एक साथ चुनाव पर देश में सहमति जरूरी: हरिवंश नारायण सिंह

नई दिल्ली (8 मार्च, 2019): राज्य सभा के उपसभापति श्री हरिवंश नारायण सिंह ने देश में लोक सभा और विधान सभाओं के चुनाव एक साथ कराने की चुनौती का समाधान निकालने पर बल देते हुए शुक्रवार को कहा कि भारत में निरंतर चुनाव के चलते समाज भारी तनाव में जी रहा है। उन्होंने कहा कि एक साथ चुनाव का मुद्दा निश्चित रूप से चुनौतीपूर्ण विषय है लेकिन राजनीतिक व्यवस्था को इसका समाधान निकलना ही चाहिए और इसमें मीडिया की एक सार्थक भूमिका है. पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रसिद्धि प्राप्त करने के बाद राजनीति में आए श्री सिंह ने कहा कि मीडिया को वैचारिक, राजनीतिक, बुनियादी एवं आर्थिक चुनौतियों के साथ—साथ प्रशासन में पारदर्शिता और कानूनों के अनुपालन और प्रवर्तन में खामियों के मुददे पर बहस उठानी चाहिए। इस कार्य में सामाजिक एवं पत्रकार संगठन भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

श्री हरिवंश नारायण सिंह राजधानी में ‘’चुनाव और मीडिया’’ विषय पर एक परिचर्चा में मुख्य अतिथि के रूप में अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। परिचर्चा का आयोजन नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट (इंडिया) से संबद्ध दिल्ली पत्रकार संघ (डीजीए) और मतदाता जागरूकता के लिए समर्पित सामाजिक संगठन ‘भारतीय मतदाता संगठन’ ने मिलकर किया। चर्चा में भारतीय जन संचार संस्थान के महानिदेशक के.जी. सुरेश, भारतीय मतदाता संगठन के अध्यक्ष डा रिखब चंद जैन, नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्टस (इंडिया) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक मलिक एवं उपाध्यक्ष मनोज मिश्र सहित एक दर्जन से अधिक पत्रकारों ने अपने विचार प्रस्तुत किये।

साथ ही वक्ताओं ने ‘पेड़ न्यूज’ की समस्या, चुनाव में धनबल और बाहुबल के प्रयोग, राजनीति के अपराधीकरण और मीडिया पर बाजार के प्रभाव तथा श्रमजीवी पत्रकारों की कमजोर होती स्थिति पर भी अपने विचार रखे।

राज्यसभा के उपाध्यक्ष ने कहा, ”मैं छात्र जीवन से चुनाव सुधारों की चर्चा सुन रहा हूं। ‘राइट टु रिकॉल’ (निर्वाचित जनप्रतिनिधि को वापस बुलाने का अधिकार) की चचाएं पांच दशक से भी अधिक समय से चल रही हैं। परन्तु पिछले तीस—चालीस साल में कुछ मुददों पर स्थिति बद से बदतर हुई है।“ लोक सभा और विधान सभाओं के चुनाव एक साथ कराने के मुददे को स्पर्श करते हुए उन्होंने कहा कि लगातार पांच वर्ष तक चुनाव पर चुनाव से जातीय, धार्मिक, क्षेत्रीय और भाषायी आधार पर सामाजिक तनाव चरम पर है। कम से कम हमें इस बात पर विचार करना चाहिए कि पांचों साल तक इस तरह का तनाव न रहे। उन्होंने कहा कि एक साथ चुनाव के मामले में अडचनें जरूर हैं परन्तु राजनीतिक दलों की जिम्मदारी है कि इसका समाधान निकाला जाए। उन्होंने मुम्बई और चेन्नई जैसे महानगरों में मतदाताओं द्वारा पैसा मांगे जाने की रपटों का हवाला देते हुए कहा कि यह चिंता की बात है. इसलिए समाज की मानसिकता में बदलाव हेतु मीडिया को प्रभावी भूमिका निभानी चाहिए। उन्होंने चुनाव पर धन के प्रभाव की समस्या की मुख्य वजह राजनीति दलों की विचारधारा के प्रति प्रतिबद्धता में गिरावट को जिम्मेदार बताते हुए कहा कि पहले राजनीति दलों के कार्यकर्ता विचारधारा और सामाजिक नैतिकता से बंधे रहते थे। उसे आज समाज ने न जाने कहां खो दिया है।

भारतीय जन संचार संस्थान के महानिदेशक के.जी. सुरेश ने कहा कि मीडिया में चुनाव पर चर्चा तो खूब चर्चा होती है, परन्तु मीडिया हाउस मतदाताओं को शिक्षित करने और जनमानस को सम्यक दिशा देने की भूमिका से कट गये हैं। उन्होंने कहा कि मीडिया की भूमिका समाज का नेतृत्व करना है न कि उसका पिछलग्गू बनना है। उन्होंने मीडिया संस्थानों में पत्रकारों की स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि देश और समाज मीडिया से अपेक्षा करता है तो उसे भी पत्रकारों की स्थिति पर गौर करना चाहिए।