अपनी फिल्म ‘लाइफ इज़ गुड’ देखकर रो पड़े जैकी श्रॉफ


—चन्द्रकांत शर्मा—

जीवन अच्छा है और बुरा भी। हर इंसान उसे अलग अंदाज़ में जीता है। कुदरत ने हर इंसान को खूबसूरत पल बिताने के अवसर दिए हैं, पर कुछ लोग ऐसे हैं जो जीवन की खूबसूरती को समझ नहीं पाते और एक ऐसे मोड़ पर आ खड़े होते हैं, जहां उनके हिस्से में आता है अकेलापन और एक अजीब-सी उदासी। ज़िंदगी के मायने क्या हैं! उसकी गहरी पड़ताल बहुत कम फिल्मों में हो पाई है क्योंकि मनोरंजन दर्शकों की भूख है जिसे मिटाने के लिए फिल्मों में मसालों की छौंक लगानी पड़ती है, जिस वजह से दर्शक ऐसी फिल्मों से दूर हो जाते हैं, जिनमें ज़िंदगी को समझने की कोशिश की गई है। फिल्म ‘लाइफ इज़ गुड’ ऐसी ही एक फिल्म है, जो जीना सिखाती है। ज़िंदगी का एक-एक क्षण कितना खूबसूरत है, इसे जान लेने के लिए ‘लाइफ इज़ गुड’ से जुड़ना बेहद जरूरी है।

लेखक सुजीत सेन द्वारा लिखित कहानी पर बनी बनी ये फिल्म एक अधेड़ शख्स और छह साल की बच्ची की दोस्ती से शुरू होती है। अगर कहानी को वन लाइन में कहा जाए तो एक शख्स अपनी मां से इतना प्यार करता है कि इस डर से वो शादी तक नहीं करता कि कहीं कोई उसकी मां से उसे अलग ने कर दे। एक दिन मां मर जाती है तो मां के वियोग में वो भी आत्महत्या करना चाहता है। लेकिन उसे एक छह साल की बच्ची मरने से तो बचाती ही है, साथ ही उसे जिन्दगी जीने के मायने भी सिखाती है। कहने का मतलब ये है कि जीवन खूबसूरत है। उस खूबसूरती को आप अपने भीतर कितना आत्मसात कर पाते हैं, ये सोचने पर निर्भर करता है। भगवान ने ‘लाइफ’ के रूप में सभी को एक अनमोल उपहार दिया है। किसी के लिए वो गुड है तो किसी के लिए बैड। फिल्म में इसी उथल-पुथल को दिखाया गया है। फिल्म की अधिकांश शूटिंग महाबलेश्वर में की गई है। लोकेशन एक मंदिर की भी है, जहां फिल्म अभिनेता देवआनंद जाया करते थे। उस दौरान जैकी श्राफ भी उसके साथ हो लेते थे। उसी मंदिर में फिल्म को शूट करने का सुझाव भी जैकी श्राफ ने ही दिया था। बता दें किं जैकी श्राॅफ अपनी फिल्म ‘लाइफ इज़ गुड’ देखने के बाद इस कदर इमोशनल हो गये कि उनसे बात तक नहीं की जा रही थी। इसलिये वे फिल्म देखकर ज्यादा बात न करते हुये थियेटर से जल्दी चले भी गये।
दरअसल, निर्माता आनंद शुक्ला ने अपनी फिल्म ‘लाइफ इज गुड’ का एक ट्रायल शो वर्ली स्थित नेहरू सेंटर में फिल्म की कास्ट एंड क्रू के लिये रखा। फिल्म देखते हुये जैकी इतने इमोशनल हो गये कि उन्हें फिल्म में इस कदर इन्वाल्व देख फिल्म का मध्यातंर भी नही किया गया। फिल्म खत्म होने के बाद कितनी ही देर तक जैकी चुपचाप खड़े रहे। उसके बाद उनके मुंह से निकला क्या फिल्म बनाई है बाप! यकीन नहीं होता। इस फिल्म के निर्देशक हैं अंनत महादेवन। फिल्म में अधेड़ शख्स की भूमिका जैकी श्राफ ने निभाई है जो रामेश्वर के किरदार को जीता है। छह साल से बीस साल तक की भूमिकायें क्रमशः सानिया और अंकिता ने निभाई है। फिल्म में मौसी की भूमिका में सुनीता है तथा छोटी-छोटी भूमिकाओं में मोहन कपूर तथा दर्शन जरीवाला ने बहुत ही प्रभावशाली काम किया है। जहां तक जैकी की बात की जाए तो उनके करियर की यह बेस्ट फिल्म साबित होने वाली है। शायद इसीलिये जैकी अपना ही काम देखकर स्तब्ध थे। फिल्म के ट्रायल में आर्टिस्टों और फिल्म देखने आये मेहमानो के जबरदस्त रिस्पांस को देखकर निर्माता आनंद शुक्ला गद्गद् है। वैसे भी आनंद तथा अनंत महादेवन यथार्थवादी सिनेमा को बढ़ावा देने के लिये ऐसी फिल्म बनाने के लिये प्रशंसा के पात्र है। ‘लाइफ इज गुड’ जल्दी ही सिनेमाघरों में दिखाई देगी।