डॉ. अम्बेडकर जयंती पर जन-चेतना ! 

बीसवीं सदी के महान विद्वान, सबसे बड़े क्रांतिकारी नेता, युगप्रवर्तक और सबसे बड़ी बात – बिना एक भी बूँद खून बहाए इतने बड़े २ क्रांतिकारी आंदोलन करके परिवर्तन लाने वाले भारत रत्न बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी की 132 वीं जयंती 14 अप्रैल को संसद मार्ग पर मनाई गई । केवल दिल्ली में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में इसे बड़े हर्षोल्हास के साथ  इस त्यौहार को मनाया गया । दिल्ली में यह कार्यक्रम पिछले अनेक वर्षों की तरह ही संसद मार्ग पर आम जनता ने इसे बड़ी धूम धाम से मनाया ।अनेक राष्ट्रीयकृत बैंकों में कार्यरत अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पिछड़ी जातियों के कर्मचारी संगठनों ने संसद मार्ग पर अपने स्टॉल लगाए । इतना ही नहीं, लाखों की संख्या में बहुजन समाज के लोग वहां सजधज के अपने मसीहा का जन्मदिन मनाने पहुँचे । दिल्ली में छपने वाली एक मैगज़ीन – पैग़ाम ने इसे मनाया और सांसद मार्ग पर अपना स्टॉल भी लगाया !

मजेदार बात यह है कि जब भी कोई राजनीतिक पार्टी अपनी  रैलियाँ करती हैं तो वह अपने खर्चे पर ट्रक भर २ के जनता को रैली स्थान पर लेकर आते हैं और उनको पांच-छह सौ रूपये और खाना भी देते हैं ताकि समाचार चैनलों को दिखा सकें कि आम जनता उनके साथ कितना जुड़ी हुई है और उनकी पार्टी को कितना मानती है । लेकिन बाबा साहेब के जन्म दिवस के अवसर पर कोई किसी गरीब को एक रुपया भी नहीं देता, इसके बावजूद भी लाखों लोग अपने खर्चे पर संसद मार्ग पर पहुँचते हैं और बड़े हर्षोल्लास के साथ बाबा साहेब की जयंती मनाते हैं । राजनैतिक पार्टियों द्वारा की जाने वाली रैलियों को तो समाचार पत्रों और टीवी चैनलों में दिखाने के लिए उनके संवाददाताओं और कैमरा मैनों की भरमार होती है, लेकिन बाबा साहेब की जयंती दिखाने के लिए गोदी मीडिया एक सोची समझी साजिश के तहत वहाँ नहीं पहुँचते । बहुजनों का यह त्यौहार तो केवल छोटे २ प्राइवेट चैनलों – जैसे कि बहुजन टीवी, नेशनल दस्तक, दलित दस्तक, बहुजन हलचल और अम्बेडकर टीवी इत्यादि ही कवर करने आते हैं । इस वार सैंकड़ों अन्य बड़े २ टीवी चैनलों में से केवल एनडीटीवी वाले ही वहां पहुंचे थे ।

आज़ादी के इतने दशकों बाद भी अगड़ी जातियों के लोगों के दिलों से जाति आधारित भेदभाव और अस्पृश्यता की भावना समाप्त नहीं हुई है । कहने को यह लोग पढ़े-लिखे कहलाते हैं, लेकिन इनमें से ज्यादातर की मानसिकता अभी भी पिछड़ी हुई है, वरना इतने महान समाज सुधारक और क्रांतिकारी महामानव और देश के संविधान निर्माता के जन्मोत्सव की झलकियाँ दिखाना उन्होंने क्यों नहीं अपना धर्म समझा ?

चलो कोई बात नहीं, बात करते हैं कि आख़िर वहाँ होता क्या है ? जन्म दिवस मनाने के लिए इकट्ठा होने वालों के खाने पीने का भी वहां पूरा २ ध्यान रखा जाता है। अनेक बैंकों तथा अन्य सरकारी कंपनियों की अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति वेलफेयर ऐसोसिएशन्स के द्वारा लगने वाले स्टॉलों पर इन गरीब लोगों को उनके संविधान प्रदत्त अधिकारों  एवं प्रावधानों के बारे में समझाया जाता है । कुछ प्रकाशन कंपनियां भी वहां अपने स्टॉल लगाती हैं और उनके स्टॉलों पर दलित / बहुजन समाज के विद्वानों / लेखकों (जैसे की महात्मा ज्योतिबा फूले, माता सावित्रीबाई फूले, बाबा साहेब अम्बेडकर, पेरियार रामास्वामी, ललई सिंह यादव, संत शिरोमणि गुरु रविदास जी, संत कबीर दास आदि ) द्वारा लिखी गई सैकड़ों पुस्तकें भी सस्ती दरों पर उपलब्ध करवाई जाती हैं जोकि आम तौर पर पुस्तकों की दुकानों पर नहीं मिलती । कुछ छोटी २ पुस्तकें और मैगज़ीन तो मुफ्त में ही लोगों को दे दी जाती हैं ताकि उनको अपने सदियों से दबे कुचले वंचित समाज का इतिहास पढ़ने का अवसर मिले और लोगों में नई जागरूकता व चेतना का संचार हो ।

मैंने देखा है कि अब आम गरीब लोग भी पहले की तरह अनपढ़ / अनजान नहीं रहे । वह  भी राजनैतिक नेताओं द्वारा उनको गुमराह करने वाली चालों / साजिशों से काफी हद तक वाकिफ़ हो चुके हैं । ऊपर दिए गए छोटे प्राइवेट चैनलों के एंकरों के सवालों के जवाब वह अब काफी सोच विचार करके देते हैं और उनके द्वारा हकीकत बयान करने वाले सुलझे हुए जवाब सुनने को मिलते हैं । टीवी एव न्यूज़ चैनलों के संवाद दाता आम जनता से इस समारोह के बारे में सवाल जवाब भी करते हैं ताकि यह जानकारी हासिल की जा सके कि आम गरीब जनता अभी तक बाबा साहेब अम्बेडकर जी या फिर बहुजन समाज के अनेकों विद्वानों के बारे में कितना समझने लगे हैं और समाज में व्याप्त दलितों की समस्यायों और उनके समाधान के प्रति कितने संवेदनशील हुए हैं ? जब एक पत्रकार ने उनसे पूछा कि बाबा साहेब ने आपके लिए क्या २ किया ? तो उन्होंने हकीकत बयान करते हुए बताया कि यह केवल बाबा साहेब डॉ आंबेडकर ही थे जिन्होंने उन्हें अनेक प्रकार के अधिकार दिलवाये थे और उन अधिकारों में पढ़ने लिखने का अधिकार, वोट देने का अधिकार, चुनाव लड़ने का अधिकार, सार्वजनिक स्थानों पर बिना किसी भेदभाव के आने जाने का अधिकार, संपत्ति रखने का अधिकार इत्यादि शामिल हैं। तीन चार जगह तो कुछ नौजवान लड़के लड़कियाँ दलित कवियों द्वारा लिखे गए गीतों पर नाचते कूदते हुए खुशियाँ मनाते भी नज़र आये !

1935 से पहले तो दलितों को कुर्सी पर बैठने का भी अधिकार नहीं था । केवल इतना ही नहीं कुछ पत्रकारों ने जब उनसे घुमाकर सवाल पूछे कि संविधान में यह अधिकार 70-75 वर्ष पहले ही लिख दिए गए थे तो फिर उसके बावजूद भी आप लोगों ने बांछित प्रगति क्यों नहीं की ? तो लोगों ने जवाब दिया कि हमारे समाज के लोग अपनी सीमित आमदनी के चलते पढ़लिख तो गए हैं और क्लर्क, चपरासी या फ़िर छोटे मोटे अफसर ही बन पाए हैं , लेकिन पिछले सात-आठ वर्षों से फ़िर से हमारे ख़िलाफ़ साजिशों का दौर तेज हो गया है – जैसे कि कांग्रेस के ज़माने में दी जाने वाली थोड़ी सस्ती शिक्षा अब फ़िर से महंगी बना दी गई है । हमारे समाज के करोड़ों लोग अब अपने बच्चों को डॉक्टर या इंजीनियर बनाने में बड़ी कठिनाई अनुभव करते हैं, क्योंकि हमारी अपनी छोटी २ नौकरियां होने की वजह से हमारी आमदनी भी कम है और हम लोग महंगी २ व्यावसायिक डिग्रियाँ हासिल करने के लिए  प्रत्येक वर्ष दो-ढाई या तीन लाख फीस कैसे देंगे ? केवल इतना ही नहीं, अब तो संविधान द्वारा उनके लिए बनाई गई आरक्षण सुविधा भी ईमानदारी से लागू नहीं की जा रही ? यह सब कुछ हमें बेहतर व्यवसायिक शिक्षा से दूर रखने के इरादे से ही किया जा रहा है ताकि हमारे समाज के लोग ज्यादा प्रगति ना कर सकें ।

आज़ादी के इतने 75 वर्षों बाद भी बहुजन समाज के लोगों के साथ अत्याचार और शोषण के मामले कम होने का नाम नहीं ले रहे – जैसे कि अभी भी देश के विभिन्न हिस्सों से शादी के वक़्त जो दलित दूल्हे घोड़ी पर बैठकर जाते हैं, तो ऐसा करने से उन्हें रोका जाता है, मूछें रखने पर भी हत्या तक कर दी जाती है । दलित परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु हो जाने पर गांव की साँझी शमशान भूमि पर भी उसका अंतिम संस्कार नहीं होने दिया जाता ।  राजस्थान में तो अगर ब्राह्मण परिवार के घरों के सामने से जाना हो और आप साइकिल से भी जा रहे हैं तो आपको उनके घरों के सामने से साइकिल से उतर कर पैदल ही जाना पड़ेगा , जैसे कि बहुजन परिवारों के आदमी उनके लिये इन्सान ही नहीं हैं ? ऐसी और भी बहुत सी छोटी २ बातों के लिए उनपर अभी भी अनेक प्रकार की पाबंदियाँ लगाई हुई हैं और उनका पालन ना करने पर दलितों पर हिंसा हो जाती है । ताजा मामला राजस्थान के पाली जिले के दलित जितेन्द्र मेघवाल की हत्या का है जिसमें 16 मार्च को जितेन्द्र की हत्या केवल मूंछें रखने पर हुई है । शर्म की बात है, प्रगति, और वैज्ञानिक विकास की जब बात आती है तो भारत की तुलना कैनेडा, अमरीका, इंग्लैंड, चीन,  ऑस्ट्रेलिया, जापान, फ्रांस या फिर जर्मनी से करते हैं , लेकिन अगड़ी जातियों वालों की अपनी सोच और मानसिकता अभी भी 18वीं सदी वाली बनी हुई है । इससे भी ज्यादा दुःख और परेशान करने वाली बात यह है कि जब किसी दलित के ऊपर ऐसी नाइंसाफी / अत्यचार / शोषण होते हैं और वह उसकी रिपोर्ट करवाने पुलिस में जाता हैं तो वहां भी उनकी कोई सुनवाई नहीं होती । अदालतों का भी यही हाल है, क्योंकि 80-85 % बड़े अफ़सर तो अगड़ी जाति वालों के ही हैं ।

बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर जी ने अपने पूरे जीवन के संघर्ष में  ऐसी अनेक सामाजिक, सांस्कृतिक  और आर्थिक बुराईयों / कुरीतियों को मिटाने  के लिये किये, लेकिन इस परिवर्तन की दौड़ में  भारत अभी भी बहुत पीछे है । बदलाव लाने के लिए लगभग हर प्रान्त में राजनैतिक इच्छाशक्ति की भी बड़ी कमी देखी जाती है, मीडिया भी अभी तक इतना संवेदनशील / विवेकशील नहीं हुआ है कि वह राष्ट्रीय स्तर पर सोच समझकर सही २ और न्यासंगत रिपोर्टिंग कर सके और सामाजिक बदलाव लाने में अपनी बनती भूमिका निभाए, क्योंकि सभी बड़े २ अख़बार और टीवी चैनलों पर अगड़ी जातियों वालों का ही कब्ज़ा है ? जैसे ऊबड़ खाबड़ जमीन पर अच्छी  फ़सल  की पैदावार हासिल नहीं की जा सकती, उसी प्रकार समाज में  ऊँची नीची जातियों की सामाजिक और आर्थिक असमानता के रहते देश  कैसे प्रगति और विकास कर सकता है ? ऐसी अनेक दलीलें देकर जातिपाति की दीवारें तोड़ने और समाजिक समानता , भाईचारा स्थापित करने की बहुजन समाज के अनेक महापुरुषों ने ( संत शिरोमणि गुरु रविदास जी से लेकर बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर तक हज़ारों संघर्ष किये, लेकिन मनुवादी / ब्राह्मणवादी / सामंतवादी / पूंजीवादी मानसिकता रखने वाले शासन प्रसाशन की बड़ी २ कुर्सियों पर बैठे लाखों बड़े २ अफ़सर इस परिवर्तन की लहर में हमेशा से ही रोड़े अटकाते आये हैं और उनकी ऐसी ही हरकतों की वजह से भारत अभी भी विकाशील देशों की श्रेणी में  बहुत पिछड़ा हुआ है ।  

इस  सबके बावजूद भी पिछले सात आठ दशकों में जो कुछ बदलाव आये हैं, उनके कारण बहुजन समाज ने जो भी प्रगति और विकास के मार्ग पर छलांगे लगाई हैं, उसके लिए समस्त बहुजन समाज सदैव बाबा साहेब डॉ.भीमराव अम्बेडकर जी का ऋणी रहेगा। सामाजिक न्याय के एक शीर्ष योद्धा, तेजस्वी क्रांन्तिकारी  शख्सियत परम पूज्य बोधिसत्व, भारत रत्न, बाबा साहेब डॉ. भीमरॉव अम्बेडकर जी  के चरणों में हमारा कोटि-कोटि प्रणाम । जय भीम ! जय भारत !! जय संविधान !!!

आर डी भारद्वाज “नूरपुरी “