अपना असली घर पहचानो !

आर.डी. भारद्वाज “नूरपुरी”

एक बार की बात है कि एक इन्सान किसी घने जंगल में से गुजर रहा था। सूर्य अस्त हो चुका था, शाम ढल रही थी। अब उसे चिन्ता सताने लगी कि अँधेरा होने से पहले वह अपने घर कैसे पहुँच सकेगा ? बस इसी फिक्र में वह अपने गाँव की तरफ बड़ी तेज गति से चल रहा था कि कहीं कोई जंगली जानवर या कोई अन्य खतरनाक प्राणी वहाँ आकर उसे अपना आहार न बना ले । ऐसे वह भागते – २ जा ही रहा कि उसे ध्यान ही नहीं रहा कि उसी रास्ते के बीच में एक कुँआ भी पड़ता है और ऐसे अँधेरे में कुआं उसे दिखाई नहीं दिया और वह धड़ाम से उसमें गिर गया।

गिरते-गिरते, जैसे वह बचने की पुरज़ोर कोशिश कर रहा था, कुएं पर झुके हुए एक पेड़ की एक शाखा उसके हाथ में आ गई। जब उसने नीचे झांका, तो देखा कि कुएं में चार अजगर मुंह खोले बड़ी ललचाई आँखों से उसे देख रहे हैं कि कब उसके हाथ से पेड़ की शाखा छूटे और वह उसे लपक लें । जिस डाल को वह पकड़े हुए था, उसी शाखा को दो चूहे कुत्तर रहे थे। इतने में न जाने कहाँ से एक मस्त हाथी भी उधर आ गया और वह पेड़ को जोर-जोर से हिलाने लगा। यह सब कुछ देखकर वह आदमी घबरा गया और सोचने लगा कि अब मेरा क्या होगा ? अपना अन्तिम समय उसे निकट आता दिखाई दिया और फिर उसने भगवान से प्रार्थना करनी शुरू की, “हे भगवान ! किसी तरह आप मुझे बचा लो , मुझे इस मुसीबत से बाहर निकाल दो, ताकि मैं सही सलामत अपने घर पहुँच जाऊँ, मेरे बच्चे अभी बहुत छोटे हैं, और मैं इतनी जल्दी मरना नहीं चाहता । मेरे बिना मेरा परिवार तबाह हो जायेगा, उज्जड़ जाएगा … इसलिए भगवान , आप मुझे बचा लो ! ”

उसी पेड़ पर मधु-मक्खियों का एक छत्ता भी लगा हुआ था। हाथी के पेड़ को हिलाने से मधु मक्खियाँ उडऩे लगीं और उस छत्ते में तरेड़ पद गई, जिसके कारण, उस में से शहद की बूंदें टपकने लगीं। शहद की बूँदे आती देखकर उसने अपनी गर्दन घूमाकर थोड़ी सी दिशा में कर ली ताकि छत्ते से टपक रहा शहद उसके मुँह में ही गिर सके । तो ऐसे एक बूँद उसके होठों पर आ गिरी। मीठा – २ शहद उसे बड़ा स्वादिष्ट लगा और उसने उसी दिशा में अपना मुँह किये रखा । उसने प्यास से सूख रही जीभ को होठों पर फेरा, तो शहद की उस बूँद में गजब की मिठास अनुभव की ।कुछ पल बाद फिर शहद की एक और बूँद उसके मुँह में आ गिरी ।

अब वह धीरे – २ उस शहद के स्वाद में इतना मगन हो गया कि वह अपनी मुश्किलों को भूल ही गया। तभी उस जंगल से उसने शिव एवं पार्वती जी को अपने वाहन द्वारा हवाई मार्ग से वहाँ से गुजरते हुए देखा । पार्वती जी की नज़र अचानक उस कुएं में लटकते हुए इन्सान पर पड़ गई और उन्होंने शिव जी से उस इन्सान को बचाने का अनुरोध किया। भगवान शिव ने उसके पास जाकर कहा, ” हे भले मानस ! तू इस मौत के कुएं में क्यों लटके हुए हो ? मैं तुम्हें बचाना चाहता हूँ, चल तू मेरा हाथ पकड़ ले और मैं तुम्हें धीरे – २ इस मौत के कुएं में से बाहर निकाल दूंगा । लेकिन, उस इंसान ने उत्तर दिया, ” हे प्रभु ! अभी तो बड़ा मीठा – २ शहद उस पेड़ में लगे हुए छत्ते से टपक रहा है , कृपया आप थोड़ी देर बाद आना, मैं यह शहद थोड़ा और खा लूँ, फिर हम यहाँ से निकल चलेंगे । सचमुच – यह शहद बड़ा ही मीठा और स्वादिष्ट है।”

पेड़ से लगे छत्ते से शहद भी टपकता रहा और वो आदमी भी उसी लालच में कुएं में से लटकते हुए और पेड़ से गिरते हुए शहद का लुत्फ़ उठाता रहा । ऐसे करते वह सचमुच भूल गया कि यह कुयाँ तो दरअसल, मौत का कुयाँ है, उसका अपना घर नहीं । जैसे – २ एक – २ बूँद ऊपर से गिरती, वह वह बूँद खा लेता और टपकने वाली अगली बूँद का इन्तज़ार करने लगता । फिर एक बूँद और हर एक बूँद के बाद अगली बूँद का इन्तज़ार, ऐसे ही कितनी देर तक यह सिलसिला यूँही चलता रहा, जैसे कि उस स्वादिष्ट शहद का उसे चस्का लग गया हो ।

आखिर थक-हारकर शिवजी जी ने थोड़ी देर तो उसका इन्तज़ार किया , कि शायद उस आदमी को समझ आ जाएगी और वह पेड़ की शाखा छोड़कर और शहद का लालच त्याग कर, उनको कहेगा – चलो ! मैं आपके साथ चलने के लिए तैयार हूँ । लेकिन ऐसा नहीं हुआ और वह नासमझ आदमी वहीँ पर लटका रहा, और शिव जी माता पार्वती जी के साथ अपने सफ़र के लिए आगे निकल गए ।

प्यारे संतो ! वह आदमी जिस जंगल में जा रहा था, असलियत में वह जंगल है यह दुनियाँ, और जो अंधेरा हमें नज़र आ रहा है, वह है हमारी अज्ञानता, पेड़ की जिस डाली से वह लटका हुआ था, हक़ीक़त में वह है – हमारी आयु और दिन-रात रूपी दो चूहे उसे निरन्तर कुत्तर रहे हैं, अर्थात दिन प्रतिदिन हमारी उम्र घटती जा रही है । घुमण्ड का मदमस्त हाथी पेड़ को उखाडऩे में लगा है। छत्ते से लगातार टपकने वाली शहद की बूँदे हैं – असलियत में हमारे संसारिक सुख और साधन हैं, जिनके कारण कभी कभी मनुष्य अपने आने वाले खतरे को भी सही तरीके से भाँप नहीं पाता, अनुमान नहीं लगा पाता, या फिर उस खतरे को भी छोटा समझकर अनदेखा कर देता है…..।

समय – २ पर इस पृथ्वी पर अनेक गुरु, साधु, सन्त और महात्मा आते रहते हैं और वह ग़फ़लत में मधहोश इन्सान को समझने का प्रयत्न करते रहते हैं कि – हे खुदा के बन्दे ! यह दुनियाँ तो फानी है, नाशवान है, इसमें रहते हुए हुए तू आने वाले समय को पहचान, भगवान ने तुझे इस संसार में रिटर्न टिकट देकर भेजा हुआ है, सो एक दिन तुझे वापिस उसके पास जाना ही है ! समय रहते तू संभल जा ! और अपना जीवन सँवार ले ! लेकिन, यह दुनिआवी सुख, साधन और सुविधाओं के मायाजाल में खोए मन को स्वंम भगवान भी नहीं बचा सकते……। मगर एक सच्चा इन्सान जिसकी बुद्धि निरन्तर स्थिर रहती है, मन डाँवाडोल नहीं होता, वह निरन्तर बीत रहे समय को समझकर अपने आने वाले खौफनाक रास्ते को पहचान लेता है और फिर अपनी भटकती हुई रूह को एक सच्चे गुरु के चरणों में लगाकर, अपने स्वामी, अर्थात – परमपिता प्रमात्मा को पाने में पूरी मेहनत और लगन से जुट जाता है । आदमी को चाहिए कि वह समय रहते यह काम कर ले, और कोई सच्चा / सम्पूर्ण गुरु ढूँढकर उसकी शरण में चला जाए ।

यह दुनियाँ तो हमारा अस्थाई घर है, मगर सच्चा घर तो वह है यहाँ हमें इस मृत्यु लोक तो छोड़कर एक दिन तो हमेशा के लिए अपने प्रीतम अर्थात – पूरी दुनियाँ के मालक-ख़ालिक़ , उस परमपिता प्रमात्मा के पास जाना ही है। और वहाँ जाने का रास्ता तो एक सच्चा और सम्पूर्ण गुरु ही दिखला सकता है, हमें समझा सकता है । जो लोग पृथ्वी लोक के सुखों, साधनों और सहूलतों में ही पड़े रहते हैं, खोए हुए रहते हैं, अपने अन्तिम समय आने पर उनको पछताना ही पड़ेगा । और उस वक़्त पछतावे के सिवाय उनके कुछ भी हाथ नहीं लगेगा । इसलिए, संतो प्यारिओ ! चलो ! उठो ! गुरु की शरण में आ जाओ, और ध्यान से सत्संग सुना करो, ताकि अपना भविष्य भी थोड़ा बहुत सँवार लें और इस 84 के बन्धन से छुटकारा पा सकें । वरना, मरने के बाद भी इस निरंकार में विलीन होने के बजाये, फिर से किसी न किसी अन्य योनि में जन्म लेना पड़ेगा, और ऐसे फिर से आप चौरासी के बन्धन में जकड़े जाओगे, और न जाने फिर आपको कुत्ता, बिल्ली, गधा बन्दर या फिर चूहा बनकर कितने और कष्ट भोगने पड़ेंगे । एक और बात जाननी, समझनी और अच्छी तरह से याद रखना अत्यन्त अनिवार्य है, वह यह है कि परमात्मा को समझना और पाना केवल और केवल मानव जीवन में ही संभव है । धन निरंकार जी !