सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का सच


ब्रह्माण्ड के अवयवों में कितनी ही सुंदर सृष्टियों का समावेश है | इसका सही ज्ञान तो किसी एक प्राणी के लिए बहुत ही कठिन जान पड़ता है |

सृष्टि की प्रकृति और ब्रह्माण्ड, ये सभी एक ही अवयव हैं | इसमें सभी छोटे छोटे जीवों,मनुष्यों एवं प्राणियों का समावेश है |इसका यह अर्थ हुआ कि हम भी इसी तीनों अवयवों में से एक हैं |इन तीनों में ब्रह्माण्ड सबसे बड़ा है – सृष्टि एवं प्रकृति इसी के अंतर्गत आती है |

जैसे अगर हमने झूठ बोला किसी से तो उसका नियम के विरुद्ध तुरंत प्रतिक्रिया होती और उसका फल आने में थोड़ी देरी जरूर होती है परन्तु झूठ बोलने का फल हमें हमेशा कष्टकारी ही मिलेगा | देरी के कारण हम लोग समझ लेते हैं कि हमें अच्छा फल मिला – यही हमारी मानसिक कमज़ोरी है |

सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का खेल केवल एक अटूट नियम है-अच्छे या बुरे सब नियम के अनुकूल अथवा प्रतिकूल होने पर ही संभव होते हैं |

इस नियम को किसने बनाया? यह तो बहुत ही रहस्य का विषय है | उसे वही जान सकता है जो की सभी प्राणियों में अपनी ही उपस्थिति का आभास करे (वासुदेवः सर्वं)| तभी वह इस नियम को बनाने वाले को समझ सकता है | इसको समझने के लिए उसका अपना ही अन्तरंग ज्ञान एवं भावना सहायक होता है |

ज्ञान के अंतर्गत योग-साधना,तंत्र-मन्त्र सभी का समावेश है |भावना के अंतर्गत भक्ति अथवा भगवान् को अपने ही भाई,माता,पिता जैसे संबंधों को मानकर उसे भावना को पवित्र करना है | यह दो माध्यम हैं जिनके द्वारा हम नियम को बनाने वाले को समझने में समर्थ हो सकते हैं |

नियम बनाने वाले को आखिर सभी धर्म मानते हैं | सभी ने अलग अलग नाम भी दिए हैं अल्लाह, ईश्वर, गॉड….|

भगवान् की रचना जो सर्वोच्च शिखर पर है वह है- ब्रह्माण्ड, जिसमें सभी प्रकार के ग्रह ,तारे तथा सूर्य जैसे बड़े-बड़े पिंडों का समावेश है | हमारी पृथ्वी भी उन्हीं में से एक है | वैसे सभी पिंडों पर जीवन है लेकिन हमें जानकारी बहुत कम है | इसलिए हमें केवल पृथ्वी का ही ज्ञान है तथा अन्य ग्रहों का ज्ञान गौण है |

दुसरे शिखर पर सृष्टि है | सृष्टि सभी ग्रहों तथा पिंडों की रचना करती है | सभी जीवों तथा प्राणियों के लिए अवयव बनाती है तथा उनके अनुरूप वातावरण तैयार करती है – बस यही काम है सृष्टि का |

तीसरे एवं अंतिम शिखर पर प्रकृति है जो सभी प्राणियों तथा जीवों को कार्य करने का तरीका बतलाती है | वह सभी को हर कर्म करने के लिए आदेश देती हुई प्रतीत होती है | आदेश का अर्थ यह है की वह प्राणियों को कैसे कर्म करना चाहिए – उसकी जानकारी देती है तथा सभी प्राणी उनके ही आदेशों का पालन करते हैं | जो प्राणी अपने कर्मों में कोई भी गलती करता है अथवा दूसरों को ज़रा भी नाश करने की एक छोटी सी भावना को किसी भी रूप में आश्रय देता है, उसे दण्डित अवश्य किया जाता है | इसी प्रकार यदि कोई प्राणी किसी दुसरे प्राणी का सहयोग व हंसा से कर्मों को उचित दिशा देता है उसे कुछ अच्छे परिणामों की सहायता से कर्मों में सहयोग मिलता है |

ब्रह्मांड के सबसे सूक्ष्म जीव वे हैं जो दृष्टि से दिखाई नहीं देते | वे वास्तव में एक प्रकार के ऐसे जीव हैं जो सदैव ही अपने स्वरुप को अदृश्य रखने की क्षमता रखते हैं | ऐसे जीव ब्रह्माण्ड के सभी ग्रहों, पिंडों पर आसानी से विचरण कर सकते हैं | उन्हें चलने के लिए किसी माध्यम की आवश्यकता नहीं है | इसलिए ऐसे जीवों की गति सबसे तीव्र मन की गति से भी अधिक है |

दृष्टिगोचर प्राणियों में कीट-पतंगे तथा सभी प्रकार के छोटे-बड़े प्राणी आते हैं | वे किसी प्रकार केवल जीवन्त रहने की क्रिया को चलाते हैं – बस इस कर्म के लिए उन्हें अधिक बुद्धि या ईशान(अधिक विचार) की आवश्यकता नहीं होती | अतः ये प्राणी औरों से कम महत्त्व के माने जाते हैं |

सबसे कार्यवंदानीय प्राणी है ‘मानव जीव’ |

इस पूरे ब्रह्माण्ड का यह सर्वोच्च अधिकारी माना जाता है | यही प्राणी है जिसमें और सभी जीवों को अपनी शक्ति द्वारा प्रभावित करने की योग्यता है |

जीवों को आश्रय देती है पृथ्वी | यही पूरे ब्रह्माण्ड का सबसे अधिक क्रियाशील एवं नीयम प्रतिबद्धता का समर्थन करती है | पृथ्वी पर जीव,जो भिन्न वातावरण में रहते हैं, सबों को इतना संतुलित करना, यह वास्तव में सबसे कर्मठ गुण को उजागर करती है | इसलिए मानव से भी यह अधिक कर्म के क्षेत्र में प्रगतिशील मानी जाती है |

पृथ्वी हमेशा परिवर्तन बड़ी ही चतुराई से करती है जिनसे मूल स्वरुप वास्तव में बहुत देर से उसका बदला सामने आता है – मानव उसे अपनी ही किसी भौतिक पराकाष्ठा का कारण समझ लेता है |

वायु, अग्नि, जल एवं ठोस पदार्थ- सभी पृथ्वी के ही अवयव हैं | इन्ही की क्रिया-प्रतिक्रिया का ही परिणाम है विज्ञान , जिसे मानव अपनी उपलब्धि समझ कर पृथ्वी की वास्तविकता को गौण समझने लगता है |

सूर्य व चाँद सितारे और भी कई ऐसे ग्रह हैं जो सभी बराबर घुमते ही रहते हैं | घूमना ही उनका कर्तव्य नहीं बल्की नियति है | जिस प्रकार प्राणी को कर्म करना है, उसी प्रकार ग्रहों को घूमना है | इनके घूर्णण की क्रिया से ही सारे परिवर्तन सार्थकता को व्यक्त करते हैं | विभिन्न वातावरण को एक साथ चलाना- यह स्थिरता से संभव ना होता | अतः इन सबों को घूर्णनता प्रदान की गयी है | कर्म के अनुसार ही गुणों का विभाजन किया गया है | इससे नियमबद्धता को चलाने वाले की चतुराई का आभास मात्र कर सकते हैं |

सूर्य की ऊष्णता अभी मानव की पहुँच से दूर है | वह सभी को हमेशा भस्म कर देने वाली प्रकृति को वक्त करता हुआ चमकता रहता है | सभी को बराबर नियम का पालन करने का आदेश देता हुआ जान पड़ता है – यदि उसे भगवान् का दूत कहा जाए तो यह गलत ना होगा |

जब हम सभी नियमों को समझ कर कर्म करेंगे तभी हम सत् चित् आनंद की अनुभूति सरल व सहज रूप से कर सकते हैं |

-मधुरिता