अगर हम इत्तेहास की परतें फरोलें तो हमें पता चलता हैं कि दुनियाँ के अनेक भागों में समय २ पर सैंकड़ों बड़े 2 परिवर्तन लाने वाली बड़ी 2 क्रांतियाँ हुई हैं , और इन क्रांतियों में हज़ारों लोगों का ख़ून भी बहाया गया, विपरीत परस्थितियों का और दमनकारी ताकतों के अत्याचार और अपने ऊपर हो रहे अनेकों प्रकार के रौंगटे खड़े करने वाले शोषण झेल रहे लोगों ने अपने ऊपर हो रहे शोषण / उत्पीड़न से छुटकारा पाने के लिए उनके समाज ने हज़ारों कुर्बानियां भी दी हैं, लेकिन भारत में एक ऐसी भी क्रांति हुई है जिसके लिए बहुत कम खून बहाना पड़ा हैं, लेकिन इसके बावजूद भी यह क्रांति बहुत हद तक सफ़ल रही ! यह बात और है कि इस क्रांति को एक बड़े पैमाने / राष्ट्रीय सत्तर पर परिवर्तन लाने के लिए बहुत शतक लगे थे, और जिस महान विद्वान की वजह से इस बड़ी क्रांति को अमली जामा पहनाया जा सका और जिसकी वजह से देश के हज़ारों वर्षों से शोषण, उत्पीड़न के इत्तेहास को बदला जा सका है , उस महान विद्वान, अर्थशास्त्री, युगपरिवर्तक मसीहा का नाम है – बाबा साहेब डॉ. भीम रॉव आंबेडकर ! और इस महान शख्सियत, बड़े क्रांतिकारी आंदोलन लाने वाले, युगप्रवर्तक नेता, सिंबल ऑफ नॉलेज, भारत रत्न बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी की 133वीं जयंती 14 अप्रैल, 2024 को संसद मार्ग पर बड़ी श्रद्धा से मनाई गई। केवल दिल्ली में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में इसे बड़े हर्षोल्लास के साथ इस त्यौहार को एक बड़े सत्तर के मेले के स्वरुप में मनाया गया । दिल्ली में यह कार्यक्रम पिछले अनेक वर्षों की तरह ही इस वर्ष भी संसद मार्ग पर आम जनता ने बड़ी धूम धाम से मनाया ।
इस बड़े सत्तर के मेले में देश की अनेक राष्ट्रीयकृत बैंकों में कार्यरत अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पिछड़ी जातियों के कर्मचारी संगठनों , इनकम टैक्स विभाग, लोक सभा और राज्य सभा सेक्रेटरियट्स, एमएमटीसी, ईआईएल में कार्यरत कर्मचारियों से संघठन, ऑल इंडिया रेडियो व दूरदर्शन के कर्मचारियों के अस्सोसिएशंज़, इंडियन रेलवेज और अनेकों समाजिक संगठनों ने संसद मार्ग पर अपने स्टॉल लगाए हुए थे । इसके इलावा बाबा साहेब की लिखी हुई पुस्तकों या फिर अन्य बहुजन / दलित समाज के अनेकों लेखकों द्वारा लिखी गई पुस्तकों के भी स्टाल वहां देखने को मिले ! एक स्टॉल पर तो महिलाओं और पुरुषों के लिए टी शर्ट्स बिक रही थी जिन पर बाबा साहेब की फोटो, महात्मा बुद्ध की फोटो, संत कबीर की फोटो, बाबा साहेब के साथ संसद भवन के फोटो या फिर बाबा साहेब के हाथ में देश के संविधान की एक पुस्तक पकड़ी हुई थी और लोग बड़ी ख़ुशी से यह ते शर्ट्स खरीद रहे थे, क्योंकि उनके दिल में बाबा साहेब के लिए बेहिसाब इज्जत / श्रद्धा / प्यार है ! दलित समाज के लोगों के मन मंदिर में बाबा सहेब का रुतबा / मुकाम किसी बड़े से बड़े देवी देवता से कम नहीं है ! तीन चार गरीब परिवार की महिलाएं तो बाबा साहेब की, महात्मा गौतम बुद्ध और संत कबीर की मिट्टी की मूर्तियां बनाकर लाई हुई थी और बाबा साहेब को चाहने वाले यह मूर्तियां भी बड़े चाव से खरीदकर घर लेजाते हुए देखे गए ! हो भी क्यों ना, आम आदमी की नज़र में भगवान तो वही होता है, जो उनकी आर्थिक व समाजिक दशा और दिशा सुधारने में जिसका बहुत बड़ा योगदान रहा हो और बाबा साहेब ने तो अपनी पूरी जिंदगी ही बहुजन समाज के उत्थान / कल्याण के लिए अर्पण कर दी थी ! केवल इतना ही नहीं , एक स्टाल पर तो बहुजन समाज के बहुत से लेखकों / कवियों द्वारा लिखे गए गीत गाए जा रहे थे और नौजवान लड़के लड़कियां उन गीतों पे नाचते २ थक नहीं रहे थे और बीच २ बाबा साहेब अमर रहे , जब तक सूरज चाँद रहेगा बाबा तेरा नाम रहेगा – के नारे भी खूब गूँज रहे थे और यह नज़ारा देखने का एक अलग ही आनंद था ! बहुजन परिवारों के करोड़ों लोग इस तथ्य को बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि उनकी यह सब खुशियाँ बाबा साहेब के दशकों के निरंतर संघर्ष का ही कमाल है !
मजेदार बात यह है कि जब भी कोई राजनीतिक पार्टी अपनी रैलियाँ करती हैं तो वह अपने खर्चे पर ट्रक / बसें भर २ के जनता को रैली स्थान पर लेकर आते हैं और उनको चार पांच सौ रूपये और खाना भी देते हैं ताकि समाचार चैनलों पर दिखा सकें कि आम जनता उनका कितना समर्थन करती है ! लेकिन बाबा साहेब की जयंती के अवसर पर कोई किसी गरीब को एक रुपया भी नहीं देता, इसके बावजूद भी लाखों लोग अपने खर्चे पर संसद मार्ग पर पहुँचते हैं और बड़े हर्षोल्लास के साथ अपने प्यारे बाबा साहेब की जयंती मनाते हैं । राजनैतिक पार्टियों द्वारा की जाने वाली रैलियों को तो समाचार पत्रों और टीवी चैनलों में दिखाने के लिए उनके संवाददाताओं और कैमरा मैनों की भरमार होती है, लेकिन बाबा साहेब की जयंती दिखाने के लिए गोदी मीडिया एक सोची समझी साजिश के अंतर्गत वहाँ पहुंचे ही नहीं , जबकि बहुजन समाज देश की पूरी आबादी का 85 % हिस्सा हैं । इस कदर बाबा साहेब और बहुजन समाज से सरोकार के मुद्दों की आज़ादी के इतने दशक बाद भी घोर अवेलना हो रही है ! बहुजनों का यह त्यौहार तो केवल छोटे २ प्राइवेट चैनलों – जैसे कि बहुजन टीवी, नेशनल दस्तक, दलित दस्तक, बहुजन हलचल, अम्बेडकर टीवी और यूट्यूब चैनल इत्यादि ही कवर करने आते हैं ।
देश के सभी बड़े २ टीवी चैनलों में से कोई इस मेले की रिपोर्ट दिखाने के लिए वहां नहीं पहुंचा, कितनी शर्मनाक बात है ? आज़ादी के इतने दशकों बाद भी अगड़ी जातियों के लोगों के दिलों से जाति आधारित भेदभाव और अस्पृश्यता की भावना समाप्त नहीं हुई है। कहने को यह लोग पढ़े-लिखे कहलाते हैं, लेकिन इनमें से ज्यादातर की मानसिकता अभी भी पिछड़ी हुई है, सामंतवादी ही है, वरना इतने महान समाज सुधारक, युग परिवर्तक, अर्थशास्त्री और क्रांतिकारी महामानव और देश के संविधान निर्माता के जन्मोत्सव की झलकियाँ दिखाना भी उन्होंने क्यों नहीं अपना धर्म समझा? ख़ैर , जो बहुजन परिवारों के लोग वहां बाबा साहेब को श्रद्धा सुमन अर्पण करने आते हैं, स्टॉल लगाने वाले संगठन जन्म दिवस मनाने के लिए इकट्ठा होने वाले हज़ारों लोगों के लिए भोजन पानी का भी वहां पूरा २ ध्यान रखा जाता है, बेशक कोई बंदा घर से खाली पेट इस मेले में पहुँच जाये, उसे वहां खाने की कमी नहीं रहती और खाने में दाल चावल, चावल छोले, आलू की सब्जी के साथ पूड़ियाँ , कचोरियाँ, वेजिटेबल बरियानी और हलवा भी परोसा गया, ताकि बाबा साहेब के श्रद्धालुओं को भोजन व्यवस्था में कोई कमी अनुभव ना हो !
चलो अब बात करते हैं कि आख़िर इस मेले में वहाँ होता क्या है? अनेक बैंकों तथा अन्य सरकारी कंपनियों की अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति वेलफेयर ऐसोसिएशन्स के द्वारा लगाए गए स्टॉलों पर इन गरीब लोगों को उनके संविधान के अंतर्गत अधिकारों एवं प्रावधानों के बारे में समझाया जाता है। कुछ प्रकाशन कंपनियां भी वहां अपने स्टॉल लगाती हैं और उनके स्टॉलों पर दलित / बहुजन समाज के विद्वानों / लेखकों (जैसे की महात्मा ज्योतिबा फूले, माता सावित्रीबाई फूले, बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर, पेरियार रामास्वामी, ललई सिंह यादव, संत शिरोमणि गुरु रविदास जी, संत कबीर दास इत्यादि ) द्वारा लिखी गई सैकड़ों पुस्तकें भी सस्ती दरों पर उपलब्ध करवाई जाती हैं जोकि आम तौर पर पुस्तकों की दुकानों पर नहीं मिलती । कुछ छोटी २ पुस्तकें और मैगज़ीन इत्यादि तो मुफ्त में ही लोगों को दे दी जाती हैं ताकि उनको अपने सदियों से दबे कुचले वंचित समाज का इत्तेहास पढ़ने का अवसर मिले और दलित समाज को इतने ख़ौफ़नाक / दहनीय हालातों से बाहर निकालने वाले महापुरुषों के बारे में नई जागरूकता व चेतना का संचार / प्रसार हो सके ।
मैंने देखा है कि अब आम गरीब लोग भी पहले की तरह अनपढ़ / अनजान नहीं रहे । वह भी राजनैतिक नेताओं द्वारा उनको गुमराह करने वाली चालों / साजिशों से काफी हद तक वाकिफ़ हो चुके हैं । ऊपर दिए गए छोटे प्राइवेट चैनलों के एंकरों के सवालों के जवाब सुनें तो हमें पता चलता हैं कि अब आम जनता पहले जैसी अनपढ़ नहीं है, और उनके द्वारा हकीकत बयान करने वाले सुलझे हुए जवाब सुनने को मिलते हैं । टीवी एवं न्यूज़ चैनलों के संवाददाता आम जनता से इस समारोह के बारे में सवाल जवाब भी करते हैं ताकि यह जानकारी हासिल की जा सके कि आम गरीब जनता अभी तक बाबा साहेब अम्बेडकर जी या फिर बहुजन समाज के अनेकों विद्वानों के बारे में कितना समझने लगे हैं और समाज में व्याप्त दलितों की समस्याओं और उनके समाधान के प्रति कितने संवेदनशील / जागरूक हुए हैं ? जब एक पत्रकार ने उनसे पूछा कि बाबा साहेब ने आपके लिए क्या २ किया ? तो उन्होंने बड़े फ़ख्र से सच्चाई बयान करते हुए बताया कि यह केवल बाबा साहेब डॉ आंबेडकर ही थे जिन्होंने उन्हें अनेक प्रकार के अधिकार दिलवाये थे और उन अधिकारों में पढ़ने लिखने का अधिकार, सम्पत्ति रखने का अधिकार, वोट देने का अधिकार, चुनाव लड़ने का अधिकार, सार्वजनिक स्थानों पर बिना किसी भेदभाव के आने जाने का अधिकार इत्यादि शामिल हैं। एक लड़के को बाबा साहेब की फोटो छपी दो टी शर्ट्स खरीदते देखा तो मैंने उससे सवाल किया, “क्या आपको यह शर्ट्स 600 रूपये में महँगी नहीं लगती, तो उस लड़के ने उत्तर दिया, “बाबा साहेब ने हमारे पूरे समाज के लिए इतनी कुरबानियाँ दी हैं, जब मैं उनकी फोटो लगी यह शर्ट पहनूंगा, तो मुझे लगेगा कि बाबा साहेब का आशीर्वाद अभी भी मुझे मिल रहा है!”
याद रहे, 1935 से पहले तो दलितों को कुर्सी पर बैठने का भी अधिकार नहीं था। केवल इतना ही नहीं कुछ पत्रकारों ने जब उनसे घुमाकर सवाल पूछे कि संविधान में यह अधिकार 70-75 वर्ष पहले ही लिख दिए गए थे तो फिर उसके बावजूद भी आप लोगों ने वंशित प्रगति क्यों नहीं की ? तो लोगों ने जवाब दिया कि हमारे समाज के लोग अपनी सीमित आमदनी के चलते पढ़लिख तो गए हैं और क्लर्क, चपरासी या फ़िर छोटे मोटे अफसर ही बन पाए हैं, खेलने वाले अंतरराष्ट्रीय सत्तर के खिलाड़ी बनकर मैडल भी खूब जीतने लगे हैं, लेकिन पिछले आठ दस वर्षों से फ़िर से हमारे ख़िलाफ़ साजिशों का दौर तेज हो गया है – जैसे कि कांग्रेस के ज़माने में दी जाने वाली थोड़ी सस्ती शिक्षा अब फ़िर से महंगी कर दी गई है । हमारे समाज के करोड़ों लोग अब अपने बच्चों को डॉक्टर, इंजीनियर, आर्किटेक्ट या सीए इत्यादि बनाने में बड़ी कठिनाई अनुभव करते हैं, क्योंकि हमारी अपनी छोटी २ नौकरियां होने की वजह से हमारी आमदनी भी कम है और हम लोग महंगी २ व्यावसायिक डिग्रियाँ हासिल करने के लिए प्रत्येक वर्ष दो-ढाई या तीन लाख फीस कैसे देंगे ? अनेकों स्थानों पर तो अब आरक्षण की सुविधा भी बड़ी चालाकी से साजिशन बंद कर दी गई है, केवल इतना ही नहीं, अब तो संविधान द्वारा उनके लिए बनाई गई इस सुविधा को पूरी ईमानदारी से लागू भी नहीं किया जा रहा? यह सब कुछ हमें बेहतर व्यावसायिक / ऊँची शिक्षा से वंचित रखने के इरादे से साजिशन ही किया जा रहा है, ताकि हमारे समाज के लोग पढ़लिख कर प्रगति करके अगड़ी जाती वाले लोगों से प्रतिस्पर्धा न कर सकें ।
आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी बहुजन समाज के लोगों के साथ अत्याचार और शोषण के मामले कम होने का नाम नहीं ले रहे – जैसे कि अभी भी देश के विभिन्न हिस्सों से शादी के वक़्त जो दलित दूल्हे घोड़ी पर बैठकर जाते हैं, तो ऐसा करने से उन्हें रोका जाता है, मूछें रखने पर भी उनके साथ हिंसा होती है । दलित परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु हो जाने पर गांव की साँझी शमशान भूमि पर भी उसका अंतिम संस्कार करने नहीं दिया जाता । राजस्थान में तो अगर ब्राह्मण परिवार के घरों के सामने से जाना हो और आप साइकिल से भी जा रहे हैं तो आपको उनके घरों के सामने से साइकिल से उतर कर पैदल ही जाना पड़ेगा , जैसे कि बहुजन परिवारों के आदमी उनके लिए इन्सान ही नहीं हैं ? ऐसी और भी बहुत सी छोटी २ बातों के लिए उनपर अभी भी अनेक प्रकार जुल्म होते हैं और उनपे लगाई गई पाबंदियों का पालन ना करने पर दलितों पर हिंसा हो जाती है । ताजा मामला राजस्थान के पाली जिले के दलित जितेन्द्र मेघवाल की हत्या का है जिसमें 16 मार्च, 2023 को जितेन्द्र की हत्या केवल मूंछें रखने पर हुई है। दिल्ली विश्वविद्यालय के दौलतराम कॉलेज में साइकोलॉजी पढ़ाने वाली एक दलित प्रोफ़ेसर डॉ. ऋतू सिंह लगभग पिछले तीन वर्ष से अपने साथ हुए अन्याय (नौकरी से बर्खास्तगी) के ख़िलाफ़ संघर्ष कर रही हैं, लेकिन न्याय उनके हाथ नहीं लग रहा ! एक और बात, अभी पिछले ही वर्ष राजस्थान के जालौर जिले में एक स्कूल के अध्यापक ने दलित समाज के 9 वर्ष के छोटे से मासूम बच्चे (इंद्र कुमार मेघवाल, तीसरी कक्षा) को इतनी बेरहमी से जानवरों की तरह पीटा कि बाद में उस पिटाई से बच्चे के शरीर पे जगह २ हुए जख्मों के कारण बच्चे की मृत्यु ही हो गई ! उस बच्चे का दोष केवल इतना था जस उसे स्कूल में प्यास लगी तो उसने स्कूल में अध्यापकों के लिए रखे गए पानी के घड़े को छू कर पानी ले लिया ? जिस अध्यापक को खुद भी अभी तक इस सच्चाई की समझ नहीं आई कि सभी इन्सान उसी भगवान के बनाए हुए हैं और सब बराबर ही हैं, वह बच्चों को क्या शिक्षा देता होगा ? कितनी शर्म की बात है, प्रगति और वैज्ञानिक विकास की जब बात आती है तो भारत की तुलना कैनेडा, अमरीका, इंग्लैंड, चीन, ऑस्ट्रेलिया, जापान, फ्रांस या फिर जर्मनी से करते हैं, लेकिन अगड़ी जातियों वालों की अपनी सोच और मानसिकता अभी भी 18वीं सदी वाली बनी हुई है। इससे भी ज्यादा दुःख और परेशान करने वाली बात यह है कि जब किसी दलित के ऊपर ऐसी नाइंसाफी / अत्याचार / शोषण होते हैं और वह उसकी रिपोर्ट करवाने थाने में जाते हैं तो वहां भी उनकी कोई सुनवाई नहीं होती, उल्टा पुलिस उनको ही डाँटने फटकारने लग जाती है। अदालतों का भी यही हाल है, क्योंकि 75-80 % बड़े अफ़सर तो अगड़ी जाति वालों के ही हैं ।
बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर जी ने अपने पूरे जीवन के संघर्ष में ऐसी अनेक सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक बुराईयों / कुरीतियों को मिटाने के लिये किये, लेकिन इस परिवर्तन की दौड़ में भारत अभी भी बहुत पीछे है । बदलाव लाने के लिए ज़्यादातर प्रांतों में राजनैतिक इच्छाशक्ति की भी बड़ी कमी देखी जाती है, मीडिया भी अभी तक इतना संवेदनशील / विवेकशील नहीं हुआ है कि वह राष्ट्रीय सत्तर पर सोच समझकर सही २ और न्यायसंगत रिपोर्टिंग कर सके और सामाजिक बदलाव लाने में अपनी बनती साकारात्मिक भूमिका निभाए, क्योंकि सभी बड़े २ अख़बार और टीवी चैनलों पर तो अगड़ी जाति वालों का ही कब्ज़ा है ? जैसे ऊबड़ खाबड़ जमीन पर अच्छी फ़सल की पैदावार की उम्मीद नहीं की जा सकती, उसी प्रकार समाज में ऊँची नीची जातियों की इतनी बड़ी सामाजिक और आर्थिक असमानता के रहते देश कैसे प्रगति और विकास कर सकता है ? ऐसी अनेक दलीलें देकर जातिपाति की दीवारें तोड़ने और समाजिक समानता, भाईचारा स्थापित करने की बहुजन समाज के अनेक महापुरुषों ने ( संत शिरोमणि गुरु रविदास जी, संत कबीर जी से लेकर बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर व मान्यवर कांशी राम तक ) हज़ारों संघर्ष किये, लेकिन मनुवादी / ब्राह्मणवादी / सामंतवादी / पूंजीवादी मानसिकता रखने वाले शासन / प्रशासन की ऊंची २ कुर्सियों पर बैठे लाखों बड़े २ अफ़सर इस परिवर्तन की लहर में हमेशा से ही रोड़े अटकाते आये हैं और उनकी ऐसी ही हरकतों की वजह से भारत अभी भी विकासशील देशों की श्रेणी में बहुत पिछड़ा हुआ है ।
इस सबके बावजूद भी पिछले सात आठ दशकों में जो कुछ बदलाव आये हैं, उनके कारण बहुजन समाज ने जो भी प्रगति और विकास के मार्ग पर बड़ी २ छलांगे लगाई हैं, उसके लिए समस्त बहुजन समाज सदैव बाबा साहेब डॉ.भीमराव अम्बेडकर जी का हमेशा ऋणी रहेगा। सामाजिक न्याय के एक शीर्ष योद्धा, तेजस्वी क्रांन्तिकारी शख्सियत परम पूज्य बोधिसत्व, भारत रत्न, बाबा साहेब डॉ. भीमरॉव अम्बेडकर जी के चरणों में हमारा कोटि-कोटि प्रणाम । जय भीम ! जय भारत !! जय संविधान !!!
आर डी भारद्वाज “नूरपुरी “