आज 11 दिसंबर को क्रांतिधरा साहित्य अकादमी द्वारा आई आई एम टी विश्वविद्यालय, मेरठ में आयोजित मेरठ लिट्रेरी फेस्टिवल के दूसरे दिन साहित्यिक एवं सामाजिक परिचर्चाएं, कवि सम्मलेन, विमोचन कार्यक्रम एवं किस्सागोई तीन सत्रों में आयोजित हुआ। डॉ कुंवर बेचैन आज के मुख्य अतिथि रहे जिन्होंने ग़ज़ल सुना कर लोगों को मंत्रमुग्ध करा।
आज के कार्यक्रम का शुभारम्भ प्रथम सत्र में ‘साहित्य में अनुवाद की भूमिका’ पर परिचर्चा के साथ हुआ, जिसमें श्री ऐ के गांधी एवं शीलवर्धन जी ने अपने विचार रखे। गांधी जी ने कहा कि एक अनुवादक को शब्दों का नहीं बल्कि भावों का अनुवाद करना होता है और उसके लिए उसे लेखक को जीना पड़ता है। शीलवर्धन जी ने अनुवाद की अहमियत बतलाते हुए कहा कि अनुवाद से छोटे से छोटे गाँव का साहित्यकार भी विश्व में पढ़ा जाता है, अतः अनुवाद साहित्य के विकास के मूल स्तम्भों में है।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में मुख्य अतिथि डॉ कुंवर बेचैन शरीक हुए। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए उन्होंने अपनी ग़ज़लों से देश-विदेश से आए अतिथियों को मन्त्र-मुग्ध करा। अपनी प्रसिद्ध रचना ‘नदी बोली समुन्दर से’ की प्रस्तुती दी और आयोजन को सराहते हुए कहा की ऐसे आयोजनों के माध्यम से ही समाज में संस्कार जीवित हैं। डॉ लक्ष्मीशंकर वाजपेयी ने साहित्य और समाज पर अपने विचार रखते हुए कहा कि
AICTE के प्रो ऐ के मित्तल जी ने तकनीकी शिक्षा में साहित्य को जोड़ने पर जोर दिया और कहा कि साहित्य को सभी शिक्षा पद्दतियों का हिस्सा होना चाहिए।
विमोचन कार्यक्रम में नेपाल की प्रमुख हिंदी पत्रिका ‘हिमालिनी’ के 21 वर्ष पूरे होने पर नेपाली संस्कृति पर विशेषांक का विमोचन किया गया। इसके साथ कोलकाता, पश्चिम बंगाल से प्रकाशित ‘साहित्य त्रिवेणी’ का ‘भारत-नेपाल मैत्री विशेषांक का विमोचन किया गया। कल्पतरु पत्रिका का भी विमोचन किया गया। लखनऊ से ‘प्रणाम पर्यटन’ पत्रिका का भी विमोचनसाहित्य, जिसमें पर्यटन व सांस्कृतिक विकास में साहित्य की भूमिका पर चर्चा हुई।
द्वितीय सत्र में दिल्ली से आईं वंदना यादव के उपन्यास ‘कितने मोर्चे’ का भी विमोचन किया गया, जिसकी समीक्षा नीलिमा शर्मा ने प्रस्तुत करी। डॉ लक्ष्मीशंकर वाजपेयी ने भी उपन्यास पर अपने विचार प्रस्तुत करे।
स्योर शॉट प्रोडक्शंस के बैनर तले बनी डॉक्युमेंटरी फिल्म ‘विजय: शिखर की ओर’ का पोस्टर लांच करा गया, जिसका निर्देशन श्री एस एस डोगरा एवं संवाद मेरठ के ही श्री मुदित बंसल ने लिखे हैं।
चक्रधर, झारखण्ड से आए रंगकर्मी श्री दिनकर शर्मा जी ने प्रेमचंद की कहानी ‘बड़े भाई साहब’ का मंचन करा। कहानी के सजीव चित्रण को सभी ने बहुत सराहा। साय सत्र में पर्यावरण में साहित्य की भूमिका पर परिचर्चा आयोजित की गई जिसमें उत्तराखंड से आए श्री समीर रतूड़ी एवं ग़ाज़ियाबाद के संजय कश्यप ने अपने विचार रखे।
साय सत्र में कवि सम्मलेन का आयोजन करा गया जिसमें देश-विदेश से आये कवियों ने अलग अलग भाषाओँ में रचनाएं प्रस्तुत करी।
Congratulations to the Organisers of Merrut Lit Fest.