पितृसत्तात्मक संरचना से उपर कि सोच “ मानवता ”

नितू अग्रहरी
रामग्राम, परासी

विश्वभर फैला हुवा कोरोना भाइरस (कोभिड–१९) का संक्रमण से मानव जाति को पहुँचा क्षति का कारण प्रश्न उठा है कि आधा विश्व लकडाउन में रख्ने के बाद भि कोरोना भाइरस कहाँ पहोच कर रुकेगा इसका अनुमान आज का दिन तक भि कोही आँकलन नही कर सका । जबतक इसका भ्याक्सिन सहज रुपमे सबको उपलब्ध हो नही सक्ता तबतक किसी का कुछ अनुमान सत्य साबित नही होगा । उसि के वजह से अभि हम लोगो को कोरोना भाइरस से बच्ना ही पहला प्राथमिकता होना चाहीए ।

प्रभावित राष्ट्रो सब से आए लोग में संक्रमण दिखने को ही प्रथम चरण कहाँ जाता है । विदेशो से आए एक व्यक्ति से अपने लोग में संक्रमण फैलना दुसरा चरण है। संक्रमण दुसरा चरण में प्रवेश कर्ने का मतलब स्थानीय व्यक्ति संक्रमित होना है । संक्रमणो को दुसरा ही चरण में ना रोक पाने के वजह से समुदायो में फैलने को तिसरा चरण कहाँ जाता है ।  तिसरा चरण में मूलुक जाने पर ज्यादा जनसंख्या संक्रमित होनेका संभावना रहता है । चौथा चरण संक्रमण के सबसे खराब अवस्था है । इस अवस्था में संक्रमण महामारी के रूप धारण करने के वजह से इसको नियन्त्रण करना बहोत ही कठिन होता है । इसी वजहसे संक्रमण को विस्तार होने से रोकना अभी कि जरुरी है । उसके लिए विदेशो से आए लोग और उन लोगो के सम्पर्क में रहे सब लोगो का जाचँ पडताल करके परीक्षण, और जो कुछ व्यक्तियो में ही फैला हुवा है संक्रमण को कन्ट्याक्ट ट्रेसिङ द्वारा आइसोलेसन, सेल्फ क्वारेन्टाइन, उपचार प्रक्रियो से संक्रमण और लोगो में फैलने से बचाया जा सकता है ।

ईस अवस्था में संक्रमित के संख्या और मानवीय क्षति सीमित रख्ने के लिए इस विपत्ति के घरी में सब लोग अपने–अपने सीप और क्षमताओ अनुसार कोरोना से सामना कर्ने के लिए और लकडाउन का पालन कर्ने में साथ देना बहोत जरुरी है । क्यूकि कोरोना से सामना कर्नेवाला और कोई उपाए नही है । नेपाल में तो आधुनिक उपकरण सहित के सुरक्षित अस्पताल भी नही है ।

किसी भी महामारी का प्रभाव शारीरिक मात्र नही होता । आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और मानसिक भी होता है । मजबुत आत्मबल वाले आदमीयो को रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता भी ज्यादा होता है । ईसी लिए बेमार पड्ने के बाद भी ठीक होने के सम्भावना ज्यादा रहता है ।  आत्मविश्वास कम हुई अवस्था में ज्यादे नरास होने के वजहसे ना ठीक होने का सम्भावित अवस्था सिर्जना हो सक्ता है कहके मनोचिकित्सक लोग बताते है । इसका प्रत्यक्ष प्रभाव रोग संक्रमण और नियन्त्रण में भी पड्ता है । कोरोना भाइरसो का संक्रमण कि लक्षण विश्लेषण कर्ने पर ए एक से दुसरो में तिब्र गति से फैलने के वजहसे इससे बच्नेका सबसे प्रभावकारी उपाय यह है कि भाइरसो को फैलने से बचाए । नेपाल के सन्दर्भ में कहाँ जाए तो सौभाग्य से अभि तक दुसरो देशो की तुलना में बहोत ही कम कोरोना संक्रमित हुए व्यक्ती पाए गए है । पर इसका मतलब यह नही है कि नेपाल बासियो इस महामारी से सुरक्षित है । कम संक्रमित व्यक्ती पाए जाने का वजह बहोत कम व्यक्तीयो में परिक्षण किया जाना, समाज में अपहेलित होने के डर से छिपाना या और कोही वजह भि हो सक्ता है ।

कोरोना संक्रमण ना फैलने पाए इस उद्देश्य से नेपाल से लेकर बहोत सारे देश अभि तक लकडाउन में है ।  सभी शैक्षिक और अन्य संस्थाओ बन्द होने के कारण लगभग सभी कार्यालयो का काम सम्भव होने तक घर से ही किए जाने के कारण घर के सभी सदस्यो घर भितर ही है । पितृसत्तात्मक संरचना में रही हमारी समाज में अघोषित रुप में ही घरायसी काम महिलाओ की जिम्मा में रख्खा जाता है । अनौपचारिक छलफल और सामाजिक संजाल सब में कइ गई पोष्ट से झलकता है कि अभि सब लोग चौंबिसो घन्टा घर पर रहने कि वजहसे महिलाओे पर घरेलु काम के बोझ बढ़ गया है । ज्यादे तरह कि महिलाओ अपना व्यक्तिगत अनुभूति सुनाती है कि ईस समय में सबेरे से रात तक रसोइ घर में विभिन्न परिकार पकाते खिलाते थकित होजाती हु , पर भी किसी का सहानुभूती नही मिलपाता है । दिनभर पती का फोन वार्तालाप सुन–सुन कर बोर हो जाती हु । सब लोग मोबाईल, ल्यापटप चलाने और टिबी देख्ने मे ही व्यस्त रहते है । उसी बिच खानेका परिकारो का माग करते रहते है, ना पाने पर माहोल खराब बनाते है, महीलाओ को अपशब्द सुनाते रहते है । मगर घरायसी कामकाज में अपना भि हाथ बाट्नेमे किसी का दिमाग नही चल्ता है, ए तो अफसोच कि बात है । जिसका एक उदाहरण इसप्रकार है ।

फेसबुक, ह्वाट्सएप पर भाइरल हुई अडियो भिडियो ः

महिला ः “जबसे ए कोरोना भाईरस आया है तब से थोडा भि फुर्सद नही मिलता है । बच्चे घर पर है हमेसा मम्मी ए बनादो वो बनादो फर्माइस करते रहते है । सारा रेस्टुरेन्ट का मेनु घर पर बनानेका मेरा हो गया है । घर ईधर सफा करके कपडे–लत्ते मिलाकर दुसरे काम करने लगती हु तबतक घर जैसा का तैसा बनादेते है बच्चे, पतीदेव भि कम नही है अपना एक सामान खोज्ने मे पुरा सामान उलटपुलट के रखदेते है । उलटेपुलटे सामान जगह पर मिलाकर रखते भि नही है । और ना तो और किचनमे आकर बरतन माझते मुझको सुनाते है । आजकाल तो कैटरिना कैफ भि अपने ही बर्तन माझती है और खाना भि बनाती है । उनके बात सुनते ही मेरा कलेजा जरगया । एक तो बर्तन माझने वाली नही आरही है सारा काम अकेले करने पर भि ईस प्रकार कि ताना सुनो । ए नही सोचपाते कुछ घरायसी काम में हाथ बटालु जिससे अपना दिकदारी मिटाने के साथसाथ समय का सदुपयोग भि होजाय और पत्नी के साथ भि रहलु जिससे घरका माहोल और भि खुशहाल हो जाए ।”

ज्यादे महिलाओ अपने खातिर समय ही नही मिलता  बताती है । ऐसा संकट कि घड़ी में किसी को किसी कि कारण बोझ महसुस ना हो और सब लोग हसी–खुशी मेलमिलाप से एक दुसरो का हाथ थामकर जिना चाहीँए । मतलब सबको मिलबाट कर घर का काम भी करलेना चाहिए । इस महामारी से सिख लेकर ए दो दिन कि जिन्दगी सब को हसीखुशी जिने के लिए मिला है समझते घरायसी काम में भी महिला और पुरुष दोनो लोग को बराबर जिम्मेवारी का काम है सोचते भेदभाव हटाना चाहिए । पति–पत्नि, भाई–बहन, छोटा–बडाÞ सब लोग मिलकर काम बाट कर के करे जिससे किसी को काम का बोझ और किसी को मनोरंजन और सुताई कि बोझ महसुस ना हो ।

इस महामारी में संक्रमित लोगो को कुछ भी पता ना चल्ते ही बहोत जल्द उनके सम्पर्क में आनेवाले लोग को संक्रमण होने कि वजह से महिला लोग ज्यादा संक्रमित होने का सम्भावना रहता है, क्यूकी लगभग सेवा स्याहार कि कामो में महिला हीं आगे आती है । उसीलिए सब लोग अपने– अपने घर के महिलाओ का भी रेखदेख करे, संक्रमण से बचानेवाला उपाय सिखाए ।

लकडाउन ने आपराधिक मानसिकतावाले पुरुषो को हिंसा करने का वातावरण बनादिया है, क्यूकि लकडाउन ने सब लोगो का रोजगारी छिन लिया है, सबमे निरासा बढा दिया है । जिस वजह से वे लोग महिलाओ और बच्चो पर अपना गुस्सा निकाल रहे है । “खाली दिमाग सैतान कि बास” कहावत तो सुने ही होगें । महिलाओ के लिए बाहर कोभिड–१९ का डर है तो अपने ही घरमे जहाँ पर सुरक्षित माना जाता है वहाँ पर भी शारीरिक और मानसिक रुप में अपमान, दुर्व्यवहार, हिंसा, हत्या और बलात्कार होने का डर है । बहोत शिक्षित समझदार व्यक्तियो एवं परिवारो में भी पितृसत्ताओ कि मानसिकता ने जकड रख्खा है । सामाजिक सञ्जालो पर तो महिलाओ, बिबियो को निचा दिखाने वाला घरायसी जिम्मेवारी एवं कामकाजो को मजाक, चुटकुले का भिडियो पोष्ट करके उपहास किया जा रहा है । पतियो को वर्तन माजते, खाना बनाते, कपडो के धोते, सरसफाई करते दिखाकर, ए सब काम महिलाओ का बस है जिसमे पुरुषो का सरीक होना लज्जासपद है जैसा गलत बिचार प्रसार होने से भावी सन्तती को भी लैंगिक आधार मे समान होने मे दखल पहुँचा रहा है । कोई भी अभि का बिचार और सोच कल का भविष्य निर्धारण करेगा इसी लिए आनेवाले दिन मे भी हमारी दर्दनाक जिवन कहानी ना दोहरे इस को मध्यनजर में रखते अपना बिचार प्रस्तुत करे । ईस संकट के समय में महिला स्वयम सतर्क रहे, ना ही किसी प्रकार कि अपराध सहे और ना ही किसीको अपराध सहने दे । “अपराध सहना जानलेवा है ” को सम्झे और सम्झाए ।

विदेशो से आए लोग में कोरोना भाइरसोका संक्रमण देख्ने पर सर्वसाधारण लोग सचेत होजाए, मगर संक्रमित के परिवार लोग से सामुदायिक घृणा ना करे । संक्रमित लोगो से छीछी और दूरदूर कर्ने पर सम्भावित संक्रमित और संक्रमित लोग रोग छिपाने कि क्रम बढ़ सक्ता है जिसकी कारण और ज्यादे लोग संक्रमण कि जोखिम में परने कि सम्भावना रहने के वजह से सावधानी अपनाते संक्रमित लोग पर घृणा और हिंसा होने ना दे ।

इस अवस्था में कोरोना भाइरसो का साथ–साथ भुख विरुद्ध कि लड़ाई कि भी बन्दोबस्त करना चाहिए । लकडाउन कि इस समय में जरुरी काम बाहेक किसी को भी बाहर नही निकलना चाहिए । अशक्त लोग, दैनिक ज्यालादारी करनेवाले कामदार, श्रमिक लोग, रिक्सा चालाक लोग जो दैनिक गुजारा चलानेवाले लोग है उनको सामाजिक और आर्थिक साहायता देना चाहिए । सरकार भी गरिबो कि समस्याओ का नजरअन्दाज ना करते हुए योजना बना कर प्रभावकारी कार्यान्वयन करना चाहिए । संघ, प्रदेश और स्थानीय तह से भी गरिबो को अती आवश्यक बस्तुओ का सहायता होना चाहीए, गैरसरकारी संघ सस्थाओ को स्थानीय रुप में परिचालन करना चाहीए । विभिन्न उद्योगी, व्यापारी, समाजसेवी से सहयोग कि अपिल किया जाना चाहीए ।

कोरोना भाइरसो से लड्नेके लिए राज्य और जनता दोनो का समान जिम्मेवारी है । ऐसा समय में नागरिक को धैर्यता और संयमता ही जरुरी है । प्रकोप के समय में हरेक नागरिक कड़ा अनुशासन में रह कर अपने साथसाथ सबको बचाना ही सबसे उत्तम उपाय है ।

(लेखिका त्रि.वी. मानवशास्त्र में विद्यावारिधी के शोधार्थी हैं )