दूरदर्शन पर प्रसारित स्पर्धात्मक कार्यक्रमों से बालकों में उत्पन्न होती हीन भावना

डा.एम.सी.जैन

एम.ए.,पीएचडी (मनोविज्ञान)
पूर्व एसोसिएट प्रोफेसर, एनसीईआरटी 

यह सत्य है कि बालकों का मन केवल कोमल ही नहीं होता है बल्कि संवेदनशील भी होता है। यदि हम विकास की विभिन्न अवस्थाओं अर्थात शैशावस्था, बाल्यावस्था तथा किशोरावस्था की ओर देखें तो, हमें प्रतीत होता है कि इन अवस्थाओं में बालक बहुत कुछ सीखता है और अपने मन में धारण करता है। इससे उसका मानसिक, संवेगात्मक तथा सामाजिक विकास होता है। कुछ ऐसी भावनाएं उसके मन में घर कर लेती हैं जो आगे चलकर उसके वातावरण को प्रभावित करती हैं। आजकल हम सभी अपने बच्चों के साथ दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले अनेक स्पर्धात्मक कार्यक्रमों को देखते हैं।


दो बच्चों के बीच होने वाले स्पर्धात्मक कार्यक्रम जो बहुत ही बड़े जनसमूह के सामने प्रदर्शित किए जा रहे हैं उसमें ये निश्चित है कि एक बच्चा सफल और एक असफल होगा। क्या हमने कभी सोचा है कि असफल बच्चे के मन में क्या भावना अथवा कुंठा विकसित होने जा रही है? अक्सर बालकों में असफल होने पर हीन भावना उत्पन्न हो जाती है जो उनके विकास के लिए पूर्णतः हानिकारक होने के साथ-साथ उनके भविष्य के लिए भी नुकसानदायक होती है। उनके इस तनाव पूर्ण वातावरण को उनका अतीत प्रभावित करता है। असफलता की स्थिति में बालकों का मन एवं जीवन बहुत की भावात्मक हो जाता है। यहाँ तक की कभी-कभी वह भावावेश में कुछ ऐसे कार्य कर डालता है जो असंभव एवं असाधारण कहे जा सकते हैं। ऐसा बालक अनेक प्रकार के संवेगों की अनुभूति करने लगता है और अत्यंत संवेगात्मक जीवन व्यतीत्त करने की सोचने लगता है जहाँ उसके अत्यधिक उत्साह एवं गंभीर निराशा के निरंतर विकल्प में हम व्यव्हार के घनात्मक एवं निषेधात्मक रूपों की लय एक बार पुनः देख सकते हैं।

प्रमुख मनोवैज्ञानिक John B. Watson के अनुसार ऐसे बालकों में उत्पन्न संवेगों का प्रभाव इतना अस्पष्ट होता है कि हम पूर्णरूपेण नहीं बता सकते कि अमुक बालक इस समय किस संवेग का अनुभव कर रहा है। ऐसी स्थिति में बालक अपने संवेगों पर नियंत्रण करने में पूर्ण असमर्थ होता है।

ऐसे में माता-पिता और शिक्षकों से यह अपेक्षा है कि वह बालकों के संवेगात्मक व्यव्हार से उत्पन्न मानसिक विकास को भलीभांति समझें और अपना पूर्ण सहयोग दें। दूरदर्शन पर ऐसे कार्यक्रम प्रसारित करने वालों से भी यह अपेक्षा की जा सकती है कि वे अपना निर्णय जनसमूह के सामने न देकर सफल बालक के घर पर भेजें तथा असफल बालक को प्रोत्साहित करते हुए उसे पुनः प्रयास करने के लिए उसका उत्साहवर्धन करें।