प्रभु राम को लोग क्यों आदर्श मानते हैं?

(आलेख:दिव्या तिवारी)

राम सिर्फ एक नाम नहीं हैं। राम हिन्दुस्तान की सांस्कृतिक विरासत हैं राम हिन्दुओं की एकता और अखंडता का प्रतीक हैं। राम सनातन धर्म की पहचान है। लेकिन आज हिन्दु धर्म के ही कुछ लोगों ने राम को राजनीति का साधन बना दिया है। अपनी ही सांस्कृतिक विरासत पर सवाल उठाते हैं। राम के अस्तित्व का प्रमाण मांगते हैं। राम सिर्फ दो अक्षर का नाम नहीं, राम तो प्रत्येक प्राणी में रमा हुआ है, राम चेतना और सजीवता का प्रमाण है। अगर राम नहीं तो जीवन मरा है। इस नाम में वो ताकत है कि मरा-मरा करने वाला राम-राम करने लगता है। इस ना में वो शक्ति है जो हजारों-लाखों मंत्रों के जाप में भी नहीं है।

हिन्दू धर्म भगवान विष्णु के दशावतार का उल्लेख है। राम भगवान विष्णु के सातवें अवतार माने जाते हैं। मत्स्य, कूर्म, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्कि।
राम का जीवनकाल एवं पराक्रम महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित संस्कृत महाकाव्य रामायण के रूप में लिखा गया है| बाद में तुलसीदास ने भी भक्ति काव्य श्री रामचरितमानस की रचनाकर राम को आदर्श पुरुष बताया। राम का जन्म त्रेतायुग में हुआ था।

भगवान राम आदर्श व्यक्तित्व के प्रतीक हैं। परिदृश्य अतीत का हो या वर्तमान का, जनमानस ने राम के आदर्शों को खूब समझा-परखा है राम का पूरा जीवन आदर्शों, संघर्षों से भरा पड़ा है। राम सिर्फ एक आदर्श पुत्र ही नहीं, आदर्श पति और भाई भी थे। भारतीय समाज में मर्यादा, आदर्श, विनय, विवेक, लोकतांत्रिक मूल्यों और संयम का नाम राम है। जो व्यक्ति संयमित, मर्यादित और संस्कारित जीवन जीता है, निःस्वार्थ भाव से उसी में मर्यादा पुरुषोत्तम राम के आदर्शों की झलक परिलक्षित हो सकती है। राम के आदर्श लक्ष्मण रेखा की उस मर्यादा के समान है जो लांघी तो अनर्थ ही अनर्थ और सीमा की मर्यादा में रहे तो खुशहाल और सुरक्षित जीवन।

राम जाति वर्ग से परे हैं। नर हों या वानर, मानव हों या दानव सभी से उनका करीबी रिश्ता है। अगड़े पिछड़े सब उनके करीब हैं। निषादराज हों या सुग्रीव, शबरी हों या जटायु सभी को साथ ले चलने वाले वे देव हैं। भरत के लिए आदर्श भाई। हनुमान के लिए स्वामी। प्रजा के लिए नीतिकुशल न्यायप्रिय राजा हैं। परिवार नाम की संस्था में उन्होंने नए संस्कार जोड़े। पति पत्नी के प्रेम की नई परिभाषा दी। ऐसे वक्त जब खुद उनके पिता ने तीन विवाह किए थे। लेकिन राम ने अपनी दृष्टि सिर्फ एक महिला तक सीमित रखी। उस निगाह से किसी दूसरी महिला को कभी देखा नहीं।
वर्तमान संदर्भों में भी मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के आदर्शों का जनमानस पर गहरा प्रभाव है। त्रेतायुग में भगवान श्रीराम से श्रेष्ठ कोई देवता नहीं, उनसे उत्तम कोई व्रत नहीं, कोई श्रेष्ठ योग नहीं, कोई उत्कृष्ट अनुष्ठान नहीं। उनके महान चरित्र की उच्च वृत्तियाँ जनमानस को शांति और आनंद उपलब्ध कराती हैं। संपूर्ण भारतीय समाज के जरिए एक समान आदर्श के रूप में भगवान श्रीराम को उत्तर से लेकर दक्षिण तक संपूर्ण जनमानस ने स्वीकार किया है। उनका तेजस्वी एवं पराक्रमी स्वरूप भारत की एकता का प्रत्यक्ष चित्र उपस्थित करता है।
असीम ताकत अहंकार को जन्म देती है। लेकिन अपार शक्ति के बावजूद राम संयमित हैं। वे सामाजिक हैं, लोकतांत्रिक हैं

राम का जीवन आम आदमी का जीवन है। आम आदमी की मुश्किल उनकी मुश्किल है। वे हर उस समस्या का  शिकार हुए जिन समस्याओं से आज का इंसान जूझ रहा है। बाकि देवता हर क्षण चमत्कार करते हैं। लेकिन जब राम की पत्नी का अपहरण हुआ तो उसे वापस पाने के लिए उन्होंने कोई चमत्कार नहीं किया अपितु रणनीति बनाई। लंका जाने के लिए उनकी सेना ने कोई चमत्कार नहीं किया बल्कि एक-एक पत्थर जोड़कर पुल बनाया। यह उनकी कुशल प्रबन्धक क्षमता को दिखाती है। जब राम अयोध्या से चले तो साथ में सीता और लक्ष्मण थे। जब लौटे तो पूरी सेना के साथ। एक साम्राज्य को नष्ट कर और एक साम्राज्य का निर्माण करके।

भगवान राम विषम परिस्थितियों में भी नीति सम्मत रहे। उन्होंने वेदों और मर्यादा का पालन करते हुए सुखी राज्य की स्थापना की। स्वयं की भावना व सुखों से समझौता कर न्याय और सत्य का साथ दिया। फिर चाहे राज्य त्यागने, बाली का वध करने, रावण का संहार करने या सीता को वन भेजने की बात ही क्यों न हो।