पेड़ की शरण में, एक रात !

पाँच दिन पहले पूरे देश ने एक बहुत बड़े विद्वान, समाज सुधारक, आरबीआई के संस्थापक, अर्थ शास्त्री, मज़दूरों और महिलाओं की जिन्दगियों को नए आयाम पर पहुँचाने वाले, उच्चकोटी के राजनीतिक विश्र्लेषक, समाज में  हज़ारों वर्षों से दबे कुचले, वंचित व शोषित वर्ग की ज़िन्दगी में अभूतपूर्व परिवर्तन लाकर उनके छीने हुए अधिकार दिलवाने वाले, संविधान निर्माता व भारत रत्न बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी का 129वां जन्म दिवस मनाया और सबने अपने – २ तरीके से मौजूदा  प्रस्थितियों की वजह (कोरोना संक्रमण) से उनको श्रद्धांजलि दी ! इस शुभ अवसर पर मुझे उनके बचपन की एक घटना याद गई , जो मैंने ग्यारा बारह वर्ष पहले पढ़ी थी ; सोचा कि चलो उनके करोड़ों चाहने वालों और अनुयाईओं के साथ यह किस्सा साँझा करते हैं , जो उनको अपना आदर्श मानते हैं ! यह घटना तब की है जब बाबा साहेब अभी बच्चे ही थे , चौथी या पाँचवी कक्षा में पढ़ते थे ! बच्चे थे तो कभी २ हठ भी करते थे , वैसे भी हठ करना बच्चों के स्वाभाव में होता है ! उस दिन कोई त्यौहार था , शायद दुसहरे का, और उनके गाँव के ज़्यादातर लोग शहर में  मेला देखने जा रहे थे, तो भीम राव और उनके दो भाईयों (बाला राव और आनंद राव) ने भी जिद्द पकड़ ली कि हमने भी मेला देखने जाना है , हम भी वहाँ जाकर खूब मस्ती करेंगे और खाएंगे, पीएंगे और शाम को घर आ जाएंगे ! उन्होंने अपनी यह इच्छा माता पिता के सामने रख दी , माँ ने बहुत  समझाया कि हम लोग आज शाम को घर में  कोई स्पेशल पकवान बना लेंगे , इतनी दूर मेला देखने जाने की कोई आवश्यकता नहीं है ! माता पिता के बच्चों को इतनी दूर शहर में मेला देखने जाने से मना करने का एक और भी कारण था कि – घर में  इतने पैसे नहीं थे कि  बच्चों को मेले देखने भी जाने दें और फ़िर शाम को घर में कोई ख़ास पकवान भी बना सकें ! वैसे तो भीम राव अक्सर अपने माता पिता की बात मान जाया करते थे , लेकिन उस दिन बाला और आनंद के साथ मिलकर उनका भी मन कुछ चंचल सा हो रहा था और उन्होंने भी मेले में जाने की ज़िद्द ठान ली ! तीनों  भाईओं ने सोचा था कि  इस मेले में  वह अपने माता पिता की रोकटोक के बिना ख़ूब घूमेंगे , मस्ती करेंगे ! आख़िरकार , माँ बाप को उनकी ज़िद्द / हठ के सामने झुकना ही पड़ गया और उनको थोड़े – २ पैसे देकर मेले में जाने की इजाजत दे दी , इस शर्त के साथ कि वहाँ ज़्यादा देर नहीं घूमते रहेंगे , शाम को सूर्यास्त होने से पहले – २ घर वापिस आ जाओगे !  

घर से जाने के वक़्त तो उन्होंने झट से वादा कर दिया कि  हम सूरज छुपने से पहले घर वापिस आ जाएंगे , लेकिन वहाँ पहुँचकर  तो तीनों भाई मेले की रौनक में अपनी सुद्ध बुद्ध ही खो बैठे, किसी को भी यह एहसास ही नहीं रहा कि  जल्दी घर भी वापिस जाना है ! जितने पैसे मिले थे , वोह सब अपने मन माफ़िक़ खाने पीने में  ख़र्च  कर दिए , ऊपर से वापिस घर जाने का किसी को कोई ध्यान ही नहीं रहा ! पूरे मेले में  वह कभी कहीं जाते और कभी कहीं , ऐसे ही घूमते – २ उनको बहुत देर हो गई , जब रात होने लगी तो बड़े भाई बाला को ध्यान आया कि  उनके माता पिता ने खास तौर पे ताक़ीद  की थी की सूर्यास्त से पहले – २ घर वापिस आना है ! अब उनको घर जाने की याद सताने लगी , वह तेजी से मेले से बाहर निकले और अपने गाँव जाने वाली सड़क पर आ गए ! सूर्य तो कब का अस्त हो चुका  था , अब तो अँधेरा छा चुका था , यह तीनों बच्चे और साथ में उनके घर का बड़ा बंदा कोई नहीं ! ख़ैर, तीनो एक दूसरे का हाथ पकड़कर चलते जा रहे थे ! उन दिनों सड़क पर रौशनी भी नहीं होती थी , जैसे कि आजकल नागरिकों की सुरक्षा के लिए स्ट्रीट लाइट्स की सुविधा रहती हैं ! उनका गाँव  मेले वाले शहर से सात आठ किलोमीटर की दूरी पर था ! चलते – २ अभी वह शहर से बाहर आये ही थे कि सड़क पर चलने वालों की चहल पहल भी समाप्त होने लग गई और इन तीनों  भाईयों को थोड़ा – २ डर लगने लगा ! इतने में उन्होंने देखा कि एक किसान बैलगाड़ी से वापिस जा रहा है और उसकी बैलगाड़ी पर पहले से ही चार पाँच लोग बैठे हुए थे ! उनको देखकर भीम राव ने अपने भाईयों को सुझाव दिया – क्यों न हम भी उस बैलगाड़ी वाले किसान काका से बैलगाड़ी में बैठने की बात करें , अगर वह अच्छा इन्सान हुआ, तो हो सकता हैं कि  वह हमें इसकी इजाजत दे दे ! 

बस यही सोचकर बड़े भाई ने बैलगाड़ी वाले किसान से अपनी परेशानी बताई और बैलगाड़ी में बैठने के लिए बिनती की ! किसान ने उनके गाँव का नाम पूछा और उनको बैठने के लिए इजाजत दे दी ! तीनों भाई बड़े खुश हो गए कि चलो अब हमारे डरने की कोई जरुरत नहीं है , अब तो हमारे साथ चार पाँच बड़े बन्दे भी हैं जिन्होंने उधर ही जाना है ! लेकिन उनकी ख़ुशी ज़्यादा  देर नहीं ठहरी ! अभी आधा किलोमीटर ही गाड़ी गई होगी कि गाड़ी पर बैठे एक बन्दे ने किसान से सवाल किया , “आपने इन लड़कों  को गाड़ी पर बिठा तो लिया , लेकिन इनकी जाति तो पूछी ही नहीं ?”  यह बात सुनते ही किसान का भी माथा ठनका , क्योंकि उन दिनों जातिपाति और अस्पृश्यता बड़े जोरों  पर थी , अगड़ी जाति  के लोग दलितों के संग बड़ी नफ़रत  की भावना से पेश आया करते थे , इनको अपशब्द बोलना और गाली गलौच की भाषा में बात करना तो उन दिनों बड़ी मामूली सी बात होती थी ! सवाल सुनकर इन तीनो भाईयों को खामोश देखकर , किसान ने अपनी गाड़ी रोक दी और फ़िर जोर से चिल्लाकर बोला , “तुम्हें सुनाई नहीं देता क्या , बताओ , तुम्हारी जाति कौनसी है ?” सुनकर बड़े दोनों भाई तो फ़िर भी ख़ामोश  रहे , लेकिन भीम राव, जोकि न कभी झूठ बोलते थे और न ही किसी को गुमराह करके किसी किस्म का कोई फ़ायदा  उठाने में  विश्वास रखते थे, सो उसने सच बोलकर बता दिया , “हम महार जाति के हैं !” सुनकर किसान ने उत्तर दिया , “महार ! मतलब शूद्र ! यह बात तुम लोगों ने बैलगाड़ी में  बैठने से पहले क्यों नहीं बताई ?” इतना कहते ही उस किसान ने उनको गालियाँ  देनी शुरू कर दी और तीनो के एक – २ बैलों को हाँकने  वाला डंडा भी मारा ! और फ़िर चिल्लाकर बोला , “चलो , उत्तरो नीचे ! तुम लोगों ने मेरी बैलगाड़ी अपवित्र कर दी है , अब घर जाकर मुझे इसको दूध लस्सी और गंगा जल से धोना पड़ेगा , और मंत्र पढ़ने की पण्डित जो दक्षिणा लेगा, सो अलग !  कमीने कहीं के , नीच !”  

किसान की गालियां खाकर और डांट  फ़टकार सुनकर तीनों भाई बड़े दुखी हिर्दय से गाड़ी से नीचे उत्तर गए और धीरे २ अपने गॉँव  की तरफ़ चलने लगे ! लेकिन अब तो रात और भी गहरी हो गई  थी , चारों ओर उनकी सहायता के लिए कोई नहीं था ! उनको यह भय भी लग रहा था कि  कहीं ऐसा ना  हो कि आस पास के खेतों में  से कोई ख़तरनाक जानवर निकलके आ ना जाये ? अब उनको फ़िर से एहसास और पछतावा हुआ कि माता पिता की बात ना मानकर उन्होंने कितनी बड़ी गलती की है ! डरते सहमे हुए तीनों  भाई थोड़ी देर तो ऐसे ही धीरे २ चलते रहे , लेकिन काली अँधेरी रात में  उनका साहस भी जवाब देने लगा ! मुश्किल से तीनो भाई अकेले एक किलोमीटर ही चले होंगे और फ़िर वह डरके सड़क के एक किनारे आकर रुक गए और इन्तज़ार करने लगे कि शायद कोई बड़ा आदमी नज़र आए  तो वह उसके  साथ अपने गाँव की तरफ़ चलने लग जाएंगे ! काफी देर वह सड़क के किनारे इसी तरह डरे – सहमे हुए खड़े रहे, लेकिन उनको उस तरफ़ जाने वाला कोई बड़ा अंकल / काका नज़र नहीं आया ! सभी लोग मेले देखने के बाद वक़्त पर अपने – २ घरों की ओर जा चुके थे और यह बच्चे अपनी ही मस्ती में  मेले की रौनक ही देखते रहे ! थोड़ी देर वही खड़े रहकर उन्होंने किसी का इन्तज़ार किया , जब कोई बड़ा साथी उनको नहीं मिला , तीनों भाईओं ने फ़ैसला किया कि हम सड़क से थोड़ा दूर एक पेड़ के नीचे बैठकर रात  बिताएंगे , क्योंकि ऐसे उनका अकेले जाना निहायत ही ख़तरनाक  होगा , सुबह होते ही दिन की रौशनी में अपने गाँव चले जाएंगे ! तो ऐसे एक पेड़ के नीचे बैठकर उन्होंने रात  बिताई और दूसरे दिन सूर्य निकलते ही पेड़ों पर बैठे पक्षियों के चहकने की आवाजें सुनाई देने लगी, तब उनकी नींद खुली ! चारों तरफ़ सूर्य की हलकी – २ लालिमा देखकर तीनों भाईयों के साँस में साँस आई और वह उठकर , फिर से नई ऊर्जा और हिम्मत जुटाकर, अपने गाँव की तरफ़ चल दिए ! उधर घर बैठे उनके माता पिता और भुआ (जोकि विधवा हो जाने के बाद उनके साथ ही रहती थी) भी पूरी रात बेचैन बैठे उनकी सलामती की दुआएँ करते रहे ! 

जब वह घर वापिस जा रहे थे तो भीम राव ने बड़े भाईओं से कहा , “इन ऊँची जाति के लोगों से तो यह पेड़ ही कितने अच्छे हैं , जिसने बिना किसी शर्त के, बिना कोई जातिपाति के सवाल पूछे हमें अपनी पनाह में ले लिया ! यह भी अगर ब्राह्मणवादी मानसिकता वाले होते तो हमें वहाँ  एक पल भी बैठने न देते , उल्टा हमें दुत्कार के , हमारा तिरस्कार करके वहाँ से भगा देते !   

आर.डी.भारद्वाज “नूरपुरी “