फ़ोन करते समय हम “हैल्लो” क्यों कहते है !

आर डी भारद्वाज “नूरपुरी “

किसी दूर बैठे हुए सज्जण से बात करने के लिए बनाई गई मशीन टेलीफोन सुनने और कॉल करवाने वाली मशीन – टेलीफोन का अविष्कार इंग्लैंड के एक विज्ञानिक एलेग्जेंडर ग्राहम बेल्ल ने 1927 में कर दिया था ! तब से आज तक जब भी हम फ़ोन करते हैं या सुनते हैं तो पहला शब्द जो हमारे मुख से निकलता है , वह होता है – हैल्लो ! जानते हो ऐसा क्यों होता है ?

दरअसल , ग्राहम बेल्ल ने जब इस दूरभाष यंत्र का अविष्कार किया तो उसे लोगों को बताने के लिए और उसका रजिस्ट्रेशन करवाने से पहले इसका एक बार प्रदर्शन करना अनिवार्य था , सो इस शर्त को पूरा करने के लिए ग्राहम बेल्ल ने अपने यन्त्र का प्रदर्शन किया , ताकि उस प्रदर्शन से लोगों को पता चल सके कि यह दूर से बैठे किसी सज्जण से बात करने में हमें सहायता देने वाली नवीनतम मशीन है और यह सही सलामत काम भी करती है ! इसके लिए शुरुआती दौर में दो दूरभाष यंत्र मशीनें बनाई गई थी ! यह प्रदर्शन देखने के लिए बहुत से लोग व पत्रकार भी इक्कठे हो गए थे ! ग्राहम बेल्ल ने उपस्तिथ लोगों को बताया कि इन में से एक मशीन यहाँ रखी जाएगी और दूसरी यहाँ से 100 मीटर की दूरी पर होगी ! इस मशीन का नंबर 10 है और दूसरे छोर पर रखी गई मशीन का नंबर 11 है ! दोनों के बीच सम्पर्क साधने के लिए दोनों महीनों को एक बिजली की तार से जोड़ा गया ! इस वाले स्थान पर वह वैज्ञानिक बैठ गए और दूसरे कोने पर उन्होंने अपनी लेबोरेटरी असिस्टेंट को भेज दिया ! उन यंत्रो के जरिये बात वाक़्या ही हो रही है , यह बात की पुष्टि करने के लिए कुच्छ व्यक्तियों और पत्रकारों को दूसरे कोने पर अपनी असिस्टेंट के साथ भेज दिया गया ! 


फिर ग्राहम बेल्ल ने इस वाली मशीन से दूसरी मशीन का नंबर 11 मिलाया ! दूसरे छोर पर रखी गयी मशीन की घण्टी बजी और उस विज्ञानिक की असिस्टेंट ने उस यंत्र का रिसीवर उठाया और ऐसे बातचीत की सिलसिला छुरु हुआ ! इधर से ग्राहम बेल्ल ने बोला , “हैल्लो ! क्या आप मेरी आवाज़ सुन रही हो ?” दुसरे कोने पर रखी गयी मशीन पर उनकी असिस्टेंट ने फ़ोन उठाकर उत्तर दिया , “हाँ ! मैं सुन रही हूँ ! ” फिर वहाँ पर खड़े कुच्छ और लोगों / पत्रकारों व् अन्य उपस्तिथ विज्ञानकों से भी बात करवाई गई ताकि इस बात का सबको पुष्टिकरण हो सके कि यह दोनों यन्त्र वाक़या ही काम कर रहे हैं ! उन्होंने ने भी उस यंत्रों के माध्यम से बात की और ग्राहम बेल्ल के इस दावे / कथन की पुष्टि हो गई कि यह दूरभाष यन्त्र वाक़या ही सही सलामत काम कर रहा है ! 

फिर वहाँ खड़े किसी सज्जण ने ग्राहम बेल्ल से पूछा , “आपने जब बातचीत शुरू की थी , तब आपने सबसे पहले लफ़्ज़ हैल्लो क्यों कहा था ! ग्राहम बेल्ल ने उत्तर दिया , “उस दूसरे यन्त्र के पास बैठी लड़की का नाम मार्ग्रेट हेल्लो है और वह मेरी लेबोरेटरी असिस्टेंट हैं और मैं उसे हमेशा इसी नाम से पुकारता हूँ !” फिर उस सवाल करता पत्रकार ने मजाकिया अन्दाज़ में पूछा , “तो क्या , जब हम भी बात करेंगे तो पहला शब्द हम भी हेल्लो ही कह सकते हैं ?” ग्राहम बेल्ल ने उत्तर दिया , “क्यों नहीं ! आप भी कह सकते हो ! मेरी वह लेबोरेटरी असिस्टेंट मेरा बहुत ख्याल रखती है , वह बड़ी सकारात्मिक और आशावादी विचारों वाली लड़की है , जब मैं बहुत देर अपनी रिसर्च का काम करते २ थक जाता हूँ या कभी उस काम से मुझे मन माफ़िक नतीजे देखने को नहीं मिलते , तो भी वह लड़की मुझे हौंसला देते हुए कहती है – “सर ! कोई बात नहीं ! आप थोड़ा आराम कर लीजिये , मैं आपके लिए चाय / कॉफी और ब्रेड टोस्ट या ऑमलेट वगैरह लाती हूँ ! सचमुच उसकी सहायता के बिना इस मशीन का पूरा होना बड़ा मुश्किल होता ! इसलिए ! मेरा तो यही कहना है कि आप भी जब इस दूरभाष मशीन का इस्तेमाल करें , तो पहला शब्द – हेल्लो ही कहें , ताकि इस दूरभाष मशीन के अविष्कार के लिए मेरे साथ २ लोग मार्ग्रेट हेल्लो का योगदान भी याद रखें !”

तो ऐसे , तब से लेकर आजतक , जब भी हम फ़ोन करते हैं तो पहला शब्द हम या फिर दूसरे कोने पर फ़ोन सुनने वाला सज्जण – हेल्लो ही कहता है !