भारत में हिंदी पत्रकारिता का उदय और विकास

पत्रकारिता समाज को सत्य से अवगत कराने का एक महत्वपूर्ण माध्यम माना जाता है। इसीलिए पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना गया ,जो जनता की आवाज को उठाता है और सरकार को जवाबदेह बनाता है। इसके अलावा पत्रकारिता सांस्कृतिक और सामाजिक विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

आज हम 30 मई को हिंदी पत्रकारिता दिवस की बात कर रहे हैं तो थोड़ा उससे पहले चर्चा करते हैं कि भारत के पहले समाचार पत्र का प्रकाशन कब हुआ था ? आप लोगों ने नाम सुना होगा जेम्स ऑगस्ट हिक्की का।

29 जनवरी 1780 को इनके द्वारा भारत का पहला मुद्रित समाचार पत्र हिक्की बंगाल गजट अंग्रेजी में प्रकाशित किया गया था। इन्हें भारत में पत्रकारिता का  पितामह माना जाता है।

यह समाचार पत्र लोगों के अधिकारों की वकालत कर सामाजिक परिवर्तन का सशक्त माध्यम बना। लेकिन तत्कालीन गवर्नर जनरल वाॅरेन हेस्टिंग्स को यह नागवार गुजरा और 1782 में इस समाचार पत्र को बंद कर दिया गया।   बावजूद इसके यह अखबार भारतीय पत्रकारिता की नींव रखने में अपनी ऐतिहासिक भूमिका निभा चुका था। 

 पहला प्रेस अधिनियम गवर्नर जनरल वेलेजली के शासनकाल में 1799 में  सामने आ गया था,इसका दुष्प्रभाव पत्रकारिता जगत पर हुआ। बावजूद इसके 30 मई 1826 को पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने कोलकाता से हिन्दी साप्ताहिक समाचार पत्र उदंत मार्तंड को प्रकाशित करना शुरू किया। 

हालांकि आर्थिक अभावों के कारण  यह ज्यादा दिन तक नहीं चल सका। हिंदी का प्रथम पत्र होने के कारण 30 मई हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है। 

उदन्त मार्तंड के बाद “बनारस अखबार” ,”बंगदूत” “सुधाकर” और “प्रजा हितैषी” जैसे कई हिंदी अखबार प्रकाशित होने लगे।  पत्रकारिता जगत में कोलकाता जो आज कोलकाता है इसका बहुत बड़ा योगदान रहा है यहीं से 10 मई 1829 को राजा राममोहन राय ने बंगदूत समाचार पत्र निकाला जो बांग्ला फारसी अंग्रेजी और हिंदी में प्रकाशित हुआ।  

पहला मराठी अखबार 1840 में बाल शास्त्री जांभेकर द्वारा शुरू किया गया वहीं 1857 में पयाम ए आजादी  पहला उर्दू और हिंदी अखबार था और यह भारतीय आजादी पर आवाज उठाने वाला पहला उर्दू अखबार था।

भारतेंदु हरिश्चंद्र को हिंदी साहित्य का पितामह कहा जाता है।हिन्दी साहित्य में आधुनिक काल का प्रारम्भ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से माना जाता है। भारतीय नवजागरण के अग्रदूत के रूप में प्रसिद्ध भारतेन्दु जी ने देश की गरीबी, पराधीनता, शासकों के अमानवीय शोषण का चित्रण को ही अपने साहित्य का लक्ष्य बनाया। 

साल 1900 में प्रकाशित सरस्वती अपने समय की युगांतरकारी पत्रिका रही। भारत के स्वाधीनता संघर्ष में पत्र पत्रिकाओं की अहम भूमिका रही। महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक , नेताजी सुभाष चन्द्र बोस,सरदार पटेल,पंडित मदन मोहन मालवीय , जवाहरलाल नेहरू और , गणेश शंकर विद्यार्थी, माखनलाल चतुर्वेदी, बाबूराव विष्णु पराड़कर और बाबा साहब अंबेडकर आदि सीधे तौर पर पत्र पत्रिकाओं से जुड़े हुए थे और नियमित लिख रहे थे और इसका असर भी सुदूर गांव में रहने वाले देशवासियों पर भी पड़ रहा था। 

20वीं सदी के दूसरे तीसरे दशक में सत्याग्रह असहयोग आंदोलन सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रचार प्रसार और उन आंदोलनों की कामयाबी में समाचार पत्रों की अहम भूमिका रही।

1927 में इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी ने पहला रेडियो समाचार  प्रसारित किया वहीं 1965 में दूरदर्शन पर पहला समाचार बुलेटिन शुरू हुआ। हिंदी पत्रकारिता ने समाज में महत्वपूर्ण बदलाव लाने में मदद की है और आज भी यह महत्वपूर्ण माध्यम है। आज हिंदी पत्रकारिता विभिन्न माध्यमों से जैसे की समाचार पत्र पत्रिकाएं रेडियो टेलीविजन और सोशल मीडिया के माध्यम से समाचार और सूचनाओं प्रदान करती हैं।