यह बात 1975 या 1976 की होगी और उस वक़्त मैं अपने जिले जलंधर में लभु राम दोआबा हॉयर सेकेंडरी स्कूल ( अब तो यह सीनियर सेकेंडरी स्कूल बन गया है ) में हॉयर सेकेंडरी ( 11वीं ) में पढ़ रहा था ! एक बार हमारे स्कूल की तरफ़ से हमें एक हिन्दी फ़िल्म ( सावन भादों ) दिखाई गई , हम 70-75 बच्चे और दस के करीब हमारे अध्यापक फिल्म देखने गए ! उस वक़्त यह फिल्म जलंधर के लक्ष्मी पैलेस सिनेमा हाल में चल रही थी ! फिल्म में जब इंटरवल हुआ तो सभी अध्यापक और बच्चे हाल के बाहर थोड़ा खुली जगह में आ गए और गपशप / हंसी मज़ाक करने लगे ! उसी गपशप के माहौल में हमारे हिन्दी के एक अध्यापक – सुभाष सहगल जी ने गणित के अध्यापक – मनमोहन शर्मा जी से सवाल किया , ” शर्मा जी ! आप तो अक्सर कहते रहते हो कि गणित के बिना हमारी जिन्दगी अधूरी है, जीवन में किसी भी काम में अगर आपने मुकम्मल सफ़लता हासिल करनी है तो आपको गणित का भी सही २ हिसाब किताब रखना चाहिए , नहीं तो आपका काम सही ढंग से पूरा नहीं हो सकता !” शर्मा जी ने उत्तर दिया , “जी हाँ ! यह बात तो बिलकुल सही है और मैं इस बात को मानता हूँ और अभी भी इसपे कायम हूँ !” सहगल जी ने दूसरा सवाल किया , “अच्छा तो फ़िर यह बताएँ कि – यह जो फिल्म हम देख रहे हैं – सावन भादों , आधी फिल्म चल चुकी है, इसमें गणित कहाँ है ? इसमें कोई गणित है भी या नहीं ?”
शर्मा जी ने बड़ी दृढ़ता और पूरे विश्वास से उत्तर दिया – इस फिल्म में भी गणित बिलकुल है !” सहगल जी ने फ़िर पूछा , “जरा हमें भी समझाएं – इसमें गणित कहाँ और कैसे है, हमें तो कहीं दिखाई नहीं दिया ?’ शर्मा जी ने पूरे दावे से उत्तर दिया , “इसमें तो फिल्म के हीरो – नवीन निस्चल ने बोल बोल के बताया है, क्या आपने सुना नहीं ?” पास खड़े पंजाबी के अध्यापक – रणबीर सिंह ने भी बड़ी उत्सुकता और हैरानगी से पूछा , “हमें तो पता नहीं चला , इसमें गणित कहाँ आया और इस फिल्म के हीरो ने कब बोलबोल के समझाया ? अगर आपको समझ आ गया है तो हमें भी बताएँ ?” शर्मा जी ने फ़िर थोड़ा विस्तार से उत्तर दिया , “देखो ! फिल्म के शुरू में ही एक गाना आया था , जिसमें फिल्म की हीरोइन रेखा को बड़े स्पष्ट लफ़्ज़ों में हीरो ने नाच गाने के साथ समझाया – “कान में झुमका , चाल में ठुमका, कमर पे चोटी लटके / हो गया दिल का पुर्जा 2, लगे पच्चासी झटके / ओह तेरा रंग है नशीला अंग अंग है नशीला !”पच्चासी झटके – अर्थात – 9 का स्क्वायर + 2 का स्क्वायर, जोड़के देखो – हो गए ना पूरे 85. अब बताओ , इससे ज़्यादा बेहतर तरीके से फिल्म का हीरो और निर्देशक आपको गणित कैसे समझाएंगे ?”
शर्मा जी का अजीबो-गरीब स्पष्टीकरण सुनकर बाकी सभी अध्यापक बड़ा खुलके ठहाके मारकर हँसने लगे और हिस्ट्री और जियोग्राफी के अध्यापक तीरथ राम शर्मा बोले , “वाह शर्मा जी ! वह ! मान गए आपको और आपके गणित को भी !!” अब आप लगे हाथ यह भी बता दो – क्या रेखा ने पूरे पच्चासी झटके वाक़्या ही लगाए हैं या नहीं ? वैसे मेरा तो मानना है कि यह इन दोनों से ज्यादा बड़ा कमाल तो फिल्म के गीतकार का है , जिसने इतना बढ़िया , मजेदार और लुभावना गाना लिखा और उसपे भी सोने पे सुहागा — रफ़ी साहेब ने इसे गाया भी बड़े दिलकश अंदाज़ में है, सचमुच ! मज़ा आ गया !”
आर.डी भारद्वाज ” नूरपुरी “