महाशक्ति की महिमा


वासुदेव शर्मा

संसार में सभी प्राणियों के लिए मातृभाव की महती महिमा है | सर्वप्रथम माता की तरह ही गोद में उसे लोक-दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होता है, इसलिए माता ही सभी प्राणियों की आदिगुरु के रूप में प्रतिष्ठित है | जो भगवती महाशाक्तिस्वरूपिणी देवी तथा समष्टिरूपिणी सम्पूर्ण जगत की माता है, वे ही सम्पूर्ण लोकों को कल्याण का मार्ग प्रदर्शित करने वाली ज्ञानगुरुस्वरूपा भी है | परमात्मारूपिणी महाशक्ति ही विविध शक्तियों के रूप में सर्वत्र क्रीडा करती हैं – सम्पूर्ण जगत शक्ति की क्रीडा (लीला) है | शक्तिरहित हो जाना शून्यता है | शक्तिहीन मनुष्य का कहीं भी आदर नहीं किया जाता है | ध्रूव तथा प्रह्लाद भक्ति-शक्ति के कारण ही पूजित हैं | हनुमान तथा भीष्म की ब्रह्मचर्य शक्ति, वाल्मीकि तथा व्यास की कवित्व शक्ति, हरीश्चन्द्र तथा युधिष्ठिर की सत्य शक्ति और शिवाजी तथा राणा प्रताप की वीर शक्ति ही इन महात्माओं के प्रति श्रद्धा-समाहर अर्पित करने के लिए सभी लोगों को प्रेरणा प्रदान करती है | सभी जगह शक्ति की ही प्रधानता है | इसलिए प्रकारान्तर से कहा जा सकता है की सम्पूर्ण विश्व महाशक्ति का ही विलास है | भगवती स्वयं उदघोष करती हैं – “समस्त जगत मैं ही हूँ , मेरे अतिरिक्त अन्य कुछ भी सनातन तत्त्व नहीं है |”

समस्त शास्त्रों में देवी सर्वत्र मानी गयी हैं | वे भगवती बिंदुरूप नित्य अर्ध मात्र में स्थित है |
ॐ कार का ‘अ’ ब्रह्मा रूप है, ‘उ’ विष्णु का रूप है ‘म्’ भगवान् शिव का रूप है और अर्धमात्रा (चन्द्रबिन्दु) भगवती महेश्वरी का रूप है | भगवती योगमाया के प्रभाव से प्रत्येक युग में भगवान् विष्णु के अवतार होते रहते हैं ;इसमें संदेह नहीं करना चाहिए | अत्यंत निगूढ़ रहस्यों वाली जो भगवती अप्रत्यक्ष रूप से नेत्र की पलक झंपने मात्र में भली भांति जगत की उत्पत्ति पालन तथा संहार कर देती है ; वे ही ब्रह्मा ,विष्णु तथा शिव को अनेकविध रूपों में अवतार ग्रहण करने में निरंतर दु:खों से व्याकुल करती रहती है |

मूल प्रक्रतिजन्य उग्र अहंकार से ही इस स्थावर-जंगमात्मक जगत की उत्पत्ति हुई है और इसी से विष्णु, शिव आदि देवों का प्रादुर्भाव हुआ है | उस अहंकार से मुक्त प्राणी सांसारिक बंधन से छूट जाता है और उसके वशीभूत हुआ प्राणी सांसारिक बंधन में पड़ जाता है | स्त्री, धन , घर ,पुत्र तथा सहोदर भाई – ये सब बंधन के मूल कारण नहीं हैं, अपितु अहंकार ही प्राणियों के लिए बंधनकारी वस्तु है | अहंकार ही अज्ञान का मूल कारण है तथा उसी से इस जगत की उत्पत्ति हुई है | मिट्टी के पिंड के बिना घड़ा न तो बन सकता है , न दिखाई पड़ सकता है | आप यह जान लीजिये की ब्रह्मा से लेकर तृणपर्यन्त सम्पूर्ण जगत, सभी देव , मानव तथा पशु-पक्षी योगमाया आधिशक्ति भगवती के वश में हैं |

मकड़ी के तन्तुजाल में फंसे कीट की भाँती ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश आदि ये सभी देव उन भगवती की लीला से माया रुपी बंधन में पद जाते हैं और आवागमन के चक्कर में भ्रमण करते रहते हैं (विविध अवतार लेते रहते हैं) | ब्रह्मा,विष्णु, महेश तथा अन्य देवतागण आपके शरणदायक चरणकमल की निरंतर उपासना करते हैं, किन्तु जो अल्पबुद्धि मनुष्य भ्रमित होकर मन से आपकी आराधना नहीं करते , वे संसार-सागर में बार-बार गिरते हैं |

मनुष्य अपने जीवन को किस प्रकार सुख समृद्धि एवं शान्ति संपन्न कर सकता है तथा उसी जीवन से जीव मात्र के कल्याण में सहायक होता हुआ उस जगदम्बा जगज्जननी देवी को अपने चित्त में रखिये और कभी विस्मृत न कीजिए | अमृत के पान से तो केवल एक ही मनुष्य अजर-अमर होता है, किन्तु भगवती का कथा रूप अमृत सम्पूर्ण कुल को ही अजर-अमर बना देता है |

नमः शिवायै कल्याण्यै शान्तै पुष्टयै नमो नमः |
भगवत्यै नमो देव्यै रुद्राण्यै सततं नमः ||

कालरात्र्यै तथाम्बायै इंद्राण्ये ते नमो नमः |
सिद्धयै बुद्धयै तथा वृद्धयै वैष्णव्यै ते नमो नमः ||