गढ़वाली और कुमाऊँनी भाषा को राजभाषा का दर्जा देने पर विचार-राजनाथ सिंह


गृह मंत्री माननीय राजनाथ सिंह ने कहा है कि सरकार उत्तरांचल की कुमाऊंनी और गढ़वाली भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने पर विचार कर रही है। देश की राजधानी दिल्ली में आज उत्तरांचल उत्थान परिषद द्वारा आयोजित प्रवासी पंजायत-2015 के अवसर पर उन्होंने ये बातें कही। 

दिल्ली स्थित एन.डी.एम.सी सभागार में आय़ोजित समारोह में बतौर मुख्यअतिथि उन्होंने कहा कि किसी भी क्षेत्र के लोगों को जोड़ने में क्षेत्रीय भाषाओं का विशेष महत्व होता है। सरकार इन भाषाओं के प्रोहत्साहन के लिए कृतसंकल्पित है। यही वजह है कि उत्तरांचल उत्थान परिषद की कुमाऊनी और गढ़वाली भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग पर सरकार विचार कर रही है। श्री सिंह ने कहा की देश की संस्कृति को बचाये रखने के लिए क्षेत्रीय भाषाओं के योगदान को नकारा नही जा सकता।

इस अवसर पूज्य महामण्डलेश्वर योगी यतीन्द्रानन्द गिरि जी महाराज ने कहा की सरकार को ग्रामोन्मुखी योजनाएं बनानी चाहिए। उत्तरांचल में कृषि उत्पादों और संसाधनों को आधुनिक तकनीक से जोड़ दिया तो वहां से लोगों का पलायन रूक जायेगा और गांवों में ही युवाओं को प्रर्याप्त रोज़गार और सुविधाएं मिलने लगेंगी।

इस मौके पर संघ के अखिल भारतीय ग्राम विकास प्रमुख डॉ दिनेश जी ने कहा कि गांवों के सम्पूर्ण विकास से ही देश का विकास संभव होगा। लेकिन ये तभी संभव हो पायेगा जब शहरों में रहने वाले लोग भी भावनात्मक रूप से अपने गांव से जुड़ेगे।

इस अवसर पर संघ के दिल्ली प्रांत प्रचारक हरीश जी ने कहा की पलायन से बिखरती ग्राम व्यवस्था को संवारने में प्रवासियों को अपनी भूमिका निभानी होगी हमें गांवों को नहीं छोडना है भले ही हम कीसी भी पद दुनिया में कहीं भी हों। प्रवासी पंचायत में प्रांत प्रचारक उत्तराखंड डॉ हरीश ने कहा की दुनिया के जिन देशों ने अपने गांव को नकारा है वे आगे नहीं बढ़ पाए। आगले पांच वर्ष में पांच लाख उत्तरांखडियों को उत्तराखंड के गांव से जोड़ना है। उन्होंने प्रवासी उत्तराखंडियों का आह्वान किया की साल में कम से कम सात दिनों के लिए अपने गांव जरूर जाएं और उत्तराखंड के करीबन साढ़े छे हज़ार गांवों को संवारने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं।

इस अवसर उत्तरांचल उत्थान परिषद के महामंत्री राम प्रकाश पैन्यूली ने कहा कि उत्तराखण्ड से रोज़गार और सुविधाओं की तलाश में पलायन कर चुके सभी प्रवासियों को फिर से उनके मूल गांव से जोड़ा जाएगा और उस गांव को शहरों और महानगरों जैसी विकास की मुख्यधारा में शामिल किया जाएगा। सभी प्रवासी बन्धुओँ को पुन अपने गांवों से भावनात्मक रुप से जोड़ने के इस प्रयास के लिए ही परिषद ने प्रवासी पंचायत आयोजित की है।

इस अवसर पर कार्यक्रम संयोजक विक्रम सिंह रावत ने कहा की इस पंचायत के अन्तर्गत देश-विदेश के विभिन्न हिस्सों में रह रहे प्रवासियों के मध्य जन-संवाद स्थापित किया जाता है और इन्हें अपने गांव के विकास कार्य हेतू प्रेरित किया जाता है।  इस मौके पर सहसंयोजक डॉ नवदीप जोशी ने कहा पिछले साल ये पंचायत हरिद्वार में आयोजित की गई थी जिसमें 9 राज्यों से 500 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। इस साल इस पंचायत का आयोजन दिल्ली में किया गया है ताकि देश भर के उत्तरांचली अपने गांव से जुड़ने पर गंभीरता से विचार कर सकें।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ. विनोद बछेती ने कहा की उत्तरांचल को लेकर उत्तरांचल उत्थान परिषद का विचार है कि उत्तराखड की करीबन 30 लाख आबादी तो केवल दिल्ली में ही निवास करती है जो की लगभग पांच हज़ार संस्थाओं के माध्यम से किसी ना किसी तरह से सामाजिक कार्यों से जुड़ी है।

परिषद उत्तराखण्डी समाज को इस पंचायत के माध्यम से एक मंच पर आमन्त्रित कर ग्राम विकास कार्य को गति देना चाहती है। इस प्रवासी पंचायत के माध्यम से परिषद गढ़वाली और कुमाऊँनी भाषाओं को आठवीं अनुसूची में शामिल कराने का प्रयास कर रही है। परिषद का विचार है कि चौदह साल बीत जाने पर गढ़वाली और कुमाऊँनी भाषाओं को वो समान नहीं मिला जो अनेक आंचिलक बोलियों और भाषाओँ को प्राप्त हो चुका है। उत्थान परिषद का ये प्रयास है की जल्दी से जल्दी इन भाषाओं को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के साथ-साथ दिल्ली में उत्तराखणड भाषा के लिए एक अलग अकादमी की भी स्थापना हो।

इस अवसर पर उतराखंड में लगभग 10 हजार पौधें लगा चुके गणेश गयाल को सम्मानित किया गया। मंच का संचालन योगाचार्य डॉ. नवदीप जोशी ने किया ।