अभी थोड़े ही दिन पहले (4 जून को) कबीर आश्रम जन कल्याण परिषद, पालम कालोनी व पैगाम मैगजीन ने मिलकर संत कबीर साहेब का 625वां जन्मोत्सव मनाया और यह फंक्शन द्वारका के नज़दीक, डॉ. अम्बेडकर भवन, पालम कालोनी में मनाया गया ! इस फंक्शन में मुझे भी शामिल होने का सुअवसर मिला ! हमारे वहाँ पहुँचने से पहले से ही संत कबीर जी की लिखी हुई बाणी का गायन पाठ चल रहा था ! लगभग डेढ़ घंटा यह गायन पाठ के बाद कुछ महापुरुषों को भी कबीर साहेब के बारे में बोलने के लिए आमंत्रित किया गया जिन्होंने उनके जीवन से सम्बंधित कुछ झलकियां / किस्से कहानियां अपने शब्दों में पिरोकर पेश की ! कुछ एक वक्ताओं को सुनकर तो अच्छा लगा, लेकिन फ़िर कुछ ऐसी बातें भी सुनने को मिली जिनको सुनकर बड़ा अजीब सा अचंबा हुआ !
इन सजनों ने अपने वक्तव्यों में फ़रमाया कि संत कबीर जी का न तो जन्म हुआ था और न ही उनकी मृत्यु हुई है ! वह तो अब भी वायुमंडल में विचरण कर रहे हैं ! एक नहीं चार लोगों ने ऐसी बातें बोलीं कि कबीर साहेब का तो जन्म ही नहीं हुआ था, कितने विश्वास के साथ वह लोग यह अविश्नीय बातें बोल देते हैं और ऐसा बोलने वालों पर थोड़ा क्रोध भी रहा था, और मैं सोच रहा था कि जो लोग ऐसी बातें कर रहे हैं – क्या वह कबीर साहिब के बारे में सचमुच अच्छी तरह अध्ययन करके भी आये भी हैं या नहीं ? अगर कबीर साहेब का जन्म ही नहीं हुआ था तो वह इस धरती पे उत्तरे कैसे ? केवल कबीर साहेब के बारे में ही नहीं, लगता है कि ऐसे वक्ताओं ने सतगुरु रविदास जी महाराज के बारे में भी अच्छी तरह ज्ञान हासिल नहीं किया है, क्योंकि वह तो ऐसी ही बातें कर रहे थे जैसी बातें हमें हज़ारों वर्षों से मनुवादी विचारधारा रखने वालों से सुनने को मिलती हैं, लेकिन समय २ पर हमारे अनेकों बुजुर्ग विद्वानों और समाज सुधारकों ने ऐसी धारणाओं को हमेशा ग़लत और मिथ्यक ही ठहराया है !
सतगुरु रविदास महाराज जी ने भी अपने समय में न तो कभी अवतारवाद को माना और न ही मनुवादियों द्वारा चलाये गए अनेक प्रकार के कर्मकाण्डों / अंधविश्वास और पाखंडवाद को अपने जीवन का हिस्सा नहीं बनने दिया, बल्कि उन्होंने तो ऐसी विचारधारा का हमेशा पुरजोर विरोध किया था ! हज़ारों वर्षों से फ़ैलाए गए एक अन्धविश्वास के माध्यम से ब्राह्मण लोग अपने आप को हमेशा ही श्रेष्ठ बताते रहे हैं और अपनी बात को सिद्ध करने के लिए वह एक बड़ा ही तर्कविहीन और अवैज्ञानिक तर्क / कहानी पेश करते हुए कहते हैं कि – जब ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की तो ब्राह्मण उनके मुख या मस्तिष्क से पैदा हुए , क्षत्रिय उसके भुजाओं से जन्मे , वैश्य का जन्म उसके पेट से हुआ और अंत में, शूद्रों का जन्म ब्रह्मा के पैरों से हुआ, इसलिए ब्राह्मण सबसे श्रेष्ठ हैं और शूद्र सबसे नीच ! लेकिन सतगुरु रविदास महाराज ने मानव जन्म की इस थ्यूरी को ही सिरे से ख़ारिज कर दिया और कहा कि यह केवल अनपढ़ / जड़बुद्धि और विवेकहीन लोगों को मूर्ख बनाने वाली बात है ! पूरे संसार की उत्पत्ति के बारे में वह एक दोहे में लिखते हैं :-
रविदास एक ही बूँद सौ , सब भयो बिस्तार !
मूरिख हैं जो करत हैं वर्ण आवरण विचार ”
अर्थात – गुरु रविदास जी इस दोहे के माध्यम से हमें समझाने की कोशिश की है कि पूरी मानव जाति का जन्म एक ही साधन / प्रक्रिया से होता है और वह है स्त्री और पुरुष के मिलन के बाद, और जन्म की इस प्रक्रिया में आदमी की एक बूँद (उसका वीर्य ) ही सहायक होती है और पूरा जीव विज्ञान एक ही विधि से चलता है, नर और मादा के मिलन के बाद ही संतान की उत्पत्ति होती है, विज्ञानं भी इसको ही सही मानता है, कुदरत ने सभी पशु पक्षियों के लिए यही एक साधन बनाया है, इसके बिना कोई बच्चा पैदा नहीं हो सकता ! वेद ग्रंथों में जैसे लिखा हुआ है कि ब्रह्मा के मुख से, पेट से, भुजाओं से, और पैरों से इत्यादि — यह सब बातें कोरा झूठ / काल्पनिक हैं और भ्रम फ़ैलाने वाली कहानी ही है, इस में कोई सच्चाई नहीं है ! ऐसी मनगढंत किस्से कहानियाँ ब्राह्मणों ने केवल अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने और दलितों को शिक्षा के अनमोल अधिकार से वंचित रखने के इरादे से ही घड़ी थी ! ऐसी बातों पर विश्वास करने वाले भी मूर्ख लोग ही हैं ! बच्चा केवल आदमी और औरत के मिलन से ही पैदा होता है और यह बात सार्वभौमिक सत्य है, बाकी सब मिथ्या / साहित्यिक रचना मात्र ही है, काल्पनिक ही है !
यहाँ यह बताना भी अनिवार्य है कि कुछ धर्म ग्रंथों में ऐसे अनेक किस्से कहानियाँ पढ़ने / सुनने को मिलते हैं कि जब किसी रानी के घर संतान नहीं हुई तो राजा ने किसी ऋषि मुनि को बुलवाकर यज्ञ करवाया और उस यज्ञ के बाद ऋषि ने रानी को खीर / आम का फ़ल या फ़िर कोई और वस्तु खाने को दी, और उसके खाने के बाद उनके घर में संतान ने जन्म लिया ! यहीं बस नहीं, कुछ धार्मिक पुस्तकों में तो यह भी लिखा गया है कि फ़लाने योद्धा का जन्म एक मछली के पेट से हुआ, वगेराह २ ! ऐसी तमाम बातें कोरी कल्पना मात्र तो हो सकती हैं, लेकिन हकीकत से इसका कोई सरोकार नहीं है, क्योंकि बच्चे ऐसे पैदा नहीं होते ! अत: जो लोग कबीर जी के जन्म के बारे में बेतुकी बातें बोलते हैं, वह सब झूठ है और यह वैज्ञानिक सोच विचार की कसौटी पर भी बिलकुल खरी नहीं उतरती !
कबीर साहेब का जन्म 1398 में काशी में हुआ था और नीमा और नीरू उनके माता पिता थे ! हाँ यह बात भी सही है की उनके पालनहार माता पिता उनके जन्मदाता नहीं थे ! उनके जन्म के बारे में अध्ययन करने से यह भी पता चलता है कि उनके पालनहार माता पिता की अपनी कोई संतान नहीं थी ! एक दिन जब उनके पिता जी सुबह उठे तो उनके घर के दरवाजे पर एक कपडे में लपेटा हुआ एक नवजात शिशु मिला ! क्योंकि उनके माता पिता की अपनी कोई संतान नहीं थी, तो उन्होंने उस बच्चे को उठाया और अपने घर ले आये, लेकिन उन्होंने गाँव के प्रधान को इसकी सूचना दे दी ! क्योंकि बहुत दिन बाद में भी उस बच्चे का कोई दावेदार नहीं आया, तो नीमा और नीरू ने उस बच्चे को अपना ही मानकर उसे पाल-पोसकर बड़ा किया !
बड़े होने पर उन्होने अपने पिता का ही कपड़ा बुनने का जुलाहे का काम सीखा और वही करते रहे ! समय आने पर कबीर जी का शादी बनखेड़ी की पुत्री लोई से कर दी गई और उनके घर दो बच्चों ने जन्म लिया जिनका नाम उन्होंने कमाल और कमाली रखा ! कबीर साहेब भी गुरु रविदास जी की ही तरह जातिपाति, धर्म मज़हब , मूर्ति पूजा, पाखंडवाद और कर्मकाण्डों इत्यादि के सख़्त विरोधी थे ! वह तो मन्दिर मस्जिद में भी विश्वास नहीं रखते थे, क्योंकि उनका मानना था कि ईश्वर तो सर्वव्यापी है , उनको इन्सान मन्दिर मस्जिद की चारदीवारी में कैद करके नहीं रख सकते ! वे एक महान संत, कवि, दार्शनिक, विचारक और उतने ही बड़े समाज सुधारक भी थे ! वे तो एक ही परमात्मा को मानने वाले थे जोकि पूरी दुनियां के निर्माता है !
जैसे कि ऊपर बताया गया है कि पालम में उनके जन्मोत्सव के दौरान कुछ वक्ताओं ने यह भी बोला कि कबीर जी की मृत्यु भी नहीं हुई थी ! यह बात भी तथ्य से परे है, जो लोग ऐसा प्रचार कर रहे हैं, दरअसल वह मनुवादी विचारधारा से प्रभावित नज़र आ रहे हैं और वह भी वैसे ही सोचते है, जैसे कि हमें इतिहास में वर्णित कुछ हिन्दू लोगों से सुनने को मिलता है – मिसाल के तौर पे – कट्टड़ हिन्दू धर्म को मानने वाले अक्सर कहते और बोलते सुने होंगे की हनुमान जी और गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा की भी मृत्यु नहीं हुई है और यह दोनों अभी भी वायुमंडल में विचरण कर रहे हैं ! लेकिन यह बात भी तर्क और विज्ञान को कसौटी पे खरी नहीं उत्तरती ! सभी महान गुरुओं पीरों ने समय २ पर यही समझाया है कि जिस भी जीव का जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु होना भी निश्चित है ! महात्मा गौतम बुद्ध, महावीर से लेकर गुरु रविदास जी, गुरु नानक देव जी, गुरु गोबिंद सिंह जी, महात्मा ज्योतिबा फूले, माता सावित्रीबाई फूले, रामजी सकपाल, माता रमाबाई और बाबा साहेब डॉ. बीआर अम्बेडकर इत्यादि सभी को एक न एक दिन इस नश्वर शरीर को त्यागकर मृत्यु लोक जाना पड़ा है ! इसी तरह ही कबीर जी भी मृत्यु होने पर परलोक सिधारे थे ! वृद्धावस्था में पहुंचकर वह काशी से निकलकर मगहर (उत्तर प्रदेश में ही ) चले गए थे और वहीं पे उन्होंने 120 वर्ष की लंबी उम्र भोगने के बाद 1518 में अपने प्राण त्याग दिए !
हमें यह भी हमेशा याद रखना चाहिए कि समय २ पर बहुजन समाज के सैकडों महान विद्वानों और समाज सुधारकों ने मनुवादी मानसिकता पर चलने वाले बहुजन समाज के करोड़ों लोगों को ब्राह्मणों द्वारा फ़ैलाये गए पाखंडवाद / झूठ फ़रेब से आज़ाद करवाने के लिए उनके हज़ारों पोल खोले और सच्चाई से आम जनता जनार्दन को वाकिफ़ करवाया और उनके चुंगल से आज़ाद करवाया, ताकि हम अपनी आज़ाद सोच विचार को विकसित कर सकें ! लेकिन अगर उन सैकडों समाज सुधारकों द्वारा लाये गए तमाम परिवर्तनों के बावजूद भी आपने वही खड्डे में ही गिरना है, तो फ़िर बेचारे समाज सुधारक क्या कर सकते हैं ? तीसरी बात – अपने समय में कबीर साहेब ने, और उनके समकालीन सतगुर रविदास जी ने, उनके बाद गुरु नानक देव जी ने, महात्मा ज्योतिबा फूले और अभी आठ नौ दशक पहले बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर जी ने भी मूर्ति पूजा करने से मना किया था, लेकिन मैंने देखा की 4 जून को कबीर जी के जन्मोत्सव समारोह के बाद उनकी फोटो के सामने भी दिये जलाकर मूर्ति पूजा की गई ? यही गलती पिछले वर्ष बाबा साहेब के जन्मदिन समारोह के उपलक्ष में आंबेडकर भवन, द्वारका सेक्टर 7 में भी देखने को मिली थी ? ऐसा लगता है कि बहुजन समाज वाले अभी भी सुधरे नहीं हैं और ना ही समय के साथ कुछ सीख पाए हैं ! हमारे समाज के महापुरषों की जयंती मनाते समय उनकी फोटो के सामने हाथ जोड़कर खड़े हो जायो और अपना शीश झुकाकर श्रद्धा से नमस्कार कर दो, वही काफ़ी है, धूप / अगरबत्ती वगेराह जलाकर मूर्ति पूजा मत करो, बस उन महान समाज सुधारकों की शिक्षाओं पर चलो !
वैसे तो कबीर साहेब ने समाज को शिक्षा देने / सुधारात्मिक दिशा देने के लिए और पाखंडवाद / आडंबरों पे प्रहार करने वाले हज़ारों बेशकीमती दोहे लिखे हैं, जोकि आज भी उतने ही प्रसंगिक / उपयुक्त हैं, उन दोहों में से चंद एक मशहूर दोहे इस प्रकार हैं : –
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।”,
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पण्डित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पण्डित होय !
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा ना मिलिया कोये ,
जो मन खोजा अपना, मुझ से बुरा ना कोये !
माटी कहे कुम्हार से तूं क्या रोंदे मोहे ,
इक दिन ऐसा आएगा मैं रौंदूंगी तोहे !!
गुरु गोबिंद दोनों खड़े काके लागूं पाये ,
बलिहारी गुरु आपने जो गोबिंद दिए मिलाये !
चलती चक्की देख के दिया कबीरा रोये ,
दो पाटन के बीच में साबुत बचा ना कोये !!
जाति ना पूछो साध की, पूछ लीजियो ज्ञान ,
मोल करो तलवार का पड़ी रेहन दियो म्यान !!
पाथर पूजे हरि मिले तो मैं पूजूँ पहार,
याते ये चाकी भली पीस खाये संसार !
माटी का नाग बनायके पूजे लोग लुगाया ,
जिन्दा नाग जब घर में निकले, लाठी ले धमकाया !!
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आये फ़ल होये !
माला फेरत जुग गया, गया न मन का फेर ।
कर का मन का डारि दे, मन का मनका फेर॥
नथनी दीनी यार ने तो चिन्तन बारम्बार ,
नाक दीनी करतार ने, उनको दिया बिसार !!
द्वारा : आर डी भारद्वाज “नूरपुरी “