प्रभु आओ , प्रभु आओ, रामकृष्ण प्रभु आओ….


श्री रामकृष्ण वचनामृत से उद्धृत कुछ पंक्तियाँ ……… 

भगवान श्री रामकृष्ण के दर्शन करने दक्षिणेश्वर मंदिर चले , देखें किस तरह वे भक्तों के साथ आनंद विलास कर रहे हैं और किस तरह सदा ईश्वरीय भाव में मस्त होकर समाधि मग्न हैं कभी कीर्तन के आनंद में मतवाले बने हुए हैं कभी प्राकृत मनुष्यों कि तरह भक्तों से वार्तालाप करते हैं। मुख में ईश्वरीय प्रसंग के सिवा दूसरा विषय ही नहीं।

मन सदा अंतर्मुखी है। हर एक श्वास के साथ माँ का नाम जप रहें हैं। व्यवहार पांच साल के बालक समान है। अभिमान कहीं छू तक नहीं गया हैं। किसी विषय में आसक्ति नहीं , सदानंद सरल और उदार स्वाभाव। ” ईश्वर ही सत्य है ” और “सब अनित्य , दो दिन का है “।
यही वाणी है चलो उस प्रेमोन्मत्त बालक को देखने चले। वे महायोगी हैं अनंत सागर के किनारे एकाकी विचरण कर रहें हैं ।

ईश्वर इस रागभक्ति अनुराग या प्रेम के बिना नहीं मिलते। नमक का पुतला समुन्द्र नापने गया ज्योंही समुन्द्र में उतरा , गल गया। तदाकारकरित अब लौट कर कौन बतलाये कि समुद्र कितना गहरा है। ईश्वर के बारे में यही बात है।

पाप मार्ग का त्याग करना , पाप कि चिंता न करना ईश्वर यही सब चाहते हैं , जिन कामों को करने से पुण्य होता है , उन्हें कामों को करना चाहिए।

उस अनंत सच्चिदानंद सागर में मानो कुछ देख रहें हैं और देख कर प्रेमोन्मत्त बन कर घूम रहे हैं। उनके स्मरण मात्र से ही आनंदमग्न हो जाए। ऐसे परमानन्द श्री रामकृष्ण परमहंस के चरण कमलों में सहस्त्र प्रणाम हैं, सहस्त्र प्रणाम हैं ।

– मधुरिता झा