WOW@GuruBhai की क़लम से
कब कौन क्या सिखा जाए, ये कोई नहीं बता सकता, बस इंसान के अंदर सीखने की ललक होनी चाहिए! मेरा आज का लेख मिस्टर इंद्रजीत सिंह सभरवाल(फ़रीदाबाद वाले ) के जीवन की एक सच्ची घटना पर आधारित है की कैसे उन्होंने अपने जीवन में शाकाहार को अपनाया ।आज से लगभग 40 साल पहले जब मिस्टर सभरवाल की शादी हुई थी तो उनकी वाइफ़ शाकाहारी थी ओर वे ख़ुद माँसाहारी, लेकिन इस बात से उनकी पत्नी को कोई एतराज़ नहीं था ।उनका जीवन ख़ुशहाल तरीक़े से बीत रहा था । शादी के लगभग 8 साल बीत जाने के बाद उनके एक ऐसा वाक्य हुआ की उनका जीवन ही बदल गया । मिस्टर जैन साहब जो की सभरवाल जी के किरदार थे, एक दिन उनसे बोलते है की मैं आपका मकान ख़ाली करना चाहता हूँ, तो सभरवाल जी को जैन जी की ये बात समझ नहीं आयी क्यूँकि जैन साहब तो एक सज्जन पुरुष थे ओर किराया भी समय पर दे दिया करते थे ओर मकान मालिक भी जैन साहब के लिए ठीक थे तो फिर वो मकान क्यूँ ख़ाली कर रहे थे । ये बात उनको समझ नहीं आई ओर वो थोड़ा उदास हो गए । मिस्टर जैन ने उनके मन की उलझन को समझ लिया ओर सभरवाल जी से ही कुछ सवाल कर लिए । जैन साहब ने सभरवाल जी पूछा की सरदार जी एक बात बताओ दुनिया में भगवान ने हमारे खाने के लिए कितनी सब्ज़ियाँ,फल, दालें, मेवे आदि बनाए है तो सभरवाल जी ने उत्तर दिया की अनगिनत है तो फिर जैन साहब ने उन्हें मकान ख़ाली करने का कारण बताया की अपने घर में आप लोग माँस का सेवन करते है ओर हम नहीं करते इसीलिए मैं आपका मकान ख़ाली कर रहा हूँ किसी शाकाहारी परिवार में रहूँगा क्यूँकि आपके घर में तो माँस खाना आम बात है ।
आप लोग सिर्फ़ एक माँस के स्वाद के लालच में जानवरो के मरने का इंतज़ार करते है ओर उस खुदा ने जो अनगिनत शाकाहारी चीज़ें बनायी है उसको नज़रंदाज़ करते है । सरदार जी को अब जैन जी की थोड़ी सी बात समझ आईं लेकिन जैन साहब ने जो अगली बात बताई वो कमाल की थी, उन्होंने सभरवाल जी को बताया कि हम अन्न को भगवान की तरह पूजते है अगर रोटी या खाने की कोई चीज़ ग़लती से नीचे गिर जाए तो हम उसको उठा कर माथे से लगाकर अन्न का सम्मान करते है तो फिर हम उस अन्न को मरे हुए जानवरो के टुकड़ों की सब्ज़ी बनाकर उसके साथ लगा कर कैसे खा सकते है, ऐसा करने से तो हम ख़ुद ही अन्न का अनादर करते है मतलब की अन्न का अनादर करना अपने उस भगवान या खुदा का अनादर करने जैसा ही हुआ , क्या हमें अपने अन्न रूपी भगवान का निरादर करना चाहिए । सभरवाल जी को जैन साहब द्वारा वो ज्ञान प्राप्त हुआ जो शायद हम सबके जीवन में अन्न ओर शाकाहार की क़दर को बढ़ा दे । उन्होंने जैन जी से वादा किया की वो उस दिन से माँस न तो खाएँगे ओर ना ही हाथ लगाएँगे ओर जहाँ तक हो सकेगा इस शिक्षा को दूसरे लोगों को भी देंगे ताकि जो ग़लती वो अनजाने में कर रहे थे वो ही आज भी काफ़ी लोग कर रहे है , माँस के साथ अन्न खाकर उसका निरादर । क्यूँकि एक जानवर को तड़पा कर जान से मारकर उसको आग में पका कर खाना, इंसान का का काम नहीं हो सकता ये काम सिर्फ़ निर्दयी राक्षस का ही हो सकता है ओर हम लोग तो इंसान है राक्षस नहीं । हमें ये समझना चाहिय । उस दिन दो बातें हुई , एक जो घर छोड़कर जा रहे थे , उन्हें घर नहीं छोड़ना पड़ा ओर मिस्टर सभरवाल जी ने मांसाहार छोड़ दिया ।आज पूरे 30 साल बीत चुके है ओर सभरवाल जी ना जाने कितने लोगों को यह जैन साहब की शाकाहार बनाने वाली शिक्षा दे देते जा रहे है ताकि सही बात सबतक पहुँचे लेकिन आज मेरे जैसे जो भी लोग इस लेख को पढ़ रहे है मै उसे लेख के ज़रिए उन सबसे एक ही बात कहना चाहूँगा कि रब ने शाकाहार में जो भी अनगिनत सब्ज़ियाँ,फल,मेवे दाल आदि बनाए है हम उनका उनका सेवन करे, माँस का नहीं ।क्यूँकि जैसा हम खाते है वैसे ही हमारे विचार होते है ।सादा खाए ओर सादा जीवन बितायें । अगर ये लेख आपको शिक्षाप्रद लगा तो आज से आप भी शाकाहार को अपनाए ।