजा था जोकि अपनी राजनैतिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए किसी भी षड्यंत्र से हिरणाक्ष के राज्य जी जमीन हड़पना चाहता था, और इसके लिए नैतिक / अनैतिक साजिशें उसके लिए केवल राजनैतिक हथियार / हथकंडे ही थे! विष्णु द्वारा बाद में नरसिंह अवतार लेकर हिरणाक्ष को मारने की साजिश भी अपने अपराधों को छुपाने के लिए ही लिखी गयी थी ! ऐसी न जाने कितनी ही उलटी सीधी बातें अगड़ी जाति वालों ने अपनी साजिशों और षड्यंत्रों को छुपाने के लिए और हिरणाक्ष और उसके परिवार को बदनाम करने के इरादे से और अपनी चालबाज़ियों पर पर्दा डालने के लिए ही लिखी हुई हैं!
केवल पुराने ज़माने की ही बातें नहीं, आजतक जब भी किसी गरीब किसान या फिर जंगलों के पास बसे किसी भील / आदिवासी / दलितों / गाँव के सीधे साधे लोगों की जमीनें हथियानी हो, तो अमीर / सरमायेदार / दबंग किस्म के लोग पुलिस और प्रशासन को घूस देकर, या फिर अपने राजनैतिक पहुँच की वजह से उनको आतंकवादी / नक्सलवादी का नाम देकर उनको मरवा देते हैं और उनकी जमीनों पर कब्ज़ा कर लेते हैं! गरीबों और साधन विहीन लोगों के घर भी जला दिए जाते हैं और उनके ऊपर न जाने कैसे २ जुल्म किये जाते हैं ! अनेकों बार ऐसे किस्से कहानियां हमें अख़बारों में पढ़ने सुनने को मिलते हैं, लेकिन गरीब लोग साधन विहीन होने के कारण न्याय पाने में अक्सर पिछड़ जाते हैं ; क्योंकि उनके पास न तो कोर्ट केस लड़ने के लिए प्रयाप्त धनराशि होती है और न ही वह अदालतों में केस लड़ने के लिए महंगे वकील कर सकते हैं ! अनेकों बार तो ऐसा भी देखा जाता है कि गरीबों की संपत्ति हड़पने वाले चालबाज़ किस्म के लोग अपनी साजिशों पर पर्दा डालते हुए धर्म का लिबास भी ओड़ लेते हैं ताकि अपने अपराध की उनको कोई सजा न मिल सके ! उनके धार्मिक आवरण की वजह से बहुत से लोग उनको संदेह की दृष्टि से भी नहीं देखते !
महात्मा बुद्ध और होली : महात्मा गौतम बुद्ध का एक प्रसंग भी होली के साथ जुड़ा हुआ है ! गौतम बुद्ध का जन्म तो एक राजा शुद्धोधन के घर हुआ था, जिंदगी को बढ़िया ढंग से जीने के सभी सुख साधन सुविधाएं उनके महल में उपलब्ध थी, लेकिन सिद्धार्थ गौतम का मन हमेशा बेचैन रहता था, वह समय २ मानव जीवन में आने वाले सांसारिक दुःख तकलीफों से अक्सर परेशान रहते थे ! धीरे २ उनके मन को वैराग्य ने घेर लिया और वह मन की शांति और ब्रह्मज्ञान की खोज में ही उन्होंने शादी के बाद अपने एक छोटे से बच्चे राहुल और सुंदर पत्नी यशोधरा को महल में अकेले छोड़कर सत्य और अध्यात्मवाद की खोज में आधी रात को घर से निकल गए ! मन की शांति की खोज में वह जंगलों में कितने ही वर्ष भटकते रहे, खाने पीने सोने की सुध बुध भी सब खो गए ! फ़िर ब्रह्मज्ञान तो उनको सात वर्ष बाद ही प्राप्त हो गया था, लेकिन ज्ञान प्राप्ति के बाद वह पाँच वर्ष तक गाँव २ घूमते हुए आम लोगों को प्रवचन करते रहे, और दुःख तकलीफ़ों से बचने और सच्चाई के मार्ग पर चलने के लिए लोगों को मार्ग दर्शन करते रहे ! अंतत: बारह वर्षों की ऐसी घोर तपस्या / वैराग के बाद एक दिन उनको ख्याल आया कि अपने घर की भी खोज ख़बर ली जाये ! तब वह अपने कुछ साधु सन्यासी मित्रों के संग फागुन महीने के पहले सप्ताह अपने घर कपिलवस्तु में वापस आए !
अपनी पत्नी और बेटे राहुल से मिले ! उनके आने की ख़ुशी में उनके महल में उनके दोस्तों मित्रों और रिश्तेदारों ने मिलकर एक दूसरे को प्रसन्नता का इज़हार करते हुए एक दूसरे को गले मिले और रंग लगाए ! ऐसे बोधि समाज के लोग भी होली का पर्व मनाते हैं !
आरडी भारद्वाज “नूरपुरी”