लौट चले

डॉ सरोज व्यास
प्रधानाचार्य, इंदरप्रस्थ विश्व विद्यालय, दिल्ली

मासुम सादगी से भरी बड़ी सच्ची है,
तेरे मौन से प्यारी, मेरी यह अभिव्यक्ति अच्छी है |

गाँव के घर में आहट से पहचान ली जाती हूँ ,
तेरे शहर में रहकर भी अनदेखा कर दी जाती हूँ |

वहां का रुखा-सुखा खाकर ताड़-सी बढ़ती मैं ,
पकवानों को पाकर भी तेरे यहाँ अतृप्त रह जाती हूँ |

फट्टे कपड़ों में भी तन ढक लेती मैं ,
तेरे रेशमी लिबास में भी शर्मसार हो जाती हूँ |

टूटी चारपाई पर चैन की नींद सोती वहां ,
तेरे बिस्तर पर करवट बदल-बदल रात बिताती हूँ मैं |

छोड़ भी दो जिद्द आसमान को छुने की ,
धरा पर बिखरा चहुँ ओर प्यार मेरा है |

तेरे शहर के शौर से दम घुटता है मेरा ,
मेरे गाँव का सन्नाटा बार-बार पुकार मुझे रहा है |

चल अब गाँव को लौट चले ………………|