गुस्ताख़ी का जुर्माना !

पिछले कुछ दिनों से प्रवीण कुमार अक्सर अपने दफ्तर के लिए लेट हो जाता था, क्योंकि जबसे उसका पुराना बॉस रिटायर हो गया था, नया कोई बॉस अभी आया ही नहीं था , इसलिए उसे इस बात की चिंता कम ही होती थी कि अगर वह दफ़्तर लेट भी पहुँचा तो उसे किसी को कोई स्पष्टीकरण देना पड़ेगा ? लेकिन आज तो उसका नया बॉस आने वाला था, पिछले शुक्रवार ही समाचार आ गया था कि प्रशासन विभाग का नया हेड सोमवार से ड्यूटी ज्वाइन करने वाला है ! सो उसने जल्दी से नाश्ता किया और बाइक पे सवार होकर दफ्तर की तरफ बढ़ने लगा ! पार्किंग एरिया में बाइक पार्क करके जब वह लिफ्ट की तरफ़ जा रहा था तो अचानक उसकी नज़र पार्किंग एरिया में खड़ी एक नई चमचमाती कार पे अटक गई ! गाड़ी बंद थी, गाड़ी के शीशे पर सिल्वर रंग की एक चमकीली परत चढ़ी हुई थी, जिसमें कोई भी अपना चेहरा आईने की तरह देख सकता था ! वह उस गाड़ी के शीशे के सामने गया तो उसे शीशे में चेहरा देखा, झट से उसने जेब से कंघी निकाली और शीशे में देखकर अपने बाल सँवारने लग गया ! उसे इस बात का आभास ही नहीं हुआ कि गाड़ी के अंदर कोई बैठा भी हो सकता है, जो उसकी सब हरकतें देख रहा होगा ! कंघी करके उसने अपना ही प्रतिबिंब शीशे में देखकर अपने आपको प्रशंसनीय मुद्रा में एक फ्लाइंग किस किया और फिर जल्दी से लिफ्ट में सवार होकर ऊपर अपने सीट पर चला गया !

दूसरी तरफ़ गाड़ी के अंदर एक महिला बैठी हुई, मिनाक्षी वर्मा थी जिसने प्रवीण कुमार की सब हरकतें देख ली थी और सोच रही थी ऊपर जाकर देखती हूँ कि वह बंदा उसके ही दफ्तर में काम करता है या उस बिल्डिंग में  किसी और दफ्तर में ! वह अपने केबिन में जाने से पहले दसवीं मंजिल पर पहुंची और हाल में काम कर रहे सभी कर्मचारियों पे नज़र मारते हुए धीरे २ जा रही थी ताकि पता चल सके कि उसकी गाड़ी के शीशे में अपना प्रतिबिंब देखकर बाल सँवारने वाला बंदा यहीं काम करता है ? घूमते २ सब कर्मचारियों को देखते २ अचानक उसकी नज़र सेक्शन के एक कोने में टेलीफोन की घंटी बजी और उस सीट पे बैठा प्रवीण फ़ोन सुनने लग गया ! इतने में वह महिला भी धीरे २ चलते हुए उसकी सीट के सामने पहुँच गई और उसे गौर से देखने लगी ! फ़ोन पे उसकी बातें सुनकर उस नई महिला को यह तो पता चल गया कि यह कोई व्यक्तिगत बातचीत नहीं है, बल्कि वह अधिकारी किसी क्लाइंट से ऑफिशियल वार्तालाप ही कर रहा था, लेकिन प्रवीण को लगा जैसे वह महिला चोरी से उसकी बातें सुन रही है ! उसने एक सेकंड के लिए फ़ोन के रिसीवर पे हाथ रखा और नई महिला से सवाल किया , “आपको क्या मेरे से कोई काम है ?” महिला से कोई उत्तर ना पाकर प्रवीण उसे थोड़ा डाँटते हुए से बोला, “अगर कोई काम नहीं है तो जहां क्यों खड़ी हो, जाओ अपना काम करो, यह मेरा दफ़्तर है, कोई कम्पनी बाग़ नहीं, जहां आप जब जी चाहे तफ़री करने चले आयो !” प्रवीण की डाँट सुनकर वह नई महिला बिना कुछ जवाब दिए, मन में गुस्सा लिए, थोड़ा माथा सिकोड़कर चली गई !

लेकिन उसके जाते ही उसका एक सहकर्मी दोस्त – कमल किशोर उसके पास आया और हैरानगी से उसे देखने लग गया ! प्रवीण भी उसे थोड़ा परेशान होकर बोला , “क्या हुआ, कुछ ग़लत हो गया क्या ?” जवाब में उसका दोस्त कमल किशोर बोला, “थोड़ा नहीं , बहुत ज्यादा गलत हो गया ?” प्रवीण ने भी हैरानगी में पूछा, “ऐसा क्या हो गया, मैंने क्या गुस्ताखी कर दी ?” कमल ने उत्तर दिया, “वह महिला जिसे तूं कोई साधारण सी समझ के डाँटकर भेज दिया, क्या तुझे पता नहीं कि वह हमारी नई बॉस है – मिनाक्षी वर्मा , केवल इतना ही नहीं, वह हमारी कंपनी के मालिक की बेटी भी है और आज से वही हमारी ब्रांच नई हेड होंगी !” सुनकर प्रवीण के पैरों तले जमीन निकल गई और वह परेशानी में बोला, “मुझे सचमुच यह मालूम नहीं था, यह तो वाक्या ही बहुत बड़ी गुस्ताख़ी हो गई !” उसके दोस्त ने उसे समझाने की कोशिश – “तेरे लिए अब यही उचित है कि तूं  अभी उनके केबिन में जाओ और माफ़ी माँग लो, नहीं तो तुम्हारी नौकरी भी जा सकती है ?” उन दोनों सहकर्मियों की बातें आस पास खड़े दफ्तर के बाकी लोग भी सुन रहे थे, यह सब देखकर प्रवीण भी टेंशन में आ गया, लेकिन उसके दोस्त ने उसे फिर नई बॉस के कमरे में जाने के लिए इशारा किया ! प्रवीण उठकर अपनी नई बॉस के केबिन में गया और उसके मेज के सामने सिर झुकाकर खड़ा हो गया ! मिनाक्षी भी उसकी तरफ़ गुस्से से देखते हुए बोली, “आप तो बड़े बद्तमीज़ इन्सान हैं, आपको बात करने की तहज़ीब ही नहीं है और ना ही किसी बड़े छोटे की और महिला पुरुष की पहचान है ? आप जैसे बंदे तो हमारी कंपनी की इमेज ख़राब कर रहे हैं, आप यहाँ नौकरी करने के काबिल ही नहीं हैं ? मैं आज से ही आपको नैकरी से बर्ख़ास्त कर रही हूँ !”  अपनी नई बॉस की धमकी सुनकर प्रवीण के होश उड़ गए और वह बड़े विनम्र भाव से बोला, “देखिये मैडम ! मैं अपनी गलती मानता हूँ , लेकिन मुझे नहीं पता था कि आप हमारे मालिक की बेटी हैं, और इस ब्रांच की नई हेड हैं !” मिनाक्षी ने थोड़ा रुआब से बोलते हुए अपना फ़रमान सुना दिया, “आप जा सकते हैं, पंद्रह दिन में आपके सभी डुएज़ आपको मिल जाएंगे !” लेकिन प्रवीण फिर से बिनती भरे लहजे में बोला, “मैं आपसे यही निवेदन करता हूँ की आप मुझे डिसमिस मत करना, मैं खुद ही इस्तीफा दे देता हूँ ! अगर आपने मुझे नौकरी से निकाल दिया, तो मुझे कहीं और नौकरी मिलना बड़ा मुश्किल हो जायेगा, प्लीज मेरी छुट्टी मत करना !” इतना बोलकर प्रवीण उसके केबिन से निकलकर अपनी सीट पे गया, अपना त्यागपत्र टाइप किया और उसपे हस्ताक्षार करके चपड़ासी के हाथ भेज दिया ! त्यागपत्र देने के बाद, जैसे उसे बोला गया था, उसने अपने एक सहकर्मी को अपनी सीट के सभी कामों से अवगत करवाया, और अपना चार्ज उस सहकर्मी के हवाले करके चार बजे ही घर पहुँच गया ! रात को आठ बजे आने वाले बंदे को इतनी जल्दी घर आया देखकर उसकी पत्नी संगीता बड़ी हैरत में पड़ गई ! उसकी तरफ़ से कोई उत्तर ना पाकर वह पानी का गिलास लेकर आई, पानी पीने के बाद प्रवीण ने आज सुबह हुई पूरी घटना माँ शारदा और पत्नी को सुना दी ! उसकी पत्नी संगीता ने उसे समझाने की कोशिश की, कि कल दफ्तर जाकर अपनी नई बॉस की ग़लतफ़हमी में हुई बदतमीज़ी के बारे में बता देना और वापिस नौकरी में आने के लिए निवेदन करना, लेकिन प्रवीण ने यह बोलकर मना कर दिया कि यह सब करने का कोई फ़ायदा नहीं होने वाला, क्योंकि अगर कोई महिला बॉस जब मालकिन भी हो, तो वहाँ उसके गुस्से / सख़्त तेवर को बर्दाश्त कर पाना बहुत मुश्किल हो जाता है ! 

एक दो दिन सदमे में रहने के बाद प्रवीण ने फिर से नौकरी की तलाश में भटकना शुरू कर दिया ! अख़बार में जब कहीं उसे अपने लायक नौकरी नज़र आती तो वह ऑफिस का पता नोट करके अपना रिज्यूमे ईमेल कर देता या फिर इंटरव्यू के लिए निवेदन करता ! ऐसे करते २ उसने तीन महीने में ना जाने कितनी जगह नौकरी के लिए निवेदन भेजे, इंटरव्यू के वक़्त माँगा, लेकिन कहीं कोई बात बन ही नहीं रही थी ! दूसरी तरफ़ उसके घर में पड़ी जमापूंजी भी खर्च होती जा रही थी, पूरे परिवार ने दाल रोटी तो खानी ही थी, बच्चे की स्कूल की फ़ीस भी देनी है, बिजली पानी गैस और मोबाइल इत्यादि के बिल भी अदा करने होते हैं, लेकिन आमदनी तो बंद हो चुकी थी ! उसकी मुश्किलें दिन बदिन बढ़ती ही जा रही थी , लेकिन नौकरी की कहीं बात बन ही नहीं रही थी ! और ऐसे बेरोज़गारी  के आलम में  घर में झगड़े भी शुरू हो गए थे, पत्नी जब भी कोई खर्चा करने के लिए उससे पैसे माँगती , वह अक्सर जवाब देता, “खर्चा कम किया करो, नौकरी का कोई पता नहीं कब लगेगी ?” ऐसे जैसे तैसे करते हुए उसे पाँच महीने बीत गए , लेकिन उसकी बढ़िया नौकरी का कोई इंतेज़ाम नहीं हो पाया ! बीच में एक कंपनी में उसे सहायक के तौर पे काम का पता चला, लेकिन इस नौकरी से मिलने वाली तनखाह पहले से आधी रह गई ! अब वह अक्सर कोशिश करता कि पत्नी के साथ कम से कम उलझे, वरना उसे एक की चार सुननी पड़ती !

पाँच महीने पूरे होने के बाद जब वह एक दिन अपनी ड्यूटी से वापिस घर आया, तो उसकी पत्नी चाय के वक़्त उसे थोड़ा आराम से बोला, “आने वाले रविवार को हम शॉपिंग के लिए चलेंगे, थोड़ा जरुरी समान लेना है !”  शॉपिंग सुनकर उसे लगा जैसे उसकी पत्नी ना जाने कौनसी फरमाईश करने वाली है, उसने बस धीरे से उत्तर दिया, “यह शॉपिंग वॉपिंग अभी रहने दो, तुम्हें पता तो है, मेरी कहीं कोई ढंग की नौकरी तो है नहीं ? इस हलकी सी नौकरी में दाल रोटी ही चलती रहे वही गनीमत है !” लेकिन पत्नी ने थोड़ा जोर से बोलते हुए उत्तर दिया, “आपको तो कुछ याद रहता नहीं, अगले सप्ताह हमारी शादी की साल गिरह आने वाली है, मुझे नहीं पता, बस मुझे एक बढ़िया सी साड़ी ले दो, मीठा में घर पे ही बना लूंगी, केक के लिए नहीं बोलूंगी !” प्रवीण ने उत्तर दिया, “सूट साड़ियों से तुम्हारी अलमारी भरी पड़ी है, उस में से ही कोई अच्छी सी साड़ी उस दिन पहन लेना, नए खर्चे मत करवाओ !” प्रवीण की नौकरी छूट जाने के बाद अबतक उनकी आर्थिक और सामाजिक हालत कितनी खराब हो चुकी है, वह तो इस बात पर सोच-विचार करके उसके अनुसार चलने के लिए तैयार ही नहीं थी, वह तो एक ऐसी मॉडर्न पत्नी ठहरी, एक ऐसी महिला, नए २ कपड़ों की शौक़ीन, वह कहाँ सुनने वाली थी उसने तो मांग पूरी ना होती देखकर उसने तो चीख़ना चिल्लाना शुरू कर दिया, शादी की वर्षगांठ साल में एक बार आती है, तुम्हारी नौकरी चली गई तो उसमें मेरा क्या कसूर है? अपनी बॉस के साथ बदतमीज़ी से पेश आने को मैंने कहा था, क्या ? मेरे पापा भी नौकरी करते थे, वह अक्सर कहा करते थे – अफ़सर की अगाडी और घोड़े के  पिछवाड़े से हमेशा बचना चाहिए, आपको इतने वर्ष नौकरी करते हुए यह बात क्यों नहीं समझ आई ?” थोड़ी ही दूर बैठी प्रवीण की माता शारदा को अपने बेटे बहु का ऐसे लड़ना झगड़ना बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा और उसने बेटे को समझाते हुए बोला , “देखो बेटा  ! मैं जानती हूँ कि तुम्हारी नौकरी छूट गई है, तुम्हारा मुश्किल समय चल रहा है, लेकिन यह भी सही है अगले हफ्ते तुम्हारी शादी की वर्षगांठ भी आ रही है, मैंने कुछ पैसे जोड़के रखे हुए हैं, तुम मेरे से ले लेना और बहु को उसकी पसंद की एक साड़ी दिलवा देना ! बस लड़ो नहीं, जिन्दगी में दुःख सुख तो आते जाते रहते हैं, लेकिन इन सबके बीच घर गृहस्थी का माहौल खराब होना अच्छा नहीं होता ! यह तो अच्छा है कि तुम्हारे पिताजी ने सौ गज़ जगह में यह घर बनवा लिया था, वरना ऐसे हालात में हम किराये का मकान कहां ढूंढ पाते ? “

अगले दिन शाम को प्रवीण माँ से पैसे लेकर संगीता को साड़ी दिलवाने बाजार ले गया ! कपड़े की एक बड़ी सी दुकान में जाकर उसने दुकानदार से पत्नी के लिए साड़ी दिखाने के लिए अनुरोध किया ! दुकानदार संगीता को एक के बाद एक साड़ी दिखाए जा रहा था, लेकिन पत्नी को कोई पसंद ही नहीं आ रही थी ! हर बार वह यह बोलकर साड़ी नापसंद कर देती , “भैया ! कोई इससे बढ़िया दिखायो, बिलकुल नए डिज़ाइन वाली !” अब प्रवीण की चिंता और बढ़ने लग गई , क्योंकि उसकी जेब जितने पैसे थे, पत्नी उस बज़ट में वह साड़ी लेने को मान ही नहीं रही थी ! इशारे इशारे में उसने पत्नी को समझाने को कोशिश की, इस साड़ी के इलावा घर के और जरुरी खर्चे भी है, बस इतने में ही साड़ी ले लो, लेकिन वह तो एक ही हठ किये बैठी थी कि शादी की साल गिराह तो वर्ष में एक बार ही आती है, तो क्यों न अपनी पसंद की और नवीनतम डिज़ाइन वाली साड़ी ली जाये ? इसी कशमकश में उन दोनों की थोड़ी तकरार भी हो गई, और उनके इलावा दुकान में बैठे और ग्राहक भी यह सब तमाशा देख रहे थे ! दुकानदार ने प्रवीण से उसका बजट पूछा ताकि वह उसके भीतर ही उनको साड़ी दिखाए, लेकिन संगीता भी अब गुस्से में आ रही थी ! आख़िर में प्रवीण ने अपने सारे पैसे पत्नी के हाथ में थमा दिए और बोला, “मेरे पास बस यही हैं , इसमें जो भी तुझे मिलता है, लेकर घर आ जाना, मैं जा रहा हूँ !” 

इतना बोलकर वह तो दुकान से बाहर निकल गया, दुकान में बैठे सभी अन्य ग्राहक और दुकानदार भी उसकी पैसे की परेशानी देखकर हैरान थे, और उन सबसे बढ़कर उसी दुकान में आगे बैठी एक और महिला उनकी पैसे की समस्या से जूझ रही इस दंपत्ति से बड़ी परेशान हुई, उसका भी मन बड़ा द्रवित हो रहा था ! उसने कभी गरीब दंपति को ऐसे पैसे की दिक्कत की वजह से आपस लड़ते झगड़ते नहीं देखा था, क्योंकि वह तो एक अमीर साधन संपन्न परिवार से संबंध रखती थी ! अगले दिन जब कंपनी की उस ब्रांच की नई बॉस मिनाक्षी दफ़्तर पहुंची, तो उसने प्रवीण के एक दोस्त कमल किशोर को अपने केबिन में बुलाया ! कमल बॉस के केबिन में जाकर उसके टेबल के सामने अपनी डायरी खोलकर बोला, “जी मैडम !” लेकिन मिनाक्षी बड़े आराम से बोली, “डायरी बंद कर दो, इसकी कोई जरुरत नहीं है ! अच्छा यह बताओ क्या आप अपने पुराने सहकर्मी प्रवीण से अब भी मिलते रहते हो, क्या हाल है उसका ?” कमल ने उत्तर दिया, “जी मैडम ! कभी २ फ़ोन पे बातचीत हो जाती है !” क्या वह कहीं और नौकरी करने लग गया है या नहीं ?” कमल ने उत्तर दिया, “मैडम ! वह काम तो कर रहा है, लेकिन अब उसकी सैलरी बहुत कम है, घर का गुजारा बड़ी मुश्किल से होता है उसका !”  “हूँ ! तो आप ऐसे करना, आज शामको उसके घर जाना और कल उसे दफ़्तर आने के लिए बोलना !” 

बॉस से संकेत पाकर कमल शाम को अपने घर जाने से पहले अपने दोस्त प्रवीण के घर ही गया और उसे आज बॉस के कमरे में हुई पूरी बात सुनाकर उसे कल दफ़्तर दफ्तर आकर बॉस से मिलने के लिए समझा दिया ! प्रवीण के घर वाले भी कमल की बातें सुनकर थोड़ा खुश हो गए , उनको भी लगा कि शायद प्रवीण की किस्मत फिर से एक नया मोड़ लेने वाली है ! अगले दिन सुबह वह जल्दी से तैयार होकर दस बजे दफ़्तर पहुँच गया और अपनी बॉस मिनाक्षी वर्मा के निज्जी सचिव को अपने आने का सबब बताया ! थोड़ी देर बाद, बॉस ने उसे अंदर बुलाया ! कमरे में दाख़िल होकर उसने बॉस को नमस्ते बुलाई और उनकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार करने लगा ! अपनी फाइल का काम निपटाकर बॉस ने उसे बैठने का इशारा किया और पूछा, “हाँ तो प्रवीण ! सुनाओ ! क्या चल रहा है आजकल ?” “कुछ नहीं, बस अपनी दाल रोटी के जुगाड़ में लगे रहते हैं !” “कहां काम करते हो आजकल और कितना कमा लेते हो ?” “मैडम ! काम तो कर रहा हूँ , लेकिन सैलरी तो बहुत कम है, बस बड़ी मुश्किल से गुजारा हो रहा है !” “अगर आपको दोबारा हमारे यहां काम करने का अवसर दिया जाये , तो काम करोगे ?” “क्यों नहीं मैडम ! मैं वादा करता हूँ कि मैं पहले से भी ज्यादा मेहनत और लगन से काम करूँगा !” “और आपके व्यवहार का क्या होगा ? जिस वजह से आपको पहले नौकरी से निकालना पड़ा था, क्या आप उसके लिए शर्मिंदा हो ?” “मैडम ! उस दिन जो हुआ था, वह बिलकुल अनजाने में, ग़लतफ़हमी में ही हुआ था, तब भी मेरा मकसद आपका निरादर करना हरगिज़ नहीं था, ख़ैर जो हुआ, मैं उसके लिए शर्मिंदा हूँ, आप मुझे मुआफ़ कर दें, आइंदा ऐसा नहीं होगा !” 

बॉस ने प्रवीण को फ़िर से थोड़ा ध्यान से देखा और उसकी मौजूदा हालात पर तरस खाते हुए बोली, “ठीक है, अगर आपको अपनी ग़लती का एहसास हो गया है , मैं आपको एक अवसर और दे देती हूँ , लेकिन इसके बाद ऐसा कुछ नहीं होना चाहिए ! आप अब भी उसी पोस्ट पर काम करोगे और उतनी ही सैलरी पर, बताओ कब ड्यूटी जॉइन कर सकते हो ?” प्रवीण ने उत्तर दिया, “मैं जहां अभी काम कर रहा हूँ , कल ही वहां जाकर अपना त्यागपत्र दे देता हूँ ताकि वह लोग भी मेरी जगह किसी और बंदे का प्रबंध कर लें ! और अगले सोमवार से इधर काम संभाल लूंगा ! आपकी इस मेहरबानी के लिए शुक्रिया, धन्यवाद् ! आपकी तरफ़ से इस नौकरी का ऑफर पाकर मेरी टेंशन, दुःख और परेशानी आधी समाप्त हो गई है !”  बॉस के केबिन से निकलकर वह सबसे पहले अपने पुराने दोस्त कमल किशोर के पास गया और उसे अपनी नौकरी दोबारा मिलने की खुशखबरी सुनाई, और साथ ही एक हैरतअंगेज़ अंदाज़ में अपनी प्रतिक्रिया देते हुए दोस्त से कहने लगा, “लेकिन यार ! एक बात मुझे समझ नहीं आई, कि अभी तीन चार दिन पहले ही मेरी पत्नी से मेरी हलकी नौकरी को, घर में पैसों की कमी की वजह लेकर इतनी लड़ाई हुई थी, मेरे घर के हालात इतने ख़राब हो गए हैं, इस बात का मेरी नौकरी से कोई तालुक है या नहीं ! और बॉस को इसका कैसे पता चला ?”                   

कहानी : आर डी भारद्वाज  “नूरपुरी “