आर्शीवचन -वरिष्ठ नागरिक दिवस के उपलक्ष् में

मुकेश भटनागर, दिल्ली, भारत
“बुजुर्ग सेवा सम्मान है जहां ; सुख समृद्धि शांति है वहां”

1 अक्टूबर अंतर्राष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन कई स्वयंसेवी संस्थाएं, वृद्धाश्रम, राज्य व केन्द्र सरकार के अंतर्गत मंत्रालय आदि सांस्कृतिक कार्यक्रम व अन्य आयोजन आयोजित करते है। इसके पीछे मुख्य उद्देश्य बुजुर्गों के अनुभव, उनके मान सम्मान व चरमराते विघटित पारिवारिक परिवेश में उनकी भूमिका और सहभागिता को उजागर करना रहता है। साथ ही वृद्ध लोगों की स्थिति के बारे में जागरूकता फैलाना है और उन्हें शिष्टाचार की प्रक्रिया के माध्यम से समर्थन देना है। वैसे तो पूरा विश्व वैलेंटाइन्स डे, वूमेंस डे, मदर्स डे, फादर्स डे बड़ी धूमधाम से मनाता है परन्तु देखा जाए तो यह दिवस भी इन्हीं सबका एडवांस वर्ज़न है इसमें नारी भी है और पुरुष भी है अलबत्ता वह अब उम्रदराज हो गये है और ग्रेंड पेरन्टस् की श्रेणी में आ गये ग्रेंड मदर और ग्रेंड फादर कहलाते हैं।

अंतर्राष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक अथवा वृद्धजन दिवस का इतिहास 1988 से है। यह आधिकारिक तौर पर संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रानाल्ड रीगन को द्वारा शुरू किया गया था। उन्होंने 19 अगस्त 1988 को इस बाबत एक घोषणा पर हस्ताक्षर किए तब 21 अगस्त को वरिष्ठ नागरिक दिवस के रूप में पेश किया गया। रानाल्ड रीगन ही इस दिवस के प्रचार-प्रसार करने वाले पहले व्यक्ति बने। उस घोषणा की व्याख्या इस प्रकार है – “उन सभी ने अपने जीवन में जो कुछ भी प्राप्त किया हो और सभी के लिए हासिल करना जारी रखा हो उसके लिए हम हमारे बुजुर्गों को धन्यवाद और दिल से नमस्कार करना चाहते है। हम यह सुनिश्चित करके संतुष्टि प्राप्त कर सकते है कि हमारे समाज में अच्छे स्थान है, बुजुर्गों के अनुकूल है, जिन जगहों पर बुजुर्ग लोग पूरी तरह से अपने जीवन का अनुभव उठा सकते है और उन्हें प्रोत्साहन, स्वीकृति, सहायता और सेवाएं मिल सकती है और अपना स्वतंत्र और गरिमापूर्ण जीवन जारी रखें।” विश्व परिपेक्ष में इस दिन का जश्न मनाने का एक कारण यह भी है कि बुजुर्गों ने अपने बच्चों के लिए जो कुछ भी किया उसके लिए उनको धन्यवाद और सम्मान करना। वे अपना पूरा जीवन रिश्तों की देखभाल में लगाते हैं। अपने परिवार के लिए पूरे जीवन इस तरह की निस्वार्थ सेवा करने के लिए उन्हें कुछ महत्व देना चाहिए। एक विशेष दिन इस प्रकार समर्पित करना अपने परिवार को अपने बड़ों के प्रति प्यार, लगाव और कृतज्ञता समझने और प्रकट करने का अवसर प्रदान करता है। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा इस दिन की आधिकारिक अवकाश की घोषणा वर्ष 1991 में की गई। इस दिन को वृद्ध के कल्याण के लिए भी मनाया जाता है ताकि उनके अनुभव क्षमता और ज्ञान से पदोन्नत होने के लिए उनकी उपलब्धियों और योग्यता की सरहाना की जा सके।

आशीर्वचन अथवा आशीर्वाद (आशीष् + वाद) स्वस्तिवचन, मंगलकारी बातें, सदभावना की अभिव्यक्ति, प्रार्थना या कल्याणकारी इच्छा को आशीर्वाद कहते हैं। आयु अथवा पद में छोटे किसी व्यक्ति के नमस्कार या चरणस्पर्श करने पर बड़ों द्वारा आशीर्वाद या आर्शीवचन देने की परम्परा है। पिछले पन्द्रह सोलह वर्षों से बुजुर्ग कल्याणकारी संगठनों से जुड़े होने के कारण बुजुर्गों की मनोदशा, एकाकीपन व कार्यकलापों को करीबी से देखने समझने और उनसे सीखने के बहुत अवसर मिले। कुल निष्कर्ष यह पाया प्रत्येक बुजुर्ग अपने आप में, नदी एक शांत धारा समान है। वहीं धारा जो कहीं उफ़ान लेती हुई, कोलाहल करती हुई, कई मोड़ और अड़चनें पार करती हुई समुंद्र की ओर बढ़ती जाती है। अपने गंतव्य या यूं कहें अन्तिम पड़ाव तक पहुंचने से पहले उसका स्वरूप शांत और सौम्य प्रतीत होता है। बुजुर्गियत की भी यही अवस्था दिखाई पड़ती है। अपने अन्तिम पड़ाव, समागम के समय वे एक चट्टान की भांति शांत प्रवर्ति के नज़र आने लगते हैं। इससे पहले वह धारा समुंद्र में विलीन हो क्यों न नौजवान पीढ़ी इस धारा के अन्तिम पड़ाव तक हम-कदम बनें रहने का संकल्प करें। आज मैं उन्हीं बुजुर्गों की कुछ सीख, उनके बहुआयामी जीवन यात्रा की आपबीती, संस्मरण, सारांश व यथार्थ साझा करने का प्रयास कर रहा हूं।

  1. तीन चीज़ें जो कोई नहीं हिला सकता – पर्वत, समुंद्र, ईमानदार व्यक्ति की ईमानदारी। अलबत्ता यह अलग बात है, कोई इन्हें कुछ समय के लिए कुछ हद तक डगमगा सकता है।
  2. तीन चीज़ें जिन पर हमें गर्व होना चाहिए – मां, मादरे-ज़बाॅ, और मादरे-वतन।
  3. बढ़ोत्तरी तो इंसान की गर्भ में होती है किस प्रकार सिकुड़ कर भी पनपता है प्रतिदिन बढ़ता रहता है बाहर आकर खुले आसमान के नीचे आकर वह नीचे की ओर तनाव ग्रस्त, आशंकित, क्रोधित, अहंकारी आदि होते हुए ह्रास होता जाता है।
  4. हमारे जीवन में प्रत्येक उद्देश्य नेक होना चाहिए फिर आपको अपने आप सही दिशा मिलती जाएगी और सही व्यक्ति ही आपके साथ कदम से कदम मिलाकर आपका साथ देंगे।
  5. जब इरादे नेक हो तब ग़ैर वतन के बिल्कुल अजनबी व्यक्ति भी आपके घनिष्ट मित्र और मददगार बन जाते है।
  6. सही सरहाना व्यक्ति का हौंसला बढ़ाती हैं और झूठी प्रशंसा व सम्मान लापरवाह, खुदगर्ज और अहंकारी बनाती है।
  7. चादर से पैर बाहर तब आते हैं जब आदर्शों से बड़े सपने हो जाते हैं।
  8. शब्द जब तक आपके अंदर हैं वह आपके अधीन है और मुंह से बाहर आने के बाद आप उनके अधीन हो जाते हो।
  9. असत्य बोलने के लिए जीभ चाहिए और सच कहने के लिए नेत्र काफी है।
  10. कुछ कष्ट हमारी परिक्षा लेने नहीं अपितु हमारे साथ आए लोगों की पहचान कराने आते हैं।
  11. जितने दिन जिओं मजे में जिओं, किसी को तकलीफ़ मत दो। कोई तकलीफ़ दे तो उसे तकलीफ़ मत मानो कुछ सीखने का मौका मानों।
  12. कारज धीरे होत है काहे होत अधीर। समय पाय तरूवर फलै, केतिक सींचो नीर।
  13. सीखा है हमने जिन्दगी से एक तजुर्बा कि जिम्मेदारियां ही इंसान को समय से पहले बड़ा बनाती है।
  14. प्रार्थना मन की मात्र एक अवस्था है, जहां एक प्रकार का अदभुत आदान-प्रदान होता है।
  15. एक सकारात्मक नजरिया रखने वाले बुजुर्ग ने गागर में सागर कहावत को चरितार्थ करते हुए कहा – हम नदी तो नहीं बना सकते, पर धारा तो बदल सकते हैं। हम नये विचार न सही, सही विचार धारा तो फैला सकते हैं।

अभी पिछले दिनों दिल्ली राजधानी में स्थित एक वृद्धाश्रम जाने का मौका मिला, वहां पर रह रहे सभी बुजुर्गों से बात चीत हुई एक महिला की उम्र 99 वर्ष पता चली, वहीं अन्य बुजुर्ग किसी न किसी सरकारी महकमे से ऊच्चे पद से सेवानिवृत्त पाये गये अन्यथा व्यवसायिक घरानों से थे। इत्तफाक से इस वृद्धाश्रम का नाम ‘आशीर्वाद’ था। इसे बदलते समाज की विडंबना ही कहेंगे कि जो आशीर्वाद या आशीर्वचन अपने घर के बच्चों, पोतों और पोतियों के नसीब में था वह गुमनामी के साये में एकांतवास में है। उस हालात में भी एक बुजुर्ग ने दिल को छूने वाली बड़ी अच्छी बात कह डाली – “खुश वो नहीं जिसका नसीब अच्छा है ; बल्की वो है जो अपने नसीब से खुश हैं।”

‘आशीर्वाद’ वृद्धाश्रम से बाहर आते हुए एक और मंज़र देखने को मिला – प्राइमरी कक्षा के कई सौ स्कूली छात्र अपने टीचर्स के साथ, और बड़े अनुशासन का परिचय देते हुए अन्दर प्रवेश कर रहे थे। जाहिर तौर पर वह सभी अपने अनजान दादा दादी से कहानी-किस्से, उनके संस्मरण और आशीर्वचन के लिए उत्साहित लगें। हैरिटेज इंडिया के संरक्षक सत्य नारायण दूबे अपेक्षित और गुमनामी की ज़िंदगी जी रहे बुजुर्गों को मुख्य धारा से जोड़ने में निरन्तर प्रयासरत हैं। वरिष्ठ नागरिकों का ज्ञान, अनुभव, समझ सभी के लिए परोपकारी साबित हो सकता है यदि इसे परिपेक्ष में समझा जाए। अनुभव ज्ञान ही अभिनव ज्ञान है। वरिष्ठ नागरिक ही सही अर्थों में हमारी संस्कृति, परम्पराओं एवं मान्यताओं के धरोहर और अग्रदूत हैं। बकौल श्री दूबे किसी भी स्थान की परम्पराओं या मान्यताओं को जानने का सबसे अच्छा उपाय यही है कि वहां के वरिष्ठ नागरिकों से सम्पर्क बनाए रखा जाए। कर्मों कि हर जगह की परंपराएं अलग होती है। उनको देश दुनिया से रूबरू कराने का एकमात्र जरिया बुजुर्ग है।

आज बुजुर्ग वर्ग, युवा समुदाय तथा समाज के ठेकेदारों, सभी को आत्म चिंतन व आत्म विश्लेषण करने की आवश्यकता है। समुंद्र के पानी को हथेली में रखेंगे तो समुंद्र की गहराई और विशालता का आभास नहीं होता परन्तु यदि समुंद्र को ज़हन में रख कर अनुभूति करें तो उसकी नैसर्गिक सम्पदा, विशालता, भव्यता का एहसास बखूबी हो जाएगा। वरिष्ठ नागरिक तथा बुजुर्गों को भी उसी दृष्टि से देखने, समझने, आदर व सम्मान की जरूरत है। कहीं मुखौटी जीवन धारणाओं में हम आने वाली पीढ़ी को ही गुमराह न कर रहे हो। अंत में मैं यही स्मरण कराना चाहुंगा जब कागज़ कलम दवात किताब और रिकॉर्डिंग सुविधा उपलब्ध नहीं थी तब सहस्त्रों वर्षों तक बुजुर्ग ऋषि मुनि आचार्यों द्वारा ही हमें वैदिक ज्ञान, जीवन मुल्य, संस्कार, मानवीय आदर्श आदि हमें विरासत के रूप में मिले। इस संस्कारिक धरोहर को विरासत के रूप में ग्रहण करें और उसके प्रवाह को बनाएं रखें। हमारे बुजुर्ग इसमें एक अहम् कढ़ी है। उनका मान सम्मान ही अगली पीढ़ी का अंकुर है।

(लेखक का परिचय : वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष – ‘हैरिटेज इण्डिया’, महासचिव – ‘अपना परिवार’, आजीवन सदस्य – सिनीयर सिटीज़न काउन्सिल ऑफ दिल्ली, वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब तथा हेल्प ऐज इंडिया। आप पिछले 16 वर्षों से वृद्धजन कल्याण सेवा में सक्रिय रूप से कार्यरत हैं और दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ नागरिक सेवा केंद्र से जुड़े हुए है तथा वरिष्ठ नागरिकों के मार्मिक पहलुओं और दशा पर ‘एहसास के पल’ नाम की पुस्तक लिखी जो सरकार द्वारा पुरस्कृत है)