तारीफ करना भी सीखें

वंदना तिवारी 

तारीफ या प्रशंसा शब्द बोलते ही लगता है की मानो मुख में मिठास घुल गई हो।आप स्वयं ही देखे जब भी आप किसी की तारीफ करती है तो मुहं से मीठे बोल ही निकलते है और जिसकी तारीफ़ करती है वह स्वयं भी इस तारीफ से सरोबार हो ख़ुशी से प्रफुल्लित हो जाता है। वैसे देखा जाए तो तारीफ के भी दो पहलू हैं। पहला , किसी की सही मायने में तारीफ की जाए .दूसरा, अपना काम निकालने के लिए तारीफ करने के बहाने मक्खनबाजी की जाए। खैर हम इसके दूसरें पहलू पर न जायें।

तारीफ करना कोई कठिन काम नहीं है फिर भी कईयों के लिए यह कठिन कार्य है। तारीफ उन लोगों के लिए इतना कठिन क्यों है? कई बार इसका उत्तर जानने का प्रयास किया , थोड़ी बहुत ही सफलता मिली। अपने बुद्धि के स्तर से ये ही जान पाई की तारीफ करने में सबसे बड़ी बाधा “मैं ” के स्वरुप का तिरोहित होना हैं।अगर इस “मैं ” का चक्रव्यूह टूट जाए तो शायद तारीफ करने का अहसास होना शुरू हो जाता है। इसका अहसास उसी तरह है जैसे आप किसी को एक ताजा गुलाब दे। और उस पर जल की बुँदे पड़ी हो। इसका अहसास न हो तो ,एक मुरझाएं फूल के समान हैं।”मैं” “हम” में बदल जाता है।सारी दुनिया आपकी और आप सबके हो जाते है।

व्यवहारिक रूप में जब हम तारीफ करते हैं तो जहाँ एक तरफ किसी के गुणों की, उसकी योग्यता और विशिष्टताओं की स्वीकृति है वहीँ उसके उस गुण के प्रति अपने आपको कम आंकना भी है।यही कारण है कि तारीफ करना कठिन कार्य लगता है।

मेरी एक परिचिता है जिनकी तारीफ करने की सीमा सिर्फ अपनी और अपने पति, बच्चों तक ही हैं। अगर उन्होंने किसी की तारीफ कर भी दी तो समझ जाएँ वहां मक्खन लगाया जा रहा है। किसी के गुणों को स्वीकार करके तारीफ करना या तारीफ करके प्रोत्साहित करना लोगों के लिए कितना कठिन कार्य है । अगर ऐसे व्यक्ति को किसी की तारीफ करनी पड़े तो मन ही मन साथ में बद दुआ भी दे देगा।

लेकिन इस दुनिया में ऐसे भी लोग मिल जायेंगे जिनके मुख से तारीफ के बोल फूलों के समान लगते हैं। जिनसे मिलने पर सकारात्मक ऊर्जा मिलती हैं। उनसे मिलकर चेहरे पर एक चमक आ जाती हैं।सारी नकारात्मक सोच निकल जाती हैं। ऐसे सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति हम भी बन सकते है।थोडा सा प्रयास करे तो जीवन उस ताजे गुलाब पर पड़े बूंद के समान हो जायेगा ।जीवन शांत , नकारात्मकता से दूर आनंदित होने लगता है।

अत: तारीफ करे और आगे बढ़े ।